हमारे शरीर में व्याधि अचानक नहींं आती है। वात, पित्त एवं कफ के कुपित होने पर शरीर अशान्त या रोगग्रस्त होता है। जब पित्त कुपित हो, तो लीवर संबंधी बीमारी, जब कफ कुपित हो, तो अस्थमा एवं ब्रोन्काइटिस तथा जब वात कुपित हो, तो रक्त-पित्त, शीत-पित्त, दाह, तृष्णा, सन्धिवात, पक्षाघात आदि रोग होते हैं। वात रोग अनेक हंै, परन्तु आमवात, सन्धिशूल, शूल एवं लकवा प्रमुख हैं। इनमें लकवा रोग विशेष कष्टकारी है।
रोग का शरीर में सृजन अनजाने भी हो जाता है तथा हमें संज्ञान में तब आता है, जब शरीर को कष्ट होने लगता है। आधुनिक युग में भी, जबकि विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर है, मानव को जटिल एवं भयानक रोगों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें से एक पक्षाघात है। जब मस्तिष्क को वांछित मात्रा में रक्त नहींं प्राप्त होता है या किसी धमनी में रक्त अवरोध होता है तो इस रोग के लक्षण पैदा होने लगते हैं। वास्तव में स्नायु-संस्थान जिसे हम नाड़ी संस्थान, चेतन संस्थान, जाल, वात-संस्थान आदि से भी जानते हैं, के एक या अनेक तन्तुओं की संचालन शक्ति का नाश होना ही लकवा है। शरीर का कोई भी भाग तन्तुओं से रिक्त नहीं है। जिव्हा में अकेले 3000 स्वाद कोष हैं, त्वचा में 5000 स्वाद प्रापक तथा आंख में 13000 प्रकाश प्रापक हैं, जो मस्तिष्क को सामूहिक रुप से प्रभाव की सूचना देते हैं। मानव शरीर में 72000 नाडिय़ा हैं, जिनमें सुषम्ना नाड़ी प्रधान है। नाड़ीसमूह का एकत्रीकरण शरीर के सात स्थानों पर है, जिन्हें स्नायु-चक्र कहते हंै।
लकवा स्वयं में कोई रोग नहीं है, इसका केन्द्र मस्तिष्क है। इसी से समस्त कार्य सम्पादित होते है। स्नायु दो प्रकार से हमारे शरीर में काम करते है-
1. कर्म स्नायु- इसके द्वारा मस्तिष्क मासपेशियों का एवं उन्हीं के द्वारा अंग-प्रत्यंग का संचालन करता है।
2. ज्ञान स्नायु- इसका सम्बन्ध ज्ञानेन्द्रियों से है। शरीर के सम्बन्ध में हर प्रकार की सूचना ये मस्तिष्क को देते है।
रोग का शरीर में सृजन अनजाने भी हो जाता है तथा हमें संज्ञान में तब आता है, जब शरीर को कष्ट होने लगता है। आधुनिक युग में भी, जबकि विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर है, मानव को जटिल एवं भयानक रोगों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें से एक पक्षाघात है। जब मस्तिष्क को वांछित मात्रा में रक्त नहींं प्राप्त होता है या किसी धमनी में रक्त अवरोध होता है तो इस रोग के लक्षण पैदा होने लगते हैं। वास्तव में स्नायु-संस्थान जिसे हम नाड़ी संस्थान, चेतन संस्थान, जाल, वात-संस्थान आदि से भी जानते हैं, के एक या अनेक तन्तुओं की संचालन शक्ति का नाश होना ही लकवा है। शरीर का कोई भी भाग तन्तुओं से रिक्त नहीं है। जिव्हा में अकेले 3000 स्वाद कोष हैं, त्वचा में 5000 स्वाद प्रापक तथा आंख में 13000 प्रकाश प्रापक हैं, जो मस्तिष्क को सामूहिक रुप से प्रभाव की सूचना देते हैं। मानव शरीर में 72000 नाडिय़ा हैं, जिनमें सुषम्ना नाड़ी प्रधान है। नाड़ीसमूह का एकत्रीकरण शरीर के सात स्थानों पर है, जिन्हें स्नायु-चक्र कहते हंै।
