भगवान
शंकर के ग्यारवें अवतार हनुमान की पूजा पुरातन काल से ही शक्ति के प्रतीक
के रूप में की जा रही है । हनुमान के जन्म के संबंध में धर्मग्रंथों में कई
कथाएं प्रचलित हैं ।
उसी के अनुसार --
भगवान
विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना
वीर्यपात कर दिया । सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर
वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में पवनदेव द्वारा स्थापित करा दिया,
जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए l
इसीलिए हनुमान जी को "शंकर-सुवन".... "पवन-पुत्र".... और "केसरी-नंदन" कहा
जाता है....
हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर
पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए । उन्होंने
पत्नी हरण से खिन्न व माता सीता की खोज में भटकते रामचंद्रजी की सुग्रीव से
मित्रता कराई । सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां
उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए ।
हनुमान ने
राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के
प्राण बचाए । अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया । इस
प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त श्रीराम की सहायता
की....ल
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जयंत के दिन ही
भगवान राम की सेवा करने के उद्येश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र ने
वानरराज केसरी और अंजना के घर पुत्र रूप में जन्म लिया था l यह त्यौहार
पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाई जाती है l
हनुमान
जयन्ती एक हिन्दू है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन
हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र मास की
पूर्णिमा को ही राम भक्त हनुमान ने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था। यह
व्रत हनुमान जी की जन्मतिथि का है। प्रत्येक देवता की जन्मतिथि एक होती
है, परन्तु हनुमान जी की दो मनाई जाती हैं। हनुमान जी की जन्मतिथि को लेकर
मतभेद हैं। कुछ हनुमान जयन्ती की तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मानते हैं तो
कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। इस विषय में ग्रंथों में दोनों के ही उल्लेख
मिलते हैं, किंतु इनके कारणों में भिन्नता है। पहला जन्मदिवस है और दूसरा
विजय अभिनन्दन महोत्सव।
====इन मन्त्रों के प्रयोग द्वारा पाएं लाभ---
====कई प्रकार के कष्टों से मुक्तिदाता मंत्र :---
यदि
आप चाहते हैं कि आपके जीवन में कोई संकट न आए तो नीचे लिखे मंत्र का जप
हनुमान जयंती के दिन करें। प्रति मंगलवार को भी इस मंत्र का जप कर सकते
हैं।
---ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रु संहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा
---ॐ आन्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमत प्रचोदयात ||
----ॐ हरी ॐ नमो भगवते आंजनेय महाबले नाम !
==ॐ नम: वज्र का कोठा l जिसमे पिंड हमारा पेठा llइश्वर कुंजी l ब्रह्म का ताला llमेरे आठों याम का यती l हनुमंत रखवाला ll
इस मन्त्र का नित्य नियम पूर्वक 11 बार करे l
इन मन्त्रों को नियमित रूप से जपने से सब प्रकार की बाधा समाप्त हो जाती हे !
यह हैं जप विधि---
- सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें।
- पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है।
- जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।
हनुमान के इन बारह नाम नित्य लेने वाला व्यक्ति कई गुणों से युक्त हो जाता हे||
जो सुबह नाम लेता हे वो आरोगी रहता हे ||
जो दोपहर में नाम लेता हे वो लक्ष्मी वान होता हे||
रात्रि के समय नाम लेने वाला शत्रु विजय होता हे ||
इसके इलावा कंही भी कभी भी इन 12 नामों को लेने वाले की हनुमान जी आकाश धरती पाताल तीनो जगहों पर रक्षा करते हे---
१)जय श्री हनुमान
२)जय श्री अंजनी सूत
३)जय श्री वायु पुत्र
४)जय श्री महाबल
५)जय श्री रामेष्ट
६)जय श्री फाल्गुन सख
७ )जय श्री पिंगाक्ष
८)जय श्री अमित विक्रम
९)जय श्री उद्द्दी कमन
१०)जय श्री सीता शोक विनाशन
११)जय श्री लक्ष्मण प्राणदाता
१२)जय श्री दस ग्रीव दर्पहा
यह भी जानिए--भक्ति के महाद्वार हैं हनुमान--
विश्व-साहित्य
में हनुमान के सदृश पात्र कोई और नहीं है। हनुमान एक ऐसे चरित्र हैं जो
सर्वगुण निधान हैं। अप्रतिम शारीरिक क्षमता ही नहीं, मानसिक दक्षता तथा
सर्वविधचारित्रिक ऊंचाइयों के भी यह उत्तुंग शिखर हैं। इनके सदृश मित्र,
सेवक ,सखा, कृपालु एवं भक्तिपरायणको ढूंढनाअसंभव है। हनुमान के प्रकाश से
वाल्मीकि एवं तुलसीकृतरामायण जगमग हो गई।
हनुमान के रहते कौन सा कार्य व्यक्ति के लिए कठिन हो सकता है?
"दुर्गम काज जगत के जेते।सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥"
====अगर
किसी कष्ट से ग्रस्त हैं, किसी समस्या से पीडित हैं, कोई अभाव आपको सता
रहा है तो देर किस बात की! हनुमान को पुकारिए, सुंदर कांड का पाठ कीजिए, वह
कठिन लगे तो हनुमान-चालीसा का ही परायण कीजिए और आप्तकामहो जाइए। हनुमान
की प्रमुख विशेषताओं को गोस्वामी ने इन चार पंक्तियों में समेटने का प्रयास
किया है-
अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहंदनुज वन कृशानुं ज्ञानिनाम ग्रगण्यम्।
सकल गुण निधानं वानरणाम धीशंरघुपति प्रियभक्तं वात जातं नमामि।।
सदृश
विशाल कान्तिमान् शरीर, दैत्य (दुष्ट) रूपी वन के लिए अग्नि-समान,
ज्ञानियोंमें अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के खान, वानराधिपति,राम के प्रिय
भक्त पवनसुतहनुमान का मैं नमन करता हूं।अब ढूंढिएऐसे चरित्र को जिसमें एक
साथ इतनी विशेषताएं हों। जिसका शरीर भी कनक भूधराकारहो, जो सर्वगुणोंसे
सम्पन्न भी हो, दुष्टों के लिए दावानल भी हो और राम का अनन्य भक्त भी हो।
कनक भूधराकारकी बात कोई अतिशयोक्ति नहीं, हनुमान के संबंध में यह
यत्र-तत्र-सर्वत्र आई है।
आंज नेयं अति पाटला ननम्कांचना द्रिकम नीय विग्रहम्।
पारिजात तरुमूल वासिनम्भावयामि पवन नन्दनम्॥
अंजना
पुत्र,अत्यन्त गुलाबी मुख-कान्ति तथा स्वर्ण पर्वत के सदृश सुंदर शरीर,
कल्प वृक्ष के नीचे वास करने वाले पवन पुत्र का मैं ध्यान करता हूं।
पारिजात वृक्ष मनोवांछित फल प्रदान करता है। अत:उसके नीचे वास करने वाले
हनुमान स्वत:भक्तों की सभी मनोकामनाओंकी पूर्ति के कारक बन जाते हैं। आदमी
तो आदमी स्वयं परमेश्वरावतार पुरुषोत्तम राम के लिए हनुमान जी ऐसे महापुरुष
सिद्ध हुए कि प्रथम रामकथा-गायक वाल्मीकि ने राम के मुख से कहलवा दिया कि
तुम्हारे उपकारों का मैं इतना ऋणी हूं कि एक-एक उपकार के लिए मैं अपने
प्राण दे सकता हूं, फिर भी तुम्हारे उपकारों से मैं उऋण कहां हो पाउंगा?
एकै कस्यो पकार स्यप्राणान्दा स्यामि तेकपे ।
शेष स्येहो पकाराणां भवाम ऋणि नोवयम् ।
उस
समय तो राम के उद्गार सभी सीमाओं को पार कर गए जब हनुमान के लंका से लौटने
पर उन्होंने कहा कि हनुमान ने ऐसा कठिन कार्य किया है कि भूतल पर ऐसा
कार्य सम्पादित करना कठिन है, इस भूमंडल पर अन्य कोई तो ऐसा करने की बात मन
में सोच भी नहीं सकता।
कृतं हनूमता कार्य सुमह द्भुवि दुलर्भम् ।
मनसा पिय दन्ये नन शक्यं धरणी तले ॥
गोस्वामी
जी हनुमान के सबसे बडे भक्त थे। वाल्मीकि के हनुमान की विशेषताओं को देखकर
वह पूरी तरह उनके हो गए। हनुमान के माध्यम से उन्होंने राम की भक्ति ही
नहीं प्राप्त की, राम के दर्शन भी कर लिए। हनुमान ने गोस्वामी की निष्ठा से
प्रसन्न होकर उन्हें वाराणसी में दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तुलसी को
अपने राम के दर्शन के अतिरिक्त और क्या मांगना था? हनुमान ने वचन दे
दिया।
राम और हनुमान घोडे पर सवार, तुलसी के
सामने से निकल गए। हनुमान ने देखा उनका यह प्रयास व्यर्थ गया। तुलसी उन्हें
पहचान ही नहीं पाए। हनुमान ने दूसरा प्रयास किया। चित्रकूट के घाट पर वह
चंदन घिस रहे थे कि राम ने एक सुंदर बालक के रूप में उनके पास पहुंच कर
तिलक लगाने को कहा। तुलसीदास फिर न चूक जाएं अत:हनुमान को तोते का रूप धारण
कर ये प्रसिद्ध पंक्तियां कहनी पडी
चित्रकूट के घाट पर भई संतनकी भीर।
तुलसीदास चन्दन रगरैतिलक देतराम रघुबीर॥
हनुमान
ने मात्र तुलसी को ही राम के समीप नहीं पहुंचाया। जिस किसी को भी राम की
भक्ति करनी है, उसे प्रथम हनुमान की भक्ति करनी होगी। राम हनुमान से इतने
उपकृत हैं कि जो उनको प्रसन्न किए बिना ही राम को पाना चाहते हैं उन्हें
राम कभी नहीं अपनाते। गोस्वामी ने ठीक ही लिखा हैं---
राम दुआरेतुम रखवारे।होत न आज्ञा बिनुपैसारे॥
अत:हनुमान भक्ति के महाद्वारहैं।
राम
की ही नहीं कृष्ण की भी भक्ति करनी हो तो पहले हनुमान को अपनाना होगा। यह
इसलिए कि भक्ति का मार्ग कठिन है। हनुमान इस कठिन मार्ग को आसान कर देते
हैं, अत:सर्वप्रथम उनका शरणागत होना पडता है।
भारत
में कई ऐसे संत व साधक हुए हैं जिन्होंने हनुमान की कृपा से अमरत्व को
प्राप्त कर लिया। रामायण में राम और सीता के पश्चात सर्वाधिक लोकप्रिय
चरित्र हैं हनुमान जिनके मंदिर भारत ही नहीं भारत के बाहर भी अनगिनत संख्या
में निर्मित हैं। धरती तो धरती तीनों लोकों में इनकी ख्याति है------
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।जय कपीसतिहूंलोक उजागर॥
===हनुमान बाहुक तुलसीदास जी के द्वारा रचित एक स्तोत्र हे जो आरोग्यता प्रदान करता हे||
इसे रचने के पीछे की कहानी यह हैं---
ये
घटना तब की हे जब तुलसीदास जी लंका काण्ड की रचना कर चुके थे उसके बाद वो
बहुत बीमार हो गए अपने आप को किसी असाध्य रोग से पीड़ित जान कर उन्होंने
हनुमानजी की स्तुति की और मोन वृत आवाज़ में जो बोल उनके मुह से निकले वो
हनुमान बाहुक के रूप में जाने जाते हे कोई भी बीमार य उसका सम्बन्धी इस
स्तोत्र का पाठ करे तो वो रोगी आरोगी हो जाता हे कई असाध्य रोगों में भी
इसकी उपयोगिता देखी गई हे||
====हनुमान जी ने एक बार माता सीता को सिंदूर लगते हुए देखा और कहा की माता आप ये क्या कर रही हे..????
तो माता सीता ने उनसे कहा की सिंदूर लगा रही हु, तब हनुमान जी ने कहा की इसके लगाने से क्या होता हे??
तब माता सीता ने कहा की श्री राम प्रसन्न होते हे
तब
हनुमान ने कहा की माता ने तो बस एक अपने मस्तक पर ही लगाया हे मै तो पुरे
शरीर पर लगा लूँगा और प्रभु मुझसे कितना प्रसन्न हो जायेंगे उन्होंने अपने
शरीर पर सिंदूर ही सिंदूर लगा लिया और राम दरबार में पंहुच गए उनकी हालत
देख कर सब दरबारी हंसने लगे जब श्री राम को सारी बात पता चली तो उन्होंने
कहाकि में तुम्हारे इस अगाध प्रेम को स्वीकार कर के ये वरदान देता हु की जो
भी तुम्हे सिंदूर क अर्पण करेगा वो सदेव मेरी कृपा क पात्र रहेगा ||
हनुमान
जी के नाम स्मरण मात्र से भूत प्रेत की बाधा तो छूट ती ही है अपितु भगवन
हनुमान जी को श्रीराम ने वरदान दिया की जब तलक चन्द्र सूरज जमी पे रहे तब
तलक तुम अमर हो पवन के सुवन||
हमारे शास्त्र कहते
है की कुछ महा विभूति अब भी इस जमी पर है जो की अमर है कई भाग्य शाली
इंसानों को उनके दर्शन भी हुए है ! जो अमर है उनका नाम हैं असितो,देवलो,
व्यास, अंगद, विभिसन ,भार्तिहरी हनुमान जी,अशव्स्थामा,विदुर.,नारद, ये
महात्मा अभी तक अमर है!,
ll हरी ॐ llपवन-सुत हनुमान की जय....ll हरी ॐ ll
ll हरी ॐ llवीर बजरंग बलि की जय....ll हरी ॐ ll
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