Sunday, 12 April 2015

द्वार (मुख्य द्वार का वास्तु-विश्लेषण)


घर या ऑफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्य द्वार की दिशा और दशा ठीक की जाए। वास्तुशास्त्र में मुख्य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। जरा-सी सावधानी व्यक्ति को ढेरों उपलब्धियों की सौगात दिला सकती है।
मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से जो महत्ता हमारे मुख की है, वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार की होती है।
साधारणतया किसी भी भवन में मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन में प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक मुख्य द्वार जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
जहां तक संभव हो पूर्व एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूर्वोत्तर अर्थात ईशान कोण में बनाएं। पश्चिम मुखी भवन पश्चिम-उत्तर कोण में व दक्षिण मुखी भवन में द्वार दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है। नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या लकड़ी प्रयोग न करें।
मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही हो, इसकी आकृति किसी प्रकार के आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो। यह त्रिकोण, गोल, वर्गाकार या बहुभुज की आकृति का न हो।
विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई कर्कश ध्वनि पैदा न करें। आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपार्टमेंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है। जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमें हम द्वार बेध या मार्ग बेध कहते हैं। प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊर्जा देते हैं, जैसे घर का 'टी जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बीचों-बीच कोई पेड़, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि। इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है।

Pt.P.S Tripathi
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