Sunday, 10 May 2015

रिष्तों का सुख और ज्योतिषीय कारण -

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रिष्तों का सुख और ज्योतिषीय कारण -
प्रेम एक ऐसी भावना है जो मनुष्य तो मनुष्य, मूक पशुओं तक से रिश्ता जोड़ देती है। रिश्ते भी कई प्रकार के होते हैं। इनमें सबसे बड़ा रिश्ता है परिवार का जो आपको कई-कई रिश्तों में बांध देता है। कुछ रिश्ते केवल कामकाजी होते हैं, और कुछ ऐसे कि जिनका कोई नाम नहीं होता पर वे नामधारी रिश्तों से ज्यादा पक्के होते हैं। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है। किंतु कई बार रिश्तों में कितना भी प्यार या सामंजस्य रखने के बाद भी रिश्तों में कटुता दिखाई देती हैं, इसका ज्योतिषीय कारक है कि जब किसी भी रिश्तें का भाव या भावेश अपने उच्च स्थान या शुभ हो तो वह रिश्ता आपके लिए लाभकारी तथा सुखदायी होता है वहीं अगर विपरीत कारक बैठें हों तो वे रिश्तें दुख तथा हानि का कारण बनते हैं। अतः अगर आपके लाख कोशिशें के बाद भी कोई रिश्ता शुभ ना हो रहा हो तो विश्लेषण कर उचित ज्योतिषीय निदान करने चाहिए जैसे कि कभी पडोसियों से रिश्ता बिना कारण खराब हो रहा हो तो अपनी कुडली में देखें कि तृतीयेश की स्थिति कैसी है और उसकी दशा अथवा अंतरदशा चल रही हो तो उन ग्रहों की शांति कराने से उस रिश्तें में मजबूती लाई जा सकती है। इस प्रकार कुंडली के बारह भावों में से जिस भाव की स्थिति खराब हो उसे ग्रहों की शांति, ग्रह मंत्रों का जाप, वस्तुओं के दान से उस स्थान से जुडे रिश्तों को बेहतर किया जा सकता है।


Pt.P.S Tripathi
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