विवाह के बाद भटकाव क्यू??
आज समाज में व्यक्ति के आत्मकेन्द्रित हो जाने से परिवार के अन्दर स्नेहसूत्र का डोर कमजोर होता जा रहा है और इस स्नेहसूत्र की मुख्य कड़ी वैवाहिक रिष्तों की डोर टूटकर कहीं बिखरती जा रही है। सामाजिकता के प्रभावहीन हो जाने के कारण मनुष्य निरन्तर अकेला होता जा रहा है और इसी अकेलेपन से मुक्ति पाने के लिये व्यक्ति ने भारत में परिवार की संस्था का विनाश करना आरम्भ कर दिया है। समाज में हो रहे कई परिवर्तन इसके कारण हैं. और इन कई कारणों में से हो सकता है कि पति या पत्नि की एक दूसरे से असंतुष्टि, पति या पत्नी का एक दूसरे से लगाव या प्रेम की कमी, एक दूजे के लिए समय का अभाव, आपसी समझ या सदभावना का अभाव। वैवाहिक रिष्तों में आपसी प्रेम के अलावा अन्य किसी से संबंध का होना, कमजोर होते सामाजिक और मानवीय रिष्तों के अलावा, इसका ज्योतिषीय कारण भी है-
पंचम भाव और पंचमेष का स्वामी विवाह से इतर प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य कारक ग्रह है और रोमांस प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है. मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर देता है और शनि सामाजिक रीति रिवाज के इतर अपनी मर्जी से रिष्तों में नयी तकनीक तलाष करता है अतः यदि शनि लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दषम स्थान पर हो तो परिवार या समाज में प्रचलित तरीके से रिष्तों का निर्वाह न कर अपनी पसंद या सुविधा के अनुसार संबंध बनाता और निभाता है। अतः इस प्रकार इन ग्रहों की स्थिति तथा दषा एवं अंतरदषा में विषेषकर शनि या शुक्र की दषाओं में ऐसे रिष्तों की शुरूआत होती है। अतः इन दषाओं में अनुषासन का पालन करना तथा ग्रहों की शांति कराना चाहिए।
Pt.P.S Tripathi
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