Sunday, 8 May 2016

मुहूर्त प्रश्नोत्तरी

मुहूर्त किसे कहते है ?
किसी भी कार्य विशेष के लिए पंचांग शुद्धि द्वारा निश्चित की गई समयावधि को ‘मुहूर्त’ कहा जाता है।
मुहूर्त निकलने के मुख्य नियम क्या है ?
तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण इन्हीं के आधार पर शुभ समय निश्चित किया जाता है। लग्न शुद्धि के साथ-साथ इन पांचों का शुभ होना परम आवश्यक है। इन सबके आधार पर ही शुभ व शुद्ध मुहूर्त निकाला जाता है।
किन कार्यों का मुहूर्त निकलकर काम करना चाहिए या किनका नहीं ?
दैनिक व नित्य कर्मों को करने के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकाला जाता है, परंतु विशिष्ट कर्मों व कार्यों की सफलता हेतु मुहूर्त निकलवाना चाहिए ताकि शुभ घडि़यों का अधिकाधिक लाभ प्राप्त हो सके।
यदि मुहूर्त न निकल रहा हो तो आवश्यकता पड़ने पर क्या करें ?
यदि आवश्यकता के अनुसार मुहूर्त न निकल रहा हो, तो केवल शुभ योग देखकर और अति आवश्यकता में अभिजित मुहूर्त या गोधूलि के समय अथवा केवल लग्न शुद्धि कर कार्य कर सकते हैं।
गोधुलि व् अभिजित मुहूर्त को इतनी मान्यता क्यूँ है ?
गोधूलि व अभिजित मुहूर्त में सूर्य केंद्र में स्थित होता है, जो इन मुहूर्तों की महत्ता को बढ़ाता है।
किस वर्ष विवाह गृहप्रवेश मुहूर्त नहीं होता ऐसा क्यूँ होता है ?
विवाह मुहूर्त लगभग 15 जनवरी से 15 मार्च, 15 अप्रैल से 15 जुलाई व 15 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच ही होते हैं। इसमें भी कभी-कभी गुरु और शुक्र अस्त हो जाते हैं। गुरु लगभग 3 सप्ताह एवं शुक्र 2 माह अस्त रहता है। इस प्रकार जब ये ग्रह अस्त होते हैं लगभग मुहूर्त की एक ऋतु बीत जाती है और ऐसा लगता है कि वर्ष में मुहूर्त ही नहीं है।
यदि एक मुहूर्त किसी एक कार्य के लिए शुद्ध हो, तो क्या अन्य कार्यों के लिए शुद्ध नहीं हो सकता ?
मुहूर्त शास्त्र के अनुसार प्रत्येक घड़ी का अपना महत्व होता है। फिर कार्य के अनुरूप ही नक्षत्र, तिथि, और वार का चयन कर मुहूर्त बताया जाता है। इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि एक मुहूर्त किसी एक कार्य के लिए शुद्ध हो, तो वह अन्य कार्यों के लिए भी शुद्ध होगा।
राहुकाल,चौघड़िया, होरा एवं लग्न शुद्धि- समय शुद्धि की इन चार पद्धित्तियों में से कौन सी कब अपनानी चाहिए ?
प्रतिदिन लगभग 1 घंटा 30 मिनट की अवधि राहुकाल की अवधि मानी गई है। राहु काल में कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करना या उसके लिए बाहर निकलना मना किया गया है। राहुकाल में प्रारंभ किए गए शुभ कार्य को ग्रहण लग जाता है। यदि अकस्मात यात्रा करने का मौका आ पड़े, तो उस अवसर के लिए विशेष रूप से चैघडि़या मुहूर्त का उपयोग होता है। इसी प्रकार होरा मुहूर्त कार्य सिद्धि के लिए पूर्ण फलदायक व अचूक माने जाते हैं, जो दिन रात के 24 घंटों में घूमकर मनुष्य को कार्य सिद्धि के लिए अशुभ समय में भी सुसमय, सुअवसर प्रदान करते हैं। सूर्य का होरा राज सेवा के लिए, चंद्रमा का होरा सभी कार्यों के लिए, वाद मुकदमे के लिए मंगल का होरा, ज्ञानार्जन के लिए बुध का होरा, प्रवास के लिए शुक्र, विवाह के लिए गुरु व द्रव्य संग्रह के लिए शनि का होरा उत्तम होता है। प्रत्येक कार्य के लिए लग्न शुद्धि शुभ भविष्य को दर्शाती है।
तीन ज्येष्ठ हों, तो क्या विवाह करना अशुभ है ?
परम्परा के अनुसार तीन ज्येष्ठ होने पर विवाह करना शुभ फलदायी नहीं माना जाता। इस योग में विवाह होने पर वर पक्ष अथवा वधू पक्ष में हानि होने की संभावना मानी जाती है। लेकिन मुहूर्त शास्त्र में उल्लेख नहीं हैं।
किसी कार्य को करने की शुभ तारीख ज्ञात करने के लिए शुभ योग की गणना करें या पंचांग शुद्धि से देखें ?
पंचांग शुद्धि के द्वारा दिन निर्धारण करना मुहूर्त शास्त्र के अनुसार श्रेयस्कर माना गया है। यदि समयावधि के अनुसार शुभ तारीख न बनती हो तो शुभ योगों की गणना कर कार्य करना उचित माना जाता है।
विवाह काल में यदि सुतक पड़े तो क्या विवाह करना उचित होगा ?
विवाह काल में यदि सूतक पड़ जाए, तो विवाह करना उचित नहीं माना जाता। ऐसी स्थिति में सूतक शुद्धि कर लेनी चाहिए। सूतक काल में शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ व वैदिक अनुष्ठान वर्जित हैं।
अबूझ मुहूर्त में विवाह करना उचित है या केवल मुहूर्त की तारीख में ?
अबूझ मुहूर्त में विवाह करना उचित है, परंतु मुहूर्त की तारीखें विवाह के लिए उपयुक्त हों, तो उनमें विवाह करना श्रेयस्कर होता है , क्योंकि ये मुहूर्त पंचांग द्वारा शुद्धीकरण कर निकाले जाते हैं। अबूझ मुहूर्त को केवल शुभ तारीखें न मिलने पर अपनाना चाहिए।
अभुझ मुहूर्त में तारा आदि डूबें हो या अन्य कोई कारण हो तो भी क्या इनमें विवाह करना शुभ होगा ?
अबूझ मुहूर्त के समय तारा डूबा हो अथवा अन्य कोई कारण हो, तो इनमें विवाह करना ठीक नहीं है, क्योंकि अबूझ मुहूर्त शुभ मुहूर्त से कम फलदायी माना गया है।
यदि वर व् कन्या का मिलान शुभ न हो तो क्या शुभ मुहूर्त में विवाह कर दोष दूर किया जा सकता है ?
शुभ मुहूर्त में विवाह कर व दोष संबंधी दान-पूजा करवाकर मिलान दोष दूर तो नहीं, परंतु कम अवश्य किया जा सकता है। शुभ मुहूर्त में विवाह करवाने से दोष कुछ अवधि के लिए टल जाता है।
यदि वास्तु दोष हो तो क्या शुभ मुहूर्त में प्रवेश का वास्तु दोष से मुक्ति पाई जा सकती है ?
शुभ मुहूर्त मे प्रंवेश कर वास्तु दोष से मुक्ति तो नहीं पाई जा सकती, परंतु वास्तु दोष कम अवश्य किया जा सकता है। पूर्ण रूप से वास्तु दोष को तभी दूर किया जा सकता है, जब घर वास्तु आधारित नियमो कें अनुसार बनाया गया हो।
क्या मुहूर्त के द्वारा भविष्य को बदला जा सकता है ?
जिस प्रकार किसी बालक के जन्म समय के ग्रह उसके भविष्य को बताते हैं, उसी प्रकार मुहूर्त आने वाले समय में जो कार्य होना है, उसका भविष्य बताता है। शुभ मुहूर्त में कार्य कर भविष्य तो नहीं बदला जा सकता, परंतु कुछ दोष अवश्य कम किए जा सकते हैं। शुभ मुहूर्त में कार्य तभी सफल होता है जबकि आपके पूर्व जन्म के कर्म व भाग्य अनुकूल हों।

वर्षफल किस समय या स्थान से बनाएं

नीलकंठ ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ज्योतिष में वर्षफल बनाने और उससे फल कहने का सिद्धांत दिया। आजकल कंप्यूटर के द्वारा गणना आसान होने के कारण यह पद्धति काफी प्रचलित हो गयी है। इस पद्धति में वर्ष के प्रवेश की तारीख और समय निकाल कर उस समय की कुंडली बना ली जाती है। एक ग्रह को जो वर्ष लग्न पर सबसे अधिक असर रखता है, वर्षेश्वर का शीर्षक दे दिया जाता है। मुंथा एक छाया ग्रह है, जो प्रतिवर्ष एक राशि चलती है, वर्ष कुंडली में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसमें एक वर्ष अवधि की मुद्दा एवं पात्यंश दशा की गणना भी की जाती है। इस पद्धति में ग्रहों की दृष्टियां जन्मकुंडली जैसी नहीं होती हैं। योगों में इसमें केवल शोडष योग ही प्रचलित है। घटना घटने का समय निकालने के लिए सहम की गणना दी गयी है। ग्रहों के आपसी भेद देखने के लिए त्रिपताकी चक्र बनाया जाता है।
इस पद्धति में गणना काफी विस्तार से की गयी है। लेकिन इसकी मूल गणना - वर्ष प्रवेश गणना में कई मतभेद है। वर्षमान क्या लेना चाहिए? प्राचीन पद्धति में यह मान 1 वर्ष 15 घटी 31 पल 30 विपल अर्थात 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट 36 सेकेंड, या 365.25875 लिया गया है। सायन सूर्य 365.242193 दिन अर्थात 365 दिन, 5 घंटे 48 मिनट 45.5 सेकेंड में अपना चक्कर पूरा कर लेता है और निरयण सूर्य को 365.256363 दिन, अर्थात् 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 9.8 सेकेंड लगते हैं। हमें कौन सा वर्षमान लेना चाहिए?
दूसरी समस्या स्थान की आती है। क्या हमें जन्म स्थान को ही वर्ष स्थान के रूप में लेना चाहिए, या व्यक्ति विशेष वर्ष प्रवेश के समय जिस स्थान पर हो, उस स्थान को लेना चाहिए?
इन समस्याओं के समाधान से पहले वर्ष की परिभाषा को समझना आवश्यक है। पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा कर उसी स्थान पर आ जाने को वर्ष कहते हैं। ज्योतिष में हम पृथ्वी की स्थिति तारों के सापेक्ष में देखते हैं, न कि सूर्य के सापेक्ष में। अतः हमें निरयण वर्षमान को ही मानना होगा। अतः वर्ष के लिए वर्षमान 365.256363 दिन होता है। इतने समय में निरयण सूर्य लगभग उन्ही अंश, कला, विकला पर आ जाता है। यदि कला-विकला में कुछ फर्क आता है, तो वह केवल पृथ्वी के उद्वेलित होने के कारण। यह वर्षमान का उपयोग लाहिरी ने अपने पंचांग में भी किया है। रमन ने भी इसी वर्षमान को लिया है। लेकिन इसको पूर्ण रूप में ठीक से न ले कर कुछ सेकेंड की गलती कर दी है, जिसके कारण 100 वर्ष में कुछ मिनटों का अंतर आ जाता है।
अब प्रश्न है वर्ष स्थान का। यह सुनने में बहुत तार्किक लगता है कि वर्ष प्रवेश के समय व्यक्ति जहां पर हो, वही वर्ष स्थान लेना चाहिए। लेकिन वर्ष प्रवेश गणना एक खगोलीय गणना है और यह हमें खगाोल शास्त्र के आधार पर ही करनी चाहिए। वर्ष की परिभाषा के अनुसार यह वह मान है, जिसमें पृथ्वी घूम कर उसी स्थान पर आ जाती है। वर्षमान के लिए स्थान का महत्व नहीं है, क्योंकि पृथ्वी को एक बिंदु मान कर यह गणना की जा रही है।

