चमत्कारिक भूतेश्वर नाथ शिवलिंग हर साल बढती है इसकी लम्बाई
भारत की अपनी ताकत और तासीर रही है। कभी अफगानी योद्धाओं ने तो कभी अंग्रेजी ताकतों ने, इस देश को सभी ने बर्बाद करने की पूरी कोशिश की किन्तु हमारा धर्म, हमारी संस्कृति और संस्कारों की वजह से ही भारत आज भी मौजूद है।
आज पूरे विश्व मेंं सनातन धर्म को आदर के भाव से देखा जाता है। धार्मिक चमत्कार तो इस देश मेंं पग-पग पर देखे जा सकते हैं। तो आइये पढ़़ते हैं ऐसे ही एक भगवान शिव जी के प्राकृतिक शिवलिंग के बारें मेंं जिसकी लम्बाई हर साल 6से 8इंच बढ़़ रही है।
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गांव मेंं घने जंगलों बीच एक शिव भगवान का प्राकर्तिक शिवलिंग है जो की भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग है। सबसे बढ़़ी आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है।
यह जमीन से लगभग 18फीट úचा एवं 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6से 8इंच बढ़ रही है। यहाँ आने वाले लोग शिव भगवान के साथ साथ इस शिवलिंग और नंदी की पूजा करते हैं। इस शिवलिंग के बारे मेंं बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाड़ी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मेंं घूमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति वाले टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) एवं शेर के दहाडऩें की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई। ग्राम वासियों ने भी शाम को उक्त आवाजें अनेक बार सुनी तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की। परंतु दूर-दूर तक किसी जानवर के नहींं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढऩे लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप मेंं मानने लगे। इस बारे मेंं पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप मेंं था। धीरे धीरे इसकी उंचाई एवं गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग मेंं प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है। कुछ स्थानीय लोग इसे भकुरा महादेव के नाम से भी जानते हैं। इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 मेंं गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408मेंं उल्लेखित है जिसमेंं इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है।
यह भी किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों मेंं भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप मेंं स्थापित हो गए। घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद यहाँ पर सावन मेंं कावडिय़ों का हुजूम उमड़ता है। इसके अलावा शिवरात्रि पर भी यहाँ विशाल मेला भरता है।
बेशक आज का विज्ञान इस बात को अंधविश्वास कहे किन्तु यहाँ जाने वाले लोगों की आस्था अंधी नहींं है। सावन मेंं तो इस शिवलिंग की पूजा करने के लिए घंटों इंतजार भी करना पड़ता है। आसपास के लोग बताते हैं कि यह शिवलिंग बेहद शक्तिशाली है और इसके दर्शन मात्र से शिव भगवान की कृपा प्राप्ति होती है और व्यक्ति के कई दु:ख व तकलीफ खत्म हो जाते हैं। आज भूतेश्वर नाथ जी के दर्शनों के लिए पूरे भारत से भक्त और पर्यटक यहाँ आते हैं।
भारत की अपनी ताकत और तासीर रही है। कभी अफगानी योद्धाओं ने तो कभी अंग्रेजी ताकतों ने, इस देश को सभी ने बर्बाद करने की पूरी कोशिश की किन्तु हमारा धर्म, हमारी संस्कृति और संस्कारों की वजह से ही भारत आज भी मौजूद है।
आज पूरे विश्व मेंं सनातन धर्म को आदर के भाव से देखा जाता है। धार्मिक चमत्कार तो इस देश मेंं पग-पग पर देखे जा सकते हैं। तो आइये पढ़़ते हैं ऐसे ही एक भगवान शिव जी के प्राकृतिक शिवलिंग के बारें मेंं जिसकी लम्बाई हर साल 6से 8इंच बढ़़ रही है।
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गांव मेंं घने जंगलों बीच एक शिव भगवान का प्राकर्तिक शिवलिंग है जो की भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग है। सबसे बढ़़ी आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है।
यह जमीन से लगभग 18फीट úचा एवं 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6से 8इंच बढ़ रही है। यहाँ आने वाले लोग शिव भगवान के साथ साथ इस शिवलिंग और नंदी की पूजा करते हैं। इस शिवलिंग के बारे मेंं बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाड़ी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मेंं घूमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति वाले टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) एवं शेर के दहाडऩें की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई। ग्राम वासियों ने भी शाम को उक्त आवाजें अनेक बार सुनी तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की। परंतु दूर-दूर तक किसी जानवर के नहींं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढऩे लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप मेंं मानने लगे। इस बारे मेंं पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप मेंं था। धीरे धीरे इसकी उंचाई एवं गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग मेंं प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है। कुछ स्थानीय लोग इसे भकुरा महादेव के नाम से भी जानते हैं। इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 मेंं गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408मेंं उल्लेखित है जिसमेंं इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है।
यह भी किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों मेंं भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप मेंं स्थापित हो गए। घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद यहाँ पर सावन मेंं कावडिय़ों का हुजूम उमड़ता है। इसके अलावा शिवरात्रि पर भी यहाँ विशाल मेला भरता है।
बेशक आज का विज्ञान इस बात को अंधविश्वास कहे किन्तु यहाँ जाने वाले लोगों की आस्था अंधी नहींं है। सावन मेंं तो इस शिवलिंग की पूजा करने के लिए घंटों इंतजार भी करना पड़ता है। आसपास के लोग बताते हैं कि यह शिवलिंग बेहद शक्तिशाली है और इसके दर्शन मात्र से शिव भगवान की कृपा प्राप्ति होती है और व्यक्ति के कई दु:ख व तकलीफ खत्म हो जाते हैं। आज भूतेश्वर नाथ जी के दर्शनों के लिए पूरे भारत से भक्त और पर्यटक यहाँ आते हैं।
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