किराये का मकान कब तक???
व्यक्ति का पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों में रहती है और कई लोगो का पूरा जीवन अपने मकान का स्वप्न देखते हुए ही बीत जाता है तो कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। इसका भी ज्योतिषीय कारक होता है। जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चैथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। घर का सुख देखने के लिए मुख्यतः चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। साथ ही गुरु, शुक्र और चंद्र के बल का विचार भी किया जाता है। जब चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्च का शुभ ग्रहों से युत हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा। जब भी मकान से संबंधित इन क्षेत्रों का स्वामी षष्ठम स्थान में हो जाता है तो मकान से संबंधित ऋण अर्थात् किराया पटाने का योग बनता है अर्थात् मकान किराये पर रहता है अतः यदि इस प्रकार चतुर्थेष और षष्ठेष का योग किसी भी प्रकार से बना रहे तो व्यक्ति ताउम्र किराये के मकान में बिता देता है। वहीं यदि इस योग में चर राषि हो तो मकान बदलते रहने का योग बनता है और अचल राषि हेाने पर किराये का भी मकान स्थिर प्रवृत्ति का होता है। जब छठवे स्थान का स्वामी चतुर्थ स्थान में गुरू के साथ गोचर में आ जाए या इस प्रकार का योग बने तो किराये के मकान का ही स्वामी बनने का योग बनता है। इस प्रकार कुंडली के विष्लेषण से किराये के मकान में रहने या उसी मकान का स्वामी बनना ज्ञात किया जा सकता है।
Pt.P.S Tripathi
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