लकवा स्वयं में कोई रोग नहीं है, इसका केन्द्र मस्तिष्क है। इसी से समस्त कार्य सम्पादित होते है। स्नायु दो प्रकार से हमारे शरीर में काम करते है-
1. कर्म स्नायु- इसके द्वारा मस्तिष्क मासपेशियों का एवं उन्हीं के द्वारा अंग-प्रत्यंग का संचालन करता है।
2. ज्ञान स्नायु- इसका सम्बन्ध ज्ञानेन्द्रियों से है। शरीर के सम्बन्ध में हर प्रकार की सूचना ये मस्तिष्क को देते है।
लकवा होने के कारण:
लकवा होने के प्रमुख कारणों में से रक्त की कमी, सिर में चोट लगना, धातुक्षीणता, मदिरा का अत्यधिक सेवन, अधिक जगना, पुराना ह्रदय रोग या मधुमेह, मानसिक तनाव, गठिया रोग, अधिक श्रम एवं पुराना सिरदर्द है।
लकवा होने के प्रमुख कारणों में से रक्त की कमी, सिर में चोट लगना, धातुक्षीणता, मदिरा का अत्यधिक सेवन, अधिक जगना, पुराना ह्रदय रोग या मधुमेह, मानसिक तनाव, गठिया रोग, अधिक श्रम एवं पुराना सिरदर्द है।
लक्षण:
यह रोग रात में सोते समय अधिक होता है। प्रमुख लक्षणों में से रक्तचाप का अधिक होना, स्नायु का शिथिल होना, लगातार कब्ज का रहना, भूख एवं नींद कम होना, सीढ़ी चढऩें में परेशानी होना या सांस फूलना, शरीर के जिस ओर रोग हो, उधर की नाक में खुजली रहना, गठिया, शरीर में झुनझुनी रहना आदि हैं।
यह रोग रात में सोते समय अधिक होता है। प्रमुख लक्षणों में से रक्तचाप का अधिक होना, स्नायु का शिथिल होना, लगातार कब्ज का रहना, भूख एवं नींद कम होना, सीढ़ी चढऩें में परेशानी होना या सांस फूलना, शरीर के जिस ओर रोग हो, उधर की नाक में खुजली रहना, गठिया, शरीर में झुनझुनी रहना आदि हैं।
ज्योतिषीय कारण एवं निदान:
पक्षाघात या लकवा रोग 20 प्रकार का है, परन्तु इनका वर्णन विषय-वस्तु नहीं है, हम इसके ज्योतिषीय कारण पर बात करेंगे। किसी की कुंडली में स्नायु-मण्डल का स्वामी बुध है तथा शनि ग्रह देर तक चलने वाले रोगों पर आधिपत्य रखता है। इस प्रकार शनि एवं बुध इस रोग के प्रमुख कारक हैं। चन्द्रमा रक्त का कारक है। मिथुन कन्या एवं कर्क राशि का महत्वपूर्ण स्थान है। कुंडली का तृतीय भाव शरीर के अवयव के संचालन का प्रतिनिधित्व करता है। यह रोग निम्नलिखित ग्रह योगों के कारण होता है-
* मंगल एवं शनि धनु राशि में हो।
* वृश्चिक, मकर, कुम्भ एवं मीन राशि में पापी ग्रह हों।
* मंगल एवं शुक्र प्रथम घर में हो।
* मंगल धनु राशि में हो।
* धनु या मीन राशि, शनि, चन्द्र एवं मंगल से दृष्ट हो।
* मंगल दशम में शनि से दृष्ट हो।
* मंगल उच्च का या नीच का हो।
* शनि, चन्द्रमा षष्ठ में हो।
* राहु धनु में हो।
* गुरु प्रथम में तथा शुक्र सप्तम में हो।
* सूर्य कर्क राशि में शनि से दृष्ट हो।
* मंगल एवं शनि नवम, दशम एवं एकादश में हो।
* शुक्र एवं राहु द्वितीय या तृतीय में हो।
* शनि के साथ चन्द्रमा का इशरफ योग हो। शनि, बुध एक साथ हो।
* क्षीण चन्द्रमा शनि के साथ व्यय भाव में हो। शनि, केतु एक साथ हो।
* चन्द्रमा अस्त हो। शनि नीच का षष्ठेश से दृष्ट हो।
उपयुक्त में अधिकतर योग वात, सन्धिवात के हंै। एक स्थान पर दो हड्डियों के मिलन स्थल को जोड़ या सन्धि कहते है। यह दो प्रकार का होता है। चल सन्धि जो शरीर में अनेक स्थान पर है और दूसरा अचल सन्धि जो खोपड़ी एवं चेहरे में है।
