यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनशैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निश्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनशील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। ज्योतिषीय मान्यता है कि व्यक्ति की कुंडली में जो ग्रह प्रतिकूल होता है, उसके अनुसार व्यक्ति में उस क्षेत्र या स्थान से संबंधित नकारात्मकता दिखाई देती है। जीवन में नकारात्मक स्थिति को दूर करने तथा जीवन में साकारात्मक तथा सफलता प्राप्ति हेतु मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पॉच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुशासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिशा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूंकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अत: अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।
Pt.P.S Tripathi
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