Monday, 13 April 2015

सरकार को उठाने ही होंगे कठोर कदम



वर्ष 2014 के शुरुआत से ही वरन 2013के मध्य से ही राजनीति के सरोकार हिन्दुस्तान में बदलते दिखाई दिए आप सभी सोचते होंगे क्यों? हमने भी इस प्रश्न की पड़ताल की... असल में हिन्दुस्तान की राजनीति में 68 वर्षों चली आ रही, भर्रा शाही के चलते देश को बहुत अव्यवस्था झेलनी पड़ी। नीतियां बनी पर व्यवहार में असफल रही, कानून जो थे पुराने और अप्रासंगिक हो गए, व्यवस्था चरमरा गयी, नेताओं ने समाज तथा देश हित में जो कठोर कदम उठाने थे नहीं उठाए। केवल तुष्टिकरण से काम चला लिया जिसका परिणाम देश के अंदर अव्यवस्था फैली। वो भी इस कदर कि जरुरी निर्णय भी राजनैतिक हानि के वजह से नहीं लिए गए। ज्यादातर नेता कमजोर और भीरु हुए, सारे निर्णय नफा-नुकसान के गणित से प्रभावित रहे। यही समय था कि देश के अंदर भयंकर असंतोष पनपने लगा, यहाँ तक की चाय के विज्ञापन में खुले तौर कहा गया ''कि देश उबल रहा है मगर लोगों ने ध्यान नहीं दिया। ऐसा प्रतीत होता है की देश के स्वतन्त्रता के समय का लग्नस्थ 'राहु देश की व्यवस्था को घुन लगा गया। लोग आये, चले गए पर नीतियों के केंद्र में नफा नुकसान का गणित बढ़ता गया। देश की स्वतंत्रता के समय का जन्म लग्न वृषभ और राशि कर्क हुई। देश में ग्रहों के अनुसार छोटे परिवर्तन तो बहुत बार आये परन्तु किसी भी परिवर्तन को गंभीर सामाजिक निर्देश मानकर नेता तथा ब्यूरोक्रेट अपने को बदलने को तैयार नहीं थे।
यहाँ तक नेता और ब्यूरोक्रेट इतने उद्दंड हो गए की वो शक्ति तथा अधिकार का दुरूपयोग कर लाभ लेते और दमन करते रहे। मगर जब तुला के शनि आये और चौथे राहु से आक्रांत हुए। जिसके प्रभाव से देश में बढ़े घोटाले उजागर हुए, हालाँकि तब तक कुछ बड़े महत्वपूर्ण कानून पास हो चुके थे इसी के कारण ऐसा संभव हो सका।
जनता इन हरकतों से आजि़ज आ चुकी थी अन्तत: अगस्त 2012 में पहले रामदेव और फिर अन्ना ने आंदोलन किया। चुंकि शनि राहु से आक्रांत था इस लिए नेताओं को क्या करना नहीं सुझा। और वे इस आंदोलन को कुचलने में लग गए। यही भूल हुई उन्होंने समझा की सब ठीक हो गया है परन्तु बहुत कुछ बदल चुका था। देश संगठित हो चुका था परिवर्तन के लिए, व्यवस्था चरमरा गयी थी। परिणाम सत्ता बदल गई। याद रहे सत्ता बदलने के बाद भी राजनैतिक बिरसे की कमी थी। और फिर आ गए गुरु महराज कर्क राशि में, यहीं से एक दूसरा परिवर्तन शुरू हुआ, सारे वही आरोप सरकार पर लगे जो पूर्व की सरकार पर लगे, क्यों की एक तरफ ऊच्च के गुरु थे और दूसरी तरफ उच्च के शनि। परिणाम उपचुनाव में सत्ता की पराजय। मगर एक अच्छी बात कि उच्च के गुरु ऊंचे मानदंड समाज में स्थापित करेंगे ही। अत: सत्ता ने इसे स्वीकारा और आने वाले समय में इसका परिणाम भी दिखाई देगा। बड़ा प्रश्न, क्या देश इस परिस्थिति से उबर पायेगा? जवाब है हाँ, बशर्ते कि सभी की सक्रियता लोकतंत्र में हो। और अब ये बात सरकार को भी मालूम है कि जो हो चुका वो हो चुका, पर अब ऐसा नहीं चलने वाला। राजनीति और ब्यूरोक्रेसी को जवाबदेही तय करनी होगी। तभी हम कह सकेंगे कि अच्छे दिन आने वाले हैं। देश फिर से सिरमौर बनेगा। मगर रचना हमेशा ध्वंस के बाद ही शुरू होती है, तो इसके कुछ बुरे दृश्य के लिए भी देश को तैयार होना पड़ेगा। असल में आज गुरू कर्कगत एवं शनि वृश्चिकगत हैं तो सरकार को ताबड़तोड़ सुधारवादी कठोर निर्णय दिलेरी से ले लेने चाहिए वर्ना जुलाई 2014 के पश्चात जब गुरू सिंहगत होंगे, तब सरकार देर कर चुकी होगी और आज हर बदलते दिन में सरकार दबाव में आयेगी क्योंकि इस सरकार ने बड़ी जोर से परिवर्तन के नारे से सत्ता हासिल की थी। तो मीडिया, विपक्ष और जनता सभी की अपेक्षा इनसे बहुत ज्यादा है। अत: जल्दी ही सुधारवादी आर्थिक निर्णयों को जुलाई से पूर्व ले लेना चाहिए। आगे सरकार को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ सकता है।
आगे एक और संभावना है कि केंद्र सरकार को कुछ राज्यों के चुनाव तथा लोकनिकाय के आगामी चुनाव में सुधारवादी नीतियों के संभावित कुछ राजनैतिक दुष्परिणाम (नफा-नुकसान) भुगतने पड़ सकते हैं। इसके मद्देनजर सरकार, या तो इन निर्णयों से तौबा कर ले या इसे विलंबित ही कर दें। ...और कहीं ऐसा न हो जावे कि ''आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै मतलब सरकार को समय पर ही चेतना होगा और कुछ कठोर सुधारवादी निर्णय लेने ही होंगे वर्ना....।

Pt.P.S Tripathi
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