Sunday, 12 April 2015

भ्रष्टाचार का विरोध करेगा कौन ???



 

भ्रष्टाचार का विरोध करेगा कौन ???
आज जब मैं ये लिखने बैठा हूॅ कि भ्रष्टाचार को कौन समाप्त करेगा, तब बहुत सारे प्रश्र दिमाग में लगातार कौंध रहे हैं कि क्या ऐसा सचमुच संभव है? क्या ये कभी समाप्त भी हो सकता है या हम इसे दशहरा में मनाये जाने वाले रावण वध की तरह हर बार समाप्त करेंगे और ये भस्मासुर के मुंह की तरह फिर खुला हुआ मिलेगा? इन्हीं सब प्रश्रों के साथ आज शाम जब मैं ये लिखने बैठा हूॅ तब के प्रश्र कुंडली पर विचार करने पर यह दिखता है कि अभी जबकि वृश्चिक लग्र की कुंडली में लग्रस्थ शनि तृतीयेश और चतुर्थेश होकर लग्र में अपने न्यायकारी दृढ़ता के साथ दंडाधिकारी की महती भुमिका में बैठा है और उसी के अनुरूप द्वितीयेश और पंचमेश गुरू कर्क का होकर भाग्यस्थ है अर्थात समाज और समाजिकता हेतु उॅचे मापदंड स्थापित करने हेतु प्रतिबद्व दिखता है। हालांकि यह भी सच है कि दशम भाव का कारण सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर पंचमस्थ है अर्थात सत्तापक्ष कितनी भी विपरीत परिस्थिति और विरोधाभास के बावजूद अपना अंह और मद छोड़ नहीं सकता। किंतु मेरा मानना है कि ग्रहों के गोचरों का प्रभाव समय के कालखंड पर पड़ता है तो जब से वृश्चिक शनि और कर्क का गुरू गोचर में है, तब से ही न्याय और उॅचे मापदंड स्थापित करता रहा है और अभी जब शनि और गुरू इस स्थिति में हैं तब तक तो ये सिलसिला जारी रहेगा। भ्रष्टाचार के कारण हमारे सामाजिक जीवन के अस्तित्व में ही छिपे हैं और नेतागण महज चिल्लाते रहते हैं कि हम भ्रष्टाचार को मिटा देंगे, हमारे आते ही भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा किंतु मजे कि बात तो यह है कि जो नेता जितने जोर से मंच पर चिल्लाते हैं कि भ्रष्टाचार मिटा देंगे, वे उस मंच तक बिना भ्रष्टाचार के पहुंच नहीं पाते। जहां से भ्रष्टाचार मिटाने का व्याख्यान देना पड़ता है, उस मंच तक पहुंचने के लिए भ्रष्टाचार की सीढिय़ाँ पार करनी पड़ती हैं
जिस देश में इतनी गरीबी हो उस देश में सदाचार हो सकता है, यह चमत्कार होगा। यह संभव नहीं है। जहां जीना इतना कठिन हो, वहां आदमी ईमानदार रह सकेगा, यह मुश्किल है। हां, एकाध आदमी जो कोई संकल्पवान हो, रह सकता है, लेकिन इतना संकल्प सबके पास नहीं है और इसके लिए उन्हें दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता। पूंजीवाद का कोई कसूर नहीं है कि भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार का कारण दूसरा है। भ्रष्टाचार का कारण है कि भूख ज्यादा है, रोटी कम है। नंगे शरीर ज्यादा हैं, कपड़े कम हैं। आदमी ज्यादा हैं, मकान कम हैं। जीने की सुविधा कम है, और जीने वाले रोज बढ़ते चले जा रहे हैं। इसके बीच जो तनाव पैदा होगा, वह भ्रष्टाचार ले आएगा। इस भ्रष्टाचार को कोई नेता नहीं मिटा सकता। क्योंकि वह जिस ढंग से सोचते हैं, कि जाकर सारे मुल्क को समझायेंगे कि भ्रष्टाचार मत करो। तो क्या भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा? यहां अस्तित्व खतरे में है। यह प्रवचन से हल होने वाला नहीं है कि सारे हिंदुस्तान के साधु गांव-गांव जाकर समझाएं कि भ्रष्टाचार मत करो। तो बस भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा। यहां कोई शिक्षा कि कमी नहीं है और न प्रवचनों कि कमी है। क्योंकि भ्रष्टाचार की बुनियादी जड़ को पकडऩा पड़ेगा और अगर हम जड़ को पकड़ लें तो बहुत चीजें साफ हो जाएं।
भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश त्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से हो रहा है। आज जबकि कदम-कदम पर लोगों के मान-सम्मान को बेरहमी से कुचला जा रहा है। लोगों के कानूनी, संवैधानिक, प्राकृतिक एवं मानव अधिकारों का खुले आम हनन एवं अतिक्रमण हो रहा है। हर व्यक्ति को मनमानी, गैर-बराबरी, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड रहा है। यह दयनीय स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। यह लंबे समय से धीरे-धीरे गेंहू में घुन की तरह फैल रही थी और आज भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। ऐसी अनेकों प्रकार की नाइंसाफी, मनमानी एवं गैर-कानूनी गतिविधियाँ केवल इसलिये ही नहीं चल रही हैं कि सरकार एवं प्रशासन में बैठे लोग निकम्मे, निष्क्रिय और भ्रष्ट हो चुके हैं, बल्कि ये सब इसलिये भी तेजी से फल-फूल रहे हैं, क्योंकि हम आजादी एवं स्वाभिमान के मायने भूल चुके हैं। सच तो यह है कि हम इतने कायर, स्वार्थी और खुदगर्ज हो गये हैं कि जब तक हम  स्वयं इससे प्रभावित नहीं होते, तब तक हम इनके बारे में सोचते ही नहीं। यदि हम इसी प्रकार से केवल आत्म केन्द्रित होकर स्वार्थपूर्ण सोचते रहे, तो हमारे सामने भी भ्रष्टाचार अनेक रूप में सामने आ सकता है जैसे कि
हम या हमारा कोई अपना, बीमार हो और उसे केवल इसलिये नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवायें उन अपराधी लोगों ने नकली बनायी हों, जिनका हम विरोध नहीं कर पा रहे हैं?
हम कोई अपना, किसी भोज में खाना खाये और खानें की वस्तुओं में मिलावट के चलते, वह असमय ही तडप कर बेमौत मारा जाए।
हम कोई अपना, बस यात्रा में हो और बस मरम्मत करने वाले मिस्त्री द्वारा उस बस में नकली पुर्जे लगा दिये जाने के कारण, वह बस बीच रास्ते में दुर्घटना हो जाये?
हम अपने वाहन में पेट्रोल या डीजल में घातक जहरीले द्रव्यों की मिलावट के कारण बीच रास्ते में वाहन के इंजन में आग लग जाये?
जब हम या हमारा कोई आत्मीय किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण किसी अस्पताल में भर्ती हो और भ्रष्ट डॉक्टर बिना रिश्वत लिये तत्काल उपचार या ऑपरेशन करने से मना करे दे या लापरवाही, अनियमितता बरते और...?
जब हम या कोई आत्मीय रेल यात्रा करे और रेल की दुर्घटना हो जाये, क्योंकि रेल मरम्मत कार्य करने के लिये जिम्मेदार लोग मरम्मत कार्य किये एवं सुरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही वेतन उठाते हों!
