Monday, 13 April 2015

ऐतिहासिक नगरी सिरपुर




भारतवर्ष की पावन भूमि के हृदय प्रक्षेत्र मेंं स्थित छत्तीसगढ़ अनादिकाल की देवभूमि के रूप मेंं प्रतिष्ठिïत है। इस भूमि पर विभिन्न संप्रदायों के प्रमुख मंदिर, मठ, देवालय इस प्रक्षेत्र की विशिष्टï संस्कृति और परंपराओं के परिचायक हैं। अपने देश के विविध क्षेत्रों की धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक महत्ता शास्त्रों और पुराणों मेंं रुपायित मिलती है। छत्तीसगढ़ भी ऐसा ही प्रक्षेत्र है जिसकी यात्रा का पुण्य लाभ जन-जन के लिए शुभकारी है। यहां शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्म तथा शाक्त संप्रदाय के इष्टïदेवों की प्रतिमाएं इस भूमि की महत्ता स्वत: परिभाषित करती हैं।
सिरपुर मेंं महानदी का वही स्थान है जो भारत मेंं गंगा नदी का है। महानदी के तट पर स्थित सिरपुर का अतीत सांस्कृतिक विविधता तथा वास्तुकला के लालित्य से ओत-प्रोत रहा है। सिरपुर प्राचीन काल मेंं श्रीपुर के नाम से विख्यात रहा है तथा सोमवंशी शासकों के काल मेंं इसे दक्षिण कौसल की राजधानी होने का गौरव हासिल है। कला के शाश्वत नैतिक मूल्यों एवं मौलिक स्थापत्य शैली के साथ-साथ धार्मिक सौहाद्र्र तथा आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश से आलोकित सिरपुर भारतीय कला के इतिहास मेंं विशिष्ट कला तीर्थ के रूप मेंं प्रसिद्ध है।
सिरपुर का प्राचीन नाम श्रीपुर है, इतिहासकारों के अनुसार सिरपुर पांचवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कौसल की राजधानी रह चुका है। छठी शताब्दी मेंं चीनी यात्री व्हेनसांग भी यहां आया था। छठी शताब्दी मेंं निर्मित भारत का सबसे पहला ईंटों से बना मंदिर यही है। यह मंदिर
सोमवंशी
राजा
हर्षगुप्त की विधवा रानी बासटा देवी द्वारा बनवाया गया था। अलंकरण, सौंदर्य, मौलिक अभिप्राय तथा निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। लगभग 07 फुट ऊंची पाषाण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर रानी बासटा, महाशिव गुप्त बालार्जुन की माता एवं मगध के राजा सूर्यबर्मन की पुत्री थी, यह अत्यंत भव्य है। पंचस्थ प्रकार का यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप से संयुक्त है। मंदिर के बाह्य भित्तियों पर कूट-द्वार बातायन आकृति चैत्य गवाक्ष, भारवाहकगर्ण, गज, कीर्तिमान आदि अभिप्राय दर्शनीय है। मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत सुंदर है। सिरदल पर शेषदायी विष्णु प्रदर्शित है। उभय द्वार शाखाओं पर विष्णु के प्रमुख अवतार विष्णु लीला के दृश्य अलंकारात्मक प्रतीक, मिथुन दृश्य तथा वैष्णव द्वारपालों का अंकन है। गर्भगृह मेंं रागराज अनंत शेष की बैठी हुई सौम्य प्रतिमा स्थापित है।
आकर्षण का केन्द्र: पुरातात्विक नगरी सिरपुर मेंं वैसे तो पाण्डुवंशीय काल मेंं बड़े-बड़े मंदिरों, तालाबों का निर्माण हुआ, जिनमेंं त्रिदेव मंदिर भी प्रमुख है। जिसका प्रवेश द्वार कम से कम दस फुट चौड़ा था। इसी दौरान सुरंग टीला, पंचायतन मंदिर, गंधेश्वर मंदिर के सामने बड़ा शिव मंदिर आदि का निर्माण हुआ। सिरपुर मेंं गंधेश्वर मंदिर महानदी के पावन तट पर है। गंधेश्वर मंदिर सिरपुर मेंं महानदी के पावन तट पर है, जहां पैदल प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु श्रावण मास मेंं बम्महनी (महासमुंद) सेतगंगा से कांवड यात्रा कर बोल बम के जयकारे के साथ पैदल सिरपुर पहुंचकर भगवान गंधेश्वर मेंं जल अर्पित करते हैं। श्रावण मास मेंं सिरपुर भगवा रंग मेंं रंग जाता है।
सिरपुर के अवशेष:
वैदिक पाठशाला: विश्व की सबसे पुरानी वैदिक पाठशाला के अवशेष मिले हैं। 5वीं शताब्दी मेंं बनाई गई वैदिक पाठशाला के प्रमाण भी यहाँ देखे जा सकते हैं। 10 मीटर लंबाई व 1.5 मीटर चौड़ाई के कमरों के बीचों बीच मेंं विष्णु की मूर्ति मिली है। इस कमरे मेंं 60 विद्यार्थियों के पढऩे की व्यवस्था थी। यह भारत मेंं खोजी गई सबसे प्राचीन पाठशाला है। यहाँ पर शिक्षकों के कमरें भी मिले हैं। वैदिक पाठशाला रायकेरा तालाब के पूर्व मेंं सबसे ऊँचे स्थान पर चारो तरफ तालाब से घिरा हुआ हैै। इनमेंं अभी भी कमल खिलते हैं।
सार्वजनिक मकान व कुंड: सिरपुर मेंं उत्खनन मेंं एक सार्वजनिक मकान मिला है, जिसमेंं बरामदे ही बरामदे हैं। इसके अलावा यहाँ सफेद पत्थरों से निर्मित कुंड निकला है। 3.6 मीटर लंबे व चौड़े कुंड की गहराई 70 सेंटीमीटर है। कुंड के चारों तरफ12 स्तम्भ भी थे। इनके अवशेष के रूप मेंं आधार स्तम्भ शेष बचे हैं। कुंड के उत्तर पूर्व मेंं तुलसी चौरा है। इसमेंं जल की निकासी के लिए एक भूमिगत नाली से जोड़कर कुंड से मिलाया गया है। कुंड के दक्षिण-पश्चिम कोने पर भी भूमिगत नाली से जल निकासी के काम करने के प्रमाण यहाँ पर मिले हैं। यह कुंड संभवत: आयुर्वेदिक स्नान के लिए प्रयुक्त होता था। कुंड मेंं नीम की पत्तियाँ डालने का अनुमान हो सकता है। यहाँ पर संभवत: तेल स्नान पद्धति का भी उपयोग किया जाता रहा होगा।
धान्य भंडार: एक किलोमीटर की परिधि मेंं फैले दूसरी शताब्दी के अवशेषों के अंतर्गत अशोक का स्तूप भी मिला है। यहाँ पर सात धान्य भंडार भी मिले हैं। इसमेंं तुलसी पत्ती और नीम पत्ती व गेरू के टुकड़े रखकर दीमक से सुरक्षा करने के प्रमाण मिले हैं। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन मेंं यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं। भगवान बुद्ध के चरण भी छत्तीसगढ़ की धरती पर पड़े थे। व्हेन सांग के यात्रा-वृतांत मेंं श्रीपुर यानी आज के सिरपुर का महत्वपूर्ण उल्लेख है। सिरपुर उत्खनन से प्राप्त मूर्तियों के विशाल भंडार जिन पर बजय़ानी पथियों का प्रभुत्व दिखाई देता है तथा ये मूर्तियों तंत्रवाद का प्रतिनिधित्व करती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि व्हेन सांग श्रीपुर ही आया था। उसने श्रीपुर के दश्रिण को ओर एक पुराने विहार एवं अशोक स्तूप का वर्णन किया है यहाँ भगवान बुद्ध ने शास्त्रार्थ मेंं विद्वानों को पराजित कर अपनी अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन किया था। इतिहासकार यह भी कहते हैं कि यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि जिन-जिन स्थानों को भगवान बुद्ध ने अपने चरणों से पवित्र किया था उस पर अशोक ने स्तूप का निर्माण कराया था।
बौद्ध विहार: दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत मेंं अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। नालंदा मेंं चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर मेंं दस बौद्ध विहार पाए गए। इनमेंं छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। सिरपुर के बौद्ध विहारों मेंं जातक कथाओं का अंकन है और पंचतंत्र की चित्रकथाएं भी अंकित हैं। भगवान तथागत ने यहां चौमासा बिताया है। उनके सिरपुर आगमन की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी मेंं सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद मेंं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी मेंं बड़ा किया गया है। यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10,000 बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के प्रमाण मिले हैं। इस अधिष्ठान के पत्थरों मेंं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अक्षरों मेंं बौद्ध भिक्षुकों के नाम तक खुदे प्राप्त हुए हैं। भगवान बुद्ध के समय गया से लाया गया वटवृक्ष अभी भी अपनी कायांतरित शाखा के साथ बाजार क्षेत्र मेंं विद्यमान है।
उल्लेखनीय है कि ईसा पश्चात छठवीं शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने दक्षिण कोसल की राजधानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां सौ संघाराम थे जहां भगवान तथागत बुद्ध के आने की बात कही जाती है और वहां का राजा हिन्दू है वहां सभी धर्मों का समादर होता है। इसी स्थान पर बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने एक गुफा मेंं निवास किया था।
सिरपुर की नगर संरचना: सिरपुर मेंं महानदी ईशान कोण मेंं मुड़ती है और प्राचीन वास्तुविद मयामत (रावण के ससुर मयदानव) के अनुसार जहां नदी ईशान कोण मेंं मुड़ती है वहां ईश्वर का वास होता है। यही कारण है कि भारत के अधिकांश धार्मिक तीर्थ नदी के ईशान कोण पर मुडऩे के स्थान पर स्थापित किए गए हैं। जैसे बनारस मेंं गंगा नदी 18डिग्री पर, सरयू नदी पांच डिग्री और सिरपुर मेंं भी महानदी 21 डिग्री के ईशान कोण पर मुड़ती है। सिरपुर की नगर संरचना एवं मंदिरों की बनावट मयामत के अनुसार पाई गई है।
सुव्यवस्थित बाजार व कारखाने: सिरपुर मेंं उत्खनन मेंं विश्व का सबसे बड़ा सुव्यवस्थित बाजार भी मिला है, जहां से अष्टधातु की मूर्तियां बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। इस कारखाने मेंं धातुओं को गलाने की घरिया और मूर्तियों को बनाने मेंं प्रयुक्त होने वाली धातुओं की ईंटें प्राप्त हुई हैं।
सिंहवाधुर्वा गुफा: व्हेनसांग ने जिस गुफा का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत मेंं किया था वह सिरपुर के नजदीक स्थित सिंहवाधुर्वा के पहाड़ की गुफा है, जहां वर्तमान मेंं जनजातियों द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है और उस स्थान मेंं मेला भी लगता है।
सिरपुर मेंं विदेशी बंदरगाह: सिरपुर मेंं विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों मेंं महानदी के माध्यम से व्यापार होता था। सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है। पहले महानदी मेंं पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमेंं जहाज आया जाया करते थे।
सिरपुर मेंं ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। सिरपुर मेंं बौद्ध विहारों के अलावा बड़ी संख्या मेंं शिव मंदिर भी मिले हैं। इन शिव मंदिरों की विशेषता यह है कि इनको राजाओं के अलावा विभिन्न समाजों के द्वारा स्थापित किए गए है। विभिन्न समाजों द्वारा बनाए गए इन शिव मंदिरों मेंं समाज के प्रतीक चिन्ह, मंदिरों की सीढिय़ों पर खुदे हुए हैं।
आयुर्वेदिक स्नानकुंड: प्रत्येक अन्नागार समूह के सामने प्रस्तर निर्मित आयुर्वेदिक स्नान कुंड प्रकाश मेंं आये है। खुले बरामदों वाले ये स्नानकुंड अंदर से 1.80&1.80&0.60 मीटर आकार के हैं। इन कुडों मेंं विभिन्न व्याधियों की चिकित्सा होती थी। प्रत्येक कुंड मेंं पानी के निकास के लिये भूमिगत नालियाँ है। कुंडों के ऊपर छतें होती थीं। इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी मेंं धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है।
तुरतुरिया जलप्रपात: तुरतुरिया सिरपुर से 15 मील घोर वन प्रदेश के वारंगा की पहाडिय़ों के बीच बहने वाली बालमदेई नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ अनेक बौद्ध कालीन खंडहर हैं। भगवान बुद्ध की एक प्राचीन भव्य मूर्ति, जो यहाँ स्थित है, जनसाधारण द्वारा वाल्मीकि ऋषि के रूप मेंं पूजित है। पूर्व काल मेंं यहाँ बौद्ध भिक्षुणियाँ का भी निवास स्थान था। इस स्थान पर एक झरने का पानी तुरतुर की ध्वनि से बहता है, जिससे इस स्थान का नाम ही तुरतुरिया पड़ गया है।
माता सीता का आश्रय स्थल: तुरतुरिया के विषय मेंं कहा जाता है कि श्रीराम द्वारा त्याग दिये जाने पर माता सीता ने इसी स्थान पर वाल्मीकि आश्रम मेंं आश्रय लिया था। उसके बाद लव-कुश का भी जन्म यहीं पर हुआ था। रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह स्थान तीर्थ स्थलों मेंं गिना जाता है। धार्मिक दृष्टि से भी इस स्थान का बहुत महत्त्व है, और यह हिन्दुओं की अपार श्रृद्धा व भावनाओं का केन्द्र भी है।
मातागढ़ मंदिर: यहाँ पर मातागढ़ नामक एक अन्य प्रमुख मंदिर है, जहाँ पर महाकाली विराजमान हैं। नदी के दूसरी तरफ़ एक ऊँची पहाड़ी है, इस मंदिर पर जाने के लिए पगडण्डी के साथ सीढिय़ाँ भी बनी हुयी हैं। मातागढ़ मेंं कभी बलि प्रथा होने के कारण बंदरों की बलि चढ़ाई जाती थी। यह मान्यता है कि मातागढ़ मेंं एक स्थान पर वाल्मिकी आश्रम तथा आश्रम जाने के मार्ग मेंं जानकी कुटिया है।
बारनवापारा अभ्यारण्य: बारनवापारा सिरपुर से 40 कि.मी. की दूरी पर महानदी के तट पर स्थित है। 244.66 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल मेंं फैला बारनवापारा अभ्यारण्य सन 1976 मेंं अस्तित्व मेंं आया। इस अभ्यारण्य का नाम बारनवापारा गांव के नाम पर पड़ा है। यह अभ्यारण्य रायपुर से 70 कि.मी. दूर (रायपुर-संबलपुर मार्ग पर) स्थित है। महानदी की सहायक नदियां यहां के लिए जलस्रोत हैं। बालमदेही नदी एवं जोंक नदी अभ्यारण्य से होकर बहती है। इस अभ्यारण्य मेंं 22 वनग्राम है जिसमेंं मुख्यत: आदिवासी लोग निवास करते है।
अभ्यारण्य के घने वनों को टीक, साल और मिश्रित वनों मेंं बांटा जा सकता है। वन मेंं सीधे तने वाले भव्य टीक (टेक्टोना ग्रांडिस) के साथ अन्य वृक्ष जैसे साजा (टर्मिनालिया टोमेंन्टोसा), बीजा (टेरोकार्पस मार्सुपियम), लेंडिया (लेगरस्ट्रोमिया पार्विफ्लोरा), हल्दु (अदीना कार्डिफोलिया), धाओरा (आनोगेसिस लेटिफोलिया), सलई (बासवेलिया सेराट), आंवला (इंब्लिका अफिकीनालिस), अमलतास (केसिया फिस्तुला) आदि शामिल हैं। यहां वनों मेंं बांस भी देखा जा सकता है। सफेद कुतु (स्टेरकुलिया यूरेअस) बरबस ही किसी का भी ध्यान आकर्षित कर लेता है। हरियाली के मध्य, अकेले खड़े इन पेड़ों की छटा निराली है।
इस अभ्यारण्य मेंं शेर, तेन्दूआ, भालू, गौर, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली शूकर, लोमड़ी, धारदार लकड़बग्घा आदि दिखते हैं। बारनवापारा मेंं 150 से भी अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। इनमेंं प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। इनमेंं से कुछ हैं जंगली मुर्गे, फेजेन्ट, बुलबुल, ड्रोंगो, कठफोड़वा आदि मुख्य हैं।
तेलईधारा: बारनवापारा से 10 कि.मी. दूर यह मनोरम स्थान है। यह स्थान बांस एवं साल के वन से घिरा हुआ है एवं बडा ही रमणीक जलप्रपात यहां बहता है। पर्यटक यहां पिकनीक का आनंद ले सकते है।
सिरपुर का पतन: सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र मेंं जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर मेंं भरा रहा यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना। यहां के पुरातात्विक उत्खनन मेंं इस बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप मेंं सुरंग टीले के मंदिरों मेंं सीढिय़ों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवालों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।
सिरपुर महोत्सव की शुरुआत: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विशेष पहल पर स्थानीय लोगों की मांग पर वर्ष 2006से सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव से सिरपुर को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। महोत्सव के आयोजन के बाद से पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन मेंं भी तेजी आई है।
इतिहास के पन्नों से: सिरपुर एक प्राचीन शहर है जिसे 5 वीं शताब्दी के आसपास गठित किया गया था। 6वीं सदी से 10 वीं सदी तक यह बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल था। हालांकि, 12 वीं सदी मेंं आएं विनाशकारी भूकम्प मेंं यह शहर तबाह हो गया, और इसकी सारी जींवतता ध्वस्त हो गई किंतु ऐतिहासिकता के कारण सिरपुर का अस्तित्व आज भी कायम है।

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