प्रत्येक व्यक्ति किसी शुभ कार्य को शुभ समय में प्रारंभ करना चाहता है ताकि वह कार्य सफल, लाभकारी तथा मंगलमय हो। ऐसे अनेक शुभ समय (अवसर) विभिन्न कालांगों तथा वार, तिथि, नक्षत्र आदि के सम्मिश्रण से बनते हैं जिन्हें योग कहा जाता है। इसी प्रकार के शुभ योग प्रत्येक कार्य के लिए आचार्यों ने निर्धारित किए हैं। शुभ योगों की भांति अशुभ योग (कुयोग) भी इन्हीं कालांगों से मिलकर बनते हैं जिनमें शुभ कार्यों का प्रारंभ वर्जित है। इस आलेख में उन्हीं योगों का वर्णन करेंगे जिनकी रचना में नक्षत्रों की भूमिका रहती है। द्विपुष्कर योग: यह निम्न स्थितियों में बनता है। तिथि: 2, 7, 12 दिन: मंगलवार, शनिवार या रविवार। नक्षत्र: मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा (मंगल के तीन नक्षत्र)। यह एक शुभाशुभ योग है जिसका नामानुरूप अर्थ ‘दोहरा’ होता है अर्थात इस योग में कोई कार्य होने पर दोहरा लाभ या दोहरी हानि होती है। यदि कोई लाभकारी कार्य हो तो वह एक बार और होता है। इसी प्रकार यदि कोई वस्तु खो जाए तो पुनः एक बार कोई वस्तु खो जाती है। अतः शुभ कार्य करते समय ऐसे योग की तलाश की जाती है। त्रिपुष्कर योग - त्रिपष्कर यागे निम्न स्थितियों में बनता है। तिथि: 2, 7 या 12 वार: मंगलवार, शनिवार या रविवार नक्षत्र: कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद। त्रिपुष्कर योग में शुभ अथवा अशुभ कार्य हो तो वह कुल तीन बार होता है, जैसे किसी की मृत्यु इस योग में हो जाए तो दो अन्य व्यक्तियों की मृत्यु की आशंका हो जाती है। यदि इस योग में किसी विशिष्ट कारण से धनागम हो तो दो बार और धन प्राप्ति होती है। इसीलिए मकान खरीदने, गहने बनवाने या लाटरी-रेस आदि में धन प्राप्ति हो तो इसकी पुनरावृत्ति दो बार और होती है। अतः शुभ कार्यों के लिए त्रिपुष्कर योग का उपयोग किया जाता है। द्विपुष्कर एवं त्रिपुष्कर योग में बहुमूल्य एवं उपयोगी पदार्थ, वस्तुएं जसै जमीन-जायदाद, हीरे जवाहरात, स्वर्ण-चांदी के आभूषण, कार, ट्रक, स्कूटर, गाय, भैंस क्रय करना, नवीन उद्योग की स्थापना आदि करना लाभदायक रहता है। गुरु पुष्य योग: जैसा कि नाम से स्पष्ट है, गुरुवार को यदि पुष्य नक्षत्र हो तो गुरुपुष्य योग घटित होता है। विद्यारंभ, व्यापार, गृहप्रवेश एवं अन्य शुभ कार्यों के लिए गुरु पुष्य योग अत्यंत शुभ है। गुरु पुष्य योग में गुरु अथवा पिता, दादा या श्रेष्ठ व्यक्ति से मंत्र, तंत्र या किसी विशिष्ट विषय के संबंध में उच्च विद्या ग्रहण करना, धन, भूमि, विद्या एवं आध्यात्मिक ज्ञान पा्र प्त करना, गरु से दीक्षा ग्रहण करना, विदेश गमन करना शुभ होता है। सभी योगों में से किसी भी योग का चयन करने से पूर्व तिथि एवं चंद्रमा का बल भी ध्यान में रख लें तो अत्यंत लाभदायक होगा अर्थात् कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर्यन्त चंद्रमा निर्बल माना जाता है। इसके अतिरिक्त गुरु, शुक्र ग्रहों के अस्तकाल में ग्रहण काल, श्राद्ध काल आदि का भी ध्यान कर लने आवश्यक है। विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश आदि कार्य निर्धारित मुहूर्तों में ही करने से कल्याणकारी होंगे। रवि पुष्य योग: यदि रविवार को पुष्य नक्षत्र हो तो रवि पुष्य योग होता है। रवि पुष्य योग शुभ कार्यों के लिए उपयोगी है। मंत्रादि साधन के लिए भी यह श्रेयस्कर है। रविपुष्य ज्योतिष के श्रेष्ठतम् योगों में गिना जाता है। इसमे जडी़ बटू ताडे ऩ, आष्धि बनाना एवं रोग विशेष के लिए औषधि ग्रहण करना शुभ एवं लाभदायक होता है। इसके अतिरिक्त मंत्र-तंत्र, यंत्र आदि तैयार करने के लिए भी यह योग विशेष उपयुक्त माना जाता है। पुष्कर योग: सूर्य विशाखा नक्षत्र में हो तथा चंद्रमा कृतिका नक्षत्र में हो तो ऐसा संयोग ‘पुष्कर योग’ कहलाता है। यह शुभ योग अत्यंत दुर्लभ है। रवि योग: रवि योग अत्यंत शक्तिशाली शुभ योग है। इस योग के दिन यदि तेरह प्रकार के कुयोग में से कोई भी कुयोग हो तो रवि योग उस कुयोग की अशुभता नष्ट कर शुभ कार्यों के प्रारंभ करने हेतु मार्ग प्रशस्त करता है। रवि योग निम्न स्थिति में घटित होता है। सूर्याधिष्ठित नक्षत्र से चैथे, छठे, दसवें, तेरहवें अथवा बीसवें नक्षत्र में यदि चंद्रमा हो तो उस दिन रवि योग घटित होता है। यदि किसी दिन किसी पक्रर के कयुागे केकारण र्काइे शुभ कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सके तो विद्वज्जन रवि योग के आधार पर उस शुभ कार्य को प्रारंभ करवाते हैं। कुयोग: वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें, कुयोग कहा जा सकता है। इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारंभ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है। कुयोग सुयोग: यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए दग्ध नक्षत्र: रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा, बुधवार को धनिष्ठा, गुरुवार को उत्तरा फाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा, शनिवार को रेवती नक्षत्र दग्ध नक्षत्र कहलाते हैं। इनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए। मास-शून्य नक्षत्र: चैत्र में अश्विनी और रोहिणी, वैशाख में चित्रा और स्वाति, ज्येष्ठ में उत्तराषाढ़ा और पुष्य, आषाढ़ में पूर्वा फाल्गुनी और धनिष्ठा, श्रवण में उत्तराषाढा़ और श्रवण, भाद्रपद में शतभिषा और रेवती, अश्विनी में पूर्वा भाद्रपद, कार्तिक में कृतिका और मघा, मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा, पौष में आद्र्रा और अश्विनी, माघ में श्रवण और मूल तथा फाल्गुन में भरणी और ज्येष्ठा मास-शून्य नक्षत्र होते हैं। इनमें शुभ कार्य करने से धन नाश होता है। जन्म नक्षत्र: जातक का जन्म नक्षत्र, 10 वां अनुजन्म नक्षत्र तथा 19 वां त्रिजन्म नक्षत्र कहलाते है। समान रूप से जन्म नक्षत्र की श्रेणी में आते हैं। शुभ कार्य प्रारंभ करने हेतु जन्म नक्षत्र त्यागना चाहिए।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment