Saturday, 14 May 2016

आनंद और सुख का दाता –भृगु

शुक्र ग्रह को वैदिक अथवा पश्चिमी ज्योतिषाचार्यों ने स्त्री ग्रह का दर्जा दिया है। शुक्र को वास्तव मेंं स्त्री ग्रह का दर्जा तो दिया गया है, लेकिन इसका वास्तविक प्रभाव प्रत्येक जीवधारी मेंं बराबर का मिलता है, पुरुष के अन्दर स्त्री अंगों की उपस्थिति भी इस ग्रह का भान करवाती है। जिस प्रकार से मंगल की गर्मी गुस्सा और उत्तेजना को पुरुष और स्त्री दोनों के अन्दर समान भाव मेंं पाया जाना है, उसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव स्त्री और पुरुष दोनों के अन्दर समान भाव मेंं पाया जाता है।
शुक्र आनन्द और सुन्दरता का प्रदाता:
शुक्र को आनन्द का ग्रह कहा जाता है, वैसे सभी ग्रह अपने अपने प्रकार का आनन्द प्रदान करते है, सूर्य राज्य का आनन्द प्रदान करवाता है, मंगल वीरता और पराक्रम का आनन्द प्रदान करवाता है, चन्द्र भावुकता का आनन्द देता है, बुध गाने बजाने का आनन्द देता है, गुरु ज्ञानी होने का आनन्द देता है, शनि समय पर कार्य को पूरा करने का आनन्द देता है। शुक्र आनन्द की अनुभूति जब देता है, जब किसी सुन्दरता के अन्दर प्रवेश हो, भौतिक रूप से या महसूस करने के रूप से, जैसे भौतिक रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति को सुन्दरता के साथ देखा जाये, महसूस करने के रूप से जैसे किसी की कला का प्रभाव दिल और दिमाग पर हावी हो जावे। शुक्र आनन्द के साथ दर्द का कारक भी है, जब हम किसी प्रकार से सुन्दरता के अन्दर प्रवेश करते हैं तो आनन्द की अनुभूति होती है, और जब किसी भद्दी जगह या बुरे व्यक्ति से सम्पर्क करते है तो कष्ट भी होता है।
शुक्र एक तेज कारक ग्रह है:
दूसरे ग्रहों की तरह से शुक्र के संबन्ध मेंं पुराणों मेंं अनेक रोचक उदाहरण मिलते है, मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्र भृगु ऋषि के पुत्र है, उनकी माता का नाम ख्याति था। इन्द्र की पुत्री जयंती से शुक्र का विवाह हुआ था, इनकी दूसरी पत्नी जो गो है, वह पितरों की कन्या थी, उनकी गो नामक पत्नी से त्वष्ठा वरुत्री शंड और अमर्क नामक चार पुत्र पैदा हुये थे, शुक्र को दानवों का पुरोहित कहा जाता है, शुक्र ने अपने तपोबल से मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, इसी विद्या के बल पर शुक्र मृत दानवों को पुन: जीवित कर देते थे, बृहस्पति के पुत्र कच ने शुक्र का सानिध्य पाकर उनके शिष्य बन गये थे, और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा करने के बाद मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, शुक्र ने एक हजार वर्ष वाले भयंकर धूम्रवत को सम्पन्न कर शिव से वरदान प्राप्त किया था। शिव ने उन्हे वरदान दिया कि वे अपने तप बुद्धि शास्त्र ज्ञान बल और तेज से समस्त देवताओं को पराजित करेंगे। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्र ने ग्रह का रूप धारण किया था। यह शास्त्र कथा है, शास्त्र कथाओं का उद्देश्य केवल कथा के रूप मेंं याद करवाने की क्रिया होती है, उस कथा का अर्थ और कहीं जा कर निकलता है।
खगोलीय विज्ञान मेंं शुक्र:
