Saturday, 18 April 2015

आखिर भ्रष्टाचार का श्रोत कहाँ है?


आखिर भ्रष्टाचार का श्रोत कहाँ है? भ्रष्टाचार के कारण क्या हैं? और दूसरा प्रमुख प्रश्न है कि इसका निवारण कैसे हो। यहाँ कुछ व्यवहारिक और ज्योतिषीय तरीके पर विचार करते हैं-
नैतिक पतन पहला कारण है, आचरण का भ्रष्ट हो जाना ही भ्रष्टाचार है। आचरण का प्रतिनिधित्व सदैव नैतिकता करती है। किसी का नैतिक उत्थान अथवा पतन उसके आचरण पर भी प्रभाव डालता है। आधुनिक शिक्षा पद्धति और सामाजिक परिवेश में बच्चों के नैतिक उत्थान के प्रति लापरवाही बच्चे को जीवनभर प्रभावित करती है। अर्थात जब जीवन की पहली सीढ़ी पर ही उसे उचित मार्गदर्शन, नैतिकता का पाठ, और औचित्य अनौचित्य में भेद करने का ज्ञान उसके पास नहीं होता तो उसका आचरण धीरे धीरे उसकी आदत में बदलता जाता है। अत: भ्रष्टाचार का पहला श्रोत परिवार होता है जहां बालक नैतिक ज्ञान के अभाव में उचित और अनुचित के बीच भेद करने तथा नैतिकता के प्रति मानसिक रूप से सबल होने मे असमर्थ हो जाता है। सुलभ मार्ग की तलाश हर मानव का स्वभाव होता है कि किसी भी कार्य को व्यक्ति कम से कम कष्ट उठाकर प्राप्त कर लेना चाहता है। बिना लाईन में लगे काम हो जाए या बिना मेहनत के सुविधा प्राप्त हो जाए। वह हर कार्य के लिए एक छोटा और सुगम रास्ता खोजने का प्रयास करता है। इसके लिए दो रास्ते हो सकते हैं एक रास्ता नैतिकता का हो सकता है जो लम्बा और कष्टप्रद भी हो सकता है और दूसरा रास्ता है छोटा किन्तु अनैतिक रास्ता। लोग अपने लाभ के लिए जो छोटा रास्ता चुनते हैं उससे खुद तो भ्रष्ट होते ही हैं दूसरों को भी भ्रष्ट बनने हेतु बढ़ावा देते हैं। आर्थिक असमानता भी भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार होती हैं। हर मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं। जीवन यापन के लिए धन और सुविधाओं की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं। पूरी दुनिया में आर्थिक असमानता तेज़ी से बढ़ी है। अमीर और ज़्यादा अमीर हो रहे हैं जबकि गरीब को अपनी जीविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जब व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएँ सदाचार के रास्ते पूरी नहीं होतीं तो वह नैतिकता पर से अपना विश्वास खोने लगता है और कहीं न कहीं जीवित रहने के लिए अनैतिक होने के लिए बाध्य हो जाता है। कोई तो कारण ऐसा है कि लोग कई कई सौ करोड़ के घोटाले करने और धन जमा करने के बावजूद भी और धन पाने को लालायित रहते हैं और उनकी क्षुधा पूर्ति नहीं हो पाती। तेज़ी से हो रहे विकास और बदल रही भौतिक परिस्थिति जैसे मॉल या मोबाईल कल्चर ने लोगों में तमाम ऐसी नयी महत्वाकांक्षाएं पैदा कर दी हैं जिनकी पूर्ति के लिए वो अपने वर्तमान आर्थिक ढांचे में रह कर कुछ कर सकने मे स्वयं को अक्षम पाते हैं। जितनी तेज़ी से दुनिया में सुख सुविधा के साधन बढ़े हैं उसी तेज़ी से महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ी हैं। इन्हें नैतिक मार्ग से पाना लगभग असंभव हो जाता है। ऐसे में भ्रष्टाचार के द्वारा लोग अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके साथ ही प्रभावी कानून की कमी भी भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण है। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए या तो प्रभावी कानून नहीं होते हैं अथवा उनके क्रियान्वयन के लिए सरकारी मशीनरी का ठीक प्रबन्धन नहीं होता। सिस्टम में तमाम ऐसी खामियाँ होती हैं जिनके सहारे भ्रष्टाचारी को दण्ड दिलाना बेहद मुश्किल हो जाता है। कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जहाँ दबाव वश भ्रष्टाचार करना और सहन करना पड़ता है। इस तरह का भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में बहुतायत से दिखता है।

Pt.P.S Tripathi
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