जन्मांग में आपका धन एवं आमदनी का साधन पुर्नजन्म एवं कर्म फल का सिंद्धांत अकाट्य है, जन्मांग से यही परिलक्षित होता है। जन्मलग्न, सूर्य लग्न और चंद्र लग्न से श्रेष्ठ भाव फल की प्राप्ति धनागम को सुनिश्चित करतीहै। किस योग से किस जन्म लग्न में और किन ग्रहों से धन प्राप्त होता है,जानने के लिए पढ़िए यह लेख। सनातन धर्म संस्कृति में पुनर्जन्मऔर कर्मफल योग का सिद्धांतसर्वमान्य है।हर प्राणी पूर्व जन्मार्जित कर्म फलभोग के लिये निश्चित लग्न एवं ग्रहयोग में भूतल पर जन्म लेता है। पापकर्म एवं दुष्कर्म यदि पूर्व जन्म में कियेगये हों तो वर्तमान जीवन अभावों एवंकष्टों में बीतता है।ज्योतिष विज्ञान में धन एवंकर्म-व्यवसाय के लिए जन्म कुंडलीका द्वितीय भाव, नवम भाव, दशम एवंएकादश भाव ही आधार है। व्यवसायव्यापार का लाभ भाव एवं स्थिरताआदि का विचार सप्तम भाव से होताहै।द्वितीय भाव में शुभ ग्रह तथा द्वितीयेशकेंद्रस्थ हो या एकादश भाव में होऔर मित्र क्षेत्री, उच्च क्षेत्री, या स्वराशिका हो तो धन लाभ खूब होता है।द्वितीय भावस्थ राहु या केतु धनागममें बाधायें पैदा करते हैं। दशम भावका विचार जन्म लग्न, सूर्य लग्न एवंचंद्र लग्न से करें। इन तीनों लग्नों मेंजो लग्न बली हो उससे दशम भावविचारें। कुंडली में सर्वाधिक बलयुक्तग्रह भी आजीविका को प्रभावित करताहै। दशम भाव की राशि का तत्व भीआजीविका एवं धन मार्ग निर्धारित करताहै। मेष, सिंह, धनु अग्नि तत्व राशियांहै। इनमें से कोई भी राशि दशम भावकी हो तो जातक का कार्यक्षेत्र अग्निकार्य, धातु कार्य, बिजली, सेना यापुलिस होता है। वृष, कन्या, मकरपृथ्वी तत्व राशियां हैं। मिथुन, तुला,कुंभ वायु तत्व राशियां हैं। कर्क,वृश्चिक, मीन जल तत्व राशियां हैं। शम भाव में पृथ्वी तत्व राशि होने परजातक का कार्य क्षेत्र कृषि, बागवानी,फल-फूल व्यवसाय एवं वस्त्र व्यवसायहोता है। वायु तत्व राशि होने से व्यक्तिअध्यापक, वक्ता, ज्योतिषी, वकील आदिबनता है। जल तत्व राशि होने सेशीतल पेय पदार्थ, नाव, जलयान, जलसेना या जलीय पदार्थों से धन लाभहोता है।यदि कुंडली में अधिकांश ग्रह चरराशियों (मेष, कर्क, तुला, मकर) मेंस्थित हों तो जातक स्वतंत्र व्यवसायमें या राजनीति में कुशल होकर धनकमाता है। वृष, सिंह, कुंभ, वृश्चिकस्थिर राशियों में सर्वाधिक ग्रह होनेपर जातक सफल व्यवसायी,चिकित्सक या शासकीय नौकरी पाताहै। धनु, मीन, मिथुन, कन्या द्विस्वभावराशियां हैं। इनमें अधिक ग्रह होने परजातक सरकारी नौकरी, कमीशनएजेंसी, शिक्षा व्यवसाय या शासकीयशिक्षक आदि बन जाता है।जैसा कि ऊपर कहा गया है कि धनव्यवसाय के मामले में लग्न से, चंद्रलग्न से एवं सूर्य लग्न से दशम भावविचारणीय है। क्योंकि लग्न से दशमभाव जातक के उस कार्य का बोधकराता है जिसमें शारीरिक श्रम प्रमुख होता है। चंद्रमा से दशम भाव उसकार्य का बोध कराता है जिसमें मनुष्यकी मानसिक शक्ति का सर्वाधिकउपयोग होता है। सूर्य से दशम भावउस कार्य का बोध कराता है जिसमेंशारीरिक श्रम प्रमुख है। लग्न से दशममें कोई भी ग्रह व्यक्ति को कुशल एवंअपने कुल में प्रगतिशील बनाता है।यदि तीनों लग्नों से दशम में कोई ग्रहनहीं तो दशम भाव की नवमांश राशिसे व्यवसाय का विचार किया जाताहै। यदि सूर्य दशम भाव में है यादशम भाव की नवांश राशि का स्वामीहै तो जातक को पैतृक संपत्ति आसानीसे मिल जाती है। व्यवसाय में सरकारीनौकरी, ठेकेदारी, डॉक्टरी, सोने-चांदीका व्यवसाय, वस्त्र व्यवसाय आदि सेधन लाभ कमाता है। ज्योतिष ग्रंथों केअनुसार दिवार्ध या निशार्ध के बीचकी ढाई घड़ी में जो जातक पैदा होतेहैं, वे राजयोग लेकर पैदा होते है।