Thursday, 19 November 2015

मंगल महादशा व अन्तर्दशा में प्रत्यंतर दशा फल

मंगल-यदि मंगलन्तर्दशा से मंगल की ही प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो तो जातक को राज्य की ओर से कष्ट और पीडा पहुंचती है। शत्रु प्रबल होकर उसे हानि पहुंचाते है । उदर विकार विशेका कज्ज हो जाने से उदर जैसी व्याधि उसके स्वास्थ्य को क्षीण कर देती है । स्वी-सुख में कमी जाती है, नेत्रों में लाती, जलन, देह से रक्तस्वाव होकर उसे अपमृत्यु का भय रहता है।
राहु-यदि मंगलान्तर्दद्रगा में राहु की प्रत्यन्तर्दशा हो तो जातक को उसके किसी कर्म के फलस्वरूप कारावास का दण्ड मिलता है । जातक विधर्मी, आपसी एव हिंसाप्रिय बन जाता है। निकृष्ट भोजन के कारण उदर रोग तथा अन्य भयंकर व्याधिया उसकी देह को क्षीण करती है | पदावनति, स्थानच्युति, शत्रु वर्ग से शस्वाघात तथा अपमृत्यु का भय भी बनता है क्या घर में कलह वनी रहती है।
बृहस्पति-यदि मंगल की अन्तर्दशा से बृहस्पति की प्रत्यंतर्दशा चले तो जातक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । वह किसी को अपने से अधिक ज्ञानवान नहीं समझता, लेकिन समाज में लोग उसे मिथ्या या ज्ञानाभिमानी और दूषित समझते हैं तथा उससे घृणा करते हैं। भाग्यहीनता यहा तक पहुच जाती है कि उसके छुने से सोना भी मिट्टी हो जाता है। ऐसे में जातक प्रवासी, रोगी क्या मानसिक कलहयुक्त हो जाता है।
शनि-मंगल एव शनि दोनों ही नैसर्गिक पापी ग्रह है, फलत: एक ही अन्तर्दशा में दूसरे की प्रत्यन्तर्दशा जाने पर प्रारम्भ में स्वल्प सुख एबं लाभ ही निलता है, अन्यथा समाज़विरोधी कार्य तथा अपराध वृति के कारण जातक को जेल यात्रा करनी पडती है, भृत्य हो तो स्वामी का नाश एव उसे घन-हानि होती है । गृह-कलह से जातक के मन को परिताप तथा वात-विकूति के कारण उसे शरीर के जोडों में दर्द से पीडा होती है ।
बुध-मंगलान्तर्दशा में बुध का प्रत्यन्तर चलने पर जातक की बुद्धि भ्रमयुक्त हो जाती है । अस्थिर मति होने से, समय पर सही निर्णय न ले पाते के कारण उसे व्यवसाय में हानि उठानी पड़ती है क्या यह दीवालिया भी हो जाता है । यर-द्वार सब बिक जाता है तथा मित्रों के यहा भोजन और निवास की व्यवस्था करनी पड़ती है । जीर्ण ज्वर, ग्रन्थियों से शोथ तथा खाज-ढाली से उसे देहपीड़ा भी मिलती है।
केतु-मंगल की अन्तर्दशा में केतु की प्रत्यन्तर्दशा आने पर जातक अत्यधिक कष्ट भोगता है । दुर्घटना में अंग-भंग होने, हड्डी टूटने क्या अकाल-मृत्यु को प्राप्त होने का मय रहता है। मलिन चित्त एवं दूषित दिवार जातक को अपने वर्ग और समाज से काट देते हैं । परास्त भोजन करना पड़ता है, लोंक्रोपवाद फैलने से उसके मन को परिताप पहुंचला है क्या आत्ममृलानि के कारपा उसे आत्मदाह करने की भी इच्छा होती है ।
शुक्र-मंग्लान्तार्दर्षा से शुक की प्रत्यन्तर्दशा आने पर जातक में कामवासना प्रबल हो जाती है । बलात्कार तक करने की उसमें इच्छा होती है । नीच जनों का संग समाज में उसकी निन्दा का कारण बनता है। किसी कुटिल व्यक्ति से धात का भय रहता है, मित्र भी शत्रु बन जाते हैं तथा स्त्री-पुत्रों में कलह होती है । अतिसार, हैजा एव अपच के होने से उसकी देह को घोर पीडा पहुंचती है।
सूर्य-मंगलान्तर्दशा में सूर्य की प्रत्यन्तर्दशा आने पर जातक को भूमि का लाभ होता है, कृषि कार्यों में धन-लाभ क्या पशुओं के क्रअंबिक्रय से धनार्जन होता है । नौकरी में पदोन्नति तथा वेतन-वृद्धि होती है, उच्चाधिकार प्राप्त लोगों का स्नेह एबं सहयोग उसकी उन्नति से सहायक रहता है । पैतृक सप्पत्ति मिलती है तथा मन में हर्ष एवं सन्तोष बढ़ता है, परन्तु स्त्री से वियोग एव देह में उष्णता बढ़ती है।
चन्द्रमा-भौमंतार्दशा में जब चन्द्रमा का प्रत्यन्तर काल आता है तो जातक को वस्त्राभूषण, मोती, मूंगा, रत्नादि का लाभ प्राप्त होता है । विशेषता दक्षिण दिशा से उसे लाभ प्राप्त होता है । किए गए प्रत्येक कार्य में उसे सफलता मिलती है तथा श्वेत वस्तुओ के व्यवसाय से विशेष धन प्राप्त होता है |माता अथवा नानी की संपत्ति मिलती है |
Pt.P.S.Tripathi
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