अपान वायु के कुपित होने पर सन्धियों में दर्द, सूजन एवं बुखार तक हो जाता है। रोगी को दर्द से तीव्र कष्ट होता है। यह रोग कम आयु में भी होने लगा है। इसका आक्रमण पैर एवं हाथ में सर्वप्रथम होता है। एसीडिटि होना रोग का आरम्भ है। षष्ठेश नीच होकर शनि के साथ या लग्नेश अष्टम में या शनि षष्ठ में या सूर्य कर्क में, मंगल से दृष्ट हो या मंगल दशम में शनि से दृष्ट या मंगल-चन्द्रमा एक साथ (रक्त में व्यवधान) या शनि-केतु एक साथ किसी भाव में हो, तो यह बीमारी आती है।
ज्योतिषीय गणना के अलावा हस्त रेखा द्वारा भी लकवा रोग को बताया जा सकता है। इसमें प्रमुख रूप से चन्द्र पर्वत पर जाल हो, शनि पर्वत पर नक्षत्र का चिन्ह हो, मस्तक रेखा से निकलकर एक रेखा शनि पर्वत पर जाय, तीन शाखा उसी पर्वत पर हो या आयु रेखा के अन्त में नक्षत्र हो।
पक्षाघात या लकवा रोग 20 प्रकार का है, परन्तु इनका वर्णन विषय-वस्तु नहीं है, हम इसके ज्योतिषीय कारण पर बात करेंगे। किसी की कुंडली में स्नायु-मण्डल का स्वामी बुध है तथा शनि ग्रह देर तक चलने वाले रोगों पर आधिपत्य रखता है। इस प्रकार शनि एवं बुध इस रोग के प्रमुख कारक हैं। चन्द्रमा रक्त का कारक है। मिथुन कन्या एवं कर्क राशि का महत्वपूर्ण स्थान है। कुंडली का तृतीय भाव शरीर के अवयव के संचालन का प्रतिनिधित्व करता है। यह रोग निम्नलिखित ग्रह योगों के कारण होता है-
* मंगल एवं शनि धनु राशि में हो।
* वृश्चिक, मकर, कुम्भ एवं मीन राशि में पापी ग्रह हों।
* मंगल एवं शुक्र प्रथम घर में हो।
* मंगल धनु राशि में हो।
* धनु या मीन राशि, शनि, चन्द्र एवं मंगल से दृष्ट हो।
* मंगल दशम में शनि से दृष्ट हो।
* मंगल उच्च का या नीच का हो।
* शनि, चन्द्रमा षष्ठ में हो।
* राहु धनु में हो।
* गुरु प्रथम में तथा शुक्र सप्तम में हो।
* सूर्य कर्क राशि में शनि से दृष्ट हो।
* मंगल एवं शनि नवम, दशम एवं एकादश में हो।
* शुक्र एवं राहु द्वितीय या तृतीय में हो।
* शनि के साथ चन्द्रमा का इशरफ योग हो। शनि, बुध एक साथ हो।
* क्षीण चन्द्रमा शनि के साथ व्यय भाव में हो। शनि, केतु एक साथ हो।
* चन्द्रमा अस्त हो। शनि नीच का षष्ठेश से दृष्ट हो।
उपयुक्त में अधिकतर योग वात, सन्धिवात के हंै। एक स्थान पर दो हड्डियों के मिलन स्थल को जोड़ या सन्धि कहते है। यह दो प्रकार का होता है। चल सन्धि जो शरीर में अनेक स्थान पर है और दूसरा अचल सन्धि जो खोपड़ी एवं चेहरे में है।
अपान वायु के कुपित होने पर सन्धियों में दर्द, सूजन एवं बुखार तक हो जाता है। रोगी को दर्द से तीव्र कष्ट होता है। यह रोग कम आयु में भी होने लगा है। इसका आक्रमण पैर एवं हाथ में सर्वप्रथम होता है। एसीडिटि होना रोग का आरम्भ है। षष्ठेश नीच होकर शनि के साथ या लग्नेश अष्टम में या शनि षष्ठ में या सूर्य कर्क में, मंगल से दृष्ट हो या मंगल दशम में शनि से दृष्ट या मंगल-चन्द्रमा एक साथ (रक्त में व्यवधान) या शनि-केतु एक साथ किसी भाव में हो, तो यह बीमारी आती है।
ज्योतिषीय गणना के अलावा हस्त रेखा द्वारा भी लकवा रोग को बताया जा सकता है। इसमें प्रमुख रूप से चन्द्र पर्वत पर जाल हो, शनि पर्वत पर नक्षत्र का चिन्ह हो, मस्तक रेखा से निकलकर एक रेखा शनि पर्वत पर जाय, तीन शाखा उसी पर्वत पर हो या आयु रेखा के अन्त में नक्षत्र हो।