सूर्योदय या सूर्यास्त के समय तीव्र द्युति वाले इस ग्रह को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है, इसलिये इसे भोर का तारा या साध्य तारा भी कहते हैं। सूर्य से शुक्र की मध्यम दूरी 67200000 मील है, इसका आकार पृथ्वी जैसा ही है। पृथ्वी का भूमध्यीय व्यास 7927 मील है, और शुक्र का 7700 मील है। 218मील प्रति सेकेण्ड की गति से शुक्र सूर्य की एक परिक्रमा 244 दिन 7 घंटे मेंं पूरी करता है।
ज्योतिष मेंं शुक्र:
ज्योतिष शास्त्र मेंं शुक्र को गुरु की भांति ही नैसर्गिक शुभ ग्रह की उपाधि प्रदान की गयी है। शुक्र स्त्री ग्रह है, जल का स्वामी, ब्राह्मण जाति, रजोगुणी शुभ्र ग्रह है। इसमेंं भी चन्द्रमा की तरह से सफेद किरणें दिखाई देती है, शरीर मेंं इसका स्थान जीभ तथा जननेन्द्रिय है। यह इन स्थानों से जीव को सब रसों का रसास्वादन कराता है, अर्थात सभी प्रकार के रसों का स्वाद जीभ से और मैथुन के समय जननेन्द्रिय को तिक्त और चरपरा आभास करवा कर आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है। शुक्र के अस्त होने के समय कोई शादी सम्बन्ध जैसा शुभ कार्य नहीं किया जाता है, जातक का शुक्र कुंडली मेंं अस्त होता है, तो तमाम प्रकार के वीर्य विकार पाये जाते है, पुरुष की कुन्डली मेंं सूर्य के साथ शुक्र होने पर संतान बड़ी मुश्किल से पैदा होती है, और अधिकतर गर्भपात के कारण देखे जाते है, स्त्री की कुन्डली मेंं शुक्र और मंगल की युति होने पर पति पत्नी हमेंंशा एक दूसरे से झगडते रहते है, और जीवन भर दूरियां ही बनी रहती है। अक्सर शुक्र अस्त वाला जातक पागलों जैसी हरकतें किया करता है, उसके दिमाग मेंं बेकार के विकार पैदा हुआ करते है, वह बे?जूल के संकल्प मन मेंं ग्रहण किया करता है, और उन संकल्पं के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को परेशान किया करता है। शुक्र की धातु के लिये कोई भी धातु जिस पर कलाकारी और खूबशूरती का जामा पहिनाया गया हो मानी जाती है, अनाजों और सब्जियों तथा फलों मेंं इसके स्वाद के साथ पकाने और प्रयोग करने की क्रिया को माना गया है। शुक्र ग्रह के कारण पैदा किसी भी बीमारी के लिये जातक को भूत-डामर तंत्र के अनुसार तुलादान करना चाहिये, तुलादान मेंं प्रयोग किये जाने वाले कारकों मेंं सफेद वस्त्र चावल फल पका हुआ स्वच्छ अन्न प्रयोग किया जाता है। शुक्र मीन राशि मेंं उच्च का और कन्या राशि मेंं नीच का माना जाता है।
शुक्र के नक्षत्र:
शुक्र के नक्षत्रों मेंं पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार भरणी, पूर्वाषाढ़ और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र बताये गये है, भरणी नक्षत्र के अनुसार जो महिलायें इस नक्षत्र मेंं जन्म लेती है, वे किसी न किसी प्रकार से दूसरी महोलाओं के प्रति किसी न किसी प्रकार की कमी निकालने मेंं माहिर मानी जाती है, तथा पुरुषों मेंं नीचे के अंगों मेंं किसी न किसी प्रकार की कमजोरी मिलती है, और इस नक्षत्र मेंं पैदा हुये जातकों के प्रति दूसरे लोग अपने अपने अनुसार छिद्रान्वेषण किया करते हैं। इस नक्षत्र के पहले पद मेंं जन्म लेने वाला जातक अपने भाई बहिनों के द्वारा खूब सम्मानित किया जाता है, जातक या जातिका के पास काफी वाहन होते है, और जीवन भर वाहनों के द्वारा वह सुखी रहता है, पहले पद मेंं जन्म लेने वाला जातक हमेंंशा आज