पारिवारिक कलह: कारण व निवारण

ज्योतिष में सप्तम भाव अपने साथी का भाव माना गया है- वह जीवन साथी हो या व्यापार में साझेदार। सप्तम भावेश लग्नेश का सर्वदा शत्रु होता है। जैसे मेष, लग्न के लिए लग्नेश हुआ मंगल एवं सप्तमेश हुआ शुक्र और दोनों में आपस में शत्रुता है। शायद हमारे ऋषि मुनियों को यह ज्ञात था कि साथ में कार्य करने वालों में मतभेद होता ही है, इसलिए उन्होंने इस प्रकार के ज्योतिष योगों का निर्माण किया।
यदि आध्यात्मिक दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव से बंधा हुआ है। इसके विपरीत चलने में उसे कष्ट होता है। साथ ही दूसरे को भी वह अपने स्वभाव के समानांतर चलाने की कोशिश करता है। यह प्रकृति का एक नियम है। लेकिन दो व्यक्तियों के स्वभाव आपस में कितने भिन्न हैं यह ज्योतिष द्वारा दोनों के लग्नों एवं राशियों के माध्यम से ज्ञात किया जा सकता है। इससे संबद्ध कुछ तथ्य इस प्रकार हैं:
यदि लग्न एक दूसरे के 3-11 हो तो आपसी सामजस्य उत्तम रहता है। एक लग्न दूसरे को मित्र मानता है तो दूसरा पहले को अपना पराक्रम अर्थात कष्ट का साथी। जैसे मेष लग्न के लिए मिथुन लग्न उसका पराक्रम का साथ है एवं कुंभ लग्न उसका मित्र।
लग्नों में 4-10 का संबंध भी उत्तम रहता है, लेकिन व्यापारिक में साझेदारी यह संबंध अति उत्तम पाया गया है। जिसका लग्न दशम भाव में हो, वह कर्मशील रहता है और जिसका चैथे में हो, वह आर्थिक व मानसिक सहायता द्वारा अपना योगदान देता है। जैसे मेष व कर्क लग्नों की साझेदारी में कर्क लग्न मेष के चैथे भाव में पड़ता है, अतः मेष लग्न के जातक के लिए कर्क लग्न का जातक आर्थिक व मानसिक सहायता प्रदान करेगा और कर्क लग्न के लिए मेष लग्न वाला जातक कर्म द्वारा अपने कार्यभार संभालेगा।
नवम-पंचम संबंध भी शुभ फल प्रदान करता है। लेकिन जिस जातक का लग्न दूसरे के नवम का सूचक होता है, वह अपने साथी के लिए सर्वदा भाग्य का सूचक रहता है एवं साथी को हर प्रकार का सुख पहुंचाता है। इसके विपरीत पंचम कारक जातक अपने साथी के लिए पिता जैसा व्यवहार तो रखता है, लेकिन साथी से सर्वदा लेने की भावना भी रखता है। इस प्रकार मेष लग्न के लिए सिंह लग्न शुभ होते हुए भी लाभ की स्थिति में रहता है जबकि मेष लग्न सिंह से नवम होने के कारण उसके लिए सर्वदा लाभकारी रहता है।
द्विद्र्वादश संबंध सर्वदा अशुभ माना गया है, लेकिन इसमें भी दूसरे भाव में पड़ने वाला लग्न शुभदायक रहता है एवं द्वादश में पड़ने वाला अशुभ जैसे मेष के लिए वृष शुभ एवं मीन अशुभ।
षडाष्टक संबंध अधिकांशतः कलह का कारण बनते हैं।
समसप्तक संबंध अर्थात् एक लग्न या सप्तम लग्न एक साधारण संबंध की ओर ही संकेत करता है। इस स्थिति में एक जातक दूसरे जातक को अति महत्वपूर्ण एवं अभिन्न साथी समझता है, लेकिन साथ रहने पर किसी न किसी कारणवश वैमनस्यता उत्पन्न हो जाती है।
उपर्युक्त सभी फल राशि के अनुसार भी घटित होते हैं।
गुण मिलान में उपर्युक्त फलों की भकूट दोष के द्वारा जाना जाता है। उपर्युक्त तथ्यों का पिता-पुत्र, भाई-बहन, पति-पत्नी एवं नौकर-मालिक के संबंधों को जानने में भी उपयोग किया जा सकता है।
कुंडली मिलान में अष्टकूट मिलान एवं मंगल दोष मिलान को प्राथमिकता दी गई है। अष्टकूट गुण मिलान में वर्ण एवं वश्य मिलान कार्यशैली को दर्शाता है। तारा से उनके भाग्य की वृद्धि में आपसी संबंध का पता चलता है। योनि-मिलान से उनके शारीरिक संबंधों की जानकारी मिलती है। ग्रह मैत्री स्वभाव में सहिष्णुता को दर्शाता है। गण मैत्री से उनका व्यवहार, भकूट से आपसी संबंध एवं नाड़ी से उनके स्वास्थ्य और संतान के बारे में जाना जाता है।
उपर्युक्त अष्ट गुणों में केवल ग्रह मैत्री एवं भकूट ही ऐसे दो गुण हैं जो आपसी संबंध को दर्शाते हैं।
अन्य गुण जीवन की अन्य भौतिकताओं को पूरा करने में सहायक होते हैं। मंगल दोष मिलान भी उनके अन्य संबंधों के बारे में संकेत न देकर वैवाहिक जीवन का संकेत देता है। अतः परिवार में यदि सभी सदस्यों का आपस में द्विद्र्वादश या षडाष्टक संबंध न हो तो पारिवारिक कलह की संभावनाएं कम रहती हैं।
पुरुष वर्ग पांच मुखी रुद्राक्षों की माला में एक मुखी, आठ मुखी व पंद्रह मुखी रुद्राक्ष डालकर धारण करें। इस माला पर प्रतिदिन प्रातः ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें।
पत्नी मांग भरें, लाल बिंदी लगाएं और चूडि़यां धारण करें।
घर में विघ्नहर्ता श्री गणेश यंत्र स्थापित करें।
स्फटिक श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित करें।
ॐ नम: शिवशक्तिस्वरूपाय मम गृहे शांति कुरु कुरु स्वाहा मंत्र का जप करें।
पति-पत्नी बीच कलह को दूर करने के लिए गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करना उत्तम फलदायक होता है।
पानी से भरे चांदी के लोटे या गिलास में चंद्रमणि डालकर वह पानी परिवार के जिस सदस्य को क्रोध अधिक आता हो उसे पिलाएं।
वास्तु दोष को दूर करने के लिए एक कलश में पानी भरकर उसे नारियल से ढककर ईशान कोण में स्थापित करें और उसका जल प्रतिदिन बदलते रहें।
तात्पर्य यह कि परिवार में कलह की संभावना हमेशा रहती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, किंतु यदि आस्था और निष्ठापूर्वक इनके निवारण के उपाय किए जाएं तो कलह से मुक्ति अवश्य मिल सकती है।

शिशु जन्म समय कैसे निर्धारण करें

आज के वैज्ञानिक युग में यदि मशीनीकरण हो रहा है एवं चिकित्सा शास्त्र में उन्नति हो रही है तो शिशु जन्म प्रक्रिया में भी अनेक अंतर आए हैं। आज शिशु का जन्म शल्य चिकित्सा द्वारा अपने मनचाहे समय पर करवा सकते हैं और इस प्रकार ज्योतिष विधान के अनुसार उसका भविष्य अपने हाथों निर्मित कर सकते हैं। क्या यह संभव है या एक कल्पना की उड़ान है? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ईश्वर ने हमें कर्म करने के लिए कुछ अवसर दिए हैं और इन अवसरों का सही उपयोग कर हम अपने भविष्य को सुधार सकते हैं। वेदांत में भी अपने भविष्य को प्रयत्नपूर्वक सुधारने के लिए कहा गया है।
किसी भी शुभ कर्म के लिए हम मुहूर्त देखते हैं। इसके मूल में छिपी भावना यही है कि शुभ समय में कार्य करेंगे तो उसका भविष्य भी शुभ ही होगा। इसी प्रकार से हम वर वधू का कुंडली मिलान करते हैं। इसके पीछे भी हमारी यही धारणा है कि यदि दो जातकों के विचार एकमत होंगे तो उनका भविष्य सुखमय रह सकेगा। यदि हम मुहूर्त के द्वारा किसी कार्य का भविष्य बदल कर उसे शुभ कर सकते हैं या मिलान द्वारा दो व्यक्तियों का भविष्य शांतिमय एवं आनंदमय बना सकते हैं तो जन्म समय निर्धारण कर होने वाले शिशु का भविष्य भी अवश्य ही स्वास्थ्यमय, सुखमय एवं शांतिमय बना सकते हैं। प्रथमतः विचारणीय है कि जन्म समय किसे कहते हैं - शिशु के बाहर निकलने के समय को, नाल काटने के समय को या उसके पहली सांस लेने के समय को? शिशु के प्रथम सांस लेने का समय ही ज्योतिष के अनुसार उसका जन्म समय है। यही समय उसके सर्वप्रथम रोदन का समय होता है।
अधिकांशतः शिशु के जन्म समय निर्धारण हेतु हमें केवल कुछ दिनों का ही समय चयन के लिए मिलता है और उसमें से ही सर्वोत्कृष्ट समय का निर्धारण करना होता है। इस अवधि में चंद्र को छोड़ लगभग सभी ग्रह उसी राशि में रहते हैं। उनमें केवल कुछ अंश या कला का ही अंतर आता है। लेकिन एक दिन में सभी 12 लग्न घूम जाते हैं, अतः जन्म समय का निर्धारण निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर किया जा सकता है ।
सर्वप्रथम चार पांच दिनों में तिथि का चयन करने के लिए चंद्र के नक्षत्र को देखें। चंद्र कहीं मूल नक्षत्र में तो नहीं है? विशेष रूप से मूल के अशुभ पाद में तो नहीं है, क्योंकि मूल के अशुभ पाद में शिशु के जन्म होने से वह अपने मां-बाप, भाई-बहन, नाना-नानी या दादा-दादी के लिए भारी हो सकता है।
यदि जन्म सामान्य हो अर्थात शल्य चिकित्सा आवश्यक नहीं हो तो ऐसा लग्न निर्धारण करें ताकि उससे अगला या पिछला लग्न भी शुभ हो, क्योंकि कई बार सामान्य प्रसव में चार से छह घंटे का समय ही लगता है और सटीक जन्म समय का निर्धारण डाॅक्टर के हाथ में नहीं होता।
यदि शल्य चिकित्सा द्वारा जन्म समय का निर्धारण होना हो तो लग्न के साथ नवांश भी निर्धारित किया जा सकता है जिसकी अवधि केवल दस से पंद्रह मिनट होती है। ऐसे में चलित कुंडली का ध्यान अवश्य रखें। ऐसा न हो कि कुछ ग्रह चलित कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में जा रहे हों।
लग्न का चयन शिशु को आप अपने इच्छानुसार बनाने के लिए भी कर सकते हैं। यदि आपको ज्ञानवान संतति चाहिए तो लग्न ऐसे चयन करें ताकि पंचम भाव में अधिक ग्रह हों। यदि ख्यातिवान संतति चाहिए तो लग्न में अधिक ग्रह चयन करें और यदि भाग्यशाली चाहिए तो नवम में। कर्मशील के लिए दशम में एवं धनवान या संपत्तिवान संतति के लिए ग्रहों को दूसरे और चैथे स्थान में स्थापित करें। आकर्षक व्यक्तित्व के लिए बलयुक्त चंद्र को लग्न में स्थापित करें।
लग्न निर्धारण में ग्रहों को शुभ स्थान जैसे केंद्र या त्रिकोण में स्थापित करना चाहिए एवं अशुभ स्थान जैसे छठे, आठवें या बारहवें को रिक्त रखने का प्रयास करना चाहिए। अशुभ या क्रूर ग्रहों को तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में भी रखा जा सकता है।
यदि सभी ग्रह केंद्र या त्रिकोण में किसी भी लग्न में नहीं आ रहे हों तो कोशिश करें कि छठे, आठवें या बारहवें में कोई ग्रह न हो एवं आठवां घर तो अवश्य ही रिक्त हो। लग्न में या चैथे, पांचवें, नौवें या दसवें भाव में ग्रह उत्तम फल ही देते हैं।
लग्न चयन करने के साथ दशा का भी आकलन कर लें ताकि भविष्य में आनेवाली दशाएं शुभ ही हों। यदि जन्म अशुभ दशा से ही प्रारंभ हो रहा हो तो जन्म समय को एक दिन बाद उसी समय लेने से वह दशा समाप्त हो जाएगी एवं अगले नक्षत्र अथवा ग्रह की दशा शुरू हो जाएगी।
व्यवहार में ऐसा देखने में आया है कि उपर्युक्त सूत्रों के अनुसार जिन जातकों का जन्म समय निर्धारित होता है वे अत्यंत ही स्वस्थ, संुदर, ज्ञानवान एवं आकर्षक होते हैं और अपना जीवन सुख शांतिपूर्वक व्यतीत करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में तो केवल जन्म समय निर्धारण का ही नहीं अपितु जन्म अवधि निर्धारण का भी प्रावधान है। प्राचीन काल में तो राजघरानों में गर्भाधान का भी समय निर्धारित किया जाता था। जन्म समय निर्धारण के आधार पर ज्योतिष द्वारा इस संसार को एक स्वस्थ एवं ज्ञानवान समाज देकर मानव जाति का कल्याण किया जा सकता है।