कारण दिवार्ध में जन्म होने पर सूर्यदशम भाव में आयेगा तथा निशार्ध केबीच की ढाई घड़ी के मध्य जन्म होनेपर सूर्य चतुर्थ भाव में होगा।दशम भाव का चंद्रमा जातक को मातासे धन लाभ कराता है। जातक कोकृषि कार्य से, जलीय पदार्थों से तथावस्त्रों की दुकानदारी से लाभ कराताहै। दशम भाव स्थित मंगल अथवादशम भाव का नवमांशेश मंगल हो तोजातक शत्रुओं से अर्थात् शत्रुओं परविजय पाकर धन लाभ लेता है। खनिजपदार्थ का व्यवसाय, अतिशबाजी,आग्नेयास्त्र, सेना, पुलिस, बिजलीविभाग, पहलवानी, शारीरिक कलायें,इंजीनियरिंग, फौजदारी वकालत आदिसे धन कमाता है। बुध जातक कोमित्रों से धन लाभ कराता है। कवि,लेखक, ज्योतिषी, प्रवचनकर्ता, गणितज्ञ, शिल्पज्ञ एवं चित्रकार बना कर धनलाभ कराता है। गुरु भाई से धन लाभदेता है। पंडित, पुजारी, धर्मोपदेशक,धार्मिक संस्था, प्रधान न्यायाधीश आदिबनाकर जीविका देना गुरु का कामहै। गुरु शिक्षा से भी जोड़ता है। शुक्रहोने पर धनी महिलाओं से धन लाभपाता है। शृंगार प्रसाधन, इत्र फुलेलव्यवसाय, होटल, रेस्टारेंट, दुग्ध पदार्थोंके व्यवसाय, अभिनय, फल-फूल, वस्त्रआदि से धन लाभ देता है।उपरोक्तानुसार शनि सेवकों से धनलाभ कराता है अर्थात अन्त्यज जातिगतलोगों से, उनकी सेवा से धन लाभदेता है। काष्ठ व्यवसाय, पत्थरव्यवसाय, मजदूरों का मालिक, ठेकेदार,अदालती कार्यों से व्यवसाय व रोजगारप्राप्त होता है।जन्मांग के सप्तम भाव की भी व्यवसायके संबंध में महती भूमिका है। इसभाव में सूर्य होने पर व्यक्ति का व्यवसायस्थिर-सा रहता है। चंद्र होने परआमदनी में अस्थिरता रहती है।व्यवसाय भी बदलता रहता है। इसभाव का मंगल व्यवसाय में अविवेकपूर्णनिर्णय लेने की प्रवृत्ति देता है। नीलामीमें बोली लगाकर घाटा सहता है।घाटे के कारण व्यापार बंद होने केकगार पर पहुंच जाता है। सप्तम भावमें बुध हो तो जातक शीघ्र क्रय-विक्रयसे लाभ उठाता है। गुरु इस भाव मेंहोने पर जातक अपना व्यवसायईमानदारी से करता है और उन्नतिपाता है। शुक्र होने पर जातक अपनेव्यवसाय में लाभ एवं लोकप्रियता पाताहै। इस भाव में शनि एवं राहु या केतुका होना जातक के व्यवसाय में बड़ीउथल-पुथल देता है।यदि कुंडली में धन भाव और लाभभाव दोनों श्रेष्ठ हो तो व्यक्ति धन आसानी से कमा सकता है और बचतभी कर लेता है। यदि दूसरा भावअच्छा है और ग्यारहवां भाव बलहीनहै तो धन कठिनाई से प्राप्त होगा।बचत भी होगी। एकादश स्थान श्रेष्ठहो और द्वितीय स्थान कमजोर हो तोधन का आगमन बना रहता है लेकिनबचत मुश्किल से होती है।चंद्रमा पंचमभाव में हो और शुक्र सेदृष्ट हो तो जातक को सट्टा लॉटरीसे धन मिलता है। दूसरे भाव कास्वामी और चौथे भाव का स्वामी नवमभाव में शुभ राशि में हो तो जातक कोभूमि में गड़ी हुई संपत्ति प्राप्त हो जातीहै अथवा यदि धनेश और आयेश दोनोंचतुर्थ भाव में स्थित हों, उनके साथशुभ ग्रह हो और चतुर्थ भाव राशि शुभराशि हो तो भूमिगत संपत्ति प्राप्त होगीशुक्र का द्वादश भाव में होना भी व्यक्तिको सभी सुखोपभोग के लिये पर्याप्तधन देता है।विभिन्न लग्नों के धनदायक ग्रहों कीबलवान स्थिति व्यक्ति को खूब धनलाभ कराती है। मेष लग्न के लिये-मंगल व गुरु, वृषभ के लिये बुध वशनि, मिथुन के लिये- बुध व शुक्र,कर्क के लिये- चंद्र व मंगल, सिंह केलिये सूर्य तथा मंगल, कन्या के लिये-बुध तथा शुक्र-तुला के लिये- शुक्र वशनि, बुध, वृश्चिक के लिये- गुरुऔर चंद्र, धनु के लिये गुरु व सूर्य,मकर के लिये- शनि व शुक्र, कुंभ केलिये- शनि व शुक्र तथा मीन लग्नके लिये- गुरु और मंगल धनदायकग्रह हैं।
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