राजनांदगांव राज्य के तत्कालीन शासक महंत घासीदास की याद मेंं स्थापित यह संग्रहालय रायपुर नगर मेंं जिला न्यायालय और कमिश्नर दफ्तर के मध्य जीई रोड पर स्थित है। 21 मार्च 1953 को प्रथम राष्ट्रपति डॉं.राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लोकार्पित इस नए भवन से पहले यह संग्रहालय यहीं के महाकोशल कला विथिका मेंं स्थापित था। संग्रहालय मेंं संग्रहित कलाकृतियों को वैज्ञानिक एवं आकर्षक ढंग से विभिन्न दर्शक दीर्घाओं मेंं विभक्त किया गया है। पुरातत्व दीर्घा मेंं मृण्मूर्तियाँ, मिट्टी के बरतन, पत्थर और मिट्टी की मुद्राएं और मुद्रांक रखे गए है। मृण्मूर्तियों मेंं सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतिमा वह है जिसमेंं बुद्ध धर्म-चक्र प्रवर्तन की मुद्रा मेंं पद्मासन मेंं बैठे हुए हैं। इसी के साथ सिरपुर व पसेवा की खुदाई मेंं मिली 8वीं सदी की ईंटें व लगभग 2300 ई. पूर्व काल के मिट्टी के बरतन भी इस दीर्घा के आकर्षण हैं। इसी दीर्घा मेंं प्रदर्शित मोहरों मेंं सर्वाधिक पुरानी मोहर राजा धनदेव की है। सिरपुर की खुदाई मेंं मिली मुद्राएं भी इस दीर्घा के दर्शकों को जिज्ञासु बनाती हैं। सिरपुर की खुदाई मेंं मिट्टी की कई मुद्राएं मिली हैं, जो 7वीं-8वीं सदी की हैं। इसी प्रकार सिरपुर की खुदाई से प्राचीन, लोक-जीवन और प्राचीन उद्योग धंधों पर प्रकाश डालने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को दीर्घा मेंं प्रदर्शित किया गया हैं। इनमेंं तरह-तरह के उपकरण और औजार भी हैं, जो 8वीं से लेकर 12 वीं सदी तक के हैं। लोहे के ताले और तराजू भी यहाँ प्रदर्शित हैं, जो 5 वीं से 7 वीं सदी को बताए जाते हैं। प्रतिमा दीर्घा मेंं दक्षिण कोसल एवं कारीतलाई जबलपुर से संबंधित विभिन्न देवी-देवताओं एवं नायक-नायिकाओं की कलाकृतिओं को प्रदर्शित किया गया है। ये कलाकृतियाँ सोमवंशियों एवं कलचुरियों के काल की हैं।
संग्रहालय के एक परिसर मेंं जैन तीर्थंकर की विभिन्न प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित हैं, जिन्हें 4 वर्गों मेंं विभक्त किया गया है- स्वतंत्र तीर्थंकर प्रतिमा, द्विमूर्ति तीर्थंकर प्रतिमा, सहस्त्र जिन प्रतिमाएँ और सर्वतोभद्रिका। इसी प्रकार धमतरी से प्राप्त 8वीं शताब्दी के शिव मंदिर के द्वार की चौखट अत्यंत अलंकृत हैं। सिमगा से प्राप्त 18वीं सदी का स्मृति स्तंभ, 10वीं-11वीं सदी की नंदौर खुर्द(बिलासपुर) से प्राप्त गणेश प्रतिमा भी उल्लेखनीय है। संग्रहालय की शिलालेख दीर्घा मेंं छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए प्राचीन लेखों, दान पत्रों और प्रशस्तियों का अच्छा संग्रह है। ये लेख काष्ठ, शिलापट्ट तथा ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण हैं। संग्रहालय के संग्रह मेंं शरभपुरीय, सोम, त्रिपरी के कलचुरी, कवर्धा के नागवंश, रतनपुर के कलचुरी, रायपुर के कलचुरी और कांकेर के सोमवंशी नरेशों के उत्कीर्ण लेख हैं। इन लेखों मेंं दक्षिण कोसल की प्राचीन प्रशासनिक व्यवस्था के बारे मेंं उल्लेख है। इनमेंं किरारी से मिला काष्ठ-स्तंभ लेख विशेष उल्लेखनीय हैं। बिलासपुर जिले के किरारी गाँव से वहाँ के हीराबंध तालाब के सूखने के बाद खुदाई करते समय ग्रामवासियों को 1931 मेंं यह काष्ठ-स्तंभ प्राप्त हुआ था, जो बीजा, साल नामक काष्ठ से निर्मित है। इसमेंं तिथि या राजा का नाम नहीं है, फिर भी लिपि की शैली के आधार पर इसे दूसरी शताब्दी का माना जाता है, इसकी भाषा प्राकृत है। राजमाता वासटा का सिरपुर से मिला शिलालेख नागरी लिपि व संस्कृत भाषा मेंं है, जो 6वीं सदी का बताया जाता है। यह शिलालेख सिरपुर मेंं निर्मित लक्ष्मण मंदिर के खण्डित मंडप का मलबा साफ करते समय मिला था। राजमाता वासटा का सिरपुर मेंं मिला शिलालेख, कल्चुरी राजा लक्ष्मणराज, कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय, कल्चुरी राजा जाज्जलदेव, चंद्रवंशी राजा भानुदेव के शिलालेख, पांडुवंशी राजा महाशिव गुप्त, कलचुरी राजा प्रतापमल्लदेव, कलचुरी राजा द्वितीय पृथ्वीदेव तथा कलचुरी राजा पृथ्वीदेव के ताम्रपत्र लेख भी इस दीर्घा की संग्रहित संपदा है।