की सोचता है, और कल की उसे चिन्ता नहीं होती है। दूसरे पद मेंं जन्म लेने वाला जातक या तो सम्पत्ति अपने ननिहाल से प्राप्त करता है, अथवा वह अपनी सेवा से दूसरों से प्राप्त करता है, अपने विचारों को दूसरों के साथ मिलाकर चलता है, और विचारों का आधुनिक तरीकों से आदान प्रदान भी करता है। तीसरे पद मेंं जन्म लेने वाले जातक होटल कृषि रसायनों आदि के बारे मेंं काफी जानकार बनता है, चौथे पद मेंं जन्म लेने वाला जातक या तो नदी के किनारों पर या बन्दरगाहों पर अपना काम करता है, या रहने के लिये निवास बनाता है। अथवा पानी के जहाजों पर अपना कार्य करता है, और सामान को भेजने और मंगाने के काम मेंं माहिर होता है।पूर्वाषाढ नक्षत्र मेंं पैदा होने वाले महिला जातकों मेंं वे खूबसूरती की मिसाल मानी जाती है, जबकि पुरुष दूसरों की सेवा करने के लिये हमेंंशा आगे रहते है, इस नक्षत्र के चारों पदों मेंं जन्म लेने वाले जातक कार्य शैली मेंं अपने प्रकार के ही माने जाते है, उनको अधिकतर अपनी माताओं का दुख किसी न किसी प्रकार से झेलना पडता है। इसी प्रकार से अन्य नक्षत्रों के बारे मेंं आप वैदिक ज्योतिष की किताबों मेंं देख सकते है।
शुक्र की राशियां:
वृष और तुला शुक्र की राशियां है, वृष राशि भौतिक सुखों की तरफ अग्रसर करती है, और तुला राशि शारीरिक सुखों की तरफ अपना प्रभाव देती है, वृष राशि वाले जातक मेंहनती और सोच समझ कर काम करने वाले होते है, उनका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता है, और धन वाले मामलों मेंं अपनी सोच रखते है, जबकि तुला राशि वाले जातक अपने आसपास के माहौल के साथ जो भी करते है, आपस का सामजस्य बिठाने के काम करते है, तराजू की तरह तौल कर अपना काम करते है, और न्याय के साथ व्यापारिक गतिविधियों की तरफ अपना प्रभाव दिखाते है, तुला राशि का स्थान कालपुरुष के अनुसार विवाह जीवन साथी और साझेदार के अनुसार देखा जाता है, जबकि वृष राशि वाले जातक अगर अपने पास पूजा पाठ या किसी प्रकार से रहने वाले साधनो मेंं धार्मिक विश्वास के साथ चलें तो उनका जीवन सुखी रहता है, इस प्रकार के कथन ‘‘मानसागरी’’ नामक ग्रंथ मेंं कहे गये हैं।
हाथ की रेखाओं मेंं शुक्र:
महिलाओं के बायें हाथ मेंं और पुरुषों के दाहिने हाथ मेंं शुक्र का स्थान अंगूठे के नीचे माना जाता है, एक उंचा स्थान अंगूठे के नीचे होता है, वही शुक्र का स्थान होता है, शुक्र पर्वत के नाम से जाने वाले इस स्थान से जातक की शुक्र की क्षमता का ज्ञान किया जा सकता है, जितना साफ और लालिमा लिये यह स्थान होता है, उतना ही जातक धनी और आराम पसंद होता है, इस पर्वत पर जितनी आडी तिरछी रेखायें होती है, उतनी ही परेशानियां जातक को धन कमाने के अन्दर आती है। जीवन रेखा से ऊपर यह स्थान जीवन रेखा के निकास से जो कि मंगल का स्थान माना जाता है, से शुरु होकर जीवन रेखा की समाप्ति पर जो कि राहु का स्थान माना जाता है, वहां पर समाप्त होता है, शुक्र एक पहाड़ की तरह से हाथ पर होता है, और जीवन रेखा इस पहाड़ के नीचे से बहने वाली नदी के रूप मेंं मानी जाती है। इस रेखा से जितनी रेखायें शुक्र पर्वत पर ऊपर की तरफ जा रही होती है, उतनी ही कमाई की सहायक नदियां जीवन मेंं अलग अलग समय मेंं अलग अलग तरीकों से