Thursday, 3 November 2016

नैतिक मूल्य की कमी और ज्योतिषीय उपाय

‘जो मुझे चाहिए वह मुझे मिलना ही चाहिए” आजकल हर एक की यहीं धारणा बन गई है। हम ऐसा व्यवहार इसलिए करते हैं क्योंकि हम स्वार्थ के वशीभूत होते हैं ─ हम केवल अपने बारे में ही सोच रहे होते हैं ─ उस स्थिति में हम दूसरों की अनदेखी करते हैं और, न चाहते हुए भी दूसरों को बहुत दुख पहुँचाते हैं। ‘‘मुझे जिस कार्य को करने से आनन्द मिलता है और मैं तो यहीं करूॅगा, और जब हम इस दृष्टि से विचार करते हैं कि मुझे क्या करना अच्छा लगता है, तो जाहिर है कि जब मैं की भावना हो तो इसमें नैतिकता का अभाव होगा ही। हमारी भारतीय संस्कृति में सदैव ही नैतिक मूल्यों की अवधारणा पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्य के जीवन में अच्छे चरित्र का विशेष महत्व है, वह सभी के भले और कल्याण के बारें में सोचे। दूसरे शब्दों में अच्छे चरित्र से ही मनुष्य की अस्मिता कायम है। अच्छे चरित्र के महत्व को उजागर करते हुए संस्कृत की एक सूक्ति है -
”वृन्तं यत्नेन सरंक्षंद् विन्तयादाति याति च। अक्षीणो विन्ततः क्षीणो, वृन्ततस्तु हतो हतः ।।”
उक्त सूक्ति में चरित्रविहीन व्यक्ति को मृत के समान बताया गया है। अतः चरित्र का बल प्राणि जगत के लिए अनिवार्य है। इस चरित्र-बल की प्राप्ति हेतु नैतिक शिक्षा अनिवार्य है क्योंकि नैतिक मूल्यों की अवधारणा ही चरित्र-बल है। यदि हम प्रारंभ से ही अपने बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान करेंगे तभी भविष्य में हम अच्छे, चरित्रवान, कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार व्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं, जो लोकहित और सर्वविकास पर चलें। भावी पीढ़ी को नैतिक रूप से सुदृढ़ बनाना हम सभी का उत्तरदायित्व है।
नैतिकता को ज्योतिषीय गणना से देखा जा सकता है, जिस व्यक्ति की कुंडली में उसका तृतीयेश प्रतिकूल तथा क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो, ऐसा व्यक्ति नैतिक आचरण को दरकिनार कर अपने स्व-हित में सोचना है और अपनी खुशी तथा लाभ के लिए किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य कर सकता है। अतः अगर बचपन से किसी बच्चे में जिद् या मुझे यहीं चाहिए या ऐसा ही करना है, दिखाई दें तो ऐसे में कुंडली के ग्रहों का आकलन कराया जाकर तीसरे स्थान के स्वामी ग्रह और उक्त स्थान में मौजूद ग्रह की अनुकूल प्रतिकूल स्थिति के अनुसार उपाय लेकर शुरूआत से ही जातक में नैतिकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

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