देश को केन्द्रीय सत्ता का सिंहासन क्या किसी कुंवारे राजनेता के बैठने की प्रतिक्षा कर रहा है? इस बारे में राजनीतिक गलियारों, आम लोगों में चर्चाएं, अनुमान जो भी हो नजरें कांग्रेस वो युवा, कुंवारे, उपाध्यक्ष राहुल गांधी तथा भारतीय जनता पार्टी के चुनावी प्रचार की कमान संभाले, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर है जिनके चेहरे पर विवाह के लिए मुस्कराहट नहीं फैलती । इन्हें 'महाभारत के एक महापराक्रमी भीष्म की तरह कुंवारा रहना उचित लगता है। किसी भी प्रमुख देश में 84 साल बाद यह पहला मौका होगा जब चुनाव के महासमर में दो कुंवारे योद्धा टकराएंगे। 1930 में कनाडा में हुए चुनाव में यह संयोग हुआ था। तब कंजरवेटिव पार्टी के आरमी बैनेट ने लिबरल पार्टी के प्रधानमंत्री विलियम लियोन मैंकेजी किंग को हरा दिया। तब क्लब, रेस्टोरेंट व सर्विस अपार्टमेंट को ऐसी व्यवस्था विकसित हो गई थी कि लोगों में कुंवारा रहना फैशन बन गया था। इसी कड़ी में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आर्थर बलफोर भी आते हैं जिनका कहना था कि उन्होंने अपने काम से शादी कर ली है। अभी तो खैर यह सवाल किंतु-परंतु में उलझा हुआ है लेकिन नरेन्द्र मोदी या राहुल गांधी में से कोई प्रघानमंत्री बनता हैं तो अटल बिहारी बाजपेयी के बाद वे दूसरे व्यक्ति होंगे जिसने घोषित रूप से अविवाहित होते हुए प्रधानमंत्री का पद संभाला हो। नरेन्द्र मोदी को न तो बंसत प्रभावित करता है न श्रावण में वर्षा की फुहारों के स्पर्धा से कोई अनुभूति होती है। उन्हें किसी भी समय कार्यों में व्यस्त रहते, प्रात: पूजा-पाठ करते देखा जा सकता है। जबकि राहुल गांंधी की शैली वंशानुगत राजशाही से जुड़ा है। पंडित देव शर्मा के अनुसार राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी को कुंडलियों में सत्ता, राजनीति के योग धुंधले नहीं हैं। मोदी गुजरात की सत्ता पर हैं तो राहुल गांधी को कांग्रेस की संजीवनी के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बिना पत्नी, बिना पति के होते सत्ता में रहना साधारण सी बात है। पंडित जवाहरलाल नेहरू चौदह साल तक प्रधानमंत्री रहे। यही पद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने भी संभाला, वर्तमान समय में सोनिया कांग्रेस तथा यूपीए की अध्यक्ष हैं प्रत्येक रूप में सत्ता में वे नहीं जुड़ी, लेकिन सत्ता की सबसे मजबूत केंद्र वे ही मानी जाती हैं, क्या राहुल गांधी अविवाहित ही रहेंगे? वे इसी वर्ष विवाह के बंधन में बंध जाने के संकेत थे, अब संभव हैं विलम्ब हो, आम चुनाव के बाद सेहरा बांध पायें। पार्टी, कार्य राजनीति, चुनाव की व्यस्तता को देखते ऐसा करना ठीक लगा हो। बिना विवाह बंधन परम्परा चलना संभव नहीं है, सोनिया गांधी इस सच से भलीभाँति परिचित हैं। अपनी पुत्री प्रियंका वाड्रा के बच्चों को उत्तर प्र्रदेश विधान सभा चुनाव में एक मंच पर खड़े देखा भी है, पर अपने पुत्र की संतान को गोद में खिलाना, हाथ पकड़कर चलना, अलग बात है। माना कि किसी व्यक्ति का, नेता का कुंवारा होना उन्हें ब्रह्मचारी वाली छवि देता है जो उनके व्यक्तित्व में आध्यात्मिकता का भाव जोड़ता है हालांकि उसके साथ भौतिक सुखों का त्याग करने की शर्त भी जुड़ी है । ऐसा नरेन्द्र मोदी अविवाहित, कुंवारे रहकर भी कर पा रहे हैं तो राहुल गांधी को भी इस कसौटी पर खरा नहीं कहा जा सकता। इनकी कुंडली में चन्द्रमा की महादशा चल रही है, यह नीच हो कर सप्तम में बैठा है, तृतीय का स्वामी भी है जो इस समय तो राजयोग नहीं बना रहा आगे की बात बाद में करेंगे।
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Saturday, 11 April 2015
मोदी और राहुल गाँधी
देश को केन्द्रीय सत्ता का सिंहासन क्या किसी कुंवारे राजनेता के बैठने की प्रतिक्षा कर रहा है? इस बारे में राजनीतिक गलियारों, आम लोगों में चर्चाएं, अनुमान जो भी हो नजरें कांग्रेस वो युवा, कुंवारे, उपाध्यक्ष राहुल गांधी तथा भारतीय जनता पार्टी के चुनावी प्रचार की कमान संभाले, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर है जिनके चेहरे पर विवाह के लिए मुस्कराहट नहीं फैलती । इन्हें 'महाभारत के एक महापराक्रमी भीष्म की तरह कुंवारा रहना उचित लगता है। किसी भी प्रमुख देश में 84 साल बाद यह पहला मौका होगा जब चुनाव के महासमर में दो कुंवारे योद्धा टकराएंगे। 1930 में कनाडा में हुए चुनाव में यह संयोग हुआ था। तब कंजरवेटिव पार्टी के आरमी बैनेट ने लिबरल पार्टी के प्रधानमंत्री विलियम लियोन मैंकेजी किंग को हरा दिया। तब क्लब, रेस्टोरेंट व सर्विस अपार्टमेंट को ऐसी व्यवस्था विकसित हो गई थी कि लोगों में कुंवारा रहना फैशन बन गया था। इसी कड़ी में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आर्थर बलफोर भी आते हैं जिनका कहना था कि उन्होंने अपने काम से शादी कर ली है। अभी तो खैर यह सवाल किंतु-परंतु में उलझा हुआ है लेकिन नरेन्द्र मोदी या राहुल गांधी में से कोई प्रघानमंत्री बनता हैं तो अटल बिहारी बाजपेयी के बाद वे दूसरे व्यक्ति होंगे जिसने घोषित रूप से अविवाहित होते हुए प्रधानमंत्री का पद संभाला हो। नरेन्द्र मोदी को न तो बंसत प्रभावित करता है न श्रावण में वर्षा की फुहारों के स्पर्धा से कोई अनुभूति होती है। उन्हें किसी भी समय कार्यों में व्यस्त रहते, प्रात: पूजा-पाठ करते देखा जा सकता है। जबकि राहुल गांंधी की शैली वंशानुगत राजशाही से जुड़ा है। पंडित देव शर्मा के अनुसार राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी को कुंडलियों में सत्ता, राजनीति के योग धुंधले नहीं हैं। मोदी गुजरात की सत्ता पर हैं तो राहुल गांधी को कांग्रेस की संजीवनी के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बिना पत्नी, बिना पति के होते सत्ता में रहना साधारण सी बात है। पंडित जवाहरलाल नेहरू चौदह साल तक प्रधानमंत्री रहे। यही पद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने भी संभाला, वर्तमान समय में सोनिया कांग्रेस तथा यूपीए की अध्यक्ष हैं प्रत्येक रूप में सत्ता में वे नहीं जुड़ी, लेकिन सत्ता की सबसे मजबूत केंद्र वे ही मानी जाती हैं, क्या राहुल गांधी अविवाहित ही रहेंगे? वे इसी वर्ष विवाह के बंधन में बंध जाने के संकेत थे, अब संभव हैं विलम्ब हो, आम चुनाव के बाद सेहरा बांध पायें। पार्टी, कार्य राजनीति, चुनाव की व्यस्तता को देखते ऐसा करना ठीक लगा हो। बिना विवाह बंधन परम्परा चलना संभव नहीं है, सोनिया गांधी इस सच से भलीभाँति परिचित हैं। अपनी पुत्री प्रियंका वाड्रा के बच्चों को उत्तर प्र्रदेश विधान सभा चुनाव में एक मंच पर खड़े देखा भी है, पर अपने पुत्र की संतान को गोद में खिलाना, हाथ पकड़कर चलना, अलग बात है। माना कि किसी व्यक्ति का, नेता का कुंवारा होना उन्हें ब्रह्मचारी वाली छवि देता है जो उनके व्यक्तित्व में आध्यात्मिकता का भाव जोड़ता है हालांकि उसके साथ भौतिक सुखों का त्याग करने की शर्त भी जुड़ी है । ऐसा नरेन्द्र मोदी अविवाहित, कुंवारे रहकर भी कर पा रहे हैं तो राहुल गांधी को भी इस कसौटी पर खरा नहीं कहा जा सकता। इनकी कुंडली में चन्द्रमा की महादशा चल रही है, यह नीच हो कर सप्तम में बैठा है, तृतीय का स्वामी भी है जो इस समय तो राजयोग नहीं बना रहा आगे की बात बाद में करेंगे।
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