श्रवण - हिन्दू पंचांग का पांचवा माह श्रावण होता है। ज्योतिष के अनुसार इस मास के दौरान या पूर्णिमा के दिन आकाश में श्रवण नक्षत्र का योग बनता है इसलिए श्रवण नक्षत्र के नाम से इस माह का नाम श्रावण हुआ। इस माह से चातुर्मास की शुरुआत होती है। यह माह चातुर्मास के चार महीनों में बहुत शुभ माह माना जाता है। चातुर्मास धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। धर्म शास्त्रों में सावन में भगवान शिव की आराधना का महत्व अधिक बताया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार ऋषि मार्कण्डेय ने लंबी उम्र के लिए शिव की प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में कठिन तप किया, जिसके प्रभाव से मृत्यु के देवता यमराज भी पराजित हो गए। यह भी मान्यता है कि सावन में शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई अमरत्व कथा सुनाने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है कि सावन में शिव आराधना का विशेष महत्व है। भगवान शिव पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं। भगवान शिव सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं। महाशिवरात्रि पर्व भगवान शिवशंकर के प्रदोष तांडव नृत्य का महापर्व है। शिव प्रलय के पालनहार हैं और प्रलय के गर्भ में ही प्राणी का अंतिम कल्याण सन्निहित है। शिव शब्द का अर्थ है कल्याण और रा दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बना है, तात्पर्य यह कि जो सुख प्रदान करती है, वह रात्रि है।
शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्याख्याम्
इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। शिवरात्रि, जो फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को है, उसमें शिव पूजा, उपवास और रात्रि जागरण का प्रावधान है। इस महारात्रि को शिव की पूजा करना सचमुच एक महाव्रत है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, पूजा, उपवास एवं व्रत नहीं रखता, वह सांसारिक माया, मोह एवं आवागमन के बँधन से हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। यह भी कहा गया है कि जो शिवरात्रि पर जागरण करता है, उपवास रखता है और कहीं भी किसी भी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बँधन से मुक्ति पा जाता है। शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है।
धार्मिक दृष्टि से गुरू यानि बृहस्पति को देवो का गुरू माना जाता है। ज्योतिष विज्ञान में गुरू को व्यक्ति के भाग्य का निर्णायक माना जाता है अत: गुरूवार के व्रत का बहुत महत्व है। सावन मास में गुरूवार व्रत में बृहस्पतेश्वर महादेव की उपासना की जाती है। जिनकी भी कुंडली में गुरू राहु से पीडि़त होकर विपरीत कारक हो, उन्हें बृहस्पतेष्वर महादेव की उपासना करने से लाभ प्राप्त होता है। जिन भी जातक के जीवन में विद्या तथा धन संबंधी कष्ट दिखाई दे, उसे बृहस्पतेश्वर महादेव की इस पूजा को जरूर करना चाहिए। बृहस्पतेश्वर महादेव की पूजा के लिए प्रात:काल स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर ब्रम्ह मूर्हुत में पूजन का विधान है, जिसमें बृहस्पति की प्रतिमा या बेसन से शिवलिंग बनाकर किसी पात्र में रखकर पीले वस्त्र, पीले फूल, चमेली के फूलों की माला अक्षत आदि से पूजन करें। पंचोपचार पूजा कर पीले फलों का भोग लगायें तथा दूध में केषर डालकर उॅ बृहस्पतेश्वराय नम: का जाप करते हुए रूद्राभिषेक करें। इसके उपरांत आरती आदि के बाद यथा संभव ब्रहम्णों को दान तथा भोज कराने के उपरंात चने या बेसन से बने मीठे खाद्य ग्रहण करें। श्रावण मास में किये गए बृहस्पतेष्वर महादेव के पूजन से गुरू ग्रहों के दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है तथा जीवन में आ रही विद्या तथा धन संबंधी कष्टों से राहत मिल सकती है।
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