इस दीर्घा मेंं विविध प्रकार के सर्प, पशु, पक्षी आदि प्रदर्शित हैं। संग्रहालय की मानव शास्त्रीय दीर्घा मेंं माडिय़ा, गोंड़, कोरकू, उरांव और बंजारा जनजातियों के उपयोग मेंं आने वाले कपड़े, गहने, बरतन, शस्त्र, वाद्य एवं अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं संग्रहित हैं। इनके अतिरिक्त 8वीं-9वीं सदी की नालंदा शैली से प्रभावित धातु प्रतिमाएँ भी यहां संकलित हैं, जो सिरपुर से मिली है। अविभाजित मध्यप्रदेश का प्रथम व नवोदित छत्तीसगढ़ राज्य का यह एकलौता संग्रहालय अतीत की पुरा-संपदा का अक्षय-स्मृति कोष है और भारत के संग्रहालयों मेंं दसवाँ स्थान रखता है।
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संग्रहालय के एक परिसर मेंं जैन तीर्थंकर की विभिन्न प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित हैं, जिन्हें 4 वर्गों मेंं विभक्त किया गया है- स्वतंत्र तीर्थंकर प्रतिमा, द्विमूर्ति तीर्थंकर प्रतिमा, सहस्त्र जिन प्रतिमाएँ और सर्वतोभद्रिका। इसी प्रकार धमतरी से प्राप्त 8वीं शताब्दी के शिव मंदिर के द्वार की चौखट अत्यंत अलंकृत हैं। सिमगा से प्राप्त 18वीं सदी का स्मृति स्तंभ, 10वीं-11वीं सदी की नंदौर खुर्द(बिलासपुर) से प्राप्त गणेश प्रतिमा भी उल्लेखनीय है। संग्रहालय की शिलालेख दीर्घा मेंं छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए प्राचीन लेखों, दान पत्रों और प्रशस्तियों का अच्छा संग्रह है। ये लेख काष्ठ, शिलापट्ट तथा ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण हैं। संग्रहालय के संग्रह मेंं शरभपुरीय, सोम, त्रिपरी के कलचुरी, कवर्धा के नागवंश, रतनपुर के कलचुरी, रायपुर के कलचुरी और कांकेर के सोमवंशी नरेशों के उत्कीर्ण लेख हैं। इन लेखों मेंं दक्षिण कोसल की प्राचीन प्रशासनिक व्यवस्था के बारे मेंं उल्लेख है। इनमेंं किरारी से मिला काष्ठ-स्तंभ लेख विशेष उल्लेखनीय हैं। बिलासपुर जिले के किरारी गाँव से वहाँ के हीराबंध तालाब के सूखने के बाद खुदाई करते समय ग्रामवासियों को 1931 मेंं यह काष्ठ-स्तंभ प्राप्त हुआ था, जो बीजा, साल नामक काष्ठ से निर्मित है। इसमेंं तिथि या राजा का नाम नहीं है, फिर भी लिपि की शैली के आधार पर इसे दूसरी शताब्दी का माना जाता है, इसकी भाषा प्राकृत है। राजमाता वासटा का सिरपुर से मिला शिलालेख नागरी लिपि व संस्कृत भाषा मेंं है, जो 6वीं सदी का बताया जाता है। यह शिलालेख सिरपुर मेंं निर्मित लक्ष्मण मंदिर के खण्डित मंडप का मलबा साफ करते समय मिला था। राजमाता वासटा का सिरपुर मेंं मिला शिलालेख, कल्चुरी राजा लक्ष्मणराज, कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय, कल्चुरी राजा जाज्जलदेव, चंद्रवंशी राजा भानुदेव के शिलालेख, पांडुवंशी राजा महाशिव गुप्त, कलचुरी राजा प्रतापमल्लदेव, कलचुरी राजा द्वितीय पृथ्वीदेव तथा कलचुरी राजा पृथ्वीदेव के ताम्रपत्र लेख भी इस दीर्घा की संग्रहित संपदा है।
इस दीर्घा मेंं विविध प्रकार के सर्प, पशु, पक्षी आदि प्रदर्शित हैं। संग्रहालय की मानव शास्त्रीय दीर्घा मेंं माडिय़ा, गोंड़, कोरकू, उरांव और बंजारा जनजातियों के उपयोग मेंं आने वाले कपड़े, गहने, बरतन, शस्त्र, वाद्य एवं अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं संग्रहित हैं। इनके अतिरिक्त 8वीं-9वीं सदी की नालंदा शैली से प्रभावित धातु प्रतिमाएँ भी यहां संकलित हैं, जो सिरपुर से मिली है। अविभाजित मध्यप्रदेश का प्रथम व नवोदित छत्तीसगढ़ राज्य का यह एकलौता संग्रहालय अतीत की पुरा-संपदा का अक्षय-स्मृति कोष है और भारत के संग्रहालयों मेंं दसवाँ स्थान रखता है।
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