मंगलवार के व्रत का विशेष महत्व है। मंगलवार को मंगलागौरी व्रत करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। जिस जातक के विवाह में बाधा हो, विशेषकर कन्या के विवाह में बाधक को दूर करने के लिए इस व्रत को संकल्प के साथ 11 या 21 तक किये जाने का विधान शास्त्रों में है। प्रात: काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर इच्छुक वर की प्राप्ति तथा सौभाग्य कामना हेतु मंगलागौरी के व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके उपरंात मॉ मंगलागौरी का चित्र या प्रतिमा एक चौकी में लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। चित्र के सामने आटे से बना एक धी का दीपक बनाकर सोलह बतियों का दीपक जलायें। इसके उपरंात ''कुंकमरागुरूलिप्तांगा सर्वाभरण-भूषिताम् नीलकण्ठप्रियां गौरीं वंदेहं मंगलाहयाम् का उच्चारण कर षोडषोपचार से पूजन करें। पूजन के बाद माता को सोलह माला, लड्डू, फल, पान, इलायची, लौंग, सुपारी, सुहाग की सामग्री व मिष्ठान चढ़ायें। कथा सुनने के बाद सभी सामग्री का दान ब्राम्हण को करें। संकल्पित वत्र की समाप्ति के बाद माता का चित्र जल में प्रवाहित करें। ऐसा करने से मनचाहा वर तथा कुल प्राप्त होता है साथ ही वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
कैसे करें व्रत:
* इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
* नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे, नवीन वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए। इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
* मां मंगला गौरी; पार्वतीजी का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें। फिर
''श्मम पुत्रापौत्रा सौभाग्य वृद्धये श्रीमंगला गौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्येÓÓ इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
* इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
* नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे, नवीन वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए। इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।
* मां मंगला गौरी; पार्वतीजी का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें। फिर
''श्मम पुत्रापौत्रा सौभाग्य वृद्धये श्रीमंगला गौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्येÓÓ इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
व्रत संकल्प का अर्थ:
ऐसा माना जाता है कि मैं अपने पति पुत्र-पौत्रों उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं। तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक, आटे से बनाया हुआ जलाएं दीपक ऐसा हो जिसमें सोलह बत्तियां लगाई जा सकें।
तत्पश्चात,
श्कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्ण्ण्।।
यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडषोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको, सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए 16मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री 16चुडिय़ां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे 7 प्रकार के अनाज. धान्य; जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि होना चाहिए। पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि मैं अपने पति पुत्र-पौत्रों उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं। तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक, आटे से बनाया हुआ जलाएं दीपक ऐसा हो जिसमें सोलह बत्तियां लगाई जा सकें।
तत्पश्चात,
श्कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्ण्ण्।।
यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडषोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको, सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए 16मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री 16चुडिय़ां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे 7 प्रकार के अनाज. धान्य; जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि होना चाहिए। पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।
मां मंगला गौरी कथा:
पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन. दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी इस वजह से पति पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे।
फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र में सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी।
ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की।
शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं। ऐसी इस व्रत की महिमा है।
पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन. दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी इस वजह से पति पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे।
फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र में सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी।
ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की।
शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं। ऐसी इस व्रत की महिमा है।
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