भवन निर्माण एवं वास्तु विज्ञान दो अलग अलग विषय हैं। एक व्यक्ति अपने मनोनुकूल गृह का निमार्ण तो करवा सकता है अपने आर्किटेक्ट या डिज़ाइनर से कहकर उसे अच्छी प्रकार से सजा भी सकता है परन्तु वह उसमें रहने पर सुखी जीवन व्यतीत करेगा यह आवश्यक नहीं। एक आर्किटेक्ट भी जिसे केवल भवन निर्माण तकनीक का ज्ञान है उस व्यक्ति के सुखी व मंगलमय जीवन की गारंटी कैसे ले सकता है परन्तु वास्तु विज्ञान एवं वास्तु के अनुरूप मकान का निर्माण करने से वास्तु विशेषज्ञ द्वारा गारंटी ली जा सकती है। आज के युग में अपने लिए घर बनाना एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है जो की उसके परिवार के लिए एक बड़े अनुष्ठान की तरह होती है। गृह प्रवेष सही मुहूर्त में सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान करने के पष्चात् भी किया जाता है परन्तु सभी प्रकार की पूजा अनुष्ठान आदि करने के पष्चात् भी अनेकों बार यह देखने को मिलता है कि एक मकान छोड़कर जाने से तथा दूसरे मकान में रहने से एक ही परिवार की सुख शांति का हनन हो जाता है। मनुष्य यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि पहले मकान में ऐसा क्या था। मैं उसमें सुखी व सन्तुष्ट था तथा धन संग्रह कर अपना स्वयं का घर बनाया तो- मैं संकटों से घिर गया ! यहाँ उस मकान की वास्तु का बहुत अधिक प्रभाव उस के पारिवारिक जीवन पर होता है परन्तु अब प्रष्न यह उठता है कि कैसे जाने की जिस भवन में हम रह रहें हैं उसकी वास्तु हमारे अनुरूप है घ् यदि अनुरूप है तो वह हमारे तथा हमारे परिवार के लिये लाभकारी होगा क्या! यह लाभकारी निम्नलिखित में से किसी भी रूप में हो सकता है:- (1) भवन में रहने से धर्मलाभ होना चाहिए तथा उस भवन में रहने वाले प्राणी को अध्यात्मिक एवं आत्मिक सुख की अनुभूति होनी चाहिए। (2) दैविक एवं भौतिक उपसर्गों से मुक्ति मिलनी चाहिए। (3) समाज में मान-सम्मान बढ़ना चाहिए। (4) परिवार के दूसरे सदस्य भी सुखषांति का अनुभव करें तो समझना चाहिए की उस भवन की वास्तु गृहस्वामी केे अनुरूप है। (5) गृहस्वामी के व्यवसाय में उन्नति हो, उसके धन धान्य में वृद्धि हो। (6) यदि गृह स्वामी कर्जदार है और उसका कर्ज धीरे धीरे कम होना आरम्भ हो गया है तो इसे भी शुभ संकेत माना जाता है। (7) गृहस्वामी की आय के साधनों में वृद्धि हो। (8) यदि परिवार के सदस्य गृहस्वामी की आज्ञा में रहने लगें तो यह भी यही दर्षाता है कि भवन की वास्तु गृहस्वामी के अनुकूल है। (9) परिवार के सदस्य यदि अध्यात्मिक एंव आत्मिक उन्नति करने लगें और मोक्षमार्ग का रास्ता प्रषस्त हो तो इसमें ही वास्तुषास्त्र की सार्थकता है। अब देखते हैं कि घर की वास्तु अनुरूप न होने के कारण कुटुम्बजनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। (1) परिवार में झगड़ा व कलह आरंम्भ हो जाता है। (2) व्यय व्यर्थ ही बढ़ जाता है। (3) आमदनी में कमी हो जाती है। (4) गृह स्वामी आर्थिक रूप से निर्बल हो जाए तो समझें उस घर की वास्तु अनुकूल नहीं है। (5) कोर्ट केस हो जाए व्यक्ति को मानसिक तनाव रहे तो समझें की घर में वास्तु दोष है। (6) गृहस्वामी का सम्मान समाज में कम होने लगें। (7) सन्तति का नाष हो या फिर उसके बच्चे व कुटुम्बजन उसकी आज्ञा का पालन न करें तो समझें की घर में वास्तुदोष है। (8) परिवार में अकाल मृत्यु भी वास्तुदोष की सूचक है। (9) अक्समात् परिवार के सदस्यों को कोई रोग घेर ले तो समझें की भवन की वास्तु अनुकूल नहीं। यदि लगे की घर में कुछ भी उपरोक्त में से घट रहा है तो समझ लेना चाहिए की भवन में वास्तुदोष है और उसके निवारण हेतु यथा सम्भव वास्तुदोष निवारण के उपाय करने चाहिएँ।
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Saturday, 16 May 2015
