Friday, 20 May 2016

रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के योग

लग्न मेंं स्थित बलवान ग्रह शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देता है। और यदि लग्नेश और दशमेंश मित्र हो अथवा यदि चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच मित्रता हो तो भी रोगी शीघ्र रोग मुक्त होता है। लग्नेश का चन्द्र के साथ संबंध हो और चन्द्र शुभ ग्रहों के प्रभाव मेंं या केन्द्र मेंं स्थित हो तो भी ऐसा होता है, इसी प्रकार शुभ ग्रहों के प्रभाव के अंतर्गत केन्द्र मेंं लग्नेश और चन्द्र की स्थिति शीघ्र लाभ बताती है। इस योग मेंं सप्तमेंश वक्री नहींं होना चाहिए और सप्तमेंश सूर्य या अष्टम भाव के स्वामी से प्रभावित नहींं होना चाहिए।
चन्द्रमा से रोग मुक्ति :
अपनी राशि अथवा उच्च राशि मेंं बलवान चन्द्रमा एक शुभ ग्रह के साथ संबंध बनाए तो रोगी जल्द रोग मुक्त होता है, चन्द्र चर अथवा द्विस्वभाव राशि मेंं होकर, लग्न और लग्नेश ग्रहो द्वारा दृष्ट हो, तब ऐसा होता है। चन्द्रमा अपनी राशी मेंं चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी जल्दी ठीक होता है व शुभ ग्रहो से दृष्ट चन्द्र अथवा सूर्य एक, चार या सातवें भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी ठीक होता है।
देरी या कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं:
यदि लग्नेश और दशमेश के बीच अथवा चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच शत्रुता हो तो रोग और बढ़़ जाता है, यह सभी विषम लग्नों मेंं सत्य होगा, जबकि सम लग्नों मेंं वे मित्र होंगे। षष्टेश रोग बताता है, और यदि किसी प्रश्न कुण्डली मेंं षष्टेश का अष्टमेंश अथवा द्वादशेश के साथ संबंध बनाए तो स्वास्थ्य लाभ की संभावनाएँ नहींं होती। लग्न मेंं चन्द्र अथवा शुक्र हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है, प्रश्न कुण्डली मेंं लग्नेश एवं मंगल की युति का होना भी कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं देता है, द्वादश भाव मेंं लग्नेश स्थित हो तो रोगी देर से ठीक होता है, इसी प्रकार यदि लग्नेश षष्टम, अष्टम भाव मेंं स्थित हो और अष्टमेंश केन्द्र मेंं स्थित हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है।
रोगी के मृत्यु की संभावनाएँ:
लग्नेश, सप्तमेंश से चतुर्थ, षष्ट भाव या सप्तम भाव मेंं स्थित हो तो रोगी की मृत्यु की संभावनाएँ बढ़़ जाती है, या अष्टमेंश की अपेक्षा लग्नेश बलहीन हो तो भी ऐसा होता है, लग्नेश केन्द्र मेंं स्थित हो और वक्री ग्रह अथवा अस्त ग्रह के साथ संबंध बनाए, लग्नेश और अष्टमेंश युति मेंं हो, क्रूर ग्रहों से पीडि़त होकर केन्द्र मेंं स्थित होने पर रोगी ठीक नहींं होता है, यदि लग्न मेंं चर राशि है तो प्रारम्भ मेंं तो रोगी ठीक होता लगता है लेकिन रोग वापस आने से मृत्यु हो जाती है।

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