Sunday, 19 April 2015


सूर्य ग्रहण का प्रभाव और सच्चाई -
जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य की रोषनी पृथ्वी तक नहीं आ पाती है। चंद्रमा की वजह से जब सूर्य ढकने लगता है तो इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं, जब सूर्य का एक भाग छिप जाता है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं तथा जब सूर्य कुछ देर के लिए पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे छिप जाता है तो उसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को ही होता है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य थे। वैदिक काल से ग्रहण पर अध्ययन, मनन और परीक्षण होते चले आए हैं। इस पर धार्मिक, वैज्ञानिक विवेचन ग्रन्थों में होता आया है। सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य और चन्द्र के कोणीय व्यास एक समान होते हैं इस कारण चन्द सूर्य को केवल कुछ मिनट तक ही अपनी छाया में ले पाता है। सूर्य ग्रहण के समय जो क्षेत्र ढक जाता है उसे पूर्ण छाया क्षेत्र कहते हैं।
ग्रहण काल में न केवल प्रकाश घटता है वरन् वातावरण में और भी बहुत परिवर्तन होता है। इसकी जानकारी पक्षियों को विशेष रूप से मिलती है। फलतः वे डरकर अपने घोसलों में जा छिपते हैं। वातावरण का यह विचित्र परिवर्तन सामान्य जीवन तथा पदार्थों पर भी विशेष रूप से पड़ता है। फलतः उसकी स्थिति में सावधानी रखने तथा सुरक्षा बरतने की आवश्यकता होती है। वातावरण में ग्रहण काल में होने वाले इस परिवर्तन का महत्व है। वैज्ञानिक ने सूर्य ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल मंे हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होने अन्य पिण्डों के गुरूत्वकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर पड़ती है। अतः यह वैज्ञानिक सत्य है कि सूर्य के केवल 04 मिनट रोषनी ना मिलने से पृथ्वी पर कई प्रकार के विकार आ सकते हैं अतः हमारे मुनियों द्वारा प्रतिपादित ज्ञान कि सूर्य ग्रहण के समय खाना नहीं चाहिए क्योंकि जठराग्नि मंद होती है, बाहर नहीं निकलना चाहिए क्योंकि नेत्र पर दूषित कणों का प्रभाव पड़ सकता है अतः सूर्य ग्रहण के असर के प्रभाव पर प्रचलित मान्यताएॅ कोरी कल्पना ना होकर वैज्ञानिक समझ-बूझ है। इनका पालन कर जीवन में स्वास्थ्य को पाया जा सकता है क्योंकि सूर्य ही आत्मा है। हालांकि इस वर्ष 20 मार्च 2015 (शुक्रवार) को पूर्ण खग्रास सूर्यग्रहण है, जोकि सूर्यग्रहण आशिंक रूप से यूरोप, उत्तरी पूर्वी एशिया, उत्तरी-दक्षिणी अफ्रिका, उत्तरी अमेरिका एटलाटिंक तथा आर्कटिक महाद्वीप में दिखाई देगा, जबकि भारत में यह अदृष्य ही रहेगा। अतः भारत की भूमि पर इसका कोई दुष्प्रभाव दिखाई नहीं देगा।

Pt.P.S Tripathi
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