भौगोलिक दृष्टि से केरल जैसे राज्य से बड़े बस्तर नामक इस भू-भाग को प्रकृति ने छप्पर फाड़कर प्राकृतिक सौंदर्य दिया है। छत्तीसगढ़ का भू-भाग, पुरातात्विक, सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है फिर चाहे वह कांकेर घाटी हो, विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट का जलप्रपात हो या फिर कुटुंबसर की गुफाएं ही क्यों न हों। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर सदाबहार लहलहाते सुरम्य वन, जनजातियों का नृत्य-संगीत और घोटुल जैसी परंपरा यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं। त्रेतायुग में राम के वनगमन का रास्ता भी इसी भू-भाग से गुजरता है। जिस दंडक वन से राम गुजरे थे उसे अब दंडकारण्य कहा जाता है। वैसे भी खूबसूरती प्राय दुर्गम स्थानों पर ही अपने सर्वाधिक नैसर्गिक रूप में पाई जाती है। कारण बड़ा साफ है, ये दुर्गम स्थान प्रकृति के आगोश में होते हैं। प्रकृति के रचयिता रंगों को मनमाफिक रंग से भर खूबसूरती की मिसाल गढ़ते हैं। यह खूबसूरती बस्तर की घाटियों में देखी जा सकती है जो हिमाचल की भांति हैं।
रायपुर से तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक मनोरम स्थल है- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ प्रान्त के बस्तर जिले का एक प्रमुख शहर है। यह इस जिले का मुख्यालय भी है। जगदलपुर चारो ओर से पहाडिय़ों एवं घने जंगलो से घिरा है। काकतिया राजा जिसे पाण्डुओं का वंशज कहा जाता है ने जगदलपुर को अपनी अंतिम राजधानी बनाया एवं इसे विकसित किया। जगदलपुर का नाम पूर्व में जगतुगुड़ा था। जगदलपुर को चौराहों का शहर भी कहा जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत तरीके से बसाया गया है। यहॉ विभिन्न संस्कृतियों का संगम है। यहॉ जगन्नाथ पीठ का भव्य मंदिर एवं देवी दंतेश्वरी का मंदिर है। जगदलपुर का दशहरा बहुत मशहूर है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है, इसे देखने के लिए देश एव विदेश से अनेक पर्यटन आते है। वैसे तो बस्तर में जलप्रपात की लंबी श्रृंखला है। इस प्रपात की ठीक दूसरी दिशा में जगदलपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात में सफेद पानी की धार पर्यटकों को आकर्षित करती है। जगदलपुर से 30 किलोमीटर दूर प्राकृतिक गुफाओं की काफी लंबी श्रृंखला है। विश्वप्रसिद्ध कोटमसर गुफा के भीतर जलपुंड तथा जलप्रवाह से बनी पत्थर की संरचनाएँ रहस्य और रोमांच से भर देती हैं। पूरा बस्तर घाटियों से घिरा हुआ है। उत्तर में केशकाल तथा चारामा घाटी तो दक्षिण में दरबा की झीरम घटी, पूर्व में अरकू तथा पश्चिम में बंजारा घाटी पर्यटकों को अलग-अलग रंग-रूप की प्राकृतिक सुरम्यता से आकर्षित करती हैं। दंतेवाड़ा के घनघोर जंगल एवं पहाड़ों, नदियों, नालों को पार करने के बाद दसवीं शताब्दी के सूर्य मंदिर एवं गणेशजी की प्रतिमा लगभग चार हजार फीट की उंचाई पर दुर्गंम पहाड़ों के बीच स्थित है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से महज सत्रह किलोमीटर दूर फरसपाल ग्राम है जहां से बैलाडीला पर्वत श्रृंखलाएं शुरू होती है। इन श्रृंखलाओं से करीब दस किलोमीटर की ऊंची खड़ी पहाड़ी चोटी पर ढोल आकार की दो पर्वत शिखर हैं जिसे स्थानीय आदिवासी ढोलकाल पर्वत के नाम से जानते हैं। इन शिखरों की ऊंचाई लगभग चार हजार फीट है, जिससे पहले शिखर पर गणेशजी की दशवीं शताब्दी की प्रतिमा एवं दूसरे शिखर पर सूर्य मंदिर स्थापित है। गणेश भगवान की यह प्रतिमा पूरे छत्तीसगढ़ में सबसे ऊंची चोटी पर स्थित प्रतिमा है जिसे एक हजार वर्ष से भी पूर्व साधु संतों एवं कर्मकांडियों द्वारा स्थापित किया गया था। ये दोनों अब पूरी तरह से उपेक्षित है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह एक नई खोज है। स्थानीय आदिवासियों के अनुसार इस पर्वत शिखर पर ही सूर्य की प्रथम किरणें पडऩे के कारण यहां पर सूर्य मंदिर की स्थापना की गई है। छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे पर्वत चोटी कही जाने वाली ढोलकाल पर्वत चोटी पर हजारों वर्ष पुरानी गणेशप्रतिमा की ऊंचाई लगभग साढ़े तीन फीट है, जोकि काले पत्थरों से निर्मित है। बताया जाता है कि वर्ष 1994 के बाद यहां पूजा अर्चना नहीं हुई है। पौराणिक मान्यतानुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे थे वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई है। शंखिनी एवं डंकनी नदी के किनारे सती के दांत गिरे, इसलिए यहां दंतेश्वरी पीठ की स्थापना हुई और माता के नाम पर गाँव का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। आंध्रप्रदेश के वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने यहां आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी और माँ भुनेश्वरी देवी की प्रतिस्थापना की। वारंगल में माँ भुनेश्वरी माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है। एक दंतकथा के मुताबिक वारंगल के राजा रूद्र प्रतापदेव जब मुगलों से पराजित होकर जंगल में भटक रहे थे तो कुल देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघपूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े में सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें और वे जहां तक जाएंगे वहां तक उनका राज्य होगा और स्वयं देवी उनके पीछे चलेगी, लेकिन राजा पीछे मुड़कर नहीं देखें। वरदान के अनुसार राजा ने यात्रा प्रारंभ की और शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम पर घुंघरुओं की आवाज रेत में दब गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देखा और कुल देवी यहीं प्रस्थापित हो गई।
रायपुर से तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक मनोरम स्थल है- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ प्रान्त के बस्तर जिले का एक प्रमुख शहर है। यह इस जिले का मुख्यालय भी है। जगदलपुर चारो ओर से पहाडिय़ों एवं घने जंगलो से घिरा है। काकतिया राजा जिसे पाण्डुओं का वंशज कहा जाता है ने जगदलपुर को अपनी अंतिम राजधानी बनाया एवं इसे विकसित किया। जगदलपुर का नाम पूर्व में जगतुगुड़ा था। जगदलपुर को चौराहों का शहर भी कहा जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत तरीके से बसाया गया है। यहॉ विभिन्न संस्कृतियों का संगम है। यहॉ जगन्नाथ पीठ का भव्य मंदिर एवं देवी दंतेश्वरी का मंदिर है। जगदलपुर का दशहरा बहुत मशहूर है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है, इसे देखने के लिए देश एव विदेश से अनेक पर्यटन आते है। वैसे तो बस्तर में जलप्रपात की लंबी श्रृंखला है। इस प्रपात की ठीक दूसरी दिशा में जगदलपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात में सफेद पानी की धार पर्यटकों को आकर्षित करती है। जगदलपुर से 30 किलोमीटर दूर प्राकृतिक गुफाओं की काफी लंबी श्रृंखला है। विश्वप्रसिद्ध कोटमसर गुफा के भीतर जलपुंड तथा जलप्रवाह से बनी पत्थर की संरचनाएँ रहस्य और रोमांच से भर देती हैं। पूरा बस्तर घाटियों से घिरा हुआ है। उत्तर में केशकाल तथा चारामा घाटी तो दक्षिण में दरबा की झीरम घटी, पूर्व में अरकू तथा पश्चिम में बंजारा घाटी पर्यटकों को अलग-अलग रंग-रूप की प्राकृतिक सुरम्यता से आकर्षित करती हैं। दंतेवाड़ा के घनघोर जंगल एवं पहाड़ों, नदियों, नालों को पार करने के बाद दसवीं शताब्दी के सूर्य मंदिर एवं गणेशजी की प्रतिमा लगभग चार हजार फीट की उंचाई पर दुर्गंम पहाड़ों के बीच स्थित है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से