2001 में जर्मनी में नोबेल पुरस्कार विजेताओं की काॅन्फ्रेंस में तुलसी को झूठा मेधावी करार किया गया था। परंतु अपनी मेहनत से तुलसी ने खुद को साबित किया और एक बार फिर से चर्चा में आ गए जब उन्होंने देश में सबसे कम उम्र में पी. एच. डी. की डिग्री 21 साल की उम्र में हासिल कर ली। आज आई. आई टी. मे फिजिक्स पढ़ंा रहे हैं। तथागत के फिजिक्स में अबतक करीब एक दर्जन लेख विभिन्न जर्नल में छप चुके हैं। उनकी प्रबल ईच्छा है कि उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले। तथागत के पिता तुलसी नारायण प्रसाद का दावा है कि उनकी तीन संतानों में सबसे छोटी संतान तुलसी के विलक्षण प्रतिभा के बारे में उन्हें पूर्वानुमान था क्योंकि ऐसे बच्चे का जन्म कोई आकस्मिक नहीं बल्कि पूर्व निर्धारित और सुनियोजित था। सुप्रजनन पद्धति का उपयोग करने के लिए माता-पिता को पांच वर्ष तक घोर परिश्रम करना पड़ा जिसमें खान-पान को नियंत्रित करना प्रमुख था। श्री प्रसाद इसकी तुलना फसल उगाने की इस पद्ध ति से करते हैं, जब कड़ी मेहनत के बाद बंजर जमीन को ऊर्वरा बना कर उसमें बीज रोपण करते हैं फिर जैसे अच्छी फसल के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता ठीक उसी तरह वे पहले से ही तुलसी की विलक्षण बुद्धि के लिए आ सत्यकथा शिशु तुलसी की उंगलियों के पोर चक्रों से चिह्नित थे और कान भी अपेक्षाकृत बड़ थेे इसीलिए उन्होंने उसका नाम तथागत अवतार तुलसी रखा। उन्हें पूरा विश्वास है कि गौतम बुद्ध के अवतार ने उनके परिवार में जन्म लिया है।तथागत ने अपने जीवन में कठिन परिश्रम किया है और उसके अनुसार एक छात्र के लिए विश्लेषण, कल्पना और स्मरण की क्षमता उसकी मूल पूंजी है और जिसने भी अपने जीवन में इनका सही निवेश किया, सफलता उसके कदम चूमती रहेगी। अक्सर कहा जाता है कि बुद्धि जन्मजात होती है, ज्ञान अर्जित। लेकिन क्वांटम सर्च ऐल्गरिज्म पर अपना सिद्धांत प्रस्तुत करने वाले तथागत अवतार तुलसी बुद्धि और ज्ञान के अद्भुत संयोग हंै और तुलसी की यही ईच्छा है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिले। बुद्धिमान योग पंचमेश जिस ग्रह के नवमांश में हो वह ग्रह यदि जन्म लग्न अथवा चंद्र लग्न से केंद्र में तथा शुभ ग्रह से भी दृष्ट हो तो विशेष बुद्धिमान योग होता है। कुंडली में पंचमेश मंगल बुध के नवमांश में है तथा चंद्र कुंडली से बुध ग्रह सप्तम केंद्र में स्थित है एवं उस पर शुभ ग्रह चंद्रमा की दृष्टि है जिसके कारण तुलसी ने इतनी कम उम्र में अपने बुद्धि बल से इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की। विशेष बुद्धि विद्या प्राप्ति योग पंचमेश बुद्धि, द्वितीयेश विद्या निपुणता, चतुर्थेश विद्या स्थान के स्वामी शुक्र इन तीनों विद्या व बुद्धि से संबंधित ग्रहों की द्वितीय भाव में एक साथ युति होने से बुद्धि और विद्या का अद्भुत संगम है और इसी के कारण विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । इन योगों के अतिरिक्त अगर कुंडली में चंद्रमा नवम भाव में और गुरु केंद्रस्थ होते है तो विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा नवमस्थ के समय यदि गुरु और बुध बली हों तो ऐसा जातक तीक्ष्ण बुद्धि का होता है। शुभ फल प्राप्ति योग मानसागरी ग्रंथ के अनुसार केतु यदि तीसरे भाव में हो तो सब दोषों का निवारण कर अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है। कुंडली में केतु सौम्य ग्रह उच्चस्थ बुध के साथ तीसरे भाव में होने से विशेष शुभ फल प्राप्ति योग बन रहे हैं। पराक्रमी पुरुष योग सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार यदि तृतीय भाव का कारक ग्रह शुभ ग्रह के नवमांश में हो तथा वह जन्म कुंडली में शुभ ग्रह से युक्त हो तो ऐसा व्यक्ति महा पराक्रमी पुरूष होता है।
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