ज्योतिष वेदांग है। वेदों की रचना स्वयं ब्रह्मा ने की थी। तब से वेद श्रवण-कथन द्वारा एक से दूसरे के पास और तब से आज हमारे पास पहुंचे हैं। इस प्रकार ज्योतिष अत्यंत ही प्राचीन ज्ञान है जो ऋषि मुनियों द्वारा हमें प्राप्त हुआ है। कुछ हजार वर्ष पूर्व भृगु, पाराशर व जैमिनी आदि ऋषियों ने इसे आधुनिक परिवेश में जनमानस के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया। लेकिन जैसा हमें ज्ञात है किसी भी ज्ञान की लंबी यात्रा में परिवर्तन आ जाता है एवं लंबे समय उपरांत इतना परिवर्तन हो जाता है कि मौलिकता ही समाप्त हो जाती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। दुभाग्यवश ऐसी ही ऐतिहासिकता ज्योतिष की भी रही है। इसके अतिरिक्त केवल भारत ही इस ज्ञान का केंद्र रहा अतः अन्य सभी देश व समुदायों ने इस ज्ञान को नष्ट करने का पूरा- पूरा प्रयास किया। ब्रिटिश साम्राज्य भी इससे आकर्षित हुआ व भारत से जाते-जाते इसे भी मूल रूप में लेकर चला गया। आज जिस ज्योतिष ज्ञान के इतिहास का हम गौरव गान करते हैं वह इन्हीं अवशेषों का आधार है। हमें नहीं मालूम कि मेष का स्वामी मंगल क्यों है ? सूर्य मेष के 100 पर क्यों उच्च का होता है? क्यों केतु की दशा 7 वर्ष की होती है? क्यों अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है? क्यों विंशोत्तरी दशा का प्रयोग ही उत्तम है? क्यों संतान के लिए पंचम भाव, विवाह के लिए सप्तम व व्यवसाय के लिए दशम भाव देखना चाहिए। इस प्रकार से ज्योतिष, जिसका आधार खगोल है व जिसके गवाह स्वयं सूर्य व चंद्रमा हैं, उसके मूल का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। यदि वर्षा ऋतु सूर्य के जल राशि अर्थात् कर्क में आने से प्रारंभ होती है तो क्यों सूर्य के अग्नि राशि अर्थात सिंह राशि में अधिकतम वर्षा होती है। क्यों सूर्य के पुनः जल राशि अर्थात् वृश्चिक व मीन में होने पर वर्षा नहीं होती? निष्कर्षतः एक ही बात कहनी है। जिस प्रकार से पुरखो से प्राप्त जागीर को मरम्मत की आवश्यकता होती है उसी प्रकार ज्योतिष के भी नवीनीकरण की आवश्यकता है और साथ ही इसके मूलरूप को पुनः समझने व जानने की आवश्यकता है। यह न हो कि जिसे हम अपना भूत बताकर गौरवान्वित महसूस करते हैं उस पर अन्य कोई अनुसंधान कर नए रूप में आयुर्वेद के ऊपर एलोपैथी के रूप में हमारे ऊपर थोप दे और हम न चाहते हुए भी उसी विद्या को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएं। मूल रूप में एक बात और जान लेनी चाहिए कि इस ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षण बल एक मात्र बल है जिसके कारण सभी तारे, ग्रह व पिंड एक दूसरे से बंधे हैं एवं उनकी गति व कक्षा में बिल्कुल भी अंतर नहीं आता। पृथ्वी का दिन रात 24 घंटे का ही होता है, वर्ष 365.2422 दिनों का ही होता है - हजारों वर्ष पूर्व भी यही था और हजारों वर्ष बाद भी यही होगा। आसमान में तारे इधर-उधर फैले हुए से लगते हैं लेकिन प्रत्येक तारे की स्थिति की गणना हजारों वर्ष पूर्व भी की जा सकती है। अतः जो बहुत अव्यवस्थित दिखाई देता है वह भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही चल रहा है। यही इस जीवन का भी सच है। यह जिंदगी अनेक मोड़ों पर (यू-टर्न) विपरीत दिशा में चलती हुई प्रतीत होती है लेकिन सच यह है कि मोड़ आने थे और जिंदगी को मोड़ लेना था। इन मोड़ों को पूर्व में ही जानने के लिए ब्रह्मा ने ज्योतिष को रचा था। यदि हम सटीक पूर्वानुमान नहीं कर पा रहे हैं तो आवश्यकता है जर्जर ज्योतिष के नवीनीकरण की। यह जान लेना अति आवश्यक है कि ज्योतिष का आधार खगोल है, जिसका आधार है गुरूत्वाकर्षण