महज सत्रह किलोमीटर दूर फरसपाल ग्राम है जहां से बैलाडीला पर्वत श्रृंखलाएं शुरू होती है। इन श्रृंखलाओं से करीब दस किलोमीटर की ऊंची खड़ी पहाड़ी चोटी पर ढोल आकार की दो पर्वत शिखर हैं जिसे स्थानीय आदिवासी ढोलकाल पर्वत के नाम से जानते हैं। इन शिखरों की ऊंचाई लगभग चार हजार फीट है, जिससे पहले शिखर पर गणेशजी की दशवीं शताब्दी की प्रतिमा एवं दूसरे शिखर पर सूर्य मंदिर स्थापित है। गणेश भगवान की यह प्रतिमा पूरे छत्तीसगढ़ में सबसे ऊंची चोटी पर स्थित प्रतिमा है जिसे एक हजार वर्ष से भी पूर्व साधु संतों एवं कर्मकांडियों द्वारा स्थापित किया गया था। ये दोनों अब पूरी तरह से उपेक्षित है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह एक नई खोज है। स्थानीय आदिवासियों के अनुसार इस पर्वत शिखर पर ही सूर्य की प्रथम किरणें पडऩे के कारण यहां पर सूर्य मंदिर की स्थापना की गई है। छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे पर्वत चोटी कही जाने वाली ढोलकाल पर्वत चोटी पर हजारों वर्ष पुरानी गणेशप्रतिमा की ऊंचाई लगभग साढ़े तीन फीट है, जोकि काले पत्थरों से निर्मित है। बताया जाता है कि वर्ष 1994 के बाद यहां पूजा अर्चना नहीं हुई है। पौराणिक मान्यतानुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे थे वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई है। शंखिनी एवं डंकनी नदी के किनारे सती के दांत गिरे, इसलिए यहां दंतेश्वरी पीठ की स्थापना हुई और माता के नाम पर गाँव का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। आंध्रप्रदेश के वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने यहां आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी और माँ भुनेश्वरी देवी की प्रतिस्थापना की। वारंगल में माँ भुनेश्वरी माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है। एक दंतकथा के मुताबिक वारंगल के राजा रूद्र प्रतापदेव जब मुगलों से पराजित होकर जंगल में भटक रहे थे तो कुल देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघपूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े में सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें और वे जहां तक जाएंगे वहां तक उनका राज्य होगा और स्वयं देवी उनके पीछे चलेगी, लेकिन राजा पीछे मुड़कर नहीं देखें। वरदान के अनुसार राजा ने यात्रा प्रारंभ की और शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम पर घुंघरुओं की आवाज रेत में दब गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देखा और कुल देवी यहीं प्रस्थापित हो गई।
माँ दंतेश्वरी: माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल मांई धारण किए हुए है। यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान हैं, जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ है।
गरुड़ स्तंभ: बत्तीस काष्ठ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है। छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। दंतेश्वरी माई में मनौती वाली पशु बलि भी दी जाती है। देवी दंतेश्वरी का मंदिर अपनी प्रसिद्व के लिए जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ दर्शन करने से मुरादें पूरी हो जाती है और निवासियों का विश्वास अटल है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान: बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर से दक्षिण में 35 किलोमीटर की दूरी पर कांकेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यह उद्यान अपने जलप्रपातों, गुफाओं एवं जैव विविधता के लिये प्रसिद्ध है। कांकेर घाटी के मुख्य पर्यटन स्थल निम्नानुसार हैं -