व्रत-पर्व प्रश्नोत्तरी



हिंदू धर्म में व्रतों, पर्वों आदि की विशेष मान्यताएं हैं और उनसे जुड़ी अनेक कथाएं हैं। लेकिन बहुधा हमारे मन में इन कथाओं को लेकर प्रश्न उभरते हैं, जिज्ञासाएं पनपती हैं। हमारे मन में उठने वाले कुछ प्रश्न और समाधान यहां प्रस्तुत हैं।
व्रत या उपवास क्यूँ करना चाहिए ?
व्रत को संस्कृत में उपवास कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ईश्वर की प्राप्ति। इसके अतिरिक्त यह इंद्रियों पर नियंत्रण तथा मन के शुद्धीकरण में भी हमारी सहायता करता है। इसलिए व्रत या उपवास करना चाहिए।
कोई विशेष व्रत विशेष तिथि को ही क्यूँ करना चाहिए ?
मान्यता है कि किसी तिथि विशेष को देव पृथ्वी पर विचरण करते हैं। उनका सामीप्य बना रहे, हमारी पूजा अर्चना में भाग लेकर हमारे कष्टों का निवारण करें, इसी उद्देश्य से कोई विशेष व्रत किसी विशेष तिथि पर किया जाता है जिसका अपना महत्व होता है।
व्रत आदि पर कलावा (रक्षा सूत्र) क्यूँ बांधते है ?
कलावा (रक्षा सूत्र) का उपयोग पूजा स्थल पर किए जाने वाले संकल्प को बांधने के लिए किया जाता है। यह साधक और साध्य के बीच तादात्म्य की कड़ी का भी प्रतीक है। यह आसुरी शक्तियों से साधक की रक्षा करता है। इसीलिए इसे पूजन आदि के अवसर पर बांधते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण व्रत या कथा कौन सी है और उसे कब और कैसे करनी चाहिए ?
सत्य नारायण व्रत कथा की विशेष महिमा है क्योंकि इसमें विष्णु भगवान की आराधना की जाती है। सत्य को अपने जीवन और आचरण में उतारना सबसे बड़ा व्रत है जिसकी प्रेरणा हमें सत्य नारायण की व्रत कथा सुनने सुनाने से मिलती है। यद्यपि सत्य नारायण व्रत किसी भी दिन किया जा सकता है, किंतु प्रत्येक मास की पूर्णिमा को इसका आयोजन करने की विशेष महत्ता है।
अधिकांश कथाओं के अंतर्गत उपकथा का समावेश होता है जैसे सत्यनारायण व्रत कथा में शौनकादिक ऋषियों, लकडहारा, राजा उल्कामुख, व्यापारी, कलावती आदि ने कथा सुनी या कही ?
भगवान अपने भक्तों को अपने से बड़ा मानते हैं। इसीलिए भगवान की कथा कहने के अतिरिक्त उनके भक्तों की कथा कहने की परंपरा भी रही है। भक्तों की कथा का फल भी वही होता है जो भगवान की कथा कहने या सुनने का होता है।
मूल आराधना विधि क्या है ?
षोडशोपचार पूजन ही शास्त्रोक्त विधि है। तदुपरांत मंत्र द्वारा भगवान की आराधना का विशेष महत्व है। जैसे विष्णु भगवान के लिए ‘¬ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘¬ नमो नारायणाय’ मंत्र विशेष प्रचलित है।
भगवन को प्रसाद क्यूँ चढ़ाया जाता है ?
प्रसाद का एक शाब्दिक अर्थ है वह पदार्थ जो हमें शांति दे। इसीलिए भगवान को भोग लगाने के बाद हमें भी प्रसाद अवश्य ग्रहण करना चाहिए। भोजन भी एक यज्ञ है जो वैश्वानर भगवान (जठराग्नि) को अर्पित किया जाता है। अतः जिस वार को जो वस्तु दान दी जाती है उसे ही उस दिन ग्रहण करना उत्तम है।
क्या हनुमान जी की आराधना कन्याओं अथवा स्त्रियों को करना चाहिए ?
जैसे मनुष्य और पशु के बीच में स्त्री-पुरुष में भेद नहीं है उसी प्रकार देवता और मनुष्य के बीच में स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं है। इसीलिए हनुमान जी की आराधना कन्याएं और स्त्रियां भी कर सकती हैं और इसमें कोई भेद नहीं मानना चाहिए।
पूजन के समय तिलक क्यूँ लगाया जाता है ?
दोनों भौंहों के बीच में आज्ञा चक्र स्थित है। इसी चक्र पर ध्यान केंद्रित करने पर साधक का मन पूर्ण शक्ति संपन्न हो जाता है। यह स्थान तृतीय नेत्र का भी है। तिलक लगाने से आज्ञा चक्र जाग्रत हो जाता है। तिलक सम्मान का सूचक भी है।
मूर्ति पूजा क्यूँ की जाती है ?
चिंतन, मनन और तप के लिए मन की एकाग्रता आवश्यक होती है और मन को एकाग्र करने के लिए किसी प्रतीक का होना जरूरी होता है। मूर्ति इसी प्रतीक का द्योतक है जिसकी पूजा की जाती है। यह प्रतीक कोई बिंदु, कोई मूर्ति अथवा कोई अन्य आकृति भी हो सकती है। ध्येय केवल एक है - मन की एकाग्रता।
पूजा किस दिशा की ओर उन्मुख होकर करनी चाहिए ?
पूजा पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर करना सर्वोत्तम होता है। अर्थात् साधक को पूर्व की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। इसके अतिरिक्त उत्तराभिमुखी होकर भी पूजा की जाती है। यदि इन दो दिशाओं की ओर उन्मुख होकर पूजा करना किसी कारणवश सभंव न हो तो ईशान कोण की ओर भी मुहं करके पूजा कर सकते हैं।
आसन का महत्व क्या है ?
आसन पूजा का एक अनिवार्य अंग है। इस पर बैठकर पूजा करने से मन की एकाग्रता बनी रहती है। कुश का आसन सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि यह हमारे शरीर में संचित ऊर्जा को क्षय होने से बचाता है। इसके अभाव में ऊन अर्थात् कंबल के आसन का उपयोग भी किया जाता है। आसन का स्थिर व स्वच्छ होना आवश्यक है।
धुप, दीप आदि क्यूँ जलाते है ?
दीप ज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान अज्ञान को उसी तरह दूर करता है जिस तरह प्रकाश अंधकार को। ज्ञान की प्राप्ति ईश्वर से होती है। इसीलिए प्रत्येक व्रतानुष्ठान तथा अन्य शुभ कार्यों के अवसर पर दीप प्रज्वलन की प्रथा है। धूप इसलिए जलाया जाता है कि पूजा स्थल तथा आसपास का क्षेत्र सुवासित रहें।
चरणामृत क्यूँ ग्रहण किया जाता है ?
चरणामृत का अर्थ है वह जल या दुग्ध जिससे ईश्वर का चरण पखारा गया हो। यह ईश्वर के प्रति हमारी निष्ठा का प्रतीक है। इसमें असीम शक्ति होती है। यह दुःख, कष्ट, दरिद्रता आदि से हमारी रक्षा करता है। इसीलिए हम चरणामृत ग्रहण करते हैं।
पूजा पाठ में पुष्प का क्या महत्व है ?
पूजा में पुष्प का बड़ा महत्व है। पूजा का अर्थ ही पुष्प अर्पित करना है। पुष्पार्पण एक प्रतीक है कि जिस तरह कोई फूल अपनी सारी पंखुडि़यों को खोलकर विकसित होता, मुस्कराता है, उसी तरह साधक का हृदय भी अपने ईश के समक्ष खुल जाए। एक प्रतीक यह भी है कि जिस तरह नान प्रकार के फूल प्रकृति में हंसते मुस्कराते हैं, उसी तरह ईश्वर हमारे जीवन को रंग, महक और खुशियों से भर दें।
क्या मूर्तियों में देवी देवता का वास होता है?
पूजा के समय हम ईश्वर का आवाहन करते हैं ताकि वे हमारे समीप रहें। इसलिए जब किसी मूर्ति में किसी देवी या देवता विशेष का आवाहन किया जाता है तब उसमें उस देवी या देवता का वास हो जाता है।

वैदिक ज्ञान एवं शिक्षा

अणिमा महिमा वैव गरिमा लधिमा तथा | प्राप्ति: प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चास्टसिद्धिय:||
अर्थात्, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व, ये आठ सिद्धियां हैं। अणिमा - छोटा आकार धारण करना, महिमा - बड़ा आकार धारण करना, गरिमा - भारीपन प्राप्त करना, लघिमा - एकदम हल्का हो जाना, प्राप्ति - असंभव शक्ति प्राप्त करना, जैसे आकाश में तैरना, पानी में चलना आदि, प्राकाम्य- अपनी इच्छा से आकृति, रूप, वस्तु आदि का परिवर्तन करने में समर्थ होना, ईशित्व - संपूर्ण पदार्थों पर शासन होना एवं वशित्व - किसी को भी इच्छानुसार नियंत्रित करने की क्षमता प्राप्त कर लेना आदि सिद्धियों के प्राप्त कर लेने की चर्चा वेदों में अनेक स्थानों पर मिलती है।
इसके अतिरिक्त पक्षी आदि की बोली समझना, किसी के मन की बात जान लेना, कर्ण पिशाचिनी सिद्ध होना आदि अनेक सिद्धियां शास्त्रों में मिलती हैं। महर्षि पातंजलि के लिखे ‘योग सूत्र’ नामक ग्रंथ में इस प्रकार की चमत्कारिक सिद्धियों के बारे में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। तंत्र शास्त्रों में विभिन्न देवताओं की विभिन्न प्रकार की साधनाओं के द्वारा प्राप्त की जा सकने वाली सिद्धियां उल्लिखित हैं। श्री हनुमान अष्ट सिद्धियों के दाता हैं, जैसा कि हनुमान चालीसा के श्लोक ‘अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता’ से पता चलता है। अतः कोई भी सिद्धि प्राप्त करने के लिए हनुमान जी की आराधना आवश्यक है।
आज के युग में सिद्ध पुरुष के दर्शन दुर्लभ हैं। उनको अपना गुरु बना लेना तो नामुमकिन ही है। यदि सिद्ध पुरुष हैं भी, तो वे अपने को इतना छुपा लेते हैं कि साधारण मनुष्य उनके बारे में कुछ नहीं जान पाता। अतः इस गूढ़ विद्या को प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इस विद्या का विलय हो चुका है। भारत में अभी भी अनेक सिद्ध पुरुष होंगे, जो इन अष्ट सिद्धियों के ज्ञाता हैं। भारत वैदिक युग में विज्ञान के शिखर पर था। इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। उदाहरण के लिए विमान इस युग में बीसवीं शताब्दी की देन है, जबकि श्री राम लंका को जीतने के बाद वहां से अयोध्या विमान द्वारा ही आये थे। श्री तुलसी दास 16वीं शताब्दी में स्पष्ट लिख गये कि पुष्पक विमान के चलने से बहुत कोलाहल हुआ; श्री राम सीता जी को ऊपर से स्थान बताते गये आदि।
इसी प्रकार श्री राम ने एक तीर को, जो उन्होंने समुद्र को सोखने के लिए निकाल लिया था, अफी्रका की ओर फेंका, जिससे सारे जीव-जंतु जल गये एवं वहां मरुस्थल पैदा हो गया। शायद यह अणु बम ही रहा होगा। संजय ने कुरूक्षेत्र युद्ध की सारी जानकारी धृतराष्ट्र को महल में दी। अवश्य ही यह टेलीविजन का कोई रूप रहा होगा। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई से भी यही पता चलता है कि वैदिक काल में भारत अवश्य ही विश्व शक्ति रहा होगा। उस समय ज्योतिष बहुत विकसित था। लेकिन जैसे विश्व युद्ध के बाद एक सभ्यता ही लुप्त हो जाती है, उसी प्रकार शायद महाभारत के बाद सभी वैज्ञानिक, या ज्योतिष ज्ञान प्रायः लुप्त हो गये। यही कारण है कि आज ज्योतिष उतना सही नहीं उतरता, जितना कि इस पर विश्वास करने के लिए होना चाहिए।हाल ही में अमेरिका में एक खोज हुई है कि शेयर बाजार के मूल्यों का ऊपर-नीचे होना एक संयोग नहीं है, वरन् गणित की इकाई द्वारा पहले से इसके बारे में जाना जा सकता है। इस खोज से यह सिद्ध होता है कि उतार-चढ़ाव किसी से संचालित होता है और केवल संयोग नहीं होता है। प्रश्न केवल यह है कि भारत में हजारों वर्ष पूर्व खोयी विद्या को आज हम कैसे ढूंढे? इसके लिए यह आवश्यक है कि इस विषय पर शोध हो। भारत सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि इस विद्या को दोबारा ढूंढ निकालना होगा। यह तब ही संभव है, जब अधिक से अधिक व्यक्ति इस विद्या को सीखें।
शायद 50 या 100 वर्ष पूर्व हम यह अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि कभी कंप्यूटर इतने शक्तिशाली हो जाएंगे कि छोटे-छोटे काम के लिए भी मनुष्य इसे काम में लाएगा; या मनुष्य कभी पृथ्वी से चल कर दूसरे ग्रहों पर भी चला जाएगा, या एक बम से विश्व को तहसनहस किया जा सकता है, जबकि वेदों में इस प्रकार की चर्चाएं मिलती हैं। इसी प्रकार से यह भी आवश्यक नहीं है कि मनुष्य वेदों में लिखे गये इस दावे को कि किस प्रकार भविष्य बता दिया जाता था, ठीक मान ले। जब वेद के अन्य कथन सत्य हो सकते हैं, तो सटीक भविष्य बता देने का कथन भी अवश्य ही सत्य होगा। आज ज्योतिष के प्रति भावना श्रेष्ठ नहीं है। यह बात कुछ हद तक इसलिए सही है कि समाज में जितने विद्वान ज्योतिषी उपलब्ध हैं, उससे कहीं अधिक उनकी मांग है। जब विद्वान नहीं मिलते, तो अज्ञानी भी इसका फायदा उठा लेते हैं। बात वैसी ही है, जैसे गांव में चिकित्सक उपलब्ध नहीं होते, तो अनाड़ी भी डाॅक्टर बन जाते हैं। यह ज्योतिष हजारो वर्षों से चला आ रहा है। कोई भी असत्य हजारों वर्ष, बिना किसी कसौटी के, चल नहीं सकता। वैदिक ज्ञान भारत की एक शान रही है। ऐसा न हो कि विदेशी यहां का ज्ञान ले जा कर, उस पर अपनी मुहर लगा कर, हमें वापिस दें और तब हम जागें। इस ज्ञान को हमें ही सही प्रकार से जनोपयोगी बनाना है।
इन्हीं उद्देश्यों को ले कर अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ का गठन हुआ है एवं भारत के 40 से भी अधिक शहरों में ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र एवं वास्तु शास्त्र पढ़ाने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। हमें विश्वास है कि यह प्रयास अवश्य ही एक नयी जागृति पैदा करेगा एवं भारत के कोने-कोने में वैदिक शिक्षा का अध्ययन कराया जाएगा। गुणवान अवश्य ही, शोध द्वारा, इस लुप्त विद्या को दोबारा से जनोपयोगी बनाएंगे।

अचानक संपत्ति नष्ट और मृत्यु होना....ज्योतिषीय योग

अगर जन्मकुंडली में लग्नेश शुक्र वक्री होकर क्रूर ग्रह सूर्य के साथ युति बनता है तो और क्रूर ग्रह मंगल जो कि तुला लग्न के लिए अशुभ ग्रह है, उससे पूर्ण दृष्ट तो, उसके प्रभाव से स्वभाव में अधिक रिस्क लेने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है । स्वराशिगत सूर्य लाभ भाव में होने से यह उच्च महत्वाकांक्षी विचारों वाले व्यक्ति होते है। चतुर्थेश शनि ग्रह तीव्र गति वाले ग्रह चंद्र की राशि में स्थित होने से यह संकेत देते है कि वे व्यक्ति तीव्र वेग से चलने वाले वाहन आदि का शौक रखते है। चतुर्थ स्थान का कारक ग्रह, चंद्रमा, आकाश तत्व ग्रह की राशि पर स्थित होने से तथा आकाश तत्व ग्रह बृहस्पति की चतुर्थेश वायुतत्व ग्रह शनि पर पूर्ण दृष्टि होने से उनके पास आकाश में विचरण करने वाले वायुयान की निजी सुख-सुविधा प्राप्त होती है । संपत्ति के स्वामी चतुर्थेश शनि की दसवें स्थान से अपने घर पर पूर्ण दृष्टि है। शनि योगकारक है तथा केंद्र में स्थित होने से इसके प्रभाव से उन्हें सुंदर आलीशान घर भी बनवाते है लेकिन षष्ठेश शत्रु घर के स्वामी बृहस्पति की चतुर्थेश शनि पर दृष्टि होने से विरोधी शत्रुओं के षड्यंत्र के द्वारा भी उनकी संपत्ति नष्ट हो जाती है।
लग्नेश, अष्टमेश, लग्न भाव, अष्टम भाव की स्थिति पर विचार करें, तो लग्नेश ग्रह शुक्र जो कि तुला लग्न के लिए अष्टमेश भी है, वह क्रूर ग्रह सूर्य की युति में और क्रूर ग्रह प्रबल मारकेश मंगल से दृष्ट है। अगर लग्न पर किसी भी शुभ एवं पाप ग्रहों की दृष्टि नहीं है। वह तटस्थ है अर्थात् न अधिक शुभ और न ही अधिक अशुभ है। दूसरी ओर अष्टम जो कि मृत्यु का भाव है, वह मारकेश मंगल तथा अशुभ ग्रह केतु से ग्रसित होने के कारण अत्यंत पापपीडि़त होते है, जिसके कारण इस जातक की मध्य आयु में अचानक आघात होने से मृत्यु हुई। अन्य रीति से भी आयु का अवलोकन करें, तो अष्टम भाव से अष्टम तृतीय भाव भी आयु स्थान है। वह भी मारकेश मंगल से पूर्ण दृष्ट है एवं आयु कारक शनि भी अकारक ग्रह षष्ठेश बृहस्पति से दृष्ट है तथा चंद्रमा भी अशुभ भाव में मारकेश मंगल से दृष्ट है। इन सभी अशुभ ग्रह योगों के कारण यह जातक लंबी आयु का सुख प्राप्त नहीं कर सका। जब इनकी मृत्यु हुई उस समय चंद्र में शनि की अंतर्दशा तथा बृहस्पति की प्रत्यंतर्दशा में मंगल की सूक्ष्म दशा चल रही थी तथा गोचर में मंगल लग्नेश शुक्र के ऊपर से गोचर कर रहा था, दशानाथ चंद्रमा भी अष्टम से अष्टम स्थान में स्थित है तथा अंतर्दशानाथ शनि भी राहु से दृष्ट है एवं प्रत्यंतर्दशानाथ बृहस्पति भी अशुभ भाव छठे में है तथा उसी भाव का भावेश भी है। सूक्ष्म प्रत्यंतर्दशा का स्वामी मंगल भी प्रबल मारकेश होकर मृत्यु भाव में स्थित है, यह इनके लिए मारक सिद्ध हुआ।

सुप्रजनन पद्दति

2001 में जर्मनी में नोबेल पुरस्कार विजेताओं की काॅन्फ्रेंस में तुलसी को झूठा मेधावी करार किया गया था। परंतु अपनी मेहनत से तुलसी ने खुद को साबित किया और एक बार फिर से चर्चा में आ गए जब उन्होंने देश में सबसे कम उम्र में पी. एच. डी. की डिग्री 21 साल की उम्र में हासिल कर ली। आज आई. आई टी. मे फिजिक्स पढ़ंा रहे हैं। तथागत के फिजिक्स में अबतक करीब एक दर्जन लेख विभिन्न जर्नल में छप चुके हैं। उनकी प्रबल ईच्छा है कि उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले। तथागत के पिता तुलसी नारायण प्रसाद का दावा है कि उनकी तीन संतानों में सबसे छोटी संतान तुलसी के विलक्षण प्रतिभा के बारे में उन्हें पूर्वानुमान था क्योंकि ऐसे बच्चे का जन्म कोई आकस्मिक नहीं बल्कि पूर्व निर्धारित और सुनियोजित था। सुप्रजनन पद्धति का उपयोग करने के लिए माता-पिता को पांच वर्ष तक घोर परिश्रम करना पड़ा जिसमें खान-पान को नियंत्रित करना प्रमुख था। श्री प्रसाद इसकी तुलना फसल उगाने की इस पद्ध ति से करते हैं, जब कड़ी मेहनत के बाद बंजर जमीन को ऊर्वरा बना कर उसमें बीज रोपण करते हैं फिर जैसे अच्छी फसल के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता ठीक उसी तरह वे पहले से ही तुलसी की विलक्षण बुद्धि के लिए आ सत्यकथा शिशु तुलसी की उंगलियों के पोर चक्रों से चिह्नित थे और कान भी अपेक्षाकृत बड़ थेे इसीलिए उन्होंने उसका नाम तथागत अवतार तुलसी रखा। उन्हें पूरा विश्वास है कि गौतम बुद्ध के अवतार ने उनके परिवार में जन्म लिया है।तथागत ने अपने जीवन में कठिन परिश्रम किया है और उसके अनुसार एक छात्र के लिए विश्लेषण, कल्पना और स्मरण की क्षमता उसकी मूल पूंजी है और जिसने भी अपने जीवन में इनका सही निवेश किया, सफलता उसके कदम चूमती रहेगी। अक्सर कहा जाता है कि बुद्धि जन्मजात होती है, ज्ञान अर्जित। लेकिन क्वांटम सर्च ऐल्गरिज्म पर अपना सिद्धांत प्रस्तुत करने वाले तथागत अवतार तुलसी बुद्धि और ज्ञान के अद्भुत संयोग हंै और तुलसी की यही ईच्छा है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले।  बुद्धिमान योग पंचमेश जिस ग्रह के नवमांश में हो वह ग्रह यदि जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न से केंद्र में तथा शुभ ग्रह से भी दृष्ट हो तो विशेष बुद्धिमान योग होता है। कुंडली में पंचमेश मंगल बुध के नवमांश में है तथा चंद्र कुंडली से बुध ग्रह सप्तम केंद्र में स्थित है एवं उस पर शुभ ग्रह चंद्रमा की दृष्टि है जिसके कारण तुलसी ने इतनी कम उम्र में अपने बुद्धि बल से इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की। विशेष बुद्धि विद्या प्राप्ति योग पंचमेश बुद्धि, द्वितीयेश विद्या निपुणता, चतुर्थेश विद्या स्थान के स्वामी शुक्र इन तीनों विद्या व बुद्धि से संबंधित ग्रहों की द्वितीय भाव में एक साथ युति होने से बुद्धि और विद्या का अद्भुत संगम है और इसी के कारण विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । इन योगों के अतिरिक्त अगर कुंडली में चंद्रमा नवम भाव में और गुरु केंद्रस्थ होते है तो विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा नवमस्थ के समय यदि गुरु और बुध बली हों तो ऐसा जातक तीक्ष्ण बुद्धि का होता है। शुभ फल प्राप्ति योग मानसागरी ग्रंथ के अनुसार केतु यदि तीसरे भाव में हो तो सब दोषों का निवारण कर अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। कुंडली में केतु सौम्य ग्रह उच्चस्थ बुध के साथ तीसरे भाव में होने से विशेष शुभ फल प्राप्ति योग बन रहे हैं। पराक्रमी पुरुष योग सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार यदि तृतीय भाव का कारक ग्रह शुभ ग्रह के नवमांश में हो तथा वह जन्म कुंडली में शुभ ग्रह से युक्त हो तो ऐसा व्यक्ति महा पराक्रमी पुरूष होता है।

गर्दन के आकार से जानिए इंसान का स्वभाव

समुद्र शास्त्र के अनुसार, मनुष्य के शरीर का हर अंग उसके स्वभाव के बारे में कुछ न कुछ जरूर बताता है। यानी अगर किसी मनुष्य के शरीर पर पूरी तरह से गौर किया जाए, तो उसके चरित्र के बारे में काफी कुछ आसानी से जाना जा सकता है। गर्दन भी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसी पर सिर का भार टिका होता है। मस्तिष्क से निकलकर सभी अंगों में पहुंचने वाली नसें और नाडिय़ां इसी से होकर गुजरती हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कैसी गर्दन वाले व्यक्ति का चरित्र कैसा होता है।
आदर्श गर्दन - ऐसी गर्दन पारदर्शी व सुराहीदार होती है जो आमतौर पर महिलाओं पर पायीं जाती है | ऐसी गर्दन कलाप्रिय,कोमल, ऐश्वर्य,और भोग की परिचारक होती है | ऐसे लोग सुख व् वैभव का जीवन जीते है इनके जीवन में कभी कोई कमी नहीं होती |
सुखी गर्दन - ऐसी गर्दन में मांश कम होती है तथा नसे स्पष्ट रूप से दिखाई जाती है ऐसे लोग सुस्त कम महत्वकांक्षी, आल,सी क्रोधी, विवेकहीन और हार कार्य में असफल होते हैं |
छोटी गर्दन - अगर गर्दन सामान्य से छोटी है तो ऐसे लोग कम बोलने वाले कंजूस व् घमंडी होते है ऐसे लोगों का फ़ायदा उठाते है मगर इन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता |
लम्बी गर्दन -अगर गर्दन सामान्य से अधिक लम्बी हो तो ऐसे लोग बातूनी, मंदबुद्धि,अस्थिर, निराश, और चापलूस होते है | यह अपने मुहं मियां मिट्ठू बनने की आदत से लाचार होते है |
सीधी गर्दन - जिन लोगो की गर्दन सीधी होती है ऐसे लोग स्वाभिमानी होते हैं साथ ही ये लोग समय के पबंध, वचनबद्ध, एवं सिद्धांतप्रिय होते है | इन पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है |
मोटी गर्दन - ऐसी गर्दन वाले लोगों की नियत आमतौर पर ख़राब होती है ऐसे लोग भ्रष्ट चरित्र वाले, शराबी, अहंकारी तथा आक्रामक होते है | इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है |
ऊंट जैसी गर्दन - ऐसी गर्दन पतली और ऊँची रहती है ऐसे लोग अदूरदर्शी होते है | ये लोग अपना हित साधने में लगे रहते है और समय आने पर किसी भी हद तक जा सकता है |

हथेली में मणिबंध जीवन के कई बाते बताता है

हमारी हथेली जिस स्थान से प्रारंभ होती है, वहां आड़ी स्थिति में कुछ रेखाएं होती हैं, इन रेखाओं को मणिबंध कहा जाता है। हथेली का ये हिस्सा भी व्यक्ति की उम्र और भाग्य से जुड़ी कई बातें बता देता है। हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार मणिबंध देखकर व्यक्ति की संभावित उम्र भी मालूम की जा सकती है। यहां जानिए मणिबंध देखकर भाग्य और उम्र से जुड़ी बातें किस प्रकार मालूम हो सकती हैं...
हस्तरेखा के संबंध में ध्यान रखना चाहिए कि पुरुषों के दाएं हाथ और महिलाओं के बाएं हाथ का अध्ययन विशेष रूप से करना चाहिए।
सभी लोगों के हाथों की मणिबंध में रेखाओं की संख्या अलग-अलग होती है। किसी व्यक्ति के हाथ में मणिबंध की एक रेखा होती है, किसी के हाथ में दो या किसी व्यक्ति के हाथ में तीन रेखाएं भी होती हैं।मणिबंध में एक रेखा हो तो यदि किसी व्यक्ति की हथेली के मणिबंध पर सिर्फ एक ही रेखा हो और वह श्रेष्ठ गुणों वाला है तो यह सुख की दृष्टि से शुभ है। यहां शुभ लक्षण का अर्थ है कि मणिबंध की रेखा कलाई के चारों ओर हो और उसमें जौ के आकार के यव की लड़ियां हों और रेखा टूटी हुई ना हो तो व्यक्ति कम उम्र में ही कई उल्लेखनीय कार्य करता है। धन संबंधी सुख भी प्राप्त होते हैं |
मणिबंध में दो रेखाएं हों तो
यदि किसी व्यक्ति की हथेली में मणिबंध पर दो रेखाएं हों, वे टूटी हुई ना हों, जौ के आकार के यव वाली लड़ियां हों, कलाई के चारों ओर हों तो यह शुभ लक्षण होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में सभी सुख-सुविधाएं रहती हैं। यदि किसी व्यक्ति की हथेली में मणिबंध की दो रेखाएं हैं और यहां बताए गए शुभ लक्षण नहीं हैं तो वे रेखाएं बताती हैं कि व्यक्ति को जीवन में कठिन परिश्रम करना होगा।
यदि मणिबंध में तीन रेखाएं हों तो
यदि किसी व्यक्ति की हथेली के मणिबंध पर तीन रेखाएं हों और वे रेखाएं कहीं से टूटी हुई ना हो और कलाई के चारों ओर हों, रेखाओं में जौ के आकार की लड़ियां बनी दिखाई देती हों तो ऐसी रेखाएं व्यक्ति को भाग्यशाली बनाती हैं। ऐसा मणिबंध होने पर व्यक्ति सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता है।
ध्यान रखें यदि मणिबंध में तीन रेखाएं हों और वे टूटी हुई दिखाई देती हैं तो यह अशुभ लक्षण होता है। ऐसी रेखाएं जिन लोगों के हाथ में होती हैं, वे कड़ी मेहनत के बाद ही कुछ सफलता या सकारात्मक फल प्राप्त कर पाते हैं। इनके जीवन में संघर्ष अधिक होता है।
ये बातें भी हैं जरूरी
भाग्यशाली होने के लिए मणिबंध में रेखाएं होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि रेखाओं में सुंदर यवमाला होनी चाहिए। जौ के आकार के यव परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए दिखाई देना चाहिए। यदि यव छोटे-बड़े हैं तो शुभ प्रभावों में कमी आ सकती है या शुभ प्रभाव खत्म भी हो सकते हैं। साथ ही, मणिबंध की रेखाएं कलाई के चारों ओर होनी चाहिए। यदि कलाई के चारों ओर मणिबंध की रेखाएं नहीं हैं तो शुभ प्रभावों में कमी आने की पूरी संभावनाएं रहती हैं।
मणिबंध के साथ ही हथेली में अन्य रेखाओं का अध्ययन करना भी जरूरी है। दूसरी रेखाओं के शुभ-अशुभ प्रभाव से मणिबंध के प्रभाव बदल भी सकते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की हथेली में मणिबंध का हिस्सा ढीला और लटकता हुआ दिखाई देता है तो यह अशुभ लक्षण होता है। मणिबंध का हिस्सा सुंदर ना हो और हथेली को हिलाने से कुछ आवाज होती हो, हथेली और कलाई का जोड़ मजबूत दिखाई नहीं देता हो तो यह व्यक्ति के दुर्भाग्य का सूचक है।
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि मणिबंध में हड्डियां दिखाई नहीं देती हैं और कलाई तथा हथेली का जोड़ मजबूत है तो यह सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इसके विपरीत मणिबंध होने पर व्यक्ति को जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और दुर्घटना के भी योग बनते हैं।

08 मई 2016 का दैनिक राशिफल

मेष राशि
मेष राशि वाले जातकों के..... व्यापार से लाभ की संभावना...संपत्ति या आवास संबंधित समस्या का समाधान.....परंतु... व्यापार में कर्मचारियों की लापरवाही से हानि संभव....विवेक एवं संयम से काम लें ....शुक्र के दोषों की निवृत्ति के लिए निम्न उपाय करें तो लाभ होगा-
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.माॅ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
वृषभ -ज्ंनतने
वृषभ राशि वालें जातकों के... पठन-पाठन में रूचि से विशेष यश तथा प्रतिष्ठा की प्राप्ति....नौकरी में इच्छिक पदोन्नति तथा पदस्थापना की संभावना से प्रसन्नता....ज्यादा भागदौड़ तथा संतान संबंधित कष्ट से राहत के लिए शनि के की शांति के लिए -
1.‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3.उड़द या तिल दान करें,
मिथुन राशि
मिथुन राशि वाले जातकों के.... आज...ऋण...रोग एवं शुत्रओं पर विजय दिलाता है...वहीं...आज रूका धन वापस मिलने से धन संग्रह होगा....पारिवारिक संपत्ति से आर्थिक लाभ की प्राप्ति....मित्र या पारिवारिक सदस्य पर भरोसा कर काम सौपने से बात बिगड़ सकती है...स्वयं माॅनिटरिंग करें....मंगल के गुणों में वृद्धि तथा दोषों को दूर करने के लिए -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
4.तुलसी को जल चढ़ायें तथा तुलसी का सेवन करें...
कर्क राशि
कर्क राशि वाले सभी जातकों के... आज आपको अकस्मात शेयर से लाभ की प्राप्ति... सेहत का ध्यान रखें....जिद और चिड़चिड़ेपन पर नियंत्रण रखें... सेहत से संबंधित कष्टों से बचाव के लिए -
1.ऊॅ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः का जाप करें...
2.दूध... दही....चावल, का दान करें...
3.श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
4.रूद्राभिषेक करें...
सिंह -राशि
सिंह राशि वाले सभी जातकों के......बहुत अच्छी उर्जा के साथ आप दिन की शुरूआत करेंगे.... लाभ के प्रयासों में अच्छी सफलता के योग...संतान की चिंता हो सकती है...व्यक्तिगत या वैधानिक विवादों में फंस सकते हैं.... आज विवादों से बचने के लिए बृहस्पति के निम्न उपाय करने चाहिए -
1.ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2.पीली वस्तुओं का दान करें...
3.गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
1. चंदन का तिलक करें..
कन्या राशि
कन्या राशि वाले सभी जातकों के... सामाजिक प्रतिष्ठा और आकस्मिक लाभ के योग बनते हैं...इस समय....किसी भी प्रकार के भूमि.. वाहन...संपत्ति का व्यय करते समय सावधान रहें...अर्थात्...ठीक तरह कागजात की जाॅच कर लें....विवाद संभव...आहार का संयम रखें...गैस की तकलीफ हो सकती है.... अतः राहु जनित दोषों को दूर करने के लिए -
1.ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2.किसी सफाई करने वाले को मूली का दान करें..
3.सूक्ष्म जीवों को आहार दें..
4.आईना दान करें, तिल, तेल का दान करें..
5.शंकरजी का जलभिषेक करें,
तुला राशि
तुला राशि वाले सभी जातकों के.... प्रतियोगिता परीक्षा में अच्छी सफलता मिलने से पारिवारिक तथा मित्रों से.... प्रशंसा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा की प्राप्ति....किंतुु वित्तीय प्रकरण में बाधा आ सकता है तथा चोट संभव.... अतः सूर्य कृत दोषों की निवृत्ति के लिए -
1.प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प, चंदन तथा शक्कर मिलाकर अध्र्य देते हुए ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें, सूर्य नमस्कार करें..
2.गुड़.. गेहू... दान करें..
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि वालें सभी जातकों के.... .आप जितना पराक्रम तथा उर्जा का स्तर होगा...उतना अच्छा लाभ प्राप्त होगा....साथ ही वाहन तथा सामाजिक सुख का स्तर काफी अच्छा होगा...किंतु कंधे या कान में चोट या दर्द से परेशान हो सकते हैं...शनि से उत्पन्न कष्ट की निवृत्ति के लिए -
1.‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2.भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें...
धनु राशि
धनु राशि वाले सभी जातकों के... आज आपके भागीदारों से अच्छे लाभ तथा प्रशंसा की प्राप्ति...व्यवसाय में अच्छे कार्य की प्रवृत्ति तथा व्यवहारिक निर्णय लेने से लाभ...नए विस्तार की योजनाओं पर कार्य...किंतु आज एलर्जी की थोड़ी प्राब्लम हो सकती है तथा हार्मोन से संबंधित कष्ट भी दिखाई दे सकता है... केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि एवं कष्टों की निवृत्ति के लिए -
1.ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2.सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
3.हल्दी, नारियल का दान करें...
मकर राशि
मकर राशि वाले सभी जातकों के.... वाहन तथा संपत्ति में निवेश...व्यापार के काम से प्रवास परिवार से मुलाकात का योग... मंगल से आॅख में या चेहरे में चोट की संभावना अतः मंगल के निम्न उपाय आजमायें -
1.ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2.हनुमानजी की उपासना करें..
3.मसूर की दाल, गुड दान करें..
पढ़ना एक बार...चिंतन दो बार....आचरण बार-बार.....
कुंभ राशि
कुंभ राशि वाले जातकों के .... परिवार के साथ तीर्थयात्रा तथा धार्मिक कार्यो में धन तथा समय खर्च करेंगे... चोरी या किसी वस्तु के गुम जाने से आपको तनाव तथा किसी अफवाह के कारण मानसिक चिंता हो सकती है.... अतः शुक्र जनित तनाव से निवारण के लिए -
1.ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2.माॅ महामाया के दर्शन करें...
3.चावल, दूध, दही का दान करें...
मीन राशि
मीनराशि वालों सभी जातकों के.... लोक कल्याणकारी कार्यो एवं विद्यादान या.... किसी समारोह में बोलने से राज्यपक्ष तथा समाज में यश की प्राप्ति संभव किंतु बृहस्पति ज्ञान का कारक ग्रह है अतः ज्ञान के क्षेत्र में विशेष प्रसन्नता आज प्राप्त हो सकती है..... किंतु धन तथा वित्तीय स्थिति के कारण मन में भ्रम तथा व्याकुलता की स्थिति बन सकती है...अतः बृहस्पति के दोषों की शांति के लिए -
1.ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2.पीली वस्तुओं का दान करें...
3.गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
चंदन का तिलक करें

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Saturday, 7 May 2016

जीवन में सफलता हेतु राशि अनुसार उपाय

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो और उसकी वजह से कार्यों में सफलता नहीं मिल पा रही हो तो राशि अनुसार उपाय किए जा सकते हैं। इन उपायों से धन संबंधी कार्यों में आ रही बाधाएं, घर-परिवार के कई दोष दूर हो सकते हैं और भाग्योदय हो सकता है। जानिए राशि अनुसार उपाय...
मेष राशि
घर की दक्षिण दिशा में गुड़ की डली छोड़कर प्रस्थान करें। इससे कार्य में प्रगति होगी तथा यात्रा में सफलता मिलेगी। जब भी किसी महत्वपूर्ण काम के लिए घर से बाहर निकल रहे हैं, तब यह उपाय करें। राशि स्वामी मंगल के लिए हर मंगलवार को शिवलिंग पर लाल पुष्प और मसूर की दाल चढ़ाएं। हर मंगलवार हनुमान चालीसा का पाठ करें।
वृष राशि-
नियमित रूप से कच्चे चावल सफ़ेद गाय को खिलने से धन लाभ होता है | किसी भी शुक्रवार से ये उपाय प्रारंभ करें। शुक्रवार के बाद हर रोज ये उपाय अपने घर के बाहर ही करते रहें। चावल की मात्रा अपनी हथेली के अनुसार रखें। राशि स्वामी शुक्र के लिए शिवलिंग पर कच्चा दूध और चावल अर्पित करें। इससे धन संबंधी कार्यों में सफलता मिल सकती है।
मिथुन राशि
सफेद गाय को हरी घास खिलाएं। इन उपायों से घर के सभी दोष दूर होते हैं। घर में वायव्य कोण (घर की पश्चिम-उत्तर दिशा) में पैसा रखेंगे तो शुभ होगा। राशि स्वामी बुध की प्रसन्नता के लिए श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें। समय-समय पर किसी किन्नर को धन का दान करें।
कर्क राशि
हार रोज घर के पश्चिम दिशा में कबूतरों को ज्वर के दाने चुजगाएं ऐसा करने पर घर के सभी दोष शांत हो जाते हैं। घर का वातावरण पवित्र और सकारात्मक बनता है। परिवार में शांति बनी रहती है। राशि स्वामी चंद्र के लिए शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित करें। हर हिन्दी माह में दो चतुर्थियां आती हैं, इन दोनों तिथियों पर चंद्र का पूजन करें।
सिंह राशि
रात को तांबे के लोटे में जल भरें सुबह जल्दी उठकर घर की पूर्व दिशा की ओर छिडकाव करें ऐसा करने से घर-परिवार में शुभ समाचार प्राप्त होते हैं। घर में बुजुर्गों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। राशि स्वामी सूर्य की कृपा पाने के लिए हर रोज नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सूर्य को जल अर्पित करें। इसके लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें।
कन्या राशि
अपने घर के उत्तर दिशा में गायों को हरी घास खिलाएं धन लाभ हो सकता है |यदि संभव हो सके तो हर बुधवार किसी भिक्षुक को खड़ा मूंग और गुड़ का दान करें। यह करने से घर में लक्ष्मी का वास होगा। धन का अपव्यय रुकेगा। साथ ही, रुका धन प्राप्त होगा। राशि स्वामी बुध के लिए श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें और मोदक का भोग लगाएं। हरे रंग का रुमाल अपने साथ रखें।
तुला राशि
शुक्रवार को सुबह घर की पश्चिम-उत्तर दिशा में सफ़ेद कपडे में चावल बंधकर लटका दे |समय-समय पर ये चावल बदलते रहें। ऐसा करने से मांगलिक कार्य में गति आएगी तथा वैवाहिक कार्य में सफलता मिलेगी। राशि स्वामी शुक्र के लिए शिवजी को चावल और दूध अर्पित करें। शुक्रवार को किसी गरीब बच्चे को दूध का दान करें।
वृश्चिक राशि
अपने घर के दक्षिण-पूर्व कोने में जौ को लाल कपडे में बांधकर रखें ऐसा करने से बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करेंगी। घर का वातावरण शुभ और पवित्र बना रहेगा। परिवार के सदस्यों की सोच सकारात्मक होगी तो कार्यों में भी सफलता मिलेगी। बच्चों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होंगे। राशि स्वामी मंगल के लिए मसूर की दाल और लाल कपड़े का दान करें।
धनु राशि
आपके घर का इशान कोण पूजन के लिए श्रेष्ठ है यहां पर भगवान विष्णु की शत् नामावली या सहस्त्र नामावली का पाठ करें। ऐसा करने से रोग, घर के दोष और नकारात्मकता दूर होगी। घर में प्रगति का माहौल बनेगा। राशि स्वामी गुरु के लिए शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें। पीले रंग का रुमाल अपने साथ रखें।
मकर राशि
घर की पशिम दिशा में तुलसी का पौधा लगायें हर इस पौधे में जल अर्पित करें ऐसा करने से रुके हुए कार्यों में प्रगति होगी। मांगलिक कार्य के साथ आर्थिक लाभ के योग बनेंगे। राशि स्वामी शनि के लिए हर शनिवार तेल का दान करें। शनि देव को नीले रंग के पुष्प अर्पित करें। काले कंबल का दान करें।
कुम्भ राशि
घर के पश्चिम उत्तर दिशा साफ रखें इस स्थान पर उपयोगी कागज को ही स्थान दे यदि कागजात काफी अधिक हैं तो किसी अन्य स्थान पर इन्हें रख सकते हैं। इस दिशा में मनी प्लांट लगाएं। राशि स्वामी शनि के लिए काली उड़द का दान करें। हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें। शनि को तेल से बने व्यंजन का भोग लगाएं।
मीन राशि
घर में पूर्व दिशा में देवी देवताओं के मंदिर बनवाएं प्रयास करें कि घर में मंदिर, रसोई घर साथ-साथ न हो। यदि रसोई घर में ही मंदिर हो तो मंदिर और गैस चूल्हा एक सीध में न हो। विशेष तौर पर लक्ष्मीनारायण की उपासना आपको भूमि-भवन का लाभ देगी। राशि स्वामी गुरु के लिए हल्दी की गांठ का दान करें। शिवजी को बेसन से बने लड्डू का भोग लगाएं।

वास्तु के उपाय से दूर करे पिता पुत्र के मन मुटाव

वास्तु के जरिए अपनी सभी समस्याओं को दूर किया जा सकता हैं फिर चाहे वह निजी जीवन से जुड़ी हों या प्रोफेशन लाइफ से, यहां तक कि वास्तु के जरिए अपने रिश्तों को भी सुधारा जा सकता है। अगर आपके घर में आए दिन लड़ाई-झगड़े होते रहते है या पिता और पुत्र के बीच हमेशा मन-मुटाव बना रहता है तो इन 9 बातों का ध्यान रखने से यह परिस्थिति बदली जा सकती है।
1. घर का ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्वी कोना खंडित होने से पिता-पुत्र में आपसी मामलों को लेकर हमेशा झगड़े होते हैं। इसलिए घर के उत्तर-पूर्वी कोने को हमेशा ठीक रखना चाहिए।
2. ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में स्टोर रूम, टीले या पर्वत के समान आकृति के निर्माण से भी पिता-पुत्र के संबंधों में परेशानियां आती हैं और दोनों में अविश्वास बना रहता है। घर के उत्तर-पूर्वी कोने में स्टोर रूम आदि नहीं बनवाना चाहिए।
3. उत्तर-पूर्व दिशा में रसोई घर या शौचालय का होना भी घर के लोगों के संबंधों को प्रभावित करता है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बनी रहती है। घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रसोई घर या शौचालय नहीं होना चाहिए।
4. घर में होने वाले झगड़ों से छुटकारा पाने के लिए घर को साफ रखें। वास्तु की दृष्टि से घर के उत्तर-पूर्व दिशा को साफ-सुथरा रखना बहुत जरुरी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सुख-शांति बढ़ती है।
5. इलेक्ट्रॉनिक सामान, ज्वलनशील पदार्थ या गर्मी उत्पन्न करने वाले अन्य उपकरणों को ईशान (उत्तर-पूर्व) में रखने से पुत्र पिता की आज्ञा नहीं मानता है और घर-परिवार को अपमानित करता है। घर की उत्तर-पूर्वी दिशा में इन चीजों को नहीं रखना चाहिए।
6. घर की उत्तर-पूर्व दिशा में कूड़ेदान बनाने या कूड़ा रखने से भी घर के लोगों में मन-मुटाव और जलन आदि भावना रखते हैं। इस दिशा में कूड़ादान भूलकर भी नहीं रखना चाहिए।
7. यदि कोई प्लाट उत्तर व दक्षिण में संकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा है तो ऐसी जगह को सूर्यभेदी कहते हैं, ऐसी जगह पर पिता-पुत्र के संबंधों में अनबन की स्थिति सदैव रहती है। ऐसी जगह पर कभी घर नहीं बनाना चाहिए।

मई 2016 का मासिक राशिफल

मई में सूर्य और शुक्र राशि बदलेंगे। इसके अलावा बुध और गुरु की टेढ़ी चाल बदल कर सीधी हो जाएगी। इससे अचानक कुछ लोगों के फायदा और तरक्की मिलेगी। ग्रहों की सीधी चाल होने से परेशान लोगों को राहत मिलेगी। कुछ राशि वालों के लिए अच्छा समय भी शुरू होगा। वहीं शनि-मंगल- सूर्य के षडाष्टक और समसप्तक योग से कुछ लोगों को परेशानी बढ़ भी सकती है।
मेष -पारिवारिक और सामाजिक मामले इस महीने आपको मानसिक तनाव दे सकते हैं। मानसिक तनाव को खुद पर हावी न होने दें, वरना आपके दूसरे काम बिगड़ सकते हैं। किस्मत का साथ भी मिल सकता है। इन दिनों में कोई नया काम शुरू करने की सोच रहे हैं, तो सावधान रहें। आपकी इनकम ठीक-ठीक रहेगी। सेहत को लेकर सावधान रहें। बिजनेस करने वाले लोगों के लिए यह समय ठीक है, लेकिन नया निवेश न करें तो ही अच्छा है। नौकरी पेशा लोग थोड़े सावधान रहें। वैवाहिक जीवन में थोड़ी उथल-पुथल हो सकती है। अविवाहितों के प्रेम संबंधों के लिए समय कुछ अच्छा रहेगा। भूमि-भवन या वाहन खरीदने का मन बना सकते हैं। इस सप्ताह में आपको सफलता भी मिल सकती है। समाज में मान-सम्मान मिलेगा। दुश्मनों की संख्या बढ़ सकती हैं। इन सात दिनों में खर्चा अधिक और इनकम कुछ कम हो सकती है। कोर्ट-कचहरी के पुराने मामले सुलझ जाएंगे। आपका मनोबल भी बढ़ा रहेगा। भाई-बहनों का सहयोग भी मिलता रहेगा। यात्रा के योग बन रहे हैं।
वृष -नजदीकी लोगो से संबंधों में और मधुरता रहेगी। यात्रा का प्रसंग बन रहा है। गहरे विचारों से किसी समस्या का हल निकलेगा। गुप्त शत्रु इस समय सक्रिय हो सकते है। किसी व्यक्ति के द्वारा आर्थिक सहयोग का प्रस्ताव मिल सकता है। आपका आर्थिक पक्ष मजबूत होगा, लेकिन खर्चे बहुत है। इस महीने में अचानक धन हानि भी हो सकती है। आर्थिक मामलों में जोखिम ना लें। कोई भी निवेश करने से पहले किसी अनुभवी से जरूर सलाह लें। बुखार या पेट सम्बन्धी समस्या की संभावना है। आपको तनाव से संबंधित परेशानी होने की संभावना बन रही है। नींद की कमी से परेशान रह सकते हैं। मानसिक तनाव और सिर दर्द भी परेशान कर सकता है। महीने के ज्यादातर दिन आप खुद को थका-थका महसूस कर सकते हैं। यदि आप रक्त चाप के मरीज हैं तो बेहद सावधानी रखें और अनावश्यक तनाव ना लें। इस महीने में बड़े आर्थिक फैसले या तो ना लें या कुछ समय के लिए टाल दें। इस महीने में आपको यात्राओं से फायदा हो सकता है। यदि कार्य या व्यापार सम्बन्धी यात्राएं करेंगे तो उससे आपको लाभ होगा। लोन लेने का प्रयास इस समय सफल होगा परन्तु किसी को कर्ज देने से या किसी को व्यापारिक गारंटी देने से बचें अन्यथा अनावश्यक तनाव में फंस सकते हैं। नौकरी करने वाले अपने सहकर्मियों से न उलझें। व्यापार से अरुचि उत्पन्न हो सकती है। वैवाहिक जीवन में हलचल बना रहेगा। प्रेम संबंधों में मधुरता बढ़ सकती है।
मिथुन -इस महीने की शुरुआत में मिथुन राशि वालों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। जैसे-जैसे समय निकलेगा खर्चा बढ़ेगा। इस महीने में मिथुन राशि वालों को मेहनत से ही अच्छी सफलता मिल सकेगी। इस महीने में किस्मत के भरोसे कोई काम न करें तो ही अच्छा है। इस दिनों में मिथुन राशि वाले लोगों को समझदारी से काम करना चाहिए। मीठा बोलकर आप अपना काम निकलवा सकते हैं। इस महीने में कम से कम झूठ बोलें नहीं तो किसी विवाद में पड़ सकते है। किया गया जमीन से लाभ मिल सकता है। कोई पुराना रोग परेशान तो कर सकता है, लेकिन आराम भी जल्दी ही मिल जाएगा। नौकरी पेशा लोगो की तरक्की में परेशानियां आ सकती है। कार्यक्षेत्र में साथ काम करने वालों से सहयोग कुछ कम ही मिलेगा। व्यवसाय में जीवनसाथी का सहयोग आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगा। वैवाहिक स्थिति अच्छी रहेगी जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिलेगा। इस समय प्रेम में वादे न करे नहीं तो मुश्किल में पड़ सकते हैं।
कर्क -कर्क राशि वालों के लिए ये महीना उतार-चढ़ाव वाला साबित हो सकता है। इस महीने में कुछ अच्छे काम होंगे तो कुछ बुरी घटनाएं भी हो सकती है। सूर्य की स्थिति आपकी राशि के लिए अच्छी रहेगी। आपके लिए अच्छा है और आपको फायदा दिलाने वाला रहेगा, लेकिन आपकी राशि से चौथा मंगल आपको परेशान कर सकता है। कार्यक्षेत्र में एक्स्ट्रा मेहनत भी करनी पड़ सकती है। कामकाज में मन कुछ कम ही लगेगा। इस महीने में चौथा मंगल आपका खर्चा बढ़ा सकता है। इसके अलावा इस महीने में वाहन खरीदने के भी योग बन रहे हैं। भागदौड़ वाला समय है तो भौतिक सुखों में वृद्धि भी हो सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में रहने वाले जातक सफलता पाएंगे। किसी जमीनी विवाद से बच कर रहें। शारीरिक परेशनियों में कमी आ सकती है। नौकरी के क्षेत्र में किये गए प्रयास सफल होंगे, लेकिन उनके परिणामों में देर हो सकती है। व्यापारी वर्ग के लिए थोड़ा मुश्किल समय है।
सिंह -सिंह राशि वालों के लिए महीने की शुरुआत अच्छी हो सकती है। महीने के शुरुआती दिनों में सूर्य की स्थिति अच्छी होने से किस्मत का साथ मिलेगा। इन दिनों में मानसिक तनाव भी होगा। इस महीने के आधे दिनों बाद सूर्य और गुरु की चाल बदल रही है। इन दिनों में आपको बड़ा फायदा भी हो सकता है। सोचे हुए काम भी पूरे हो जाएंगे। महीने के कुछ दिन आपके लिए ठीक नहीं रहेंगे। सेहत से जुड़ी परेशानियां भी इस महीने रहेंगी। कुछ पुराने विवाद भी सामने आ सकते हैं। वहीं सूर्य आपकी राशि से दसवीं राशि में होगा तो आपके ही फेवर में रहेगा। आपकी योजनाएं पूरी होंगी। कार्यक्षेत्र में नए और फायदा देने वाले काम होंगे। जिनमें आपको सफलता भी मिलेगी। संतान का भी सहयोग मिल सकता है। अचानक धन लाभ होने के योग भी बनेंगे। आमदनी भी बढ़ेगी। इस महीने आप अपनी चतुराई से कोई ऐसा काम कर सकते हैं, जिससे आपको बड़ा फायदा भी हो सकता है।
कन्या -ग्रहों की स्थिति के आधार कन्या राशि के लोगों के लिए ये महीना अच्छा है। महीने की शुरुआत में सूर्य आपकी राशि से आठवीं राशि में होगा थोड़ी परेशानी वाला समय आपके लिए रहेगा। गुरु आपकी राशि से बारहवीं राशि में होने से भी आप परेशान रहेंगे। इस महीने में आपके काम चतुराई से पूरे हो जाएंगे। सोचे हुए कामों को समय से पूरा कर लेंगे। इस राशि के बिजनेस करने वाले लोगों को बड़ा सौदा मिल सकता है। रुका हुआ पैसा भी मिलेगा। इस महीने में आपको वाहन सुख प्राप्त हो सकता है। कुछ लोग इस महीने में नया वाहन भी खरीद सकते हैं। जीवन साथी के सहयोग से भी धन लाभ मिलेगा। इस महीने आपको किस्मत का भी साथ मिलेगा। आमदनी भी अच्छी रहेगी। सेहत में लगातार उतार-चढ़ाव चलता रहेगा। व्यापार करने वालों के लिए यह समय अच्छा भी रहेगा। नौकरी पाने की कोशिश करने वाले लोगों को इस महीने में सफलता भी मिलेगी। इस राशि के अविवाहित प्रेमियों के लिए समय ठीक नहीं रहेगा।
तुला -ये महीना उतार-चढा़व वाला हो सकता है। इन दिनों में आपका खर्चा बढ़ सकता है तो कहीं से अचानक पैसा भी मिल सकता है। किसी नए प्रोजेक्ट में धन लगाने से पहले अच्छे से सोच-विचार कर लें। अच्छे व्यक्ति से मुलाकात हो सकती है जो आपके किसी कारोबार के बारे मे जानकारी दे सकता है, जिससे आगे चलकर आप काफी उन्नति कर सकते है। इस महीने में आपको बार-बार परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। व्यापार या नौकरी में अचानक कोई समस्या भी आ सकती है। सावधानी रखें। दिमाग में नई योजनाएं बनती रहेंगी। समय अच्छा रहेगा। दुश्मनों से परेशान हो सकते हैं। थोड़ी दौड़-भाग भी रहेगी। आपके नीचे काम करने वाले लोग अत्यधिक परेशानी पैदा कर सकते हैं। इस महीने के आधे दिनों बाद सूर्य आपकी राशि से आठवीं राशि में रहेगा। जिससे आप परेशान हो सकते हैं। खुद को नकारात्मक स्थितियों से लडऩे के लिए तैयार रखें। खुद के लिए जरा भी लापरवाह न रहें। छोटी समस्या को भी छोटा ना समझें और उसे पूरी सावधानी से सुलझाएं। इन दिनों में आप थोड़ बच कर रहें, कोई आप पर झूठा आरोप भी लगा सकता है।
वृश्चिक -इस महीने में आपको किस्मत का साथ कुछ कम मिलेगा। ये महीना वृश्चिक राशि वाले लोगों के लिए उतार-चढ़ाव वाला हो सकता है। परिवार के किसी सदस्य की सेहत भी खराब हो सकती है। उस संबंध में दौड़-भाग हो सकती है। इस महीने में आपका खर्चा ज्यादा और इनकम कुछ कम रहेगी। इस महीने में नए काम शुरू न करें। जो चल रहा है उसे और अच्छे ढंग से करने की कोशिश करें तो आपके लिए अच्छा है। इस महीने में आपको यात्रा से फायदा नहीं होगा। जहां तक हो यात्राओं से बचें। ज्यादा ही जरूरी हो तो यात्रा करें। जीवनसाथी के स्वास्थ्य और उनकी इच्छाओं का ध्यान रखें। अपनी बुद्धि के बल पर किसी बड़ी समस्या से निकलने में कामयाब हो सकते हैं। इस महीने में आप शांत रहने की कोशिश करें। अपनी योजनाएं दूसरों से शेयर ना करें तो ही अच्छा है। मेहनत ज्यादा होगी। मुश्किल से काम पूरे होंगे। जीवनसाथी के अलावा किसी और की तरफ भी आकर्षित हो सकते हैं। इस महीने में आप अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें। सोच-समझकर बोलें। किसी बड़े राजनीतिक उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है।
मकर -मकर राशि वाले लोगों के लिए महीने के शुरुआती दिन सामान्य रहेंगे। महीने की शुरुआत में गोचर कुंडली में राशि से चौथा सूर्य होने से तनाव और किसी बात का टेंशन बना रहेगा। कुछ काम ऐसे भी होंगे जो मन मार कर करने होंगे। लगभग आधे महीने बाद जब सूर्य राशि बदलकर वृष में चला जाएगा। तब आपकी राशि से पंचम सूर्य आपको सफलता दे सकता है। इस समय आप सोचे हुए महत्वपूर्ण काम पूरे कर सकते हैं। मंगल आपका परफॉर्मेंस बढ़ाएगा। इसके प्रभाव से आप अपने कामकाज में सफल होंगे। अपोजिट जेंडर से सहयोग मिल सकता है। इस महीने आप सोच-समझकर बोलें। आप अपनी वाणी से जाने-अनजाने में बहुत से दुश्मन भी बना सकते हैं। इस महीने में आपको सरकारी काम निपटाने में सफलता मिल सकती है। पिता से वैचारिक मतभेद हो सकते है। अचानक धन लाभ हो सकता है। दिसंबर में आप किसी काम में जोखिम न लें। इस महीने में आप आवेग और जोश में आकर कुछ खास बड़े फैसले भी ले सकते हैं।
कुंभ -कुंभ राशि वाले लोगों को मान-सम्मान मिलेगा। व्यापार में वृद्धि के भी योग है। नौकरीपेशा लोगों को तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ये महीना शुभ है। उच्च पद भी मिल सकता है। जरूरी काम हो जाएंगे। पराक्रम बढ़ा हुआ रहेगा। आप शत्रुओं पर हावी रहेंगे। पुराने शत्रुओं को अपने प्रदर्शन से जवाब देंगे। पुराना कर्जा है तो, खत्म हो जाएगा। यात्रा के योग भी बने हुए हैं। इस राशि वालों को संतान से भी सुख मिलने के पूरे योग बन रहे हैं। जीवनसाथी से भी पूरा सहयोग मिलेगा। कुंभ राशि वाले लोग कुछ मामलों में कन्फ्यूज भी हो सकते हैं। बुद्धि स्थिर नहीं रहेगी। इस राशि के लोग अपनी उन्नति के लिए इस कई तरह की योजनाएं बनाएंगे। इस राशि के सरकारी कर्मचारी सावधान रहें। फालतू मेहनत के भी योग बन रहे हैं। अविवाहितों की लव लाइफ के लिए समय कुछ ठीक नहीं है। मकर राशि के व्यापारी वर्ग के लोगों के लिए यह समय थोड़ा कठिन भी हो सकता हैं। नए और बड़े लोगों से मुलाकात हो सकती है।
मीन -इस महीने कोई गलती आपको भारी पड़ सकती है इसलिए कोई भी कार्य सोच समझ कर करे। बिना सोचे समझे किसी काम की हां करेंगे तो खुद ही परेशान रहेंगे। दोस्तों से सम्बन्ध मधुर बनाए रखें। उनकी ही मदद से आपके रुके हुए काम पूरे होंगे। इस महीने आपको अपनी जेब ढीली करनी पड़ेगी। भौतिक सुखों में अधिक लिप्त ना रहे नहीं तो ये आपके शरीर के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा। नौकरी वालो के लिए यह समय मन मारकर काम करने का है। व्यापार में जल्दबाजी न दिखाएं। वैवाहिक जीवन में दूसरे का दखल नुकसान दे सकता है। आपके प्रेम सम्बन्ध भी मधुर रहेंगे। कुछ मामलों में आपको किस्मत का भी साथ मिलेगा। पराक्रम भी बढ़ेगा। निर्णय सोच समझ कर लेंगे और आपके लिए हुए कुछ फैसले सही भी होंगे। व्यापार करने वालों के लिए नए अनुबंध के साथ धन लाभ के संकेत मिल रहे हैं। महीने के कुछ दिनों में इनकम होगी लेकिन ख़र्च अभी भी नियंत्रण के बाहर ही रहेगा। कार्य स्थल पर भी उच्च अधिकारियों का सहयोग और उनसे तारीफ मिल सकती है। आप अपने बुद्धि के दम पर बहुत कुछ हासिल करने में समर्थ रहेंगे। अपने से उम्र में अधिक और प्रभावशाली स्त्री या पुरुष के सहयोग से आपका संपर्क और बढ़ेगा जिससे आपको आगे बढऩे में बहुत मदद मिलेगी। सेहत के मामले में इस महीने सावधान रहें। नई ऊर्जा और स्फूर्ति भी महसूस होगी।

मई 2016 में अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया 09 मई 2016 को
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि बहुत ही खास है क्योंकि इस दिन अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है। इस बार अक्षय तृतीया का पर्व 9 मई, सोमवार को है। मान्यता है कि इस दिन किए गए उपाय शीघ्र ही शुभ फल प्रदान करते हैं। आज हम आपको अक्षय तृतीया पर किए जाने वाले कुछ खास उपाय बता रहे हैं। इन उपायों को विधि-विधान पूर्वक करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
धन लाभ के लिए उपाय
अक्षय तृतीया की रात साधक (उपाय करने वाला) शुद्धता के साथ स्नान कर पीली धोती धारण करें और एक आसन पर उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाएं। अब अपने सामने सिद्ध लक्ष्मी यंत्र को स्थापित करें जो विष्णु मंत्र से सिद्ध हो और स्फटिक माला से नीचे लिखे मंत्र का 21 माला जाप करें। मंत्र जाप के बीच उठे नहीं, चाहे घुंघरुओं की आवाज सुनाई दे या साक्षात लक्ष्मी ही दिखाई दे।
मंत्र
ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्रीं श्रीं फट्
इस उपाय को विधि-विधान पूर्वक संपन्न करने से धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न हो सकती हैं और साधक की धन संबंधी समस्या दूर कर सकती हैं।
----धन लाभ के लिए उपाय
अक्षय तृतीया की रात करीब 10 बजे नहाकर साफ पीले रंग के कपड़े पहन लें। इसके उत्तर दिशा की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन पर बैठ जाएं। अब अपने सामने पटिए (बाजोट या चौकी) पर एक थाली में केसर का स्वस्तिक या ऊं बनाकर उस पर महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद उसके सामने एक दिव्य शंख थाली में स्थापित करें। अब थोड़े से चावल को केसर में रंगकर दिव्य शंख में डालें। घी का दीपक जलाकर नीचे लिखे मंत्र का कमल गट्टे की माला से 11 माला जाप करें-
मंत्र- सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी।
मंत्र पुते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
मंत्र जाप के बाद इस पूरी पूजन सामग्री को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। इस प्रयोग से आपको धन लाभ होने की संभावना बन सकती है।
----ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम करने का उपाय
यदि आपकी जन्म कुंडली में स्थित ग्रह आपके जीवन पर अशुभ प्रभाव डाल रहे हैं तो इसके लिए उपाय भी अक्षय तृतीया से प्रारंभ किया जा सकता है।
उपाय
अक्षय तृतीया की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद तांबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर भगवान सूर्य को पूर्व की ओर मुख करके चढ़ाएं तथा इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ भास्कराय विग्रहे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।
यह उपाय रोज करें। इस उपाय से ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम हो सकता है और आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है। अगर यह उपाय सूर्योदय के एक घंटे के भीतर किया जाए तो और भी शीघ्र फल देता है।
---समस्याओं के निदान के लिए उपाय
अक्षय तृतीया पर अपने सामने सात गोमती चक्र और महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करें और सात तेल के दीपक लगाएं। यह सब एक ही थाली में करें और यह थाली अपने सामने रखें और शंख माला से इस मंत्र की 51 माला जाप करें-
मंत्र- हुं हुं हुं श्रीं श्रीं ब्रं ब्रं फट्
अक्षय तृतीया के दिन यह उपाय करने से समस्याओं का निदान संभव है।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उपाय
अक्षय तृतीया की रात को अकेले में लाल वस्त्र पहन कर बैठें। सामने दस लक्ष्मीकारक कौड़ियां रखकर एक बड़ा तेल का दीपक जला लें और प्रत्येक कौड़ी को सिंदूर से रंग कर हकीक की माला से इस मंत्र का पांच माला जाप करें-
मंत्र- ऊं ह्रीं श्रीं श्रियै फट्
इस प्रयोग से धन की देवी लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं और उसके जीवन में फिर कभी धन की कमी नहीं होती।

ग्रहों का बलवान और अच्छी स्थिति में होना सफलता की कुंजी है......

अगर लग्न एवं लग्नेश बलवान है तो वह व्यक्ति स्वयं ऊर्जावान एवं क्षमतावान होगा और उसकी प्रतिकूल परिस्थितियों एवं बाधाओं से निपटने की क्षमता तथा प्रतिरोधात्मक शक्ति भी दुगनी होगी जिससे वह अपना बचाव करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता निकाल सकता है। लग्न एवं लग्नेश के निर्बल होने पर उनकी प्रतिरोधक क्षमता नगण्य हो जाती है और उसे थोड़ा भी प्रतिकूल प्रभाव अधिक महसूस होता है। फलस्वरूप उसकी प्रगति में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि अगर किसी पहलवान को चोट लग जाए तो वह उससे जल्दी स्वस्थ हो जाएगा, जबकि एक निर्बल व्यक्ति के लिए वह जानलेवा भी हो सकती है। अस्तु बलशाली लग्न एवं लग्नेश वाले व्यक्ति को अरिष्ट योगों का अपेक्षाकृत कम बुरा परिण् ााम परिलक्षित होगा और व्यक्ति के ऊर्जावान होने से अच्छे योगों का वह और अधिक लाभ उठाएगा, जबकि निर्बल लग्न एवं लग्नेश वाले व्यक्ति के ऊर्जाहीन रहने से उसे अनिष्ट योगों का प्रभाव ज्यादा कष्टप्रद महसूस होगा और अच्छे योगों का फल भी उसे अपेक्षाकृत कम लाभ ही दे पायेगा। ऐसी स्थिति जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों के सम्बन्ध में दृष्टिगोचर होती है। अगर ग्रह बलवान है तो उसका प्रभाव अच्छा परिलक्षित होगा, जबकि निर्बल ग्रह का प्रभाव कम या नगण्य ही रहेगा। वैसे तो ग्रहों का बल कई प्रकार से आकलित किया जाता है किन्तु राशि अंशों के आधार पर 0 से 6 अंश तक ग्रह को बालक 6 से 12 अंश तक कुमार, 12 से 18 अंश तक युवा, 18 से 24 अंश तक प्रौढ़ तथा 24 से 30 अंश तक वृद्ध माना गया है। इस प्रकार किसी राशि में ग्रह 10 अंश से 24 अंश के बीच बलशाली रहेगा। ग्रह की नीच, अशुभ या शत्रुभाव में स्थिति, क्रूर, अशुभ, शत्रु ग्रहों की युति या दृष्टि ग्रहों की शुभता को कम कर उसकी अशुभता में वृद्धि करती है। उच्च, शुभ या मित्र भाव में ग्रह की स्थिति, शुभ एवं मित्र ग्रहों से युति या उसकी दृष्टि ग्रह की अशुभता को कम कर उसकी शुभता में वृद्धि करती है। चन्द्रमा की सबलता व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मानसिकता का परिचायक है। कई बार देखने में आता है कि जन्मकुण्डली में प्रथम दृष्टया राजयोग एवं कई अच्छे योग होने के बावजूद व्यक्ति का जीवन साधारण स्तर का ही व्यतीत होता है, जबकि अशुभ एवं अनिष्टकारी योग होने के बावजूद कई व्यक्तियों का जीवन अस्त-व्यस्त नहीं होता और मामूली कुछ झटके सहकर वे संभल जाते हैं। यह परिणामों की विसंगति लग्न, लग्नेश, चन्द्र एवं योग निर्मित करने वाले ग्रहों के बल एवं उनकी स्थिति के कारण होती है। अगर योग निर्मित करने वाले ग्रह निर्बल हैं, अच्छी स्थिति में नहीं हैं, पीड़ित हैं तो वे अपना प्रभाव देने में असमर्थ रहेंगे। लग्न एवं लग्नेश की सबलता योग की शुभता में वृद्धि करेगी, जबकि निर्बलता अशुभता को बढ़ा देगी। यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है कि शक्ति के समक्ष सब नतमस्तक होते हैं। अब उदाहरणस्वरूप कुछ जन्म कुण्डलियों की सहायता से निर्मित ग्रहयोगों के विषय में लग्न, लग्नेश, चन्द्र एवं ग्रहों की स्थिति एवं बल की भूमिका की व्याख्या और स्पष्ट विवेचना करना उपयुक्त होगा।