चिकित्सकीय उपाय:
लक्षण के प्रकट होने पर डाक्टरी जांच करावें। शुध्द हवा, पानी एवं निर्धारित मात्रा में भोजन का सेवन करें। कब्ज न रहने दे। चाय, चीनी, मसाला एवं तीखे पदार्थों से परहेज करें। कटि स्नान करें, गहरी नींद लें। ब्राम्ही कागजी बादाम, देशी शक्कर एक साथ मिलाकर दूध के साथ लें। सादा पानी लें, एक दिन उपवास करें, एनिमा लें। लहसून के तेल से मालिश करें। तीन फल का रस, सेब, अंगूर एवं नाशपती समभाग में मिलाकर पियें। विटामिन बी लें। सप्ताह में एक दिन का उपवास रखें, दिन में नींबू-पानी या नारियल-पानी लें, मांस,शराब न लें, मिठाई वर्जित है, वायुवर्धक वस्तुएं न खायें, गाजर का रस लें, रोटी, चांवल कम लें, गुड़ लें, दाल, सब्जी, दूध, दही एवं छाछ लें। तली वस्तुएं वर्जित है। त्रिकोणासन, ताड़ासन, नौकासन, उष्ट्रासन, शलभासन, धनुरासन, मकरासन करें। हाथ पैरों के व्यायाम नृत्य मुद्रा में करें। प्राणायाम करें। ये सभी आसन किसी गुरु के निर्देशन में करें, निश्चित आराम ही नहीं वात रोग से सदा के लिए त्राण प्राप्त होगा।
लक्षण के प्रकट होने पर डाक्टरी जांच करावें। शुध्द हवा, पानी एवं निर्धारित मात्रा में भोजन का सेवन करें। कब्ज न रहने दे। चाय, चीनी, मसाला एवं तीखे पदार्थों से परहेज करें। कटि स्नान करें, गहरी नींद लें। ब्राम्ही कागजी बादाम, देशी शक्कर एक साथ मिलाकर दूध के साथ लें। सादा पानी लें, एक दिन उपवास करें, एनिमा लें। लहसून के तेल से मालिश करें। तीन फल का रस, सेब, अंगूर एवं नाशपती समभाग में मिलाकर पियें। विटामिन बी लें। सप्ताह में एक दिन का उपवास रखें, दिन में नींबू-पानी या नारियल-पानी लें, मांस,शराब न लें, मिठाई वर्जित है, वायुवर्धक वस्तुएं न खायें, गाजर का रस लें, रोटी, चांवल कम लें, गुड़ लें, दाल, सब्जी, दूध, दही एवं छाछ लें। तली वस्तुएं वर्जित है। त्रिकोणासन, ताड़ासन, नौकासन, उष्ट्रासन, शलभासन, धनुरासन, मकरासन करें। हाथ पैरों के व्यायाम नृत्य मुद्रा में करें। प्राणायाम करें। ये सभी आसन किसी गुरु के निर्देशन में करें, निश्चित आराम ही नहीं वात रोग से सदा के लिए त्राण प्राप्त होगा।
ज्योतिषीय उपाय:
* लाल मूंगा ८ केरेट एवं पीला पुखराज ४ केरेट का क्रमस: तर्जनी एवं अनामिका में पहनें।
* चन्द्र मंगल हो तो मसूर के दाल का दान, मंगल के मंत्रों का जाप एवं हवन करें। सूर्य कर्क के शनि से दृष्ट हो तो गेहूं दान एवं सूर्य के मंत्रों का जाप करें।
* शनि-केतु युति में केतु के मन्त्र का जाप, उड़द की दाल का दान, शनि मंत्र का जाप, हवन एवं कंबल दान करें।
* लाल मूंगा ८ केरेट एवं पीला पुखराज ४ केरेट का क्रमस: तर्जनी एवं अनामिका में पहनें।
* चन्द्र मंगल हो तो मसूर के दाल का दान, मंगल के मंत्रों का जाप एवं हवन करें। सूर्य कर्क के शनि से दृष्ट हो तो गेहूं दान एवं सूर्य के मंत्रों का जाप करें।
* शनि-केतु युति में केतु के मन्त्र का जाप, उड़द की दाल का दान, शनि मंत्र का जाप, हवन एवं कंबल दान करें।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
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