और सभी प्राणी इससे पूर्ण रूप से प्रभावित हैं अतः ज्योतिष ही जीवन के पूर्वानुमान का एक मात्र विकल्प है। यदि ज्योतिष में शोध किए जाएं तो हम अनेकों संभावनाओं को पूर्व में जान सकते हैं और छतरी के रूप में उपाय कर बचाव कर सकते हैं। ज्योतिष का सबसे बड़ा लाभ मौसम के पूर्वानुमान लगाकर किया जा सकता है। अनेकों वर्ष पूर्व ही बाढ़ व सूखे का अनुमान लगाकर बड़ी हानि से बचा जा सकता है। इसी प्रकार जातक को कब कौन सी बीमारी हो सकती है उसके अनुसार बचपन से ही प्रयास किया जा सकता है। दो जातकों में समन्वय जानकर उनके वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है। शोध कैसे करें: किसी विषय को विभिन्न लेखकों ने कैसे प्रस्तुत किया, उसमें क्या भिन्नता या समानताएं हैं यह जान लेना और उनका विवेचनात्मक विश्लेषण करते हुए अपने विचारों सहित पेश कर देना ज्योतिष में शोध नहीं है। इस प्रकार से किसी भाषा या साहित्यिक विषय में तो शोध हो सकता है लेकिन ज्योतिष में नहीं। यह विज्ञान स्वरुप है एवं इसमें शोध पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर जिस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान में होता है- उसी तरह से होना चाहिए। इसके लिए जिस विषय में शोध करना है उस विषय में ज्ञान तो प्राप्त करें ही, साथ में दो समूह में डाटा एकत्रित करें। एक समूह जिस पर अनुसंधान करना चाह रहे हैं व दूसरा शेष समूह। जैसे यदि आप शोध करना चाहते हैं कि ज्योतिष के कौन से योग जातक को डाॅक्टर बनाते हैं तो एक समूह में डाॅक्टरों के जन्म विवरण एकत्रित करें व दूसरे समूह में जो डाॅक्टर नहीं है। फिर कम्प्यूटर द्वारा दोनों समूहों पर सभी ज्ञात योगों को लागू करें व दोनों समूहों में उन योगों का प्रतिशत जानने की कोशिश करें। डाॅक्टर के योगों का प्रतिशत दूसरे समूह की अपेक्षा में डाॅक्टर वाले समूह में अधिक उभर कर आना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो कह सकते हैं कि यह योग लागू नहीं है। अन्य नए योगों को भी खोजकर निकाल सकते हैं। कौन सा योग सटीक फलकथन में सक्षम है बता देना ही शोध है। इस गणना को एक पुस्तक के रूप में प्रेषित कर डाॅक्टरेट की डिग्री प्राप्त करें। आशा है इस प्रकार प्रकाशित किए अनेक शोध फल कथन में सटीकता का बोध कराएंगे। ज्योतिष में शोध का प्रमाण-पत्र देने के लिए फ्यूचर पाॅइंट व अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ ने यूजीसी से मान्यता प्राप्त राजस्थान स्थित मेवाड़ विश्वविद्यालय से करार किया है जिसके तहत संघ इच्छुक विद्यार्थियों को अनुसंधान कराने में मदद करेगा व मेवाड़ विश्वविद्यालय उन शोधों को परख कर डाक्टरेट की उपाधि के रूप में डिग्री प्रदान करेगा। आप भी इस सहभागिता का लाभ उठा सकते हैं। फ्यूचर पाॅइंट व संघ आपको अपने चयनित विषय संबंधित अनुसंधान हेतु कम्प्यूटर प्रोग्राम आदि द्वारा सहायता करने के लिए वचनबद्ध है। यदि आप किसी भी विषय से एम.ए. हैं और यूजीसी नियमानुसार आपके 55 प्रतिशत से अधिक अंक हंै तो प्रवेश परीक्षा देकर पीएच.डी. में प्रवेश ले सकते हैं। इस प्रकार आप यूजीसी से मान्यता प्राप्त डाॅक्टरेट की उपाधि तो प्राप्त करेंगे ही, ज्योतिष में आपके शोध का अंशदान ज्योतिष के नव निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।
best astrologer in India, best astrologer in Chhattisgarh, best astrologer in astrocounseling, best Vedic astrologer, best astrologer for marital issues, best astrologer for career guidance, best astrologer for problems related to marriage, best astrologer for problems related to investments and financial gains, best astrologer for political and social career,best astrologer for problems related to love life,best astrologer for problems related to law and litigation,best astrologer for dispute
