Monday, 13 April 2015

नामकरण संस्कार


शिशु जन्म के दसवें या बारहवें दिन बच्चे का नाम रखा जाता है, इसे नामकरण संस्कार कहते हैं। इस संस्कार के समय माता, बालक को शुद्ध वस्र से ढंक कर एवं उसके सिर को जल से गीला कर पिता की गोद में देती है। इसके पश्चात् प्रजापति, तिथि, नक्षत्र तथा उनके देवताओं, अग्नि तथा सोम की आहुतियाँ दी जाती हैं। तत्पश्चात् पिता शिशु के दाहिने कान की ओर झुकता हुआ उसके नाम का उच्चारण करता है।
ऐतिहासिक परिपे्रक्ष्य: हिंदू संस्कारों का शुभारंभ नामकरण संस्कार से ही होता है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसका सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में पाया जाता है, इनमें इसके संबंध में जो विवरण पाया जाता है, उसके अनुसार शिशु का पिता जननाशौच काल के व्यतीत होने पर अगले दिन प्रात: काल स्नानादि करके तीन ब्राह्मणों को भोजन कराकर वर्ण तथा लिंग के अनुसार शिशु के नाम का चयन कर उसे रख लेता था।
प्रसवाशौच: नामकरण संस्कार के संदर्भ में गृह्यसूत्रों में प्राप्त संक्षिप्त विवरणों से व्यक्त है कि इससे संबद्ध अनेक आनुष्ठानिक तत्वों का विकास का मात्र उद्देश्य था, प्रसवजन्य अशौच की शुद्धि तथा शिशु को लोकव्यवहार के लिए एक व्यक्तिगत नाम देना। इससे संबद्ध वैदिक मंत्रों का प्रयोग भी सर्वप्रथम गोभिल में ही पाया जाता है। इसकी समयावधि के विषय में मनु दसवें के अतिरिक्त बारहवें अथवा अन्य किसी भी शुभ दिन में इसे किये जाने का विधान करते हैं, पर साथ- ही यह भी उल्लेखनीय है कि अधिकतर गृह्यसूत्रों में ग्यारहवें दिन को ही इसके लिए अधिक उपयुक्त माना गया है।
नामचयन: नवजात शिशु के नामचयन के संदर्भ में वैदिक तथा वैदिकोत्तर साहित्य में अनेक प्रकार का वैविध्य पाया जाता है, पर भाष्य करते हुए सायण ने वैदिक काल में चार प्रकार के नामों के प्रचलन का उल्लेख किया है, जो कि इस प्रकार हुआ करते थे -
(1) शिशु के जन्म के नक्षत्र पर आधारित- नक्षत्र नाम, (2) जातकर्म के समय माता पिता के द्वारा रखा गया- गुप्त नाम, (3) नामकरण संस्कार के समय रखा गया- व्यावहारिक नाम, (4) यज्ञकर्म विशेष के संपादन के आधार पर रखा जाने वाला - याज्ञिक नाम।
किसी बालक या बालिका का नामकरण बच्चे के जन्म नक्षत्र एवं उसके चरनानुसार रखने की परिपाटी भारत-वर्ष में रही है । नक्षत्रों के चरण भी हिंदी वर्णमाला के अनुसार ही अभिव्यक्त किये जाते हैं , अर्थात नक्षत्र के जिस चरण पर बच्चे का जन्म होगा, उसी के अनुसार उसका नाम रखा जाता है ।
नामकरण संस्कार की आनुष्ठानिक प्रक्रिया: जन्म नक्षत्र के अनुसार शिशु का नाम का चयन कर, उसे एक कांसे की थाली या काष्ट पट्टिका पर केसर युक्त चंदन से अथवा रोली से लिखकर उसे एक नूतन वस्र खण्ड से आच्छादित कर देते हैं। कर्मकाण्ड की आनुष्ठानिक औपचारिकताओं को पूरा करने के उपरांत पुरोहित एक श्वेत वस्र खण्ड पर कुंकुम या रोली से शिशु के जन्मनक्षत्रानुरुप नाम के साथ उसके कुलदेवता, जन्ममास से संबद्ध दो अन्य नाम तथा साथ में माता- पिता द्वारा सुझाया गया स्वचयित व्यावहारिक नाम लिखता है। उसे एक शंख में आवेष्टित कर शिशु के कान के पास ले जाकर पिता, माता तथा पारिवारिक वृद्ध जनों के द्वारा इन नामों को अमुक शर्मा / वर्मासि दीर्घायुर्भव कह कर बारी- बारी से उच्चारित किया जाता है।
कई पद्धतियों में जातकर्म के स्थान पर नामकर्म के समय पर शिशु की वाणी में माधुर्य का आधार किये जाने के उद्देश्य से मधुप्राशन कराया जाता है। श्वेत को पवित्रता एवं निर्विकारता का प्रतीक माने जाने के कारण इसके लिए चाँदी के चम्मच का प्रयोग किया जाता है। कतिपय संस्कार पद्धतियों में नामकर्म संबंधी सारी क्रियाओं की समाप्ति पर आचार्य द्वारा शिशु को गोदी में लेकर उसके कान में निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करने तथा अन्य में आचार्य तथा अन्य सभी अभिभावकों के द्वारा उसे हे बाल ! त्वमायुष्मान, वर्चस्वी, तेजस्वी श्रीमान् भूय: कह कर आशीर्वाद देने का भी विधान पाया जाता है। इस प्रकार नामकरण संस्कार के माध्यम से शिशु को समाज से और समाज को शिशु से परिचय कराया जाता है इसलिए शिशु को एक संबोधन शब्द दिया जाता है। तात्पर्य है कि हम शिशु का जो भी नाम रखें उस नाम का गुण, कर्म, विशेषता बताकर उसी अनुरूप जीवन जीने की प्रेरणा देकर, हम बच्चे को जैसा चाहते हैं, उसी अनुरूप बना सकते हैं, ढाल सकते हैं। नाम की विशेषता को उसके जीवन का साँचा बना सकते हैं, और उस साँचे से एक महामानव, देवमानव बना सकते हैं। यथा नाम तथा गुण होता है। इसलिए शिशु को अच्छा नाम देना चाहिए ताकि जीवन भर उसे भाव ऊर्जा मिलती रहे।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in

No comments: