प्रातः हर मनुष्य में अपने को बड़ा मानने की प्रवृत्ति सहज ही होती है और यह प्रवृत्ति बुरी भी नहीं है। किंतु अकसर अहं स्वयं को सही और दूसरो को गलत साबित करता है। आत्मसम्मान और स्वाभिमान के बीच बारीक रेखा होती है जिसमें अहंकार का कब समावेष होता है पता भी नहीं चलता। कोई कितना भी योग्य हो यदि वह अपनी योग्यता का स्वयं मूल्यांकन करता है तो आदर का पात्र नहीं बन पाता अतः बड़ा बनकर आदर का पात्र बनने हेतु अहंकार का त्याग जरूरी है। अहंकार का अतिरेक किसी जातक की कुंडली से देखा जा सकता है। यदि किसी जातक के लग्न, तीसरे, एकादष स्थान का स्वामी होकर सूर्य, शनि जैसे ग्रह छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाएं तो ऐसे जातक अहंकार के कारण रिष्तों में दूरी बना लेते हैं वहीं अगर इन स्थानों का स्वामी होकर गुरू जैसे ग्रह हों तो बड़प्पन कायम होता है। अतः यदि लोगों का आपके प्रति सच्चा आदर ना दिखाई दे और आदर का पात्र होते हुए भी आदर प्राप्त न कर पा रहें हो तो कुंडली का आकलन कराकर पता लगा लें कि कहीं जीवन में अहंकार का भाव प्रगाढ़ तो नहीं हो रहा। अथवा सूर्य की उपासना, अध्र्य देकर तथा सूक्ष्म जीवों के साथ असमर्थ की मदद कर अपने जीवन से अहंकार को कम कर जीवन में आदर तथा सम्मान प्राप्त किया जा सकता है।
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