सपनों की दुनिया भी बड़ी अजीब होती है। हर इंसान अपनी जिंदगी में सपने जरूर देखता है। स्वप्न जरूरी नहीं कि अच्छे या बुरे ही हों ये कभी सुहावने तो कभी डरावनें कभी सुंदर तो कभी परेषान करने वाले कुछ भी हो सकते हैं कभी सच्चाई के करीब तो कभी बेहद काल्पनिक। किंतु सपनों का संसार विचित्र होने के साथ ही हमारे आंतरिक तथा बाह्य जीवन को प्रभावित करने वाले हो सकते हैं। स्वप्न को हर शास्त्र में अपने तरीके से परिभाषित किया गया है जिसमें जीव विज्ञान तो सपनों को सिर्फ इंसानी सोच का चमत्कार मानता है वहीं शरीर विज्ञानियों का मत है कि सपनें नीेंद में मस्तिष्क में रक्त की कमी के कारण आते हैं वहीं आध्यात्म शास्त्रियों का मत है कि स्वप्न सारे दिन की क्रियाकलापों का परिणाम होता है वहीं इंद्रिय विज्ञानानुसार सपनें पाचन शक्ति के कमजोर होने से आते हैं किंतु सपनों के प्रकारों पर इन विज्ञान द्वारा बहुत विस्तृत परिणाम नहीं निकाला जा सकता है परंतु जहाॅ मनोवैज्ञानिक सपनों को स्वप्नावस्था के अवचेतन मस्तिष्क की उपज मानता है वहीं भारतीय ज्योतिष में स्वप्न को अवचेतनावस्था का ही परिणाम मानता है कि मस्तिष्क नहीं अपितु मन की अवचेतन अवस्था का। विज्ञान जहाॅ मन और मस्तिष्क को एक मानता है वहीं हमारा वेद मन और मस्तिष्क को दो भिन्न स्वीकार करता है जिसमें मन के दो भाग होते हैं एक चेतन मन और दूसरा अवचेतन मन। भौतिक जगत के समस्त क्रियाकलापों चेतनमन द्वारा संचालित होते हैं वहीं पर अवचेतन मन का अधिकांष भाग सुप्तावस्था में रहता है। भारतीय ज्योतिष मानता है कि स्वप्न देखने का कार्य यहीं सुप्तावस्था का अवचेतन मन करता है। वेद में यह माना गया है कि शरीर के सभी इंद्रिय स्वतंत्र हैं तथा सभी का अलग दायित्व है किंतु सोते समय सभी इंद्रिय मन पर एकत्रित हो जाते हैं उस समय देखना, सुनना, सूंधना, स्पर्ष या अन्य क्रियाएॅ षिथिल हो जाती हैं और पूरे शरीर पर सिर्फ मन का राज चलता है। चेतनमन जाग्रत अवस्था में कार्य करता है वहीं कार्य अवचेतनमन निद्रा की अवस्था में करता है। इसलिए कई बार स्वप्न सच भी होते देखे जाते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मन पर चंद्रमा का प्रभाव होता है अर्थात् मन का कारक ग्रह है चंद्रमा। अतः यदि ज्योतिषीय गणना से देखा जाए तो किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में चंद्रमा की स्थिति देखकर उसके स्वप्न का वर्णन किया जा सकता है। चंद्रमा जिस भाव में होगा, उसके स्वप्न उस भाव से संबंधित ज्यादा होते हैं। जैसे किसी व्यक्ति का चंद्रमा चतुर्थ भाव में हो तो उसके ज्यादातर स्वप्न चतुर्थभाव से संबंधित अर्थात् माता, भूमि, मकान, सुख के साधन, वाहन, जल, तालाब, कुॅआ, समुद्र, जनसमूह, प्रेमी-प्रेमिका से संबंधित, परिवार या रिष्तेदार से संबंधित होगा यदि इससे संबंधित ग्रह प्रतिकूल होंगे तो स्वप्न भी बुरे या खराब तथा अनुकूल होने पर अच्छे या लाभकारी हो सकते हैं। साथ ही उस समय गोचर का चंद्रमा जहाॅ भ्रमणषील होगा उसके अनुरूप अनुकूल या प्रतिकूल स्थिति के अनुसार स्वप्न आ सकते हैं अतः कहा जा सकता है कि स्वप्न चेतन और अवचेतन मन का मिला-जुला भाव हो सकता है जोकि जीवन के चेतन और अवचेतन मस्तिष्क की स्थिति पर निर्भर करता है साथ ही कई बार स्वप्न याद रहते हैं कई बार नहीं भी याद रहते और आधे-अधूरे भी याद हो सकते हैं यह तब संभव होता है जब अवचेतन मन में कई बार चेतनमन सक्रिय हो जाता है तब तक का स्वप्न याद रह जाता है किंतु अवचेतन मन का स्वप्न याद नहीं होता किंतु आभास जरूर होता है कि मन ने कोई स्वप्न देखा था।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in
No comments:
Post a Comment