Friday, 1 May 2015

सर्वबाधा निवारण मंगलव्रत तथा मंगलयंत्र की उपयोगिता



सर्वबाधा निवारण मंगलव्रत तथा मंगलयंत्र की उपयोगिता-
सर्व सुख, रक्त विकार, राज्य सम्मान तथा संतान की प्राप्ति तथा यशस्वी होने हेतु मंगलयंत्र का पूजन करना चाहिए। मंगलयंत्र की स्थापना के साथ मंगलवार का व्रत अति उत्तम माना जाता है। इस व्रत को 51 सप्ताह तक करना चाहिए। इस व्रत के पूजन के लिए लाल पुष्पों तथा लाल वस्त्रों का चढ़ावा चढ़ाकर गेहूॅ और गुड़ से बने मिष्ठान का भोग लगायें और हनुमान की पूजन तथा कथा के उपरांत एक बार इसी आहार को ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत के करने से मनुष्य के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं।
कथा -
कहा जाता है कि एक बुढिया को मंगल देवता पर बहुत श्रद्धा थी। वह नियम से मंगलवार का व्रत रखा करती और पूजन करती थी। मंगलदेव का नाम सदा जपती रहे इस हेतु उसने अपने पुत्र का नाम ही मंगलिया रखा था। एक बार मंगल देवता उसकी श्रद्धा की परीक्षा करने के लिए उसके घर पर साधु का वेश धारण कर आये। उस बुढिया का उस दिन मंगलवार का व्रत था तथा वह मंगलवार के व्रत में घर को लीपना या पृथ्वी खोदना या तेल का उपयोग नहीं करती थी। अतः उस साधु ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा करने हेतु बुढि़या से कहा कि आप हम भूखें हैं और आज हम अपना भोजन तुम्हारे आंगन में बनाना चाहते हैं। बुढि़या ने सहर्ष ही सभी सामग्री साधु को देकर निवेदन किया कि प्रभु आप के ऐसा करने से मुझे भी आशीष प्राप्त होगा। किंतु साधु ने कहा कि पहले आंगन को लीप दो जिससे मैं अपना भोजन स्वच्छता से बना सकू। बुढि़या ने कहा कि महाराज आज मैं व्रती हॅू तथा इस व्रत में मैं आंगन नहीं लीप सकती। इसके अलावा आप जो भी मांग करेंगे मैं उसकी पूर्ति करूॅगी। साधु ने कहा कि पहले सोच लें उसके बाद वचन देना। बुढि़या ने तीन बार संकल्प कर अपना वचन कायम रखा। तब साधु ने कहा कि तू अपने पुत्र को लेटा दे, जिससे मैं उसके उपर अपना भोजन बनाउॅगा। बुढि़या ने बिना सोचे मंगलिया को आवाज लगाकर कहा कि महाराज जैसा कहें वैसा करना ऐसा आज्ञा देकर वह अपने कार्य में लग गई। भोजन बनने के उपरांत जब साधु ने बुढि़या को प्रसाद ग्रहण करने हेतू आवाज लगाई तो उसने देखा कि उसका पुत्र तो सुरक्षित खड़ा है। तब उसने आश्चर्य से साधु से पूछा कि महाराज यह कैसे संभव हुआ। तब मंगल ने अपना रूप दिखाकर कहा कि मैं तेरी परीक्षा करने हेतु आया था। तेरी सभी मनोकामना की पूर्ति मैं करता हूॅ। तब से बुढि़या और उसका पुत्र संपन्न और समृद्धिपूर्वक जीवन जीने लगे।



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