धन और कार्य की उत्पत्ति का वृतांत बताती है, और जितनी रेखायें जीवन रेखायें नीचे की तरफ जा रही होती है, उतनी ही खर्च करने की रीतियां जीवन के अन्दर आ रही होती है, शुक्र पर्वत पर जाल राहु का प्रभाव बताता है, चौकोर चिन्ह गुरु का प्रभाव बताता है, सीधा त्रिकोण पुरुष संतान का द्योतक होता है, जो मंगल के रूप मेंं जाना जाता है, और उल्टा त्रिकोण स्त्री संतान का प्रभाव बताता है, एक समान्तर रेखा अगर शुक्र पर्वत के नीचे जीवन रेखा के साथ अगर जाती है तो कोई बुरी बला ऊपर से आने वाले भाग्य को रोकती है। शुक्र पर्वत पर जितने द्वीप होते है, उतने ही मकान जातक के पास पाये जाते हैं।
अंकशास्त्र मेंं शुक्र:
अंकविद्या मेंं 6का अंक हम शुक्र के लिये प्रयोग करते है, जिस तारीख को जातक का जन्म हुआ होता है, वही अंक जातक का भाग्यांक होता है, जो जातक 6, 15, 24 तारीखों मेंं पैदा हुये होते है, उनका स्वामी शुक्र माना जाता है। ऐसा जातक अपनी कार्योजनाओं को द्रढता पूर्वक पूरा करता है, और वह प्रकृति से प्रेमी होता है, उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है, वह अपने प्रेमी पर सर्वस्व अर्पित कर देता है। अर्थात किसी प्रकार का छल कपट इस तारीख को जन्में जातक के ह्रदय के अन्दर नहीं होता है, इस प्रकार के जातक को देखने वाले और कुछ ही सनझ बैठते है, लेकिन वह किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखता है, वह गणमान्य और कलाकार होता है और इसी प्रकार के व्यक्तियों पर अपना धन खर्च करने मेंं अपनी दूरदर्शिता समझता है, इस प्रकार के राग द्वेश ईर्ष्या से सख्त नफरत करते है, इस प्रकार का जातक किसी प्रकार विरोध और दुर्भावना का शिकार कभी कभी ही होता है, दूसरों को पटाने मेंं सिद्ध हस्त होता है, अगर 3, 6, 9, 12, 15, 18, 24, 27 और 30 तारीखों मेंं शुक्रवार का दिन हो तो जातक के विशेष शुभ होता है। जिन जातकों का जन्म 6तारीख के जोड मेंं हुआ हो वे शुक्र की पूजा अर्चना करने के बाद जाप करें तथा हीरा या जर्किन नामका पत्थर धारण करें, फिरोजा साढ़े पांच रत्ती का भी लाभदायक होता है। शुक्र प्रधान व्यक्ति प्राय: सुखी होते है, संगीत काव्यकला मनोरंजन मेंं अधिक मन लगाते है, लडाई दंगे मेंं मन नहीं लगाते है, और जल्दी किसी पर विश्वास भी नहीं करते है, हंसी मजाक करने वाले स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाले बुद्धिमान विनम्र चतुर प्रसन्नचित्त कला प्रेमी शांति प्रिय सौन्दर्य के उपासक धन की इच्छा रखने वाले एवं भाग्यशाली होते है, वह देखते ही आदमी को पहिचान लेते है, कि वह क्या चाहता है, इस प्रकार के जातक गायन वादन अभिनय की शिक्षा प्राप्त करते है, उनका सुन्दर चेहरा रसीली बातें आकर्षण का केन्द्र होती है, वे काम प्रधान होते है, शुक्र प्रधान जातक इश्कबाज चंचल मद्यपानी एवं स्त्रियों से लाभ कमाने वाले होते है, खट्टी वस्तुयें के बहुत शौकीन होते है, स्वभाव से भुलक्कड और तर्क वितर्क मेंं दक्ष अधिक कामी स्वार्थी जैसे तैसे वह धन प्राप्त करने वाले होते है, सौम्य भोगी एवं सरल ह्रदय के स्वामी होती है, वे सौन्दर्य प्रसाधनों का अधिक उपयोग करते है, और स्त्री पुरुषों को और पुरुष स्त्रियों को प्रिय लगते हैं।
शुक्र से सम्बन्धित रोग:
शुक्र जनन सम्बन्धी रोग अधिक पैदा करता है, स्त्रियों मेंं रज और पुरुषों मेंं वह वीर्य का मालिक होता है, शुक्र जब खराब फल देता है, तो जातक को प्रमेंह मन्दबुद्धि वीर्य और रज विकार नपुंसकता और जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग होते है। यदि किसी प्रकार से दवाई के प्रयोग करने के बाद भी रोग का अन्त नहीं हो तो समझना चाहिये कि कुन्डली मेंं शुक्र किसी न किसी प्रकार से खराब है, और शुक्र का समय भी चल रहा होता है मान लेना चाहिये। शुक्र का प्रभाव जब अच्छा होता है तो जातक के पास जमीन जो खेती के काबिल होती है, प्राप्त होती है, स्त्री सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है, घर की सजावटें होने लगती है, कम्प्यूटर और टीवी घर मेंं अपना स्थान बना लेते है, व्यक्ति का नाम मीडिया मेंं चमकने लगता है।
शुक्र के रत्न और उपरत्न:
शुक्र के रत्नों मेंं हीरा करगी और सिम्मा का नाम मुख्य माना जाता है। हीरा संसार प्रसिद्ध है, करगी कहीं कहीं ही मिलती है, और सिम्मा जिसका दूसरा नाम जरकन है, कृत्रिम रूप से बनाया हुआ पत्त्थर है। इन रत्नों मेंं हीरा सबसे महंगा रत्न है, और सेन्ट के हिसाब से मिलता है, सवा पांच रत्ती का हीरा बहुत महंगा होता है, इसलिये इनको 6की संख्या मेंं या नौ की संख्या मेंं लेकर सोने की अंगूठी मेंं जडवा लेना चाहिये, और मध्यमा उंगली मेंं शुक्रवार के दिन जब भरणी नक्षत्र हो उस दिन शुक्र के मन्त्र का जाप करते हुये धारण करना चाहिये, रत्न की विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो जाती है, तब तक वह पूर्ण प्रभाव नहीं दे पाता है, जब तक उसकी प्रतिष्ठा नहीं की जाती है, वह केवल पत्थर है, जिसे प्रकार से मंदिर मेंं किसी प्रतिमा को लगा दिया जाये और उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो, तब तक वह केवल पत्थर का तरासा हुआ रूप ही समझा जायेगा।
शुक्र की जड़ी बूटियां:
शुक्र के लिये जो जातक हीरा धारण नहीं कर पाते है वे शुक्रवार को सरपोंखा की जड भरणी नक्षत्र मेंं सफेद धागे मेंं पुरुष दाहिने और स्त्री बायें बाजू मेंं बांध कर शुक्र का जाप करें, इससे भी जातकों को शुक्र का फल प्राप्त होना शुरु हो जाता है। सरपोंखा के साथ अरंड की जड को भी शुक्र की जडी माना गया है, अरंडी के फल की सफेद रंग की मिगी को लेकर उसे गर्म पानी के साथ डालने पर जो तेल पानी के ऊपर छहरा जाता है, उसे नित्य माथे से लगाने पर और शुक्र के रोगों मेंं उसे पीने पर जातक को शुक्र सम्बन्धी विकार खत्म होते हैं।
शुक्र के लिये दान:
भरणी पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मेंं स्वयं के वजन के बराबर चावल उसमें थोड़ी सी चांदी थोडा सा घी सफेद वस्त्र चन्दन दही गंध द्रव्य चीनी हीरा या जरकन सफेद फूल मिलाकर दान करना चाहिये, किसी बड़ी पीड़ा मेंं गोदान भी किया जाता है, गोदान करने के लिये जहां पर गाय का दान करना संभव नहीं है, वहां पर सवा गज सफेद कपडे मेंं सवा सेर चावल और सफेद चन्दन को रख कर बांध लिया जाता है, उसे संकल्प के साथ किसी ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान कर दिया जाता है।
शुक्र से जुड़े व्यापार:
हीरे का व्यापार, आभूषणों के बनाने और आयात निर्यात करने का काम, लेन देन करने का काम, ब्याज के काम, इत्र सुगन्धित तेल साबुन सोडा मनिहारी
फैंसी स्टोर का काम फिल्म बनाने का काम फूलों से जुडे काम फर्नीचर और पुरातत्व वस्तुओं का व्यापार पशुधन की बिक्री और खरीद का काम शराब बनाने का और बेचने का काम कलाकारी और सौन्दर्य से जुड़ी वस्तुओं का काम आदि माने जाते हैं।
शुक्र से सम्बन्धित नौकरी:
फिल्मी पत्रिका संपादन, मूवी बनाना, कम्प्यूटर से एनीमेंशन बनाना, बेबसाइट बनाना, अभिनेता या अभिनेत्री बनकर दूसरों की फिल्मों मेंं काम करना, फिल्मी गीत और कहानी लिखना डायरेक्टर बनकर काम करना संगीत निर्देशक का काम करना फिल्म वितरक बनकर कमीशन कमाना संगीत की शिक्षा देना नाचने का काम करना, आकाशवाणी की नौकरी करना, टीवी मेंं कलाकारी का काम करना हड्डियों के जोडने और तोडने का काम करना नर्सिंग की ट्रेनिंग देना पुरातत्व विभाग की नौकरी करना आदि नौकरियां शुक्र के क्षेत्र मेंं आते हैं।
शुक्र का वैदिक मंत्र:
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करने के लिये वैदिक रीति से ही उसे अपनाया जाता है, और इसे प्रयोग करते वक्त अक्षर और शब्द को मिलाकर जीभ को शरीर रूपी मशीन का बटन मानकर उच्चारण करने से आशातीत फायदा मिलता देखा गया है। शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय जो विधि प्रयोग की जाती है वह इस प्रकार से है:-
शुक्र के वैदिक मंत्र का विनियोग:
अन्नात्परिस्त्रुतेति मन्त्रस्य प्रजापतिऋषि:, अनुष्टुप छन्द:, शुक्रो देवता, शुक्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:। शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय देहांगन्यास अनात्परिस्त्रुत: शिरसि (सिर)। रसं ब्रह्मणा ललाटे (माथा)। व्यपिबत्क्षत्रं मुखे (मुख)। पय: सोमं ह्रदये (हृदय)। प्रजापति: नाभौ (नाभि)। ऋतेन सत्यं कट्याम (कमर)। इन्द्रियं विपान र्ठंगुदे (गुदा)। शुक्रं वृषणे (लिंग)। अन्धस ऊर्वो: इन्द्रस्येन्द्रियं जानुनो: (घुटने)। इदं पय: गुल्यो: (गुल्फ)। अमृतं मधु पादयो: (पैर)।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय करन्यास:
अन्नात्परिस्त्रतो रसं अंगुष्ठाभ्याम नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं तर्ज्जनीभ्याम नम:। पय: सोमम्प्रजापति: मध्यमाभ्याम नम:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं अनामिकाभ्याम नम:। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस कनिष्ठिकाभ्याम नम:। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं मधु करतल पृष्ठाभ्याम नम:।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ह्रदयादिन्यास:
अन्नात्परिस्त्रतो रसं ह्रदयाय नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं शिरसे स्वाहा:। पय: सोमम्प्रजापति: शिखायै वषट। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं कवचाय हुम। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस नेत्रत्राय वौषट। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं अस्त्राय फट।
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ध्यान का मंत्र:
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:। तथाऽक्षसूत्रंच कमण्डलुंच दण्डंच बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम॥
शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय शुक्र-गायत्री का प्रयोग
ॐ भृगुवंशजाताय विद्यमहे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्न: कवि: प्रचोदयात॥
शुक्र का वैदिक मंत्र:
ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: भूर्भुव: स्व: ú अन्नात परिस्त्रुतो रसम्ब्रह्मणा व्यापिबत्क्षत्रम्पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं व्विपानर्ठं शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु। ú स्व: भुव: भू: ú स: द्रौं द्रीं द्रां ú स: शुक्राय नम:॥
शुक्र का वैदिक जाप मंत्र:
ॐ द्राँ द्रीँ द्रौ स: शुक्राय नम:। इस मंत्र का उपरोक्त विधि से 16000 प्रतिदिन, सोलह दिन तक लगातार शुक्र के नक्षत्र से शुरु करने के बाद लगातार जारी रखा जाना चाहिये, जिव्हा का अभ्यास सोलह दिन मेंं पूरा हो जाता है, उसके बाद रोजाना त्रिसंध्या (सुबह दोपहर शाम) मेंं कम से कम एक माला का जाप (108बार) शुक्र के बुरे प्रभाव को रोकने और सुख समृद्धि को बढ़ाने के लिये करना चाहिये।
शुक्र का स्तवराज:
जो लोग वैदिक मंत्र को क्रिया से नहीं कर सकते है, और अपनी श्रद्धा से शुक्र का जाप करना चाहते है, अथवा आज की भौतिक जिन्दगी मेंं उनके पास फुर्सत नहीं है, तो शुक्र स्तवराज को सोलह दिन तक देश काल और परिस्थिति के अनुसार 108बार और उसके बाद नित्य तीन बार पाठ करने से भी फायदा मिलता है।
अस्य श्रीशुक्रस्त्वराजस्य प्रजापतिऋषि: अनुष्टुप छन्द:। शुक्रो देवता शुक्रप्रीत्यर्थम जपे विनोयोग:॥
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:। वृष्टि रोध प्रंकत्रे च वृष्टि कत्रे नमो नम:॥
देवयानि पित: तुभ्यम वेद वेदांग पारग। परेण तपसा शुद्ध: शंकर: लोक सुन्दर:॥
प्राप्त: विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम:। नम: तस्मै भगवते भृगु पुत्राय वेधसे॥
तारा मण्डल मध्यस्थ स्व भासा सित अम्बर। यस्य उदये जगत सर्वम मंगलं अर्ह भवेत इह॥
अस्तम य: ते हि अरिष्टम स्यात तस्मै मंगल रूपिणे। त्रिपुरा वासिन: दैत्यान शिव बाण प्रपीडितान॥
विद्याया अजीवय: शुक्र: नमस्ते भृगु नन्दन। ययाति गुरुवे तुभ्यम नमस्ते कवि नन्दन॥
बलि राज्य प्रद: जीव: तस्मै जीवात्मने नम:। भार्गवाय नम: तुभ्यम पूर्व गीर्वाण वन्दित:॥
जीव पुत्राय य: विद्याम प्रादात तस्मै नम: नम:। नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि॥
नम: कारण रूपाय नमस्ते कारणात्मने। स्तवराजम इमम पुण्यम भार्गवस्य महात्मन:॥
य: पठेत श्रुणुयात वा अपि लभते वांछितं फलम। पुत्रकाम: लभेत पुत्रान श्रीकाम: लभते श्रियम॥
राज्यकम: लभेत राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियम उत्तमाम। भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यम समाहितै:॥
अन्य वारे तु होरायाम पूजयेत भृगु नन्दनम। रोगार्त: मुच्यते रोगात भयार्त: मुच्यते भयात॥
यत यत प्रार्थयते जन्तु: तत तत प्राप्नोति सर्वदा। प्रात:काले प्रकर्तव्या भृगु पूजा प्रयत्नत:॥
सर्वं पाप विनिर्मुक्त: प्राप्नुयात शिव सन्निधिम। नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:॥
शुक्र क्यों प्रताडि़त करता है?
पिछले संदर्भों मेंं हमने शुक्र की महिमा का अलग अलग रूप से वर्णन किया है। इस संदर्भ मेंं हम यह बताना चाहेंगे कि शुक्र अति शुभ ग्रह है, लेकिन यह जातक को महान कष्टों के सागर मेंं क्यों और किस प्रकार से फेंक देता है। क्यों जातक को कष्ट प्रदान करता है, क्यों कष्टों की बौछार शुक्र करता है, या प्राणी अपने किये हुये अशुभ कर्मों का ही फल जन्म जन्मानतर सुख दुख रूप मेंं प्राप्त करता है। शुक्र क्यों रति सुख नहीं लेने देता, क्यों रति सुख से वंचित कर देता है। सारा वैभव होते हुये उस वैभव का सुख नहीं लेने देता, आदि तत्वों का सूक्षम प्रमाणिक स्पष्ट शास्त्रोलिखित सरस व्याख्या यहां करेंगे।
शुक्र अति शुभ ग्रह है, शुक्र भगवान शंकर की घनघोर तपस्या कर वरदान मेंं अमरत्व तथा मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की, यही कारण था कि शुक्र मरे हुये राक्षसों को पुन: जीवित कर देते थे। शुक्र प्राणीमात्र के ब्रह्मरन्ध्र मेंं अमृत संचार करता है। दूसरा वरदान शुक्र के पास भगवान शंकर का यह था कि गुरु बृहस्पति से तीन गुना बल अधिक था, और उसी बल के द्वारा उसने अतुलित बल और वैभव की प्राप्ति कर ली थी। अर्थात जो भी संपत्ति कोई कथिन परिश्रम से प्राप्त करे उसे वह साधारण से मार्ग से प्राप्त कर ले। तीसरा वरदान उसे शंकरजी से यह मिला कि सभी ग्रह 6, 8, 12 भाव मेंं बलहीन हो जाते है, और अपना प्रभाव नहीं दे पाते है, लेकिन शुक्र को वरदान मिला कि 6भाव को छोडकर वह 8और 12 मेंं और अधिक बलवान हो जायेगा, और जातक को जो शुक्र को मानेगा और जानेगा, उसे अनुलित सम्पत्ति का मालिक बना देगा। चौथा वरदान भगवान शंकर ने उसे दिया कि जो भी उसे मानेगा, उसकी सेवा और पूजा करेगा उसे वह उच्च पदासीन कर देगा, और कुशल प्रशासक बना देगा, यह चार वरदान भगवान शंकर से शुक्र को प्राप्त हुये।
कामकला रति सुख शुक्र की कृपा से प्राप्त होता है, यदि शुक्र जीव को कामोत्तेजक नहीं करे, तो संसार की उत्पत्ति ही समाप्त हो जावे, यद्यपि रति का स्वामी कामदेव है, लेकिन बगैर शुक्र के वह भी नीरस है। जन्मांक मेंं जब शुक्र भा 6मेंं या अस्त होता है, या शुक्र हाथ के पर्वत मेंं नीचे बैठ जाता है, तो जातक को संतान सुख नहीं प्राप्त होता है, उसका कारण जातक के वीर्य मेंं शुक्राणुओं की कमी मानी जाती है। और यह प्रभाव शुक्र जातक को पिछले अनैतिक कार्यों की वजह से देता है। शुक्र के अस्त हो जाने से शादी विवाह आदि सभी मंगल कार्य जो संतान को बढ़ाने वाले होते है बन्द हो जाते है, और लोग उस समय को तारा डूबने का समय कहते है, भगवान शुक्राचार्य दैत्य गुरु है, दैत्य दानवों पर इनकी नित्य कृपा बनी रहती है, महाराजा बलि का नाम शास्त्रों मेंं लिखा मिलता है, की सहायता के लिये शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को बामन अवतार धारण करते वक्त पृथ्वी को दान मेंं न देने के लिये अपनी एक आंख कमंडल मेंं संकल्प के लिये जल नहीं आने देने के लिये ? तभी से शुक्र का रूप एक आंख का माना जाता है, तभी से कहा जाने लगा है कि माया के एक आंख होती है, वह या तो आती नहीं और आती है तो टिकाने के लिये एक ही लक्षय को याद रखना पडता है, या तो अच्छा या फिर बुरा। शुक्र के सम्बन्ध के बारे मेंं एक कथा और प्रचलित है कि जो व्यक्ति भोर का तारा यानी शुक्र के उदय के समय जागकर अपने नित्य कर्मों मेंं लग जाता है, वह तो लक्ष्मी का धारक बन जाता है, और जो व्यक्ति सूर्योदय के समय जग कर अपने नित्य कर्मों के अन्दर लगता है, वह संसार के साथ चल कर केवल पेट भरने का काम कर सकता है।

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