महाशिवरात्रिः
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा इसी दिन से ऋतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमजोर अवस्था में पहुँच जाता है जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है। चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। भगवान भोलेनाथ को इस पर्व पर दूध या जल से अभिषेक कर बेलपत्र, आम के बौर, मटर की फली, धतूरे का फूल, गेहूँ की बाली, बेर के फल, फूल आदि चढ़ाए जाते हैं। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। शिवरात्रि के दिन शिव का दर्शन करने से हजारों जन्मों का पाप मिट जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Pt.P.S.Tripathi
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