Tuesday, 26 January 2016
ज्योतिष में शिक्षा और अनुसंधान
ज्योतिष वेदांग है। वेदों की रचना स्वयं ब्रह्मा ने की थी। तब से वेद श्रवण-कथन द्वारा एक से दूसरे के पास और तब से आज हमारे पास पहुंचे हैं। इस प्रकार ज्योतिष अत्यंत ही प्राचीन ज्ञान है जो ऋषि मुनियों द्वारा हमें प्राप्त हुआ है। कुछ हजार वर्ष पूर्व भृगु, पाराशर व जैमिनी आदि ऋषियों ने इसे आधुनिक परिवेश में जनमानस के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया। लेकिन जैसा हमें ज्ञात है किसी भी ज्ञान की लंबी यात्रा में परिवर्तन आ जाता है एवं लंबे समय उपरांत इतना परिवर्तन हो जाता है कि मौलिकता ही समाप्त हो जाती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। दुभाग्यवश ऐसी ही ऐतिहासिकता ज्योतिष की भी रही है। इसके अतिरिक्त केवल भारत ही इस ज्ञान का केंद्र रहा अतः अन्य सभी देश व समुदायों ने इस ज्ञान को नष्ट करने का पूरा- पूरा प्रयास किया। ब्रिटिश साम्राज्य भी इससे आकर्षित हुआ व भारत से जाते-जाते इसे भी मूल रूप में लेकर चला गया। आज जिस ज्योतिष ज्ञान के इतिहास का हम गौरव गान करते हैं वह इन्हीं अवशेषों का आधार है। हमें नहीं मालूम कि मेष का स्वामी मंगल क्यों है ? सूर्य मेष के 100 पर क्यों उच्च का होता है? क्यों केतु की दशा 7 वर्ष की होती है? क्यों अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है? क्यों विंशोत्तरी दशा का प्रयोग ही उत्तम है? क्यों संतान के लिए पंचम भाव, विवाह के लिए सप्तम व व्यवसाय के लिए दशम भाव देखना चाहिए। इस प्रकार से ज्योतिष, जिसका आधार खगोल है व जिसके गवाह स्वयं सूर्य व चंद्रमा हैं, उसके मूल का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। यदि वर्षा ऋतु सूर्य के जल राशि अर्थात् कर्क में आने से प्रारंभ होती है तो क्यों सूर्य के अग्नि राशि अर्थात सिंह राशि में अधिकतम वर्षा होती है। क्यों सूर्य के पुनः जल राशि अर्थात् वृश्चिक व मीन में होने पर वर्षा नहीं होती? निष्कर्षतः एक ही बात कहनी है। जिस प्रकार से पुरखो से प्राप्त जागीर को मरम्मत की आवश्यकता होती है उसी प्रकार ज्योतिष के भी नवीनीकरण की आवश्यकता है और साथ ही इसके मूलरूप को पुनः समझने व जानने की आवश्यकता है। यह न हो कि जिसे हम अपना भूत बताकर गौरवान्वित महसूस करते हैं उस पर अन्य कोई अनुसंधान कर नए रूप में आयुर्वेद के ऊपर एलोपैथी के रूप में हमारे ऊपर थोप दे और हम न चाहते हुए भी उसी विद्या को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएं। मूल रूप में एक बात और जान लेनी चाहिए कि इस ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षण बल एक मात्र बल है जिसके कारण सभी तारे, ग्रह व पिंड एक दूसरे से बंधे हैं एवं उनकी गति व कक्षा में बिल्कुल भी अंतर नहीं आता। पृथ्वी का दिन रात 24 घंटे का ही होता है, वर्ष 365.2422 दिनों का ही होता है - हजारों वर्ष पूर्व भी यही था और हजारों वर्ष बाद भी यही होगा। आसमान में तारे इधर-उधर फैले हुए से लगते हैं लेकिन प्रत्येक तारे की स्थिति की गणना हजारों वर्ष पूर्व भी की जा सकती है। अतः जो बहुत अव्यवस्थित दिखाई देता है वह भी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही चल रहा है। यही इस जीवन का भी सच है। यह जिंदगी अनेक मोड़ों पर (यू-टर्न) विपरीत दिशा में चलती हुई प्रतीत होती है लेकिन सच यह है कि