शनि ग्रह का रत्न नीलम है इसे नील, नीलमणि व हिनदी में नीलम अंग्रेजी में सैफायर कहते हैं।
जब किसी जातक की जन्मकुण्डली या वर्ष में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो शनि के बीज मंत्र का 23 हजार बार जप करें व दशमांश हवन भी करें।
शनि का बीजमंत्र - ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
शनि के निमित्त दान वस्तुएं
नीलम, लोहे का तवा, उड़द, सरसों का तेल, काले तिल, काला वस्त्र, चमड़े का जूता, काली गाय, भैंस, कस्तूरी, नीले पुष्प इत्यादि।
शनि का व्रत व शनि स्तोत्र का पाठ करें।नीलम सोने की अंगूठी में धारण करें काले घोड़े की नाल का छल्ला या नाव की कील का छल्ला धारण करें।वस्त्र, पर्दे, नीले रंग के होने चाहिए।भोजन की थाली में से रोटी निकालकर काले कुत्ते को खिलावें।शनिवार को पीपल नहलायें व सूर्यास्त पश्चात मीठे तेल का चौमुखा दीपक जलावें। दक्षिणमुखी हनुमान जी की आराधना करें।
नीलम 3,5,7,9 या 12 रत्ती का लोहे अथवा सोने में जड़वाकर शुक्ल पक्ष के शनिवार को पुष्प्, उभा, चित्रा, व धनिष्ठा शतभिषा नक्षत्रों में धारण करना चाहिए। धारण के बाद शनि मंत्र जपै शनि के निमित्त दान करें।
नीलम धारण करने के लाभ
नीलम धारण करने से धन-धान्य, यश, कीर्ति, सर्विस, व्यवसाय व वंश में वृद्धि होती है। औषधि के रूप में नीलम से दमा, क्षय, कुष्ठ रोग, अजीर्ण ज्वर, खाँसी, नेत्र रोग, मस्तिष्क विकार मेंलाभ होता हैं।
विशेष - नीलम हमेशा चौबीस घंटे के बाद प्रभाव दिखाता है। नीलम की अनुकूलता जानने के लिए रात्रि को सोते समय रूई में नीलम रखकर सिरहाने रखकर सोयें। गलत स्वप्न आए या कोई विकार हो तो धारण नहीं करना चाहिए.....
Pt.P.S Tripathi
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