Tuesday, 17 November 2015

शनि महादशा में अंतर्दशा का फल

शनि-यदि शनि उच्च राशि, स्वराशि, शुभक्षेत्री एव शुभ यहीं से युक्त और दुष्ट हो तो अपनी महादशा और अन्तर्दशा में राजयोगकारक बनता है। वर्गोंत्तपी हो तो जातक को जीवनपर्यन्त सुख और वैभव से हीन नहीं होने देता । हर प्रकार के वाहन,उच्च कोटि के आवास तथा अनेक दास-दासियां सेवा को उपलब्ध रहती है । ग्रामसभा,पालिका आदि का सदस्य बनकर प्रधान पद पा लेता है। खालों, पशुओं, तेल, कोयला, लोहा और वैज्ञानिक उपकरणों के व्यवसाय से लाभ मिलता है। अशुभ शनि की अंतर्दशा चल रही हो तो हर कार्य से विफलता मिलती है और कार्य-व्यवसाय में हानि होती है । बन्धु-बान्धवों से बैर बढता है, स्त्री-पुत्र और मृत्यु द्वारा कष्ट मिलता है । जातक में ईष्यों और द्वेष की भावना बढ जाती है, नीच जनों की संगति से लोकोपवाद, एकान्तवास करने की इच्छा बलवती हो जाती है। दशा का आदिकाल जहां अति कष्टदायक होता है वहीं दशा के अन्त में कुछ सुखानुमूति भी होती है।
बुध-शनि महादशा में उच्च राशि, स्वराशि, शुभ ग्रहयुफ्त बुध की अन्तर्दशा चले तो जातक निर्मल मति और धर्मशील हो जाता है । साधु-सन्यासियों और विद्वानो का सत्संग होता है । नौकरी में ही पद और वेतन में वृद्धि होती है । स्वास्थ्य अधिकार ठीक ही रहता है, लेकिन यदा-कदा कफ आदि से पीडा हो ही जाती है । आप्तजनों और बन्धुवर्ग का सहयोग मिलता है । रसीले व स्निग्ध पदार्थ भोजन के लिए मिलते हैं । विवेक, वृद्धि व कौशल से शत्रुओं का पराभव होता है। प्राय: शनि की अशुभ दशा से पीडित जातक सुख और शान्ति का अनुभव करते हैं ।यदि बुध अशुभ प्रभावी हो तो अपनी अंतर्दशा में जातक को शत्रु से भयभीत तथा अज्ञात पीडा से विकल रखता है । जातक इतना उद्विग्न हो जाता है कि उसे सुस्वादु भोजन और रमणीक स्थान तथा प्रेममय वातावस्पा भी रुचिकर नहीं लगता।
केतु-यदि केतु शुभ ग्रह से युक्त या दुष्ट होकर योगकाकरक ग्रह से सम्बन्ध करता हो तो शनि महादशा में अपनी अन्तर्दशा आने पर जातक को लेशमात्र ही शुभ फल देता है। जातक का कार्य-व्यवसाय शिथिल पड जाता है तथा किए गए श्रम का पारिश्रमिक बहुत थोडा मिलता है । नौकरी से पद एवं वेतनवृद्धि में विघ्न जाते है, नीव जनों का संग करता है, भोजन की व्यवस्था दूसरों पर निर्भर रहती है । अनेक रोग घेर लेते है और पूर्चार्जित धन चिकित्सा पर व्यय हो जाता है। वायु रोग, सर्वाग शूल, जिगर-तिल्ली, कुक्षिपीड़ा एवं मन्दाग्नि रोग से देहपीड़ा मिलती है। जातक पूर्व में मिले बुध अन्तर्दशा के शुभ फलों को याद करता है। निर्बल केतु की अन्तर्दशा से कुछ शुभ फल अवश्य अनुभव में आते है ।
शुक्र-शनि महादशा में उच्च राशि, स्वराशि, शुभ ग्रहयुक्त व दृष्ट एव केन्द्र व त्रिकोण में स्थित शुक्र की अंतर्दशा हो तो जातक के व्यवसाय में वृद्धि होती है तथा प्रचुर धन कमाता है। नौकरी में हो तो पदवृस्जि होती है। कलाकार, नाटककार, अपनी कला के माध्यम से धन और मान अजित कर लेते है। उच्चधिकारियों का प्रिय बन उनके ह्रदय में अपना स्थान बना लेता है, किसी नवविवाहिता से प्रेम-प्रसंग बन सकता है, ग्राम-समाज में अवस्था एव स्थिति के अनुरूप आदर-सत्कार प्राप्त होता है। अशुभ शुक की अन्तर्दशा में जातक से कामवासना अत्यधिक बढ़ जाती है, पस्त्रीगमन, वेश्यागमन, रेस, सट्टा, लाटरी आदि में संचित धन व्यय कर दरिद्र हो जाता है । खाने के भी लाले पड़ जाते है । यहा तक कि अपनी क्षुघापूर्ति के लिए भिक्षा का सहारा लेता है ।
सूर्य-शनि महादशा में उच्च राशि, स्वराशि, षडवलयुक्त सूर्य की अंतर्दशा चले तो जातक वैभवपूर्ण जीवनयापन के साधन जुटा लेता है । धन-धान्य की वृद्धि और वाहन, वस्त्रालंकार तथा पशुधन प्राप्त होता है। भाषाविद इस दशाकाल में निश्चित रूप में मान-सम्मान एव धनार्जन कर लेते है । शनि और सूर्य परस्पर नैसर्गिक शत्रु हैं, इसलिए अशुभ सूर्य की दशा में जातक को घोर कष्ट सहन करने होते हैं । कठिन परिश्रम करने वाले विद्यार्थी कठिनता से उत्तीर्ण होने योग्य अंक प्राप्त कर पाते हैं, अन्यथा अनुत्तीर्ण ही होना पड़ता है। व्यर्थ में लोगों से झगडा होता है, पिता से अनबन और पैतृक सम्पत्ति से वंचित होने से मन सन्तप्त होता है । काला ज्वर एवं मन्दाग्नि रोग से पीडा मिलती है ।
चन्द्रमा-शनि महादशा में उच्च राशि, स्वराशि, शुभ ग्रहों विशेषत: बृहस्पति से दुष्ट या बृहस्पति से केद्रस्थ बली चन्द्रमा की अंतर्दशा चलती है तो जातक को आरोग्य लाभ मिलता ,है सौभाग्य में वृद्धि होती है। प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण हो उच्च पद या लेता है, माता का विशेष और पिता का स्वल्प सुख मिलता है । स्त्री और स्थान का सुख मिलता है एव इनके कारण यश में वृद्धि होती है । सन्तानोत्पत्ति का उत्सव धूमधाम से मनाकर लाभ अर्जित करता है। अशुभ और क्षीण चन्द्रमा की दशा में स्त्री-पुत्र से कलह होती है, बन्धुबर्ग एव इष्ट-मित्रों से अनबन, वासनाजनित कर्मों के कारण लोकोपवाद एव सम्मान की हानि होती है। मानव को अपना जीवन भार लगने लगता है । कुसंगति के कारण शुकक्षय, मधुमेह, स्वप्नदोष, वात के कारण गर्दन में जकडन से पीडा तथा शीत ज्वर आदि व्याधिया देह को कृशकाय बना देती हैं ।
मंगल-यदि मंगल कारक, उच्चादि बल एवं शुभ ग्रह से युक्त एव दृष्ट हो तो अपनी अन्तर्दशा के आरम्भ में शुभ फल देता है । सैन्य और पुलिसकर्मी इस दशाकाल में लाभान्वित होते है । पदोन्नति मिलती है, घोषित संशोधित वेतन का पिछला पैसा मिल जाता है । कृषि कार्य, भ्रातृवर्ग से ताभ जिता है। नए-नए उद्योग लगाकर व्यापार में वृद्धि कर लेता है। बुद्धि भ्रममय और क्रोघावेगपूर्ण हो जाती है और किए गए कार्यो में सफलता सन्देहास्पद रहती है। जब पाल अशुभ, नीव या अस्त हो तो मन में विकलता बनी रहती है, कार्य-व्यवसाय में अवनति, राज-सम्मान से अपमान और निरादर होता है । लोगों से व्यर्थ में झगड़ा-टंटे होते है, न्यायालय में चल रहे केसों में हार होती है, पदोन्नति होते-होते रुक जाती है। रक्तविकार, रक्तचाप और भगंदर आदि से पीडा क्या विद्युत व विमान दुर्घटना में चोट लगती है। कोई-न-कोई रोग-व्याधि जातक को घेरे रहती है।
राहु-यदि शनि की महादशा में राहु की उपदशा चल रही हो तो मिश्रित फल प्राप्त होते है । जातक को आकस्मिक रूप से धन लाभ होता है । सट्टा, लाटरी, घूतकीड़ा से लाभ होता है । देव-बाह्मण के प्रति जातक थोड़ी श्रद्धा रखता है तथा दान-धर्म की राह पर चलता है |अशुभ राहु की अन्तर्दशा में अनेक कष्ट झेलने पड़ते है। कार्य-व्यवसाय समाप्तप्राय हो जाता है, वात वेदना से सर्वाग शूल होता है और जातक ऐसे जीवन की अपेक्षा मृत्यु को अच्छा समझता है। मन की व्यथा के कारण इधर-उधर भटकता है कुपथ्य के कारण मन्दाग्नि और अपच जैसे रोग हो जाते हैं, जो अनेक व्याधियों के जनक बन जातक को सराय देते है। सारांश यह है कि इस दशा में जातक एक दृष्ट से छुटकारा नहीं पाता कि दूसरा प्रारम्भ हो जाता है।
बृहस्पति-शुभ बृहस्पति की अंतर्दशा आने पर जातक राहु की अंतर्दशा के दुखों को विस्मृत कर सुख की सास लेता है। जातक की वृति धार्मिक और सत्कर्मो की ओर तथा, बुद्धि सात्विक बनती है। वह तन्त्र सरीखे गूढ़ विषय का ज्ञान प्राप्त करता है अथवा उसके प्रति आकर्षित होता है। पुत्राथी को पुत्र, धनार्थी को धन व ज्ञानार्थी को ज्ञान प्राप्त हो जाता है। घर में अनेक मंगल कार्य सम्पन्न होते है । जातक सत्कर्मी होकर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है। पापी, बलहीन, अशुभ प्रमापी बृहस्पति की अन्तर्दशा में सन्तानबाधा, पत्नी से वियोग, स्थानभ्रष्टता, पदभ्रष्टता आदि फल मिलते हैं । किसी प्रियजन की मृत्यु के समाचार से मन को सन्ताप, कर्म हानि, विदेशवास तथा कोढ़ और चमड़ी के रोगों से देहपीड़ा मिलती है ।
Pt.P.S.Tripathi
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