मोड़ आने थे और जिंदगी को मोड़ लेना था। इन मोड़ों को पूर्व में ही जानने के लिए ब्रह्मा ने ज्योतिष को रचा था। यदि हम सटीक पूर्वानुमान नहीं कर पा रहे हैं तो आवश्यकता है जर्जर ज्योतिष के नवीनीकरण की। यह जान लेना अति आवश्यक है कि ज्योतिष का आधार खगोल है, जिसका आधार है गुरूत्वाकर्षण और सभी प्राणी इससे पूर्ण रूप से प्रभावित हैं अतः ज्योतिष ही जीवन के पूर्वानुमान का एक मात्र विकल्प है। यदि ज्योतिष में शोध किए जाएं तो हम अनेकों संभावनाओं को पूर्व में जान सकते हैं और छतरी के रूप में उपाय कर बचाव कर सकते हैं। ज्योतिष का सबसे बड़ा लाभ मौसम के पूर्वानुमान लगाकर किया जा सकता है। अनेकों वर्ष पूर्व ही बाढ़ व सूखे का अनुमान लगाकर बड़ी हानि से बचा जा सकता है। इसी प्रकार जातक को कब कौन सी बीमारी हो सकती है उसके अनुसार बचपन से ही प्रयास किया जा सकता है। दो जातकों में समन्वय जानकर उनके वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है। शोध कैसे करें: किसी विषय को विभिन्न लेखकों ने कैसे प्रस्तुत किया, उसमें क्या भिन्नता या समानताएं हैं यह जान लेना और उनका विवेचनात्मक विश्लेषण करते हुए अपने विचारों सहित पेश कर देना ज्योतिष में शोध नहीं है। इस प्रकार से किसी भाषा या साहित्यिक विषय में तो शोध हो सकता है लेकिन ज्योतिष में नहीं। यह विज्ञान स्वरुप है एवं इसमें शोध पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर जिस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान में होता है- उसी तरह से होना चाहिए। इसके लिए जिस विषय में शोध करना है उस विषय में ज्ञान तो प्राप्त करें ही, साथ में दो समूह में डाटा एकत्रित करें। एक समूह जिस पर अनुसंधान करना चाह रहे हैं व दूसरा शेष समूह। जैसे यदि आप शोध करना चाहते हैं कि ज्योतिष के कौन से योग जातक को डाॅक्टर बनाते हैं तो एक समूह में डाॅक्टरों के जन्म विवरण एकत्रित करें व दूसरे समूह में जो डाॅक्टर नहीं है। फिर कम्प्यूटर द्वारा दोनों समूहों पर सभी ज्ञात योगों को लागू करें व दोनों समूहों में उन योगों का प्रतिशत जानने की कोशिश करें। डाॅक्टर के योगों का प्रतिशत दूसरे समूह की अपेक्षा में डाॅक्टर वाले समूह में अधिक उभर कर आना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो कह सकते हैं कि यह योग लागू नहीं है। अन्य नए योगों को भी खोजकर निकाल सकते हैं। कौन सा योग सटीक फलकथन में सक्षम है बता देना ही शोध है। इस गणना को एक पुस्तक के रूप में प्रेषित कर डाॅक्टरेट की डिग्री प्राप्त करें। आशा है इस प्रकार प्रकाशित किए अनेक शोध फल कथन में सटीकता का बोध कराएंगे। ज्योतिष में शोध का प्रमाण-पत्र देने के लिए फ्यूचर पाॅइंट व अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ ने यूजीसी से मान्यता प्राप्त राजस्थान स्थित मेवाड़ विश्वविद्यालय से करार किया है जिसके तहत संघ इच्छुक विद्यार्थियों को अनुसंधान कराने में मदद करेगा व मेवाड़ विश्वविद्यालय उन शोधों को परख कर डाक्टरेट की उपाधि के रूप में डिग्री प्रदान करेगा। आप भी इस सहभागिता का लाभ उठा सकते हैं। फ्यूचर पाॅइंट व संघ आपको अपने चयनित विषय संबंधित अनुसंधान हेतु कम्प्यूटर प्रोग्राम आदि द्वारा सहायता करने के लिए वचनबद्ध है। यदि आप किसी भी विषय से एम.ए. हैं और यूजीसी नियमानुसार आपके 55 प्रतिशत से अधिक अंक हंै तो प्रवेश परीक्षा देकर पीएच.डी. में प्रवेश ले सकते हैं। इस प्रकार आप यूजीसी से मान्यता प्राप्त डाॅक्टरेट की उपाधि तो प्राप्त करेंगे ही, ज्योतिष में आपके शोध का अंशदान ज्योतिष के नव निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment