साधारणतया हम आजीविका के लिए जन्मकुंडली मेंं दशम भाव देखते हैं। छठा भाव नौकरी एवं सेवा का है। उसका कारक ग्रह शनि है। दशम भाव का छठे भाव से संबंध होना नौकरी दर्शाता है। नौकरी मेंं जातक किसी दूसरे के अधीन कार्यरत होता है। लग्न मेंं, अथवा दशम भाव मेंं शनि का होना भी नौकरी दर्शाता है। शनि ग्रह को ‘दास’ एवं शूद्र ग्रह की पदवी दी गयी है। कुंडली मेंं शनि दशम भाव का कारक ग्रह है। शनि ग्रह के बलवान होने की स्थिति मेंं जातक स्वयं मेंहनत करके जीविकोपार्जन करता है।
इसके साथ सप्तम भाव को भी देखते हैं, जो दशम भाव से दशम है और ‘‘भावात-भावम’’ सिद्धांत को प्रतिपादित करता है। सप्तम भाव से साझेदारी, सहयोग, दैनिक आय तथा यात्रा का निर्धारण करते हैं। व्यापार मेंं कई सहयोगियों की आवश्यकता होती है, चाहे सहयोग, साझेदारों के अलावा कर्मचारी, अथवा नौकर ही क्यों न दें। दशम भाव बलवान होने पर नौकरी तथा सप्तम भाव बलवान होने पर व्यवसाय का चयन करना चाहिए।
अब दशम और सप्तम भाव के कुछ विशेष बिंदुओं को ध्यान से देखेंगे, जो व्यापार एवं नौकरी मेंं महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
दशम भाव: कुंडली मेंं दशम भाव मेंं स्थित मकर राशि के कारक तत्वों मेंं नौकरी संबंधी गुणों की अधिकता होती है। इस राशि पर विशेष प्रभाव रखने वाले ग्रह है: मंगल मकर राशि मेंं उच्च का होता है, जो ऊर्जा, क्षमता तथा पुरूषार्थ का प्रतीक है और एक सेवक के लिए आवश्यक है। बृहस्पति मकर राशि मेंं नीच का होता है, जो नेतृत्व गुण का क्षय, धन की अल्पता तथा तेजहीनता का सूचक है। शनि इस राशि का स्वामी भी है। वह शूद्र वर्ण, एकांतप्रिय, शांत स्वभाव वाला है। ये सभी कारकत्व नौकरी एवं सेवा की ओर अग्रसर करते हैं। इसके अलावा दशम भाव का त्रिकोणीय संबंध द्वितीय भाव, षष्ठ भाव से होता है। द्वितीय भाव धन एवं षष्ठ भाव सेवा, अथवा नौकरी दर्शाते हैं। षष्ठ भाव, दशम भाव का भाग्य भाव है। अत: इसको अच्छा होना चाहिए।
सप्तम भाव: कुंडली मेंं सप्तम भाव मेंं स्थित तुला राशि के कारकत्वों मेंं व्यापार संबंधी गुणों की प्रधानता होती है। इस राशि पर विशेष प्रभाव रखने वाले ग्रह है- सूर्य, जो न्याय एवं आत्मा का प्रतीक है। उसके नीच होने के कारण व्यक्ति व्यापार मेंं मापदंड मेंं भेद की नीति अपनाता है। शनि उच्च का होने के कारण जातक मेंं दूसरों के श्रम से धनोपार्जन तथा जनता एवं सेवकों से लाभ प्राप्त करने का गुण होता है। शुक्र इस राशि का स्वामी है जो काम, भोग एवं कला का प्रतीक है और ये एक कुशल व्यापारी के गुण है। व्यापार की सफलता के लिए द्वितीय, पंचम, नवम, सप्तम, दशम और एकादश भाव तथा उन भावों मेंं ग्रहों की स्थिति अच्छी होनी चाहिए अन्यथा ऐसा जातक नौकरी करता है।
धन योग: जातक की कुंडली मेंं धन योग की मात्रा देखकर निर्धारित कर सकते हैं कि जातक की पत्री मेंं व्यापार एवं नौकरी का स्तर क्या हो सकता है।
व्यवसाय योग: जन्मपत्री मेंं दशम भाव कर्म का है और नौकरी से संबंधित है तथा सप्तम भाव व्यापार प्रक्रिया तथा साझेदारी व्यवसाय को व्यक्त करता है। वृष, कन्या तथा मकर व्यापार की मुख्य राशियां है। चंद्र, बुध, गुरु तथा राहु व्यापार करने के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है। जन्मकुंडली मेंं लग्न, चंद्रमा, द्वितीय, एकादश, दशम, नवम तथा सप्तम भाव का मजबूत होना। लग्न स्वामी के साथ द्वितीय और एकादश के स्वामी का केंद्र या त्रिकोण मेंं होना तथा शुभ ग्रह से दृष्ट होना। मजबूत लग्न स्वामी के साथ द्वितीय या एकादश के स्वामी का बृहस्पति के साथ दशम या सप्तम मेंं होना। पंचम भाव या भावेश का संबंध यदि दशम, दशमेंश से है तो जातक अपनी शिक्षा का उपयोग व्यवसाय मेंं अवश्य करता है। व्यवसाय के संदर्भ मेंं राशियों और ग्रहों की प्रकृति और तत्व को भी ध्यान मेंं रखना होगा। साथ मेंं नक्षत्र भी व्यापार एवं नौकरी के संदर्भ मेंं जानकारी देने मेंं सहयोगी होते हैं। बुद्धिमान ज्योतिषी को ग्रह, योग, महादशा, अंतर्दशा, गोचर के साथ ही देश, काल और परिस्थिति को ध्यान मेंं रखते हुए नौकरी व्यवसाय का निर्धारण करना चाहिए। रोजगार से संबंधित अनिष्ट दूर करने के उपाय यदि दशमेंश 5, 8, 12 भावों मेंं हो तो उस ग्रह से संबंधित रत्न या उपरत्न या उसकी धातु के दो बराबर वजन के टुकड़े लेकर, एक टुकड़े को बहते हुए जल मेंं प्रवाहित करके, दूसरा टुकड़ा अपने पास आजीवन संभाल कर रखें। किसी उग्र देवी या देवता जैसे हनुमान जी, पंचमुखी हनुमान जी, भैरव जी, काली जी, तारा, कालरात्रि, छिन्नमस्ता, भैरवी जी, मां बगलामुखी जी का अनुष्ठान करके उसकी नित्य साधना करें। नवग्रह शांति करवाएं। इसके लिए भगवान दत्तात्रेय जी के तंत्र का उपाय इस प्रकार है: एक हांडी मेंं मदार की जड़, धतूरे, चिरचिटे दूब, बट, पीपल की जड़, आम, भूजर, शमी का पत्ता, घी, दूध, चावल, मूंग, गेहूं, तिल, शहद और में भर कर शनिवार के दिन संध्या काल के समय, पीपल के पेड़ की जड़ मेंं गाड़ देने से समस्त ग्रहों के उपद्रवों का नाश हो जाता है। द्वितीयेश यदि 6, 8, 12 भावों मेंं न हो, तो उस ग्रह का रत्न धारण करें। दस अंधे व्यक्तियों को भोजन कराने से कष्ट कम हो सकता है। अपने भोजन मेंं से एक रोटी निकाल कर, उसके तीन भाग करके, एक भाग गाय को, दूसरा भाग कुत्ते को और तीसरा भाग कौए को नित्य खिलाएं। केसर खाएं या नित्य हल्दी का तिलक लगाएं। खोये के गोले को ऊपर से काट कर उसमेंं देशी घी और देशी खांड भर कर बाहर सुनसान जगह, जहां चींटी का स्थान हो, उसके समीप जमीन खोद कर उस गोले को इस तरह गाड़ दें कि उसका मुंह खुला रहे, ताकि चींटियां को खाने मेंं असुविधा न हो।
इसके साथ सप्तम भाव को भी देखते हैं, जो दशम भाव से दशम है और ‘‘भावात-भावम’’ सिद्धांत को प्रतिपादित करता है। सप्तम भाव से साझेदारी, सहयोग, दैनिक आय तथा यात्रा का निर्धारण करते हैं। व्यापार मेंं कई सहयोगियों की आवश्यकता होती है, चाहे सहयोग, साझेदारों के अलावा कर्मचारी, अथवा नौकर ही क्यों न दें। दशम भाव बलवान होने पर नौकरी तथा सप्तम भाव बलवान होने पर व्यवसाय का चयन करना चाहिए।
अब दशम और सप्तम भाव के कुछ विशेष बिंदुओं को ध्यान से देखेंगे, जो व्यापार एवं नौकरी मेंं महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
दशम भाव: कुंडली मेंं दशम भाव मेंं स्थित मकर राशि के कारक तत्वों मेंं नौकरी संबंधी गुणों की अधिकता होती है। इस राशि पर विशेष प्रभाव रखने वाले ग्रह है: मंगल मकर राशि मेंं उच्च का होता है, जो ऊर्जा, क्षमता तथा पुरूषार्थ का प्रतीक है और एक सेवक के लिए आवश्यक है। बृहस्पति मकर राशि मेंं नीच का होता है, जो नेतृत्व गुण का क्षय, धन की अल्पता तथा तेजहीनता का सूचक है। शनि इस राशि का स्वामी भी है। वह शूद्र वर्ण, एकांतप्रिय, शांत स्वभाव वाला है। ये सभी कारकत्व नौकरी एवं सेवा की ओर अग्रसर करते हैं। इसके अलावा दशम भाव का त्रिकोणीय संबंध द्वितीय भाव, षष्ठ भाव से होता है। द्वितीय भाव धन एवं षष्ठ भाव सेवा, अथवा नौकरी दर्शाते हैं। षष्ठ भाव, दशम भाव का भाग्य भाव है। अत: इसको अच्छा होना चाहिए।
सप्तम भाव: कुंडली मेंं सप्तम भाव मेंं स्थित तुला राशि के कारकत्वों मेंं व्यापार संबंधी गुणों की प्रधानता होती है। इस राशि पर विशेष प्रभाव रखने वाले ग्रह है- सूर्य, जो न्याय एवं आत्मा का प्रतीक है। उसके नीच होने के कारण व्यक्ति व्यापार मेंं मापदंड मेंं भेद की नीति अपनाता है। शनि उच्च का होने के कारण जातक मेंं दूसरों के श्रम से धनोपार्जन तथा जनता एवं सेवकों से लाभ प्राप्त करने का गुण होता है। शुक्र इस राशि का स्वामी है जो काम, भोग एवं कला का प्रतीक है और ये एक कुशल व्यापारी के गुण है। व्यापार की सफलता के लिए द्वितीय, पंचम, नवम, सप्तम, दशम और एकादश भाव तथा उन भावों मेंं ग्रहों की स्थिति अच्छी होनी चाहिए अन्यथा ऐसा जातक नौकरी करता है।
धन योग: जातक की कुंडली मेंं धन योग की मात्रा देखकर निर्धारित कर सकते हैं कि जातक की पत्री मेंं व्यापार एवं नौकरी का स्तर क्या हो सकता है।
व्यवसाय योग: जन्मपत्री मेंं दशम भाव कर्म का है और नौकरी से संबंधित है तथा सप्तम भाव व्यापार प्रक्रिया तथा साझेदारी व्यवसाय को व्यक्त करता है। वृष, कन्या तथा मकर व्यापार की मुख्य राशियां है। चंद्र, बुध, गुरु तथा राहु व्यापार करने के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है। जन्मकुंडली मेंं लग्न, चंद्रमा, द्वितीय, एकादश, दशम, नवम तथा सप्तम भाव का मजबूत होना। लग्न स्वामी के साथ द्वितीय और एकादश के स्वामी का केंद्र या त्रिकोण मेंं होना तथा शुभ ग्रह से दृष्ट होना। मजबूत लग्न स्वामी के साथ द्वितीय या एकादश के स्वामी का बृहस्पति के साथ दशम या सप्तम मेंं होना। पंचम भाव या भावेश का संबंध यदि दशम, दशमेंश से है तो जातक अपनी शिक्षा का उपयोग व्यवसाय मेंं अवश्य करता है। व्यवसाय के संदर्भ मेंं राशियों और ग्रहों की प्रकृति और तत्व को भी ध्यान मेंं रखना होगा। साथ मेंं नक्षत्र भी व्यापार एवं नौकरी के संदर्भ मेंं जानकारी देने मेंं सहयोगी होते हैं। बुद्धिमान ज्योतिषी को ग्रह, योग, महादशा, अंतर्दशा, गोचर के साथ ही देश, काल और परिस्थिति को ध्यान मेंं रखते हुए नौकरी व्यवसाय का निर्धारण करना चाहिए। रोजगार से संबंधित अनिष्ट दूर करने के उपाय यदि दशमेंश 5, 8, 12 भावों मेंं हो तो उस ग्रह से संबंधित रत्न या उपरत्न या उसकी धातु के दो बराबर वजन के टुकड़े लेकर, एक टुकड़े को बहते हुए जल मेंं प्रवाहित करके, दूसरा टुकड़ा अपने पास आजीवन संभाल कर रखें। किसी उग्र देवी या देवता जैसे हनुमान जी, पंचमुखी हनुमान जी, भैरव जी, काली जी, तारा, कालरात्रि, छिन्नमस्ता, भैरवी जी, मां बगलामुखी जी का अनुष्ठान करके उसकी नित्य साधना करें। नवग्रह शांति करवाएं। इसके लिए भगवान दत्तात्रेय जी के तंत्र का उपाय इस प्रकार है: एक हांडी मेंं मदार की जड़, धतूरे, चिरचिटे दूब, बट, पीपल की जड़, आम, भूजर, शमी का पत्ता, घी, दूध, चावल, मूंग, गेहूं, तिल, शहद और में भर कर शनिवार के दिन संध्या काल के समय, पीपल के पेड़ की जड़ मेंं गाड़ देने से समस्त ग्रहों के उपद्रवों का नाश हो जाता है। द्वितीयेश यदि 6, 8, 12 भावों मेंं न हो, तो उस ग्रह का रत्न धारण करें। दस अंधे व्यक्तियों को भोजन कराने से कष्ट कम हो सकता है। अपने भोजन मेंं से एक रोटी निकाल कर, उसके तीन भाग करके, एक भाग गाय को, दूसरा भाग कुत्ते को और तीसरा भाग कौए को नित्य खिलाएं। केसर खाएं या नित्य हल्दी का तिलक लगाएं। खोये के गोले को ऊपर से काट कर उसमेंं देशी घी और देशी खांड भर कर बाहर सुनसान जगह, जहां चींटी का स्थान हो, उसके समीप जमीन खोद कर उस गोले को इस तरह गाड़ दें कि उसका मुंह खुला रहे, ताकि चींटियां को खाने मेंं असुविधा न हो।
No comments:
Post a Comment