साधारणत: हम सोचते हैं, सत्य कोई वस्तु है, जिसे खोजना है; जैसे सत्य कहीं रखा है- किसी दूर के मंदिर मेंं सुरक्षित है प्रतिमा की भांति. हमेंं यात्रा करनी है, मंदिर के द्वार खोलने हैं और सत्य को उपलब्ध कर लेना है. ऐसा सोचा तो भूल हो गई शुरू से ही. सत्य कोई वस्तु नहीं है. सत्य तो एक प्रतीति है, अनुभूति है.
सत्य का अर्थ है ऐसे जीना, जिस जीवन मेंं कोई वंचना न हो; ऐसे जीना कि बाहर और भीतर का तालमेंल हो. सत्य एक संगीत है. तो कदम-कदम संभालना होगा, क्योंकि सत्य आचरण है. इसलिए महावीर कहते हैं- 'सत्य मेंं तप है, संयम है, समस्त गुणों का वास है. क्योंकि सत्य आचरण है. जिसने सत्य को साध लिया, सब सध जायेगा. फिर अलग से कुछ साधने को बचता नहीं. क्योंकि जिसने बाहर और भीतर का एक ही जीवन शुरू कर दिया, उसके जीवन मेंं हिंसा नहीं हो सकती. उसके जीवन मेंं झूठ नहीं हो सकता; उसके जीवन मेंं क्रोध नहीं हो सकता; उसके जीवन मेंं प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती. असंभव है. सत्य आया तो जैसे प्रकाश आया. अब अंधेरा नहीं हो सकता.
लेकिन सत्य कोई वस्तु नहीं है. सत्य उधार नहीं मिलता. मेंरे पास हो तो भी तुम्हें देने का कोई उपाय नहीं. सत्य कोई सिद्धांत भी नहीं है. नहीं तो एक बार कोई खोज लेता, सबके लिए, सदा के लिए मिल जाता. दो ढंग से जीने के उपाय हैं. एक, जिसे हम असत्य का जीवन कहें. तुम कुछ हो, कुछ होना चाहते हो. असत्य शुरू हो गया. तुम कुछ हो, कुछ और दिखाना चाहते हो. असत्य हो गया. तुम कुछ हो, और कुछ मुखौटे ओढ़ लिए; होना तो कुछ था, प्रदर्शन कुछ और हो गया. असत्य हो गया. इसे समझोगे तो पाओगे कि तुम्हारे तथाकथित धर्मों ने तुम्हें सत्य की तरफ ले जाने मेंं सहायता नहीं दी, बाधा डाल दी. क्योंकि उन सबने तुम्हें पाखंड सिखाया. उन सबने कहा, कुछ हो जाओ. महावीर कहते हैं, तुम जो हो उसी मेंं रह जाओ. कुछ और होने की कोशिश करोगे तो असत्य शुरू हो जाएगा. तुम महावीर होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जाएगा.
तुम बुद्ध होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जायेगा. पच्चीस सौ वर्षों मेंं हजारों लोग महावीर होने की चेष्टा मेंं रत रहे हैं. कोई दूसरा महावीर हो पाया? कोई दूसरा कभी बुद्ध हो पाया? कोई दूसरा राम मिला इस जीवन के पथ पर? कृष्ण की बांसुरी दुबारा सुनी गई? पुनर्कि्त यहां होती नहीं. अनुकरण संभव नहीं. यहां प्रत्येक स्वयं होने को पैदा हुआ है. जिसने भी दूसरा होने की कोशिश की, वह पाखंडी हो जाता है.
Pt.P.S Tripathi
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