निष्क्रमण का अर्थ है - बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है, उस समय निष्क्रमण-संस्कार किया जाता है। इस संस्कार का फल विद्धानों ने शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करना बताया है।
जन्म के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती हैं। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओं का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश से बनता है, इसलिए बच्चे के कल्याण की कामना करते हुए कहा जाता है कि ''हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय भूलोक तथा पृथ्वीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली गंगा-यमुना नदियाँ तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें। निष्क्रमण संस्कार को सोलह संस्कारों में छठा स्थान प्राप्त है, अर्थात यह संस्कार सनातन धर्म में छठा संस्कार माना जाता है। नामकरण के पश्चात सनातन धर्म में निष्क्रमण संस्कार किया जाता है।
यह संस्कार शिशु के जन्म से 12 वें दिन से लेकर 4 महीने तक कभी भी किया जा सकता है। इस संस्कार का उद्देश्य शिशु को ईश्वर की सुन्दर दुनिया से रूबरू करना है। इस संस्कार के अन्तर्गत शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाकर उनसे आशीर्वाद लेने का विधान है।
सूर्य से आशीर्वाद का उद्देश्य है कि शिशु को सूर्य देव के समान तेज प्राप्त हो और चन्द्रमा से कोमल हृदय और शीतलता प्राप्त हो। संक्षेप में कहें तो इस संस्कार के द्वारा ईश्वर से यह आशीर्वाद मांगा जाता है कि संतान तेजस्वी होने के साथ ही विनम्र हो। इस शुभ संस्कार को किस मुहुर्त में करना चाहिए इसके लिए ज्योतिषशास्त्री बताते है कि, ज्योतिषशास्त्र में इस संस्कार के लिए मुर्हुत ज्ञात करने हेतु कुछ नियम बताये गये हैं
नक्षत्र का आंकलन: यह संस्कार 12 वें दिन से 4 महीने तक कभी भी किया जा सकता है परंतु जिस दिन यह संस्कार करें उस दिन नक्षत्र के रूप में श्रवण, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, पुष्य, पुनर्वसु, अश्विनी, रेवती या घनिष्ठा में से कोई भी नक्षत्र मौजूद हो। इन नक्षत्रों को इस संस्कार हेतु बहुत ही शुभ माना जाता है।
जन्म के चौथे मास में निष्क्रमण-संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेंन्द्रियों सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती हैं। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओं का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश से बनता है, इसलिए बच्चे के कल्याण की कामना करते हुए कहा जाता है कि ''हे बालक! तेरे निष्क्रमण के समय भूलोक तथा पृथ्वीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करे। तेरे हदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली गंगा-यमुना नदियाँ तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें। निष्क्रमण संस्कार को सोलह संस्कारों में छठा स्थान प्राप्त है, अर्थात यह संस्कार सनातन धर्म में छठा संस्कार माना जाता है। नामकरण के पश्चात सनातन धर्म में निष्क्रमण संस्कार किया जाता है।
यह संस्कार शिशु के जन्म से 12 वें दिन से लेकर 4 महीने तक कभी भी किया जा सकता है। इस संस्कार का उद्देश्य शिशु को ईश्वर की सुन्दर दुनिया से रूबरू करना है। इस संस्कार के अन्तर्गत शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाकर उनसे आशीर्वाद लेने का विधान है।
सूर्य से आशीर्वाद का उद्देश्य है कि शिशु को सूर्य देव के समान तेज प्राप्त हो और चन्द्रमा से कोमल हृदय और शीतलता प्राप्त हो। संक्षेप में कहें तो इस संस्कार के द्वारा ईश्वर से यह आशीर्वाद मांगा जाता है कि संतान तेजस्वी होने के साथ ही विनम्र हो। इस शुभ संस्कार को किस मुहुर्त में करना चाहिए इसके लिए ज्योतिषशास्त्री बताते है कि, ज्योतिषशास्त्र में इस संस्कार के लिए मुर्हुत ज्ञात करने हेतु कुछ नियम बताये गये हैं
नक्षत्र का आंकलन: यह संस्कार 12 वें दिन से 4 महीने तक कभी भी किया जा सकता है परंतु जिस दिन यह संस्कार करें उस दिन नक्षत्र के रूप में श्रवण, मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, पुष्य, पुनर्वसु, अश्विनी, रेवती या घनिष्ठा में से कोई भी नक्षत्र मौजूद हो। इन नक्षत्रों को इस संस्कार हेतु बहुत ही शुभ माना जाता है।
तिथि: नक्षत्र के समान तिथि का आंकलन भी इसमें बहुत आवश्यक होता है। ज्योतिषशास्त्र कहता है निष्क्रमण संस्कार के लिए सभी तिथि शुभ होती है परंतु रिक्ता यानी चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी तिथि इसके लिए शुभ नहीं मानी जाती है ज्योतिष विधा में इस तिथि का त्याग करने हेतु परामर्श दिया जाता है। इस शुभ शुभ संस्कार के लिए अमावस्या तिथि का त्याग करना चाहिए ऐसी सलाह भी दी जाती है। रिक्ता और अमावस्या को छोड़कर आप किसी भी तिथि में यह संस्कार कर सकते हैं।
वार: रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार इस संस्कार के लिए शुभ माने गये हैं। मंगलवार और शनिवार को इस संस्कार के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इन दो वारों को छोड़कर किसी भी वार को अगर उपरोक्त तिथि व नक्षत्र हो तो यह संस्कार सम्पन्न कर सकते हैं।
निषेध: ज्योतिषशास्त्र में निष्क्रमण संस्कार के लिए तृतीय, पंचम व सप्तम का तारा शुभ नहीं माना गया है। भद्रा तिथि को भी इस कर्म हेतु अशुभ कहा गया है। जिस दिन अशुभ योग हो उस दिन यह संस्कार नही करना चाहिए ऐसा ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है।
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