बारसूर: बस्तर के सदर मुकाम जगदलपुर से 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बारसूर तक पहुँचने के लिये गीदम से होकर जाना पड़ता है। बारसूर गीदम से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ गणेश जी की विशाल मूर्ति है। बारसूर नाग राजाओं एवं काकतीय शासकों की राजधानी रहा है। बारसूर ग्यारहवीं एवं बारहवीं शताब्दी के मंदिरो के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिरों में मामा-भांजा मंदिर मूलत: शिव-मंदिर है। मामा-भांजा मंदिर दो गर्भगृह युक्त मंदिर है। इनके मंडप आपस में जुड़े हुये हैं। यहाँ के भग्न मंदिरों में मैथुनरत प्रतिमाओं का अंकन भी मिलता है। चन्द्रादित्य मंदिर का निर्माण नाग राजा चन्द्रादित्य ने करवाया था एवं उन्हीं के नाम पर इस मंदिर को जाना जाता है। बत्तीस स्तंभों पर खड़े बत्तीसा मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है। इसका निर्माण गुण्डमहादेवी ने सोमेश्वर देव के शासन काल में किया। इस मंदिर में शिव एवं नंदी की सुन्दर प्रतिमायें हैं। एक हजार साल पुराने इस मंदिर को बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से पत्थरों को व्यवस्थित कर बनाया गया है। ये मंदिर आरकियोलाजी विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक हैं। गणेश भगवान की दो विशाल बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमायें आश्चर्यचकित कर देती है। मामा-भांजा मंदिर शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं दर्शनीय है।
तीरथगढ़ प्रपात: जगदलपुर से 35 किलामीटर की दूरी पर स्थित यह मनमोहक जलप्रपात पर्यटकों का मन मोह लेता है। पर्यटक इसकी मोहक छटा में इतने खो जाते हैं कि यहाँ से वापिस जाने का मन ही नहीं करता। मुनगाबहार नदी पर स्थित यह जलप्रपात चन्द्राकार रूप से बनी पहाड़ी से 300 फिट नीचे सीढ़ी नुमा प्राकृतिक संरचनाओं पर गिरता है, पानी के गिरने से बना दूधिया झाग एवं पानी की बूंदों का प्राकृतिक फव्वारा पर्यटकों को मन्द-मन्द भिगो देता है। करोड़ो वर्ष पहले किसी भूकंप से बने चन्द्र-भ्रंस से नदी के डाउन साइड की चट्टाने नीचे धसक गई एवं इससे बनी सीढ़ी नुमा घाटी ने इस मनोरम जलप्रपात का सृजन किया होगा।
कंगेड़ घाटी राष्ट्रीय पार्क: प्रकृति-प्रेमियों के लिए कंगेड़ घाटी राष्ट्रीय पार्क किसी स्वर्ग से कम नहीं है। साल और टीक के वृक्ष यहां पर मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यह पार्क लगभग 34 कि.मी. लंबा और लगभग 6कि.मी. चौड़ा है। पर्यटक इस पार्क में वन्य जीवन के शानदार दृश्य देख सकते हैं। पार्क में पर्यटक चीता, जंगली सुअर, गीदड़, लंगूर, उडऩे वाली गिलहरी, सांभर, खरगोश, मगरमच्छ और सियार आदि देख सकते हैं।
पार्क का नाम कंगेड़ नदी के नाम पर रखा गया है, जो इसके मध्य से होकर बहती है। पार्क में वन्य जीवन के अलावा कई खूबसूरत पर्यटक स्थलों की यात्रा की जा सकती है। इनमें कोटामसर गुफाएं, कैलाश गुफाएं, चुना पत्थर की गुफाएं और तीर्थगढ़ के झरने प्रमुख हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। पर्यटकों के ठहरने के लिए यहां पर दो पिकनिक रिसोर्ट भी बनाए गए हैं। इनके नाम कंगेड़ धारा और भमसा धारा है। भमसा धारा क्रोकोडाईल पार्क भी है।
कंगेड़ घाटी राष्ट्रीय पार्क: प्रकृति-प्रेमियों के लिए कंगेड़ घाटी राष्ट्रीय पार्क किसी स्वर्ग से कम नहीं है। साल और टीक के वृक्ष यहां पर मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यह पार्क लगभग 34 कि.मी. लंबा और लगभग 6कि.मी. चौड़ा है। पर्यटक इस पार्क में वन्य जीवन के शानदार दृश्य देख सकते हैं। पार्क में पर्यटक चीता, जंगली सुअर, गीदड़, लंगूर, उडऩे वाली गिलहरी, सांभर, खरगोश, मगरमच्छ और सियार आदि देख सकते हैं।
