मास :
विवाह संस्कार के लिए सबसे पहले मास का विचार किया जाता है। जब वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मेष, वृष तथा मिथुन राशियों में सूर्य मौजूद होता है तब विवाह के लिए उत्तम मास होता। इन सूर्य मास में यह संस्कार किया जा सकता है।
निषेध मास : आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक, खर मासों (सूर्य के धनु एवं मीन राशि में होने पर) विवाह संस्कार नहींं होता है। पंजाब में खर मासों को छोड़कर कर्क, सिंह एवं कन्या सौर मासों में भी विवाह किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में तो सूर्य के तुला राशि में होने पर भी विवाह होता है। जब सूर्य वृष राशि में हो अर्थात ज्येष्ठ मास में हो तो घर के प्रथम (ज्येष्ठ) पुत्र या पुत्री का विवाह नहींं करना चाहिए। कुछ विद्वानों का मत है कि केवल खर मासों (धनुस्थ एवं मीनस्थ सूर्य) को ही विवाह में वर्जित करना चाहिए। खर मासों को छोड़कर सभी मासों में विवाह किया जा सकता है।
तिथि :
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विवाह के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथियां शुभ मानी जाती है। इन तिथियों में विवाह उपयुक्त और शुभ होता है।
वार:
विवाह संस्कार के लिए वार की बात करें तो ज्योतिषशास्त्र में सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को उत्तम माना गया है। रविवार, मंगलवार एवं शनिवार इसके लिए बहुत ही उत्तम होता है।
योग:
ज्योतिषशास्त्र में अशुभ योगों को छोड़कर सभी शुभ योग विवाह के लिए अच्छे माने जाते हैं। विवाह के दिन कोई भी योग हो अगर वह अशुभ नहींं है तो विवाह किया जा सकता है।
लग्र:
विवाह के लिए लग्न शुद्धि को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। लग्न चाहे कोई भी हो परंतु वह पाप दोष से मुक्त एवं शुभ योग से युक्त हो तो विवाह के लिए अच्छा माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार (प्रतिपदा, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (5,9) में शुभ ग्रह हों तो तथा (3, 6, 11) में यदि पाप ग्रह हो तो लग्न बलवान माना जाता है। सप्तम व अष्टम भाव विवाह मुहुर्त के समय ग्रह रहित होना चाहिए।
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