Thursday, 19 November 2015

चन्द्र महादशा व अन्तर्दशा में प्रत्यंतर दशा फल

चन्द्रमा-यदि चन्द्रमा पूर्ण बली एवं शुभ अवस्था का हो तो अपनी दशान्तर्दशा में शुभ फल ही देता है। जातक को राज्य से मान-सम्मान एवं धन की प्राप्ति होती है, नए-नए मित्रों से, विशेषत: रित्रयों के साय संपर्क बनते हैं । कलापूर्ण कार्यों में रुचि बढ़ती है और जातक इस क्षेत्र में धन और ख्याति प्राप्त कर लेता है। अशुभ चन्द्रमा होने से आदर, अतिसार एव देह में आलस्य आदि व्याधिया घर कर लेती है।
मंगल-चंद्रन्तर्दशा में शुभ मंगल के प्रत्यन्तर काल में जातक से उत्साह की वृद्धि हो जाती है तथा उसे धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पूर्ण दाम्पत्य-सुख और सन्तति-सुख मिलता है । परिजनों एव मित्रों से सौहार्द बढ़ता है । कार्य-व्यवसाय में विशेष लाभ मिलता है। यदि मंगल अशुभ हो तो जातक को शत्रुओं से घात क्या रक्ताल्पत्ता, रक्तातिसार, रक्तपित्त आदि रोग होते हैं।
राहु-यदि चंद्रन्तर्दशा में राहु शुभ राशि एवं कारक से युक्त हो तो जातक को आकस्मिक रूप में धन लाभ होता है । शत्रुओं का पराभव कर जातक कष्टपूर्ण राहु को सुगम कर लेता है । उसे किए गए कार्यों - में सफलता मिलती है। यदि राहु अशुभ ग्रह की राशि में अशुभ ग्रह से युक्त हो तो अपनी प्रत्यन्तर्दशा में जातक की पैतृक सप्पत्ति का नाश करा देता है, उसके हृदय में व्यर्थ के भय की सृष्टि होती है और अनेक रोग घेर लेते है । इस काल में जातक दीन-हीन हो जाता है ।
बृहस्पति-यदि चन्द्रन्तर्दशा में शुभ बृहस्पति की प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो तो जातक को सद्गुरु मिलते हैं तथा उनके द्वारा उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति और अल्प-लाभ मिलता है । घर्म-कर्म के कार्यो में उसकी विशेष रुचि रहती है । सामाजिक कार्यों में भाग लेकर जातक अपने वर्ग में प्रभावशाली बन जाता है । नए-नए मित्र उसके सप्पर्क में आते है तथा उसे शासन-सत्ता से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है । यदि गुरु अशुभ हो तो मामा से वियोग तथा माता को पीडा होती है ।
शनि-चंद्रन्तर्दशा में शनि का प्रत्यन्तर आने पर जातक को आरम्भ में तो पवित्र तीर्थस्थलों के दर्शन एव स्नान का पुण्य मिलता है, परन्तु बाद में उसके प्रत्येक कार्य में
विघ्न-बाघाएं आती हैं, परिजनों के सम्बन्थ में उडेग, मन में दुख तथा कार्य-व्यवसाय में
हानि होती है । नशा करने का व्यसन तथा अन्य कई दुर्गन उसके जीवन को कष्टमय बना देते है। उदर-पीडा, मस्तिष्क-शूल तथा वात-पित्तजन्य रोग हो जाते हैं ।
बुध-चंद्रन्तर्दशा में जब बुध का प्रत्यन्तर काल आता है तो जातक को विद्या की प्राप्ति होती है, घर में मंगल-कार्य होते है तथा पुष्ट का जन्मोत्सव मनाया जाता है । उसे एव उच्व वाहन की प्राप्ति होती है तथा नौकरी में पदोन्नति मिलती है । यदि बुध अशुभ हो तो चर्म रोग से देहपीड़ा मिलती है तथा आर्थिक हानि होती है।
केतु-चद्भान्तर्दशा में केतु का प्रत्यन्तर आने पर जातक घर्म विरुद्ध आचरण करता है । किसी नए धर्म की स्थापना मेँ लगा रहकर अपने को सन्देहास्पद बना लेता है । इस दशा में उसे विषपान का भय एव दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। ऐसे में जातक के सुख का क्षय एव धन का नाश होता है क्या उसकी मृत्यु भी सम्भावित होती है ।
शुक्र-चन्तान्तर्दशा से शुक्र की प्रत्यन्तर्दशा जाने पर जातक का कार्य-व्यवसाय उन्नति को प्राप्त होता है एव उसे यन-लाभ मिलता है । प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति जातक का रुझान पप्रालपन की स्थिति तक पहुच जाता है । प्राकृतिक दृश्य देखने और कलापूर्ण एव सुन्दर वस्तुएं खरीदने से जातक धन का व्यर्थ व्यय करता है। यदि शुक अशुभ हो तो जातक को जलोदर, प्रमेह व स्वप्नदोष सादे रोग होते हैं क्या उसके विचारों में वासनावृत्ति अत्यधिक बढ़ जाती है ।
सूर्य-यदि चंद्रन्तर्दशा में सूर्य की प्रत्यन्तर्दशा हो तो जातक के शत्रुओं का पराभव, उसे सर्वत्र विजय-लाभ, अन्न-धन की प्राप्ति तथा राज-समाज में सम्मान प्राप्त होता है । उसके सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा उसे पुत्रजन्म से हर्ष होता है । यदि सूर्य अशुभ हो तो नकसीर फूटना, रक्तविकार आदि रोगों से देह-पीड़ा मिलती है।
Pt.P.S.Tripathi
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