1. ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।
पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।
ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।
बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।
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2. सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
3. ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर नि:शुल्क सेवा करनी चाहिए।
4. किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
5. ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
6. गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
7. गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
8. गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। इन उपायों से होगा लाभ।
* गुरू आध्यात्मिक ज्ञान का कारक है अत: ब्राम्हण देवता, गुरू का सम्मान करे।
* वृहस्पति वार को ब्रम्ह वृहस्पताये नम: का जाप करे।
* यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरूवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरू के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
* कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।
* गुरूवार के दिन गुरू यानि देवगुरू बृहस्पति के वैदिक मंत्र जप से पेट रोग और मोटापे से पैदा हुई परेशानियों से निजात मिलती है। इनमें अपेंडिक्स, हार्निया, मोटापा, पीलिया, आंत्रशोथ, गैस की समस्या आदि प्रमुख है।
* बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
* गुरूवार के दिन देवगुरू बृहस्पति की पूजा में गंध, अक्षत, पीले फूल, पीले पकवान, पीले वस्त्र अर्पित कर इस गुरू का यह वैदिक मंत्र बोलें या किसी विद्वान ब्राह्मण से इस मंत्र के जप कराएं -
ऊँ बृहस्पतेति यदर्यो अर्हाद्युमद्विभार्ति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवसे ऋतु प्रजात तदस्मासु द्रविणं देहि चितम्।
संभव हो तो यह मंत्र जप करने या करवाने के बाद योग्य ब्राह्मण से हवन गुरू ग्रह के लिए नियत हवन सामग्री से कराना निश्चित रूप से पेट रोगों में लाभ देता है।
* गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केले का पूजन लाभ देता है।खगोलशास्त्रीय विवरण: बृहस्पति लघु ग्रहों की झुण्ड से परे है। सूर्य से इसकी दूरी 500मिलियन मील है और यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका व्यास 88,000 मील है जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 12 गुना है। यह सूर्य का एक चक्कर लगभग 12 सालों में पूरा करता है।
पौराणिक कथा: बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उनके पिता हैं महर्षि अंगीरा। महर्षि की पत्नी ने सनत कुमार से ज्ञान लेकर पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत शुरू किया। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखकर भगवान खुश हुए और उनके घर में पुत्र का जन्म हुआ। यही पुत्र बुद्धि के देवता बृहस्पति हैं।
ज्योतिषीय विवेचना: बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी है। यह कर्क राशि में 5 डिग्री उच्च का तथा मकर में 5 डिग्री नीच का होता है। इसका मूल त्रिकोण राशि धनु है। बृहस्पति ज्ञान और खुशी का दाता है। यह सौर मंडल में मंत्री की भूमिका में है। इसका रंग पीलापन लिए हुए भूरा है। बृहस्पति के इष्टदेव देवराज इंद्र हैं। यह पुल्लिंग ग्रह है। इसका तत्व आकाश है। यह ब्राह्मण वर्ण का और मुख्य रूप से सात्त्विक ग्रह है।
बृहस्पति देव का शरीर विशालकाय, आंखे शहद के रंग की और बाल भूरे हैं। ये बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। यह शरीर में मोटापा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये खजाने वाले कमरे में पाए जाते हैं। यह एक माह की अवधि को दिखाते हैं। यह मीठे स्वाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये पूर्व दिशा में सबल हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल के साथ इनका मैत्रीपूर्ण संबंध है। बुध, शुक्र के साथ इनका विरोधी संबंध है और शनि के साथ ये निष्पक्ष रहते हैं। राहु के साथ इनका संबंध मित्रवत और केतु के साथ निष्पक्ष रहता है। एक दिलचस्प बात यह है कि कोई भी ग्रह बृहस्पति को अपना विरोधी नहीं मानता जबकि बृहस्पति शुक्र और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।
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