Tuesday, 17 May 2016

मुख्य द्वार की सही दिशा लाये जीवन में खुशहाली

आपके घर का इंटीरियर से आपके व्यक्तित्व और आपकी पसंद-नापसंद का पाता चलता है | मीठी भावनाओं के रंगों में रंगने व् पसंदीदा चीजों से सजने के कारण घर का हार कोना, जिसे अपने बड़े ही करीने से सजाया है, वह बेजान होते हुए भी जीवंत हो उठता है |
घर की खूबसूरती मेंं उसके मुख्य प्रवेश द्वार का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिसका वास्तु के अनुरूप होना घर मेंं खुशियों के प्रवेश का शुभ संकेत माना जाता है। जिस तरह किसी भी व्यक्ति का खूबसूरत चेहरा आपके मन मेंं उस व्यक्ति के बारे मेंं जानने की उत्सुकता पैदा करता है। ठीक उसी तरह घर का खूबसूरत प्रवेश द्वार आपको घर के भीतर झाँकने का प्रथम निमंत्रण देता है। आगंतुकों को घर मेंं प्रवेश हेतु आकर्षित करने वाले घर के मुख्य प्रवेश द्वार का वास्तुसम्मत होना आपके घर मेंं खुशियों व सकारात्मक ऊर्जा के आगमन का संकेत है।
वास्तुदोष को दूर करने के लिए कई बार हम कमरों के इंटीरियर मेंं फेरबदलकर तरह-तरह के उपाय करते हैं, लेकिन ऐसा करते समय हम घर के सबसे अहम भाग यानी कि घर के मुख्य प्रवेश द्वार के वास्तु पर ध्यान देना भूल जाते हैं, जो कि घर मेंं सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश का मुख्य स्रोत होता है।
घर या ऑफिस मेंं यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्य द्वार की दिशा और दशा ठीक की जाए। वास्तुशास्त्र मेंं मुख्य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। वास्तु ने हमेंंं कई ऐसे विकल्प दिए हैं, जिन पर अमल कर हम बगैर तोड?ोड़ व नवीन निर्माण के अपने घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं। यहाँ हम आपको जानकारी दे रहे हैं, घर के प्रवेश द्वार के वास्तुदोष के निवारण के कुछ आसान उपायों की।
क्या है इसके पीछे लॉजिक:
वास्तु के अनुसार घर के भीतर व बाहर गंदगी या कूड़ा-कर्कट नहींं होना चाहिए। इससे भवन मेंं नकारात्मक ऊर्जा के रूप मेंं बीमारियों का वास होता है। इसी के साथ ही घर के सामने किसी ओर के घर का मुख्य दरवाजा होना, घर का मुख्य दरवाजा खोलने पर उसका आवाज करना, दरवाजे के ठीक पास अंडरग्राउंड ट्रैंक का होना आदि वास्तु की दृष्टि मेंं शुभ नहींं माना गया है। सभी वास्तुदोषों के निवारण के लिए आप घर के दरवाजों की मरम्मत करवाकर तथा मुख्य द्वार के ऊपर कोई भी माँगलिक धार्मिक चिन्ह लगाकर घर मेंं सकारात्मक ऊर्जा के प्रतिशत को बढ़़ा सकते हैं। यदि हम घर के मुख्य दरवाजे के अन्य दरवाजों से आकार मेंं बड़ा होने के पीछे लॉजिक की बात करें तो इसका लॉजिक घर मेंं अधिक से अधिक रोशनी का प्रवेश होना है, जिसे घर मेंं अंधेरेपन को दूर करने व स्वास्थ्य के लिहाज दोनोंं ही दृष्टि से बेहतर माना जाता है।
मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों मेंं से जो महत्ता हमारे मुख की है, वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार की होती है।
साधारणतया किसी भी भवन मेंं मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमेंं से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चारदीवारों मेंं प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन मेंं प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वयज़्, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक मुख्य द्वार जीवन मेंं अनेक समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
जहां तक संभव हो पूवज़् एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूवोज़्त्तर अथाज़्त ईशान कोण मेंं बनाएं। पश्चिम मुखी भवन पश्चिम-उत्तर कोण मेंं व दक्षिण मुखी भवन मेंं द्वार दक्षिण-पूवज़् मेंं होना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा मेंं मुख्य द्वार का निमाज़्ण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे मेंं प्रवेश के लिए उपरोक्त मेंं से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है। नए भवन के मुख्य द्वार मेंं किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या पुरी कड़?ियों की लकड़ी प्रयोग न करें।
मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही हो, इसकी आकृति किसी प्रकार के आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो। यह त्रिकोण, गोल, वगाकजऱ या बहुभुज की आकृति का न हो।
विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई कर्कश ध्वनि पैदा न करें। आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपाटज़्मेंंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है। जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों मेंं कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट मेंं अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊजाए भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमेंं हम द्वार बेध या मागज़् बेध कहते हैं। प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊजाज़् देते हैं, जैसे घर का ‘टी’ जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बीचोंबीच कोई पेड़, सामने के भवन मेंं बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि। इन सबको वास्तु मेंं शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है। वास्तु मेंं घर के मुख्य द्वारा हेतु कुछ महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जिनके अनुसार यदि आप अपने घर का मुख्य द्वार बनवाते हैं तो आपके घर मेंं सुख-समृद्धि का वास होता है।
घर के मुख्य प्रवेश द्वार का दरवाजा घर के अन्य दरवाजों की अपेक्षा आकार मेंं बड़ा होना चाहिए। इससे घर मेंं भरपूर मात्रा मेंं रोशनी का प्रवेश हो सके। इसके लिए अन्य खास बाते हैं:
* शुभ फल प्राप्ति हेतु पूर्व या उत्तर दिशा मेंं मुख्य बनवाना चाहिए।
* घर का मुख्य द्वार हमेंंशा दो भागों मेंं खुलने वाला ही बनवाएँ। वास्तु मेंं ऐसे द्वार को शुभ माना गया है।
* घर के मुख्य द्वार के समीप तुलसी का पौधा लगाना वास्तु के अनुसार शुभ फलदायक होता है।
* मकान के मुख्य द्वार पर नींबू या संतरे का पौधा लगाने से घर मेंं संपदा की वृद्घि होती हैं।
क घर के मुख्य द्वार पर बाहर की तरफ पौधे लगायें।
* घर के मुख्य द्वार पर अपनी धार्मिक मान्यतानुसार कोई भी माँगलिक चिन्ह (स्वस्तिक, ú, कलश, क्रॉस आदि) लगाएँ।
* घर का मुख्य दरवाजा दो फाटक वाला तथा भीतर की ओर खुलने वाला होना चाहिए।
* घर का मुख्य दरवाजा खोलने पर उसके पुर्जों मेंं जंग या किसी अन्य वजह से चरमराहट जैसी कोई आवाज नहींं होना चाहिए।
* घर के प्रवेश द्वार पर देहरी होना चाहिए।
* आपके घर का मुख्य प्रवेश द्वार ऐसा होना चाहिए कि उसके ठीक सामने किसी अन्य घर का प्रवेश द्वार न हो।
* घर के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक पास अंडरग्राउंड टैंक नहींं होना चाहिए।

No comments: