Monday, 13 April 2015

जलरोग का ज्योतिषीय कारण और उपचार

जलरोग का ज्योतिषीय कारण:
चंद्रमा कफ प्रवृति कारक माना जाता है जिसमें वात का भी संयोग होता है। अत: इसकी प्रतिकूलता से रक्तविकार, डायरिया, ड्राप्सी, पीलिया, टी.बी,. त्वचारोग, भय आदि रोग को जन्म देता है। बृहस्पति कफ से संबंध रखता है। यह लिवर, गॉलब्लैडर, प्लीहा, पैंक्रियाज, कान एवं वसा को नियंत्रित करता है। इन अंगों से उत्पन्न विकृतियां इस ग्रह की महादशा में देखी जाती हैं। शनि कफ प्रकृति का होता है। छाती, पैर, पांव, गुदा, स्नायुतंत्र आदि अंगों का यह जनक है। इसके दुष्प्रभाव से अत्यंत घातक और असाध्य जलीय रोग होते हैं। जलीय ग्रह शरीर की अंत: स्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करता है, जिससे समस्त जननांगीय विकृतियां, मूत्ररोग, आलस्य, थकान आदि पनपते हैं। मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है। यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो, तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है। शरीर के समस्त अव्यवों, क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता हो, तो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है। यूँ तो स्वस्थता-अस्वस्थता एक स्वाभाविक विषय है। किंतु यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते। यह स्थिति तब भी उत्पन हो सकती है, जब अपनी निश्चित मात्रा के अनुसार कोई ग्रह प्राणी पर प्रभाव न डाल पाए। यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते।
डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलियाब्राह्मंड की भांति ही मानवी शरीर भी जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु एवं आकाश नामक इन पंचतत्वों से ही निर्मित है और ये पँचोंतत्व मूलत: ग्रहों से ही नियन्त्रित रहते हैं। आकाशीय नक्षत्रों(तारों, ग्रहों) का विकिरणीय प्रभाव ही मानव शरीर के पंचतत्वों को उर्जा शक्ति प्रदान करता है। इस उर्जाशक्ति का असंतुलन होने पर अर्थात जब भी कभी इन पंचतत्वों में वृद्धि या कमी होती है या किसी तरह का कोई कार्मिक दोष उत्पन होता है, तब उन तत्वों में आया परिवर्तन एक प्रतिक्रिया को जन्म देता है। यही प्रतिक्रिया रोग के रूप में मानव को पीडित करती है। हमारे इस शरीर की स्थिति के लिए जन्मकुंडली का लग्न(देह) भाव, पंचमेश और चतुर्थेश सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लग्न भाव देह को दर्शाता है, चतुर्थेश मन की स्थिति और पंचमेश आत्मा को। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में लग्न(देह), चतुर्थेश(मन) और पंचमेश(आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है, वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है। चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मिथुन राशि पर सूर्य के आते ही गर्मी अपने चरम पर पहुँच जाती है व सूर्य के चंद्रमा की जलीय राशि पर आते ही भरपूर बरसात होने लगती है(ऋतुओं का संवाहक सूर्य ही है)अपनी राशि पर प्रवेश कर सूर्य धरती में समा रहे जल को अपनी प्रचंड गर्मी से खराब कर उसमे विकृतियाँ पैदा करने लगता है अत: सभी प्रकार के जल प्रदूषण से बचने के लिए आवश्यक है कि पूरे जल प्रबंधन में जल दोहन उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो। सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हो। कल-कारखानें आबादी से दूर हों। जानवरों-मवेशियों के लिए अलग-अलग टैंक और तालाब की व्यवस्था हो। नदियां झरनों और नहरों के पानी को दूषित होने से बचाया जाए। इसके लिए घरेलू और कल-कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों को जल स्रोत में मिलने से पहले भली-भांति नष्ट कर देना चाहिए। डिटरजेंट्स का प्रयोग कम करके प्राकृतिक वनस्पति पदार्थ का प्रचलन करना होगा। इन प्रदूषणों को रोकने के लिए कठोर नियम बनाना होगा और उनका कठोरता से पालन करना होगा। मोटे तौर पर घरेलू उपयोग में पानी का प्रयोग करने से पहले यह आश्वस्त हो जाना चाहिए कि वह शुद्ध है या नहीं? यदि संदेह हो कि यह शुद्ध नहीं है तो निम्न तरीकों से इसे शुद्ध कर लेना चाहिए: पीने के पानी के लिए फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए।
पानी को कीटाणु रहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग प्रभावी रहता है। वैसे समय-समय पर लाल दवा डालते रहना चाहिए। पानी को उबाल लें फिर ठंडा कर अच्छी तरह हिलाकर वायु संयुक्त करने के उपरान्त इसका प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को धूप में, प्रकाश में रखना चाहिए। तांबे के बर्तन में रखे तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है। एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या तनिक या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है। चारकोल, बालू युक्त बर्तन से छानकर भी पानी शुद्ध किया जा सकता है। हमेशा बरसात के मौसम में बरसाती जूते के साथ एक रेनकोट रखें। विटामिन सी की मात्रा बढ़ाने से ठंड-गर्म, वायरस, दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि, विटामिन की एक स्वस्थ आपूर्ति एंटीबॉडी को सक्रिय करेंगे। अगर आप बारिश में भीग गए हैं तो एक और शॉवर लेना चाहिए जिससे स्वच्छ पानी से शरीर को सुरक्षित किया जा सके। उसके बाद कम से कम गर्म दूध का एक कप पीयें। इस से आपको संक्रमण से बचाव होगा। पानी के सेवन की वजह से अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को कम करने में मदद मिलेगी। इन सब चिकित्सकीय उपाय के अलावा ज्योतिषीय सलाह से अपने पीडित ग्रह की शांति करानी चाहिए। ग्रह शांति से आपके कमजोर ग्रहों को मजबूत करने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी जिससे आप स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर पायेंगे।

Pt.P.S Tripathi
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