Saturday, 11 April 2015

मंगल दोष क्या है और क्यों

  
ज्योतिष के अनुसार 1,2,4,7,8,12 भाव में मंगल की उपस्थिति मंगल-दोष कही जाती है, जो कि विवाह हेतु कुंडली मिलान में एक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में ये दोष दिखे तो, उसके विवाह में विलम्ब, परम्परा और ग्रह जन्य बाधा के कारण तय हैं। ये तथ्य कम से कम भारत में तो मान्य हैं ही, मगर समझने कि बात है कि क्या मंगल केवल पार्थक्य देते हंै? क्या मंगल केवल अमंगल देते हैं? आइये इनकी जांच करें, तथ्यों के आधार पर। पूरे हिन्दुस्तान की आबादी मान लें 120 करोड़ है जिसकी 80 प्रतिशत जनता गांव में रहती है, जहां पर तथा-कथित विद्वान ज्योतिषी गण कम हैं। केवल नामों को आधार मानकर ही जहां शादियां तय की जाती हैं। अब कुंडली के बारह भाव में से पांच भाव 1,4,7,8,12,पर मंगल होने से मंगल-दोष होता है। इस तथ्य को पक्का मानलें तब लगभग 33.33 प्रतिशत लोग मांगलिक होते हैं, मतलब ये वे लोग हैं जिनको मंगल है, पर इनके विवाह में मंगल का ध्यान नहीं रखा जाता। मतलब क्या 33.33 प्रतिशत लोग वैवाहिक तनाव या पार्थक्य के शिकार होते ही हैं?
नहीं, मतलब मंगल दोषों से भयभीत होने कि आवश्यकता नहीं है। हालांकि माना जाता है कि मंगल ग्रह को क्रोध, अग्नि, झगड़ा, विवाद , शौर्य, घमंड आदि का कारक ग्रह माना जाता है (पत्रिका मिलान में सदा मंगल के नकारात्मक गुण ही ध्यान में रखे जाते हैं अत: यहाँ नकारात्मक गुणों का ही उल्लेख किया है )।
सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने वाले हैं, मंगल की उपस्थिति को बिना सम्पूर्ण पत्रिका की विवेचना किये अभाग्य-वैधव्य आदि से जोड़ देना कदापि उचित नहीं है और यदि ऐसी नियति हो, तो क्या हम भाग्य को बदलने में सक्षम हैं ?
ज्योतिष में देश काल के अनुसार अध्ययन-फलादेश प्रथम पाठ है, आज बदली हुई परिस्तिथियाँ व समय के अनुसार हम मंगल की 1,2,4,7,8,12 भाव में उपस्थिति की कुछ इस प्रकार विवेचना कर सकते हैं। प्रथम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक को अहंकारी , क्रोधी स्वभाव दे सकती है। द्वितीय भाव परिवार भाव है, मंगल प्रदत्त अवगुण पारिवारिक सुख में बाधा दे सकता है। चतुर्थ भाव, जातक की अंतरात्मा का सूचक है, यहाँ मंगल की उपस्थिति यदि मंगल के अवगुण प्रदान करे तो घर में अशांति होगी। सप्तम भाव विवाह का सूचक जया भाव है, सप्तम भाव में मंगल की उपस्थिति जातक की लग्न व सप्तम भाव दोनों को प्रभावित करती है। जातक में जीवन साथी पर प्रभुत्व रखने, शासन करने की प्रवृति हो सकती है। अष्टम व द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति जातक के लिए क्रोध व चरित्र हीनता का कारण बन सकती है। सर्वविदित है कि उपरोक्त अवगुण पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में अवरोध उत्पन्न करने वाले हंै, तो आज के समय में क्यों न, डराने, भ्रम फैलाने के स्थान पर ज्योतिषी सकारात्मक सलाह दे कर, जातक को सावधान करें, वर-वधु के विवाह से पूर्व मंगल शांति हेतु कुम्भ विवाह/अर्क विवाह करा लेना चाहिए। इसी से इन कष्टों कि निवृति होती है और स्वभाव आदि में सुधार की सलाह दें, जिससे कि जातक नकारात्मक जीवन शैली से निकल कर सकारात्मक व व्यावहारिक विचारपूर्ण हो एवं जीवन को सरल-सुखद बना सके।



Pt.P.S Tripathi
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