ज्योतिष में राहु नैसर्गिक पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु को Dragon's Head तथा North Node के नाम से भी जाना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। इनकी अपनी कोई राषि नहीं होती। अतः यह जिस राषि में होते हैं उसी राषि के स्वामी तथा भाव के अनुसार फल देते हैं। राहु केतु के साथ मिलकर कालसर्प नामक योग बनाता है जो कि एक अषुभ योग के रूप में प्रसि़द्ध है। इसी प्रकार यह विभिन्न ग्रहों के साथ एवं विभिन्न स्थानों में रहकर अलग-अलग योग बनाता है जो कि निम्न है-- अष्टलक्ष्मी योग जब राहु जन्म कुण्डली के छठे भाव में होता है और बृहस्पति केन्द्र में होता है तब इस योग का निर्माण होता है। अष्टलक्ष्मी योग से अभिप्राय है व्यक्ति सभी प्रकार के सुख साधन सम्पन्नता को प्राप्त करता है। अष्ट लक्ष्मी आठ प्रकार की लक्ष्मीेे को सूचित करती है-- (1) धन लक्ष्मी योग (2) धान्य लक्ष्मी योग (3) धैर्य लक्ष्मी योग (4) विजय लक्ष्मी योग (5) आदि लक्ष्मी योग (6) विद्या लक्ष्मी योग (7) गज लक्ष्मी योग (8) सन्तान लक्ष्मी योग जिस जातक का इस योग में जन्म होता है वह सभी तरह की सफलता (Eight fold Prosperity) को प्राप्त करता है। लेकिन इस योग के पूर्ण फल की प्राप्ति तभी सम्भव है जबकि राहु और बृहस्पति दोनों जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति में हों। कपट योग चतुर्थ भाव में जब पापी ग्रह हांे या चतुर्थ भाव के स्वामी को पापी ग्रह देखते हों या उसके साथ युति संबंध बनाते हों तब इस योग का निर्माण होता है। चतुर्थ भाव में राहु जब शनि या मंगल के साथ हो तथा चतुर्थेष भी पाप प्रभाव में हो तब कुण्डली में कपट योग का निर्माण होता है। ऐसा व्यक्ति दुष्ट स्वभाव का, धोखा देने वाला तथा स्वार्थी स्वभाव का होता है। इनका चरित्र भी संदेहास्पद होता है । श्रापित योग जब राहु शनि के साथ एक ही राषि में होता है तो इस योग का निर्माण होता है। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार शनि पर राहु का दृष्टि प्रभाव भी इस योग का निर्माण करता है। इस योग में जातक की कुंडली पूर्व जन्म के कारण श्रापित ;ब्नतेमक भ्वतवेबवचमद्ध हो जाती है जिसके कारण व्यक्ति को इस जन्म में मानसिक, आर्थिक, शारीरिक परेषानियों तथा साथ ही विवाह में परेषानियां, संतति प्राप्ति में परेषानियाँ हो सकती हैं। चांडाल योग गुरु और राहु की युति से इस योग का निर्माण होता है। यह एक अषुभ योग है। यह योग जिस जातक की कुंडली में निर्मित होता है उसे राहु के पाप प्रभाव को भोगना पडता है। इस योग की स्थिति में जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पडता है, नीच कर्मों के प्रति झुकाव रहता है तथा ईष्वर के प्रति आस्था का अभाव रहता है। कालसर्प योग जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में स्थित होते हैं तो इस योग का निर्माण होता है। कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव नहीं पड़ता। राहु तथा केतु किस भाव में है तथा कौन सी राषि में है और अन्य ग्रह कहाँ-कहाँ बैठे हैं, और उनका बलाबल कितना है ये सभी बिंदु कालसर्प योग के फल को प्रभावित करते हैं। जिस जातक की कुंडली में राहु दोष या कालसर्प योग होता है उसे साधारणतया सपने में सर्प दिखायी देते हैं, पानी में डूबना, उँचाई से गिरना आदि घटनाएं हो सकती हैं। ग्रहण योग जब जन्म कुण्डली में सूर्य या चन्द्रमा की युति राहु से होती है तो ग्रहण योग बनता है। इस छाया ग्रह की युति सूर्य के साथ होने से सूर्य ग्रहण तथा चन्द्रमा के साथ होने से चन्द्र ग्रहण बनता है जिसका प्रभाव व्यक्ति विषेष के जीवन पर पड़ता है।
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