Sunday, 8 May 2016

अचानक संपत्ति नष्ट और मृत्यु होना....ज्योतिषीय योग

अगर जन्मकुंडली में लग्नेश शुक्र वक्री होकर क्रूर ग्रह सूर्य के साथ युति बनता है तो और क्रूर ग्रह मंगल जो कि तुला लग्न के लिए अशुभ ग्रह है, उससे पूर्ण दृष्ट तो, उसके प्रभाव से स्वभाव में अधिक रिस्क लेने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है । स्वराशिगत सूर्य लाभ भाव में होने से यह उच्च महत्वाकांक्षी विचारों वाले व्यक्ति होते है। चतुर्थेश शनि ग्रह तीव्र गति वाले ग्रह चंद्र की राशि में स्थित होने से यह संकेत देते है कि वे व्यक्ति तीव्र वेग से चलने वाले वाहन आदि का शौक रखते है। चतुर्थ स्थान का कारक ग्रह, चंद्रमा, आकाश तत्व ग्रह की राशि पर स्थित होने से तथा आकाश तत्व ग्रह बृहस्पति की चतुर्थेश वायुतत्व ग्रह शनि पर पूर्ण दृष्टि होने से उनके पास आकाश में विचरण करने वाले वायुयान की निजी सुख-सुविधा प्राप्त होती है । संपत्ति के स्वामी चतुर्थेश शनि की दसवें स्थान से अपने घर पर पूर्ण दृष्टि है। शनि योगकारक है तथा केंद्र में स्थित होने से इसके प्रभाव से उन्हें सुंदर आलीशान घर भी बनवाते है लेकिन षष्ठेश शत्रु घर के स्वामी बृहस्पति की चतुर्थेश शनि पर दृष्टि होने से विरोधी शत्रुओं के षड्यंत्र के द्वारा भी उनकी संपत्ति नष्ट हो जाती है।
लग्नेश, अष्टमेश, लग्न भाव, अष्टम भाव की स्थिति पर विचार करें, तो लग्नेश ग्रह शुक्र जो कि तुला लग्न के लिए अष्टमेश भी है, वह क्रूर ग्रह सूर्य की युति में और क्रूर ग्रह प्रबल मारकेश मंगल से दृष्ट है। अगर लग्न पर किसी भी शुभ एवं पाप ग्रहों की दृष्टि नहीं है। वह तटस्थ है अर्थात् न अधिक शुभ और न ही अधिक अशुभ है। दूसरी ओर अष्टम जो कि मृत्यु का भाव है, वह मारकेश मंगल तथा अशुभ ग्रह केतु से ग्रसित होने के कारण अत्यंत पापपीडि़त होते है, जिसके कारण इस जातक की मध्य आयु में अचानक आघात होने से मृत्यु हुई। अन्य रीति से भी आयु का अवलोकन करें, तो अष्टम भाव से अष्टम तृतीय भाव भी आयु स्थान है। वह भी मारकेश मंगल से पूर्ण दृष्ट है एवं आयु कारक शनि भी अकारक ग्रह षष्ठेश बृहस्पति से दृष्ट है तथा चंद्रमा भी अशुभ भाव में मारकेश मंगल से दृष्ट है। इन सभी अशुभ ग्रह योगों के कारण यह जातक लंबी आयु का सुख प्राप्त नहीं कर सका। जब इनकी मृत्यु हुई उस समय चंद्र में शनि की अंतर्दशा तथा बृहस्पति की प्रत्यंतर्दशा में मंगल की सूक्ष्म दशा चल रही थी तथा गोचर में मंगल लग्नेश शुक्र के ऊपर से गोचर कर रहा था, दशानाथ चंद्रमा भी अष्टम से अष्टम स्थान में स्थित है तथा अंतर्दशानाथ शनि भी राहु से दृष्ट है एवं प्रत्यंतर्दशानाथ बृहस्पति भी अशुभ भाव छठे में है तथा उसी भाव का भावेश भी है। सूक्ष्म प्रत्यंतर्दशा का स्वामी मंगल भी प्रबल मारकेश होकर मृत्यु भाव में स्थित है, यह इनके लिए मारक सिद्ध हुआ।

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