Sunday, 19 April 2015

वैनायकी गणेष व्रत -


वैनायकी गणेष व्रत -
मूहुर्तचिंतामणि नामक ग्रंथ में उल्लेखित श्लोक के अनुसार प्रत्येक चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेष भगवान हैं परंतु प्रत्येक चतुर्थी को भगवान के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। अमरकोष नामक ग्रंथ में उल्लेख है कि विषिष्टोनायकः विनायकः अर्थात् विषिष्ट नायक हो उसे विनायक कहा जाता है। अर्थात् विषिष्ट कर्म में किसी प्रकार के विध्न को हरने हेतु गणेष की अर्चन एवं पूजन किया जाता है। अभिष्ट फल की प्राप्ति हेतु वैनायकी गणेष का व्रत किया जाता है इसमें प्रसन्न मन से पवित्र होकर पूजन सामग्रियों को एकत्रित कर भगवान के मूल मंत्र उॅ गं गणपतये नमः का उच्चारण करते हुए सारी सामग्रियों का चढ़ाकर भगवान के आठ नामों का उच्चारण करे हुए भगवान का वंदन करना चाहिए। भगवान गणेष को मोदक और दूर्वा अति प्रिय हैं अतः हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्व का वास होता है, उसे भगवान वैनायकी पर चढ़ाने पर से जीवन के सभी विध्न समाप्त होकर जीवन में सुखो का वास होता है और अभिष्ट कामना की पूर्ति होती है।

Pt.P.S Tripathi
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