अपने भवन या घर में वास्तु दोष कैसे पहचाने
भवन निर्माण एवं वास्तु विज्ञान दो अलग अलग विषय हैं। एक व्यक्ति अपने मनोनुकूल गृह का निमार्ण तो करवा सकता है अपने आर्किटेक्ट या डिज़ाइनर से कहकर उसे अच्छी प्रकार से सजा भी सकता है परन्तु वह उसमें रहने पर सुखी जीवन व्यतीत करेगा यह आवश्यक नहीं। एक आर्किटेक्ट भी जिसे केवल भवन निर्माण तकनीक का ज्ञान है उस व्यक्ति के सुखी व मंगलमय जीवन की गारंटी कैसे ले सकता है परन्तु वास्तु विज्ञान एवं वास्तु के अनुरूप मकान का निर्माण करने से वास्तु विशेषज्ञ द्वारा गारंटी ली जा सकती है। आज के युग में अपने लिए घर बनाना एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है जो की उसके परिवार के लिए एक बड़े अनुष्ठान की तरह होती है। गृह प्रवेष सही मुहूर्त में सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान करने के पष्चात् भी किया जाता है परन्तु सभी प्रकार की पूजा अनुष्ठान आदि करने के पष्चात् भी अनेकों बार यह देखने को मिलता है कि एक मकान छोड़कर जाने से तथा दूसरे मकान में रहने से एक ही परिवार की सुख शांति का हनन हो जाता है। मनुष्य यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि पहले मकान में ऐसा क्या था। मैं उसमें सुखी व सन्तुष्ट था तथा धन संग्रह कर अपना स्वयं का घर बनाया तो- मैं संकटों से घिर गया ! यहाँ उस मकान की वास्तु का बहुत अधिक प्रभाव उस के पारिवारिक जीवन पर होता है परन्तु अब प्रष्न यह उठता है कि कैसे जाने की जिस भवन में हम रह रहें हैं उसकी वास्तु हमारे अनुरूप है घ् यदि अनुरूप है तो वह हमारे तथा हमारे परिवार के लिये लाभकारी होगा क्या! यह लाभकारी निम्नलिखित में से किसी भी रूप में हो सकता है:- (1) भवन में रहने से धर्मलाभ होना चाहिए तथा उस भवन में रहने वाले प्राणी को अध्यात्मिक एवं आत्मिक सुख की अनुभूति होनी चाहिए। (2) दैविक एवं भौतिक उपसर्गों से मुक्ति मिलनी चाहिए। (3) समाज में मान-सम्मान बढ़ना चाहिए। (4) परिवार के दूसरे सदस्य भी सुखषांति का अनुभव करें तो समझना चाहिए की उस भवन की वास्तु गृहस्वामी केे अनुरूप है। (5) गृहस्वामी के व्यवसाय में उन्नति हो, उसके धन धान्य में वृद्धि हो। (6) यदि गृह स्वामी कर्जदार है और उसका कर्ज धीरे धीरे कम होना आरम्भ हो गया है तो इसे भी शुभ संकेत माना जाता है। (7) गृहस्वामी की आय के साधनों में वृद्धि हो। (8) यदि परिवार के सदस्य गृहस्वामी की आज्ञा में रहने लगें तो यह भी यही दर्षाता है कि भवन की वास्तु गृहस्वामी के अनुकूल है। (9) परिवार के सदस्य यदि अध्यात्मिक एंव आत्मिक उन्नति करने लगें और मोक्षमार्ग का रास्ता प्रषस्त हो तो इसमें ही वास्तुषास्त्र की सार्थकता है। अब देखते हैं कि घर की वास्तु अनुरूप न होने के कारण कुटुम्बजनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। (1) परिवार में झगड़ा व कलह आरंम्भ हो जाता है। (2) व्यय व्यर्थ ही बढ़ जाता है। (3) आमदनी में कमी हो जाती है। (4) गृह स्वामी आर्थिक रूप से निर्बल हो जाए तो समझें उस घर की वास्तु अनुकूल नहीं है। (5) कोर्ट केस हो जाए व्यक्ति को मानसिक तनाव रहे तो समझें की घर में वास्तु दोष है। (6) गृहस्वामी का सम्मान समाज में कम होने लगें। (7) सन्तति का नाष हो या फिर उसके बच्चे व कुटुम्बजन उसकी आज्ञा का पालन न करें तो समझें की घर में वास्तुदोष है। (8) परिवार में अकाल मृत्यु भी वास्तुदोष की सूचक है। (9) अक्समात् परिवार के सदस्यों को कोई रोग घेर ले तो समझें की भवन की वास्तु अनुकूल नहीं। यदि लगे की घर में कुछ भी उपरोक्त में से घट रहा है तो समझ लेना चाहिए की भवन में वास्तुदोष है और उसके निवारण हेतु यथा सम्भव वास्तुदोष निवारण के उपाय करने चाहिएँ।
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