पार्क का नाम कंगेड़ नदी के नाम पर रखा गया है, जो इसके मध्य से होकर बहती है। पार्क में वन्य जीवन के अलावा कई खूबसूरत पर्यटक स्थलों की यात्रा की जा सकती है। इनमें कोटामसर गुफाएं, कैलाश गुफाएं, चुना पत्थर की गुफाएं और तीर्थगढ़ के झरने प्रमुख हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। पर्यटकों के ठहरने के लिए यहां पर दो पिकनिक रिसोर्ट भी बनाए गए हैं। इनके नाम कंगेड़ धारा और भमसा धारा है। भमसा धारा क्रोकोडाईल पार्क भी है।
इन्द्रावती राष्ट्रीय पार्क: यह राष्ट्रीय पार्क नारायणपुर तहसील में जगदलपुर से 200 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जंगली भैंस और चीते के लिए यह पार्क प्रसिद्ध है। नारायणपुर से 40 कि.मी. की दूरी पर मनोरम कुरशल घाटी स्थित है।
तामड़ाघुमड़ जलप्रपात: चित्रकोट जलप्रपात से 10 किलोमीटर की दूरी पर तामड़ाघुमड़ जलप्रपात है। तामड़ाघुमड़ जलप्रपात में एक छोटी सरिता सीधे लगभग 100 फिट की ऊँचाई से निचले भाग में गिरकर एक मनोरम जलप्रपात का निर्माण करती है। प्रपात को नीचे से उतरकर देखना अच्छा लगता है किंतु उतरने का मार्ग दुर्गम है।
पहुॅच मार्ग और विश्रामगृह: रायपुर से तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मनोरम स्थल तक पहुँचने के लिए लक्जरी बसें उपलब्ध हैं। यहाँ पर देश के सभी प्रमुख हवाई मार्गों से हवाई सेवा उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग: रायपुर से बस्तर 300 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 49 से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा पर्यटक आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से भी बस्तर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: विशाखापट्टनम से किनाडुल तक रेलवे लाईन बिछाई गई है। इस रेलवे लाईन पर जगदलपुर स्टेशन का निर्माण किया गया है। यहां से पर्यटक आसानी से बस्तर तक पहुंच सकते हैं। विशाखापट्टनम से प्रात: 7:10 पर प्रतिदिन जगदलपुर के लिए रेल छुटती है।
जगदलपुर में ठहरने के लिए विश्राम गृह, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। जिनमें से प्रमुख हैं- आकांक्षा होटल, पूनम लॉज, आनंद लॉज, अतिथि होटल, आकाश होटल इत्यादि।
वैसे तो पिछड़ेपन का ही परिणाम है कि यहाँ नक्सलवाद अपने चरम पर है लेकिन प्रकृति की गोद में बसे दर्शनीय स्थल नक्सल गतिविधियों से मुक्त है। दुनिया के लोगों की नजर में भले ही सबसे पिछड़ा इलाका हो लेकिन प्रकृति, पर्यटन व सौंदर्य प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
सड़क मार्ग: रायपुर से बस्तर 300 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 49 से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा पर्यटक आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से भी बस्तर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: विशाखापट्टनम से किनाडुल तक रेलवे लाईन बिछाई गई है। इस रेलवे लाईन पर जगदलपुर स्टेशन का निर्माण किया गया है। यहां से पर्यटक आसानी से बस्तर तक पहुंच सकते हैं। विशाखापट्टनम से प्रात: 7:10 पर प्रतिदिन जगदलपुर के लिए रेल छुटती है।
जगदलपुर में ठहरने के लिए विश्राम गृह, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। जिनमें से प्रमुख हैं- आकांक्षा होटल, पूनम लॉज, आनंद लॉज, अतिथि होटल, आकाश होटल इत्यादि।
वैसे तो पिछड़ेपन का ही परिणाम है कि यहाँ नक्सलवाद अपने चरम पर है लेकिन प्रकृति की गोद में बसे दर्शनीय स्थल नक्सल गतिविधियों से मुक्त है। दुनिया के लोगों की नजर में भले ही सबसे पिछड़ा इलाका हो लेकिन प्रकृति, पर्यटन व सौंदर्य प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
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