Sunday, 8 May 2016

वर्षफल किस समय या स्थान से बनाएं

नीलकंठ ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ज्योतिष में वर्षफल बनाने और उससे फल कहने का सिद्धांत दिया। आजकल कंप्यूटर के द्वारा गणना आसान होने के कारण यह पद्धति काफी प्रचलित हो गयी है। इस पद्धति में वर्ष के प्रवेश की तारीख और समय निकाल कर उस समय की कुंडली बना ली जाती है। एक ग्रह को जो वर्ष लग्न पर सबसे अधिक असर रखता है, वर्षेश्वर का शीर्षक दे दिया जाता है। मुंथा एक छाया ग्रह है, जो प्रतिवर्ष एक राशि चलती है, वर्ष कुंडली में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसमें एक वर्ष अवधि की मुद्दा एवं पात्यंश दशा की गणना भी की जाती है। इस पद्धति में ग्रहों की दृष्टियां जन्मकुंडली जैसी नहीं होती हैं। योगों में इसमें केवल शोडष योग ही प्रचलित है। घटना घटने का समय निकालने के लिए सहम की गणना दी गयी है। ग्रहों के आपसी भेद देखने के लिए त्रिपताकी चक्र बनाया जाता है।
इस पद्धति में गणना काफी विस्तार से की गयी है। लेकिन इसकी मूल गणना - वर्ष प्रवेश गणना में कई मतभेद है। वर्षमान क्या लेना चाहिए? प्राचीन पद्धति में यह मान 1 वर्ष 15 घटी 31 पल 30 विपल अर्थात 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट 36 सेकेंड, या 365.25875 लिया गया है। सायन सूर्य 365.242193 दिन अर्थात 365 दिन, 5 घंटे 48 मिनट 45.5 सेकेंड में अपना चक्कर पूरा कर लेता है और निरयण सूर्य को 365.256363 दिन, अर्थात् 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 9.8 सेकेंड लगते हैं। हमें कौन सा वर्षमान लेना चाहिए?
दूसरी समस्या स्थान की आती है। क्या हमें जन्म स्थान को ही वर्ष स्थान के रूप में लेना चाहिए, या व्यक्ति विशेष वर्ष प्रवेश के समय जिस स्थान पर हो, उस स्थान को लेना चाहिए?
इन समस्याओं के समाधान से पहले वर्ष की परिभाषा को समझना आवश्यक है। पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा कर उसी स्थान पर आ जाने को वर्ष कहते हैं। ज्योतिष में हम पृथ्वी की स्थिति तारों के सापेक्ष में देखते हैं, न कि सूर्य के सापेक्ष में। अतः हमें निरयण वर्षमान को ही मानना होगा। अतः वर्ष के लिए वर्षमान 365.256363 दिन होता है। इतने समय में निरयण सूर्य लगभग उन्ही अंश, कला, विकला पर आ जाता है। यदि कला-विकला में कुछ फर्क आता है, तो वह केवल पृथ्वी के उद्वेलित होने के कारण। यह वर्षमान का उपयोग लाहिरी ने अपने पंचांग में भी किया है। रमन ने भी इसी वर्षमान को लिया है। लेकिन इसको पूर्ण रूप में ठीक से न ले कर कुछ सेकेंड की गलती कर दी है, जिसके कारण 100 वर्ष में कुछ मिनटों का अंतर आ जाता है।
अब प्रश्न है वर्ष स्थान का। यह सुनने में बहुत तार्किक लगता है कि वर्ष प्रवेश के समय व्यक्ति जहां पर हो, वही वर्ष स्थान लेना चाहिए। लेकिन वर्ष प्रवेश गणना एक खगोलीय गणना है और यह हमें खगाोल शास्त्र के आधार पर ही करनी चाहिए। वर्ष की परिभाषा के अनुसार यह वह मान है, जिसमें पृथ्वी घूम कर उसी स्थान पर आ जाती है। वर्षमान के लिए स्थान का महत्व नहीं है, क्योंकि पृथ्वी को एक बिंदु मान कर यह गणना की जा रही है।

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