Thursday, 19 May 2016

पढाई-लिखाई में सफलता के शास्त्रीय उपाय

पढाई-लिखाई मेंं सफलता के शास्त्रीय उपाय विद्यार्थी जगत की उपलब्धियों मेंं पुस्तक, विद्यालय और शिक्षक के अलावा जिन महत्वपूर्ण बातों का विशिष्ट योगदान रहता है। उनमेंं परिवेश अर्थात वास्तु एवं अन्य कारकों का सही योगदान होने और कुछ छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से उपलब्धि की गुणवत्ता निश्चित रूप से कई गुना बढ़़ जाती है। यहां ऐसे कुछ घटक तत्वों और कारकों का उल्लेख है जिनका लाभ सभी विद्यार्थी उठा सकते हैं। अध्ययन कक्ष एक ऐसा स्थान है, जहां पर व्यक्ति ज्ञान, बुद्धि के साथ-साथ पढ़ऩे के शौक को पूरा करता है। इस कक्ष का वास्तविक क्षेत्र, भवन के उत्तर-पूर्व मेंं होता है। इसके अलावा यह कक्ष उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम दिशा के बीच भी हो सकता है। दक्षिण-पश्चिम (नैत्य कोण) दक्षिण, वायव्य कोण अध्ययन कक्ष के लिए उपयुक्त नहींं होते। उत्तर-पश्चिम दिशा के बढ़़े हुए भाग मेंं बच्चों को कभी अध्ययन न करने दें। यहां अध्ययन करने से बच्चे के घर से भागने की इच्छा होगी। अध्ययन-कक्ष मेंं विद्यार्थियों को सदैव पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ मुंह करके पढ़ऩा चाहिए। इससे वह विलक्षण प्रतिभा का धनी व ज्ञानवान होगा। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ऩे वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अधिकारी तक हो सकते हैं। पूर्व दिशा लिखने-पढ़ऩे के लिए सर्वोत्तम होती है। उत्तर-पूर्व मेंं रहने वाले बच्चे की सेहत भी काफी अच्छी रहती है। मकान के उत्तर-पूर्व कोण के बने कमरे मेंं दक्षिण या पश्चिम की ठोस दीवार के सहारे बैठकर पढ़ऩे से सफलता जल्दी मिलती है। इस कमरे मेंं उत्तर-पूर्व की दीवार पर रोशनदान या खिडक़ी जरूर होनी चाहिए। बच्चे को आग्नेय कोण मेंं बैठकर पढ़ऩे से मना करें, क्योंकि यहां बैठने से रक्तचाप बढ़़ता है और बच्चा हमेशा ही परेशान रहता है। मेहनत करने के बावजूद भी सफलता हाथ नहींं लगती। पढ़़ाई हो या दफ्तर, पीठ के पीछे खिडक़ी शुभ नहींं होती। इससे पढ़़ाई/नौकरी छूट जाती है। पीछे व कंधे पर रोशनी या हवा का आना अशुभता को ही दर्शाता है। जिस मकान मेंं, जहां कहीं भी तीन या इससे अधिक दरवाजे एक सीध मेंं हो या गली की सीध मेंं हों तो उसके बीच मेंं बैठकर नहींं पढ़ऩा चाहिए। इसके बीच मेंं बैठकर पढ़ऩे से बच्चे की सेहत ठीक नहींं रहती, साथ ही पढ़ऩे मेंं भी मन नहींं लगता। विद्यार्थियों को किसी बीम या दुछत्ती के नीचे बैठकर पढ़ऩा या सोना नहींं चाहिए, अन्यथा मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। अध्ययन कक्ष की दीवार या पर्दे का रंग हल्का पीला, हल्का हरा, हल्का आसमानी हो तो बेहतर है। कुंडली के अनुसार शुभ रंग जानकर अगर दीवारों पर करवाया जाये, तो ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आते हैं। यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से दक्षिण व पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। ईशान कोण मेंं कभी भी कम्प्यूटर न रखें। अध्ययन-कक्ष के टेबल पर उत्तर-पूर्व कोण मेंं एक गिलास पानी का रखें। इसके अलावा टेबल के सामने या पास मेंं मुंह देखने वाला आईना न रखें। अध्ययन कक्ष मेंं सोना मना है। इस कारण से वहां पर पलंग, गद्दा-रजाई आदि नहींं होनी चाहिए। वैसे सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा की ओर अच्छा रहता है।
रुद्राक्ष रत्न कवच:
यह कवच चार मुखी रुद्राक्ष एवं पन्ना रत्न के संयुक्त मेंल से निर्मित होता है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप होने से इसे विद्या प्राप्ति के लिए धारण करना शुभ होता है। पन्ना रत्न से बुद्धि का विकास होता है, जिससे पढ़़ाई मेंं अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
सरस्वती यंत्र:
जिन विद्यार्थियों को अधिक मेंहनत करने पर भी परीक्षा मेंं अच्छे अंक प्राप्त नहींं होते, उन्हें यह यंत्र घर मेंं स्थापित करना चाहिए और श्रद्धा से धूप, दीप, गंध, अक्षत आदि से पूजन तथा निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।
मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नम:॥ या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
फेंगशुई:
अगर बच्चे का पढ़़ाई मेंं मन नहींं लगा रहा हो, तो टेबल पर एजुकेशन टावर लगाना चाहिए। इसके प्रभाव से बच्चे की पढ़़ाई मेंं एकाग्रता बढ़़ेगी और पढ़़ाई मेंं बच्चे का मन लगने लगेगा। बच्चे की परीक्षा मेंं शानदार सफलता के लिए अध्ययन कक्ष मेंं स्फटिक गोले उत्तर दिशा मेंं लटकाने चाहिए। नवरत्न का पौधा बच्चे के नवग्रह को ठीक करता है। इसे उत्तर दिशा मेंं लगाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी मेंज पर ग्लोब रखें और इसे दिन मेंं तीन बार घुमाएं।
पिरामिड :
पिरामिड का जल अगर बच्चे को पिलाया जाये तो बच्चे की सेहत ठीक रहेगी और बच्चे की पढ़़ाई मेंं रुचि बढ़़ेगी।

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