संतान से संबंधित सुखों में बाधा का कारण -पितृदोष -
मानव का गृहस्थाश्रम संतति बिना सफल नहीं होता। ऐहिक सुख एवं पारलौकिक गति ये दोनों चीजें अपत्य लाभ से ही प्राप्त होती है। इस संसार में मनुष्य विभिन्न दुखों से कष्ट प्राप्त करता है किंतु संतान से संबंधित कष्ट सबसे दुखदायी कष्ट साबित होता है, जिसमें संतान का ना हो, पुत्र का ना होना, संतति का जीवित ना रहना, संतान का बीमार रहना, चारित्रीय विकास या शारीरिक विकास का ना होना आदि का कारण पितृदोष माना जाता है। ज्योतिषषास्त्र का प्रमुख ग्रंथ बृहत्पाराषरी ग्रथ तथा धर्मसिंधु ग्रंथ के पृष्ठ क्रमांक-222 में स्पष्ट उल्लेख है कि पूर्वजन्म में किए गए विषिष्अ कृत द्रव्यापहरणादि, उस जनम में किए गए विषिष्ट कृत, वामकर्मी अभिचार योग, पितर आदि या अन्य संबंधितों की मुक्ति का ना होना, प्रेतलोक में पैषाचिक की पीड़ा होना, नागवध आदि कारणों से पितृदोष लगता है, जिसका वर्णन आर्युवेद में भी किया गया जोकि अथर्ववेद का ही उपवेद है। जिसमें कहा गया है कि रोग का षास्त्रसम्मत निदान होकर और उचित औषधि योजना के उपरांत भी रोग का इलाज न हो पाये तो उसे कर्मज समझना चाहिए। अतः इस प्रकार के रोग के नाष के लिए आयुर्वेद के सुश्रुत ग्रथ में नारायण-नागबलि विधि से भगवान शंकर की उनके गणों के साथ पूजन करने की विधि बताई गई है।
Pt.P.S Tripathi
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