 सर्वविदित है की जि़म्मेदार पदों पर कितने गैर जि़म्मेदार लोग बैठे है! भ्रष्टाचार के निरंतर बढ़ते हुए प्रभाव के बावजूद यदि हम नाइंसाफी के विरुद्ध, पूरी ताकत के साथ और बेखौफ होकर बोलना शुरू करें, अपनी बात कहने में हिचकें नहीं, तो अभी भी बहुत कुछ ऐसा बचा हुआ है, जिसे बचाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ जरूरतमंद लोगो तक नहीं पहुँच पाता है। इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है। सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, मगर इस कानून का दुरूपयोग करने वाले ब्लैकमेलर भी इसकी आड़ में अपनी दुकानदारी भी चलाने लगे हैं। हालांकि कुछ चुनिंदा लोग बढिय़ा प्रयास कर रहे है जिससे पहले की तुलना में स्थिति सुधरी है। जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है। वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो आम जनता को सामने आना होगा। उन्हें यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्च स्तर पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का बहिष्कार करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीघ्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार से बच पाना असंभव ही है।
आखिर भ्रष्टाचार का श्रोत कहाँ है? भ्रष्टाचार के कारण क्या हैं? और दूसरा प्रमुख प्रश्न है कि इसका निवारण कैसे हो। यहाँ कुछ व्यवहारिक और ज्योतिषीय तरीके पर विचार करते हैं-
 नैतिक पतन पहला कारण है, आचरण का भ्रष्ट हो जाना ही भ्रष्टाचार है। आचरण का प्रतिनिधित्व सदैव नैतिकता करती है। किसी का नैतिक उत्थान अथवा पतन उसके आचरण पर भी प्रभाव डालता है। आधुनिक शिक्षा पद्धति और सामाजिक परिवेश में बच्चों के नैतिक उत्थान के प्रति लापरवाही बच्चे को जीवनभर प्रभावित करती है। अर्थात जब जीवन की पहली सीढ़ी पर ही उसे उचित मार्गदर्शन, नैतिकता का पाठ, और औचित्य अनौचित्य में भेद करने का ज्ञान उसके पास नहीं होता तो उसका आचरण धीरे धीरे उसकी आदत में बदलता जाता है। अत: भ्रष्टाचार का पहला श्रोत परिवार होता है जहां बालक नैतिक ज्ञान के अभाव में उचित और अनुचित के बीच भेद करने तथा नैतिकता के प्रति मानसिक रूप से सबल होने मे असमर्थ हो जाता है। सुलभ मार्ग की तलाश हर मानव का स्वभाव होता है कि किसी भी कार्य को व्यक्ति कम से कम कष्ट उठाकर प्राप्त कर लेना चाहता है। बिना लाईन में लगे काम हो जाए या बिना मेहनत के सुविधा प्राप्त हो जाए। वह हर कार्य के लिए एक छोटा और सुगम रास्ता खोजने का प्रयास करता है। इसके लिए दो रास्ते हो सकते हैं एक रास्ता नैतिकता का हो सकता है जो लम्बा और कष्टप्रद भी हो सकता है और दूसरा रास्ता है छोटा किन्तु अनैतिक रास्ता। लोग अपने लाभ के लिए जो छोटा रास्ता चुनते हैं उससे खुद तो भ्रष्ट होते ही हैं दूसरों को भी भ्रष्ट बनने हेतु बढ़ावा देते हैं। आर्थिक असमानता भी भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार होती हैं। हर मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं। जीवन यापन के लिए धन और सुविधाओं की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं। पूरी दुनिया में आर्थिक असमानता तेज़ी से बढ़ी है। अमीर और ज़्यादा अमीर हो रहे हैं जबकि गरीब को अपनी जीविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जब व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएँ सदाचार के रास्ते पूरी नहीं होतीं तो वह नैतिकता पर से अपना विश्वास खोने लगता है और कहीं न कहीं जीवित रहने के लिए अनैतिक होने के लिए बाध्य हो जाता है। कोई तो कारण ऐसा है कि लोग कई कई सौ करोड़ के घोटाले करने और धन जमा करने के बावजूद भी और धन पाने को लालायित रहते हैं और उनकी क्षुधा पूर्ति नहीं हो पाती। तेज़ी से हो रहे विकास और बदल रही भौतिक परिस्थिति जैसे मॉल या मोबाईल कल्चर ने लोगों में तमाम ऐसी नयी महत्वाकांक्षाएं पैदा कर दी हैं जिनकी पूर्ति के लिए वो अपने वर्तमान आर्थिक ढांचे में रह कर कुछ कर सकने मे स्वयं को अक्षम पाते हैं। जितनी तेज़ी से दुनिया में सुख सुविधा के साधन बढ़े हैं उसी तेज़ी से महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ी हैं। इन्हें नैतिक मार्ग से पाना लगभग असंभव हो जाता है। ऐसे में भ्रष्टाचार के द्वारा लोग अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके साथ ही प्रभावी कानून की कमी भी भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण  है। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए या तो प्रभावी कानून नहीं होते हैं अथवा उनके क्रियान्वयन के लिए सरकारी मशीनरी का ठीक प्रबन्धन नहीं होता। सिस्टम में तमाम ऐसी खामियाँ होती हैं जिनके सहारे भ्रष्टाचारी को दण्ड दिलाना बेहद मुश्किल हो जाता है। कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जहाँ दबाव वश भ्रष्टाचार करना और सहन करना पड़ता है। इस तरह का भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में बहुतायत से दिखता है।
भ्रष्टाचार को कम करने अथवा मिटाने में कारगर सख्त और प्रभावी कानून के नियंत्रण के साथ नैतिकता और ईमानदारी अंदर से आनी चाहिए, न कि बाहर से थोपी जाय। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12 अक्टूबर 2005 को देशभर में सूचना का अधिकार क़ानून लागू किया गया। इसके बावजूद रिश्वत खोरी कम नहीं हुई। हक ीक त में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नौकरशाह ही उठाते हैं, आखीर में जनता तो ठगी की ठगी ही रह जाती है। शायद यही उसकी नियति है। जनता के हाथ में एक हथियार राइट टू रिजेक्ट का भी है। जिसका अर्थ है चुनाव लडऩे वाले सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का अधिकार। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 सितम्बर 2013 को एक ऐतिहासिक फ़ैसला देते हुए देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को खारिज कर सकेंगे। इसके साथ इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नोटा अर्थात इनमें से कोई नहीं के विकल्प का एक बटन है। ईवीएम में नोटा बटन का उपयोग ऐसे मतदाता कर सकेंगे जो उनके क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते। इस प्रकार आज जब जनता के हाथ में इतने सारे हथियार हैं तो उसका उपयोग जनता को करते हुए उॅचे मापदंड स्थापित करना चाहिए और दंडाधिकारी की भूमिका जनता को ही निभाना चाहिए क्योंकि तीसरे स्थान का शनि अर्थात जनता उच्चस्थ का होकर लग्रस्थ है अर्थात जनता अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए भ्रष्टाचार का विरोध करें। उसे ही इसके लिए शुरूआत करना होगा। हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार का विरोध करना होगा। इसके लिए शुरूआत उसे अपने घर से करना होगा कि अगर कोई महिला अपने पति के भ्रष्ट तरीके से कमाये हुए धन को स्थान ही ना दे और अपने पड़ोसियों के सामथ्र्य से अधिक विलासिता से प्रेरित ना हो तो उसके  घर में भ्रष्टाचार का अंत होगा। यदि एक व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए भ्रष्टाचार का विरोध करें और बिना भ्रष्टाचार के कार्य को समर्थन करे तो ये तरीका है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार कर रहे लोगो का सामूहिक विरोध होना चाहिए और अपनी क्षमता से अधिक साधन सम्पन्न होने वाले लोगों को समाजिक विरोध का सामना करना चाहिए, जिससे भी भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। इसके लिए जनता को ही प्रयास करना होगा। हर उस छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जगह जहॉ पर भी अंतरविरोध दिखाई दे चाहे वह दूध में पानी मिलाने से लेकर मुफ्त में चावल लेना हो या फिर अपने किसी पद के चयन के लिए मोटी रकम से लेकर भौतिकता का सामान जुटाने के लिए। इस प्रकार सभी का विरोध जनता करने में सक्षम है। किंतु याद रहे यह कार्य सभी को करना होगा तभी वृश्चिक के शनि और कर्कगत बृहस्पति अपना प्रभाव दिखा पायेंगे। इसके लिए जनता को नेता या अधिकारियों को कोसने से पहले अपने हिस्से का भ्रष्टाचार रोकना होगा। शुरूआत जरूर कठिन हो सकती है किंतु लोगो का साथ लेकर इसे करना असंभव नहीं है इसका उदाहरण हमने दिल्ली के रामलीला मैदान या केजरीवाल विरूद्ध नरेंद्र मोदी के तौर पर देख ही चुके हैं। किंतु इसके लिए अपने सभी हथियार जैसे राईट टू रिजेक्ट से लेकर नोटा और अपने घरेलू भ्रष्ट धन के आगमन से लेकर पड़ोसी के शानओशौकत तक पर विरोध द्